आपके बोध को निखारता है योग
जग्गी वासुदेव प्रश्न : सद्गुरु, सूक्ष्म शरीर क्या होता है? हमें योगासन के दौरान इसकी कल्पना क्यों करनी चाहिए? सद्गुरु : यह शरीर भौतिक शरीर की तुलना में सूक्ष्म होता है. इनसान का सिस्टम बहुत जटिल व सुंदर है. यह बहुत जल्द टूट भी सकता है और साथ ही यह जबरदस्त तरीके से लचीला भी […]
जग्गी वासुदेव
प्रश्न : सद्गुरु, सूक्ष्म शरीर क्या होता है? हमें योगासन के दौरान इसकी कल्पना क्यों करनी चाहिए?
सद्गुरु : यह शरीर भौतिक शरीर की तुलना में सूक्ष्म होता है. इनसान का सिस्टम बहुत जटिल व सुंदर है. यह बहुत जल्द टूट भी सकता है और साथ ही यह जबरदस्त तरीके से लचीला भी है. यह जीवन बहुत ही क्षणभंगुर है – सांस भीतर, सांस बाहर, सांस भीतर, सांस बाहर, …अगर अगली सांस नहीं आयी, तो आप गये. जीवन और मृत्यु के बीच केवल एक आधी सांस ही तो है, एक पूरी सांस भी नहीं . कृपया इसे देखें, लेकिन यह जीवन क्षणभंगुर होते हुए भी लचीला भी है.
भले ही आप किसी एक साधारण आसन का अभ्यास करें या योग के दूसरे आयाम को अपनाएं, सबका एकमात्र मकसद है आपके बोध को निखारना.
इनसान अविश्वसनीय कामों को कर सकता है, क्योंकि इस शरीर को कई स्तरों पर रचा गया है. अगर यह केवल भौतिक होता, तो नींद में किसी की नाक पकड़ने भर से ही उसके प्राण चले जाते. परंतु ऐसा नहीं होता. यह परतों में रचा है. भले ही भौतिक शरीर जीने लायक न रहे, लेकिन दूसरे आयाम अगर जीवित हैं, तो भौतिक शरीर को फिर से जीवंत कर सकते हैं. आपके साथ ऐसा हर दिन होता है. जब आप सोते हैं, तो दरअसल आपका एक हिस्सा मर जाता है – आपका व्यक्तित्व, आपके विचार, आपकी खुद के बारे में बनी हुई राय, लेकिन दूसरे हिस्से जीवित रहते हैं इसलिए सब कुछ नये सिरे से जी उठता है. भले ही आप किसी एक साधारण आसन का अभ्यास करें या योग के दूसरे आयाम को अपनाएं, सबका एकमात्र मकसद है आपके बोध को निखारना, क्योंकि जो आपके बोध में है, आप केवल वही जानते हैं – बाकी तो केवल कल्पना है. आमतौर पर बोध को निखारने के बजाय लोगों को उपदेश दिया जाता है. उपदेश आपको केवल बेलगाम कल्पना की ओर ले जायेगा, जो आपको पागलखाने की ओर ले जाने वाला पक्का तरीका है. अगर आपकी कल्पना बेकाबू हो जाये और वास्तविकता से जुड़ी न रहे, तो आप निश्चित रूप से पागलपन की ओर बढ़ रहे हैं.
अगर आप आध्यात्मिक पथ पर उन उपेदशों को अपनाते हैं, जो आपके लिए जरूरी नहीं हैं, तो आप बहुत जल्दी पागल हो जायेंगे. यह खतरा हमेशा बना रहता है. अगर आप वास्तविकता की ठोस जमीन पर खड़े हैं, और तब आप कोई कल्पना करते हैं, तब तो ठीक है, लेकिन अगर आपकी कल्पना आपको जमीन से उड़ा ले गयी, तो हालात पर आपका कोई काबू नहीं रह जायेगा.
