अमन बहाल करने की तमाम कोशिशों के बावजूद कश्मीर में अशांति का सिलसिला जारी

सालभर से अशांत कश्मीर घाटी में शुक्रवार को कई घटनाओं में 14 लोग मारे गये. पिछले कुछ समय से सुरक्षाबलों पर आतंकी हमलों तथा उग्र प्रदर्शनों की संख्या में भी इजाफा हुआ है. सरकार और सुरक्षाबलों ने हालात बेहतर करने की दिशा में कई कदम उठाये हैं, पर उनका संतोषजनक नतीजा सामने नहीं आ रहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 18, 2017 8:19 AM
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सालभर से अशांत कश्मीर घाटी में शुक्रवार को कई घटनाओं में 14 लोग मारे गये. पिछले कुछ समय से सुरक्षाबलों पर आतंकी हमलों तथा उग्र प्रदर्शनों की संख्या में भी इजाफा हुआ है. सरकार और सुरक्षाबलों ने हालात बेहतर करने की दिशा में कई कदम उठाये