याद्दाश्त व कल्पना आसन व दूसरे यौगिक अभ्यास आपके बोध को निखारने के लिए ही बने हैं, आपको कल्पना की उड़ान पर ले जाने के लिए नहीं. जब आपके बोध में निखार आता है, तब आप जीवन को जान पाते हैं, जीवन के बारे में सोचते नहीं. आज न्यूरोसाइंस का जाना-माना तथ्य है कि जब तक आपके पास थोड़ी याद्दाश्त और कल्पना नहीं होगी, तब तक आपकी आंखें काम नहीं कर सकतीं. इस समय, यह सवाल इसलिए उठा, क्योंकि लोगों के पास सूक्ष्म शरीर का अनुभव नहीं है, लेकिन कोई आपसे कह रहा है कि मेहरबानी करके इसे देखिये – यह कल्पना है! जी हां, हम आपको इसकी कल्पना करने को कह रहे हैं, क्योंकि यथार्थ और कल्पना के बीच का अंतर बहुत बारीक है. असली प्रक्रिया तो हमेशा घटित हो रही है. अगर आप इसे ठीक तरह की सजगता और कार्यों से सहयोग करें. तो असली चीज़ को सामने आने में देर नहीं लगेगी. आपको हमेशा अपनी आंखें कैमरे जैसी लगती है। नहीं, ऐसा नहीं है. जब तक इसके पीछे कंप्यूटर नहीं होगा, यह काम नहीं कर सकती.
हम ईशा कायाकल्प में नेत्रों की प्राकृतिक देखरेख ही कर रहे हैं, जहां हम बेहतर देखने के लिए याद्दाश्त व कल्पना का इस्तेमाल करते हैं. अगर आप किसी चीज के बारे में यादें बना लें, तो आपको आसानी से महसूस हो जायेगा कि एक ही मिनट में आपको सब कुछ अच्छी तरह दिखने लगा है.
कल्पना के बिना याद्दाश्त नहीं हो सकती. यहां तक कि अब भी, आप ऐसी बहुत सी चीजें नहीं देख पाते, जिनके लिए आपके पास याद्दाश्त नहीं है. हम केवल याद्दाश्त बनाने की कोशिश कर रहे हैं और आप कल्पना के बिना याद्दाश्त नहीं बना सकते. आपको हमेशा लगता था कि आप याद्दाश्त के बिना कल्पना नहीं कर सकते. नहीं, जब तक कल्पना नहीं होगी, आप मेमोरी नहीं बना सकते.
कल्पना के बिना मेमोरी संभव नहीं : हम आपको सूक्ष्म शरीर की कल्पना करने को कह रहे हैं. इसे अपने जैसा ही बनाये, बहुत खूबसूरत बनाने की कोशिश न करें. अपनी सूक्ष्म देह को पहलवान की तरह न बनाएं. कल्पना के घोड़े को बेकाबू न होने दें, थोड़ी सी कल्पना ठीक है, क्योंकि थोड़ी सी कल्पना से ही मेमोरी काम करना शुरू करेगा. एक बार जब मेमोरी ने काम करना शुरू कर दिया तो आपको वास्तव में सूक्ष्म शरीर दिखना शुरू हो जायेगा, लेकिन इसे हर जगह न देखें. केवल आसन करते समय ही इसे देखें. जिन लोगों को हर जगह सूक्ष्म शरीर दिखने लगता है, उन्हें भोजन भी सूक्ष्म ही लेना शुरू कर देना चाहिए.
भौतिक अस्तित्व छोटी सी घटना है: अगर आप दिन में आकाश की ओर देखते हैं, तो सूरज दिखाई देता है. आपके अनुभव में वह सबसे अधिक प्रबल होता है. तो आकाश की विशालता का ही वास्तविक अस्तित्व है. सूरज, तारे, आप और मैं – हम सभी सिर्फ छोटी-छोटी घटनाएं हैं, वाकई में क्षणिक घटनाएं हैं हम. रात में अगर आप ऊपर देखते हैं. तो तारे आपके अनुभव में सबसे अधिक प्रबल होंगे, लेकिन सूरज और तारे दोनों ही – और सूरज भी एक तारा ही है – विराट आकाश की तुलना में बहुत तुच्छ हैं. हालांकि आम तौर पर यह कभी आपके अनुभव में नहीं आता. तो आकाश की विशालता का ही वास्तविक अस्तित्व है.
सूरज, तारे, आप और मैं – हम सभी सिर्फ छोटी-छोटी घटनाएं हैं. आज आधुनिक विज्ञान आपको यह कह रहा है कि सूरज की भी एक आयु है. यह स्वयं जल कर धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. जैसे कि आप अपने जीवन को जला कर खत्म करते जा रहे हैं, उसी प्रकार सूरज को भी बुखार चढ़ा है और वह भी अपने जीवन को जला कर खत्म कर रहा है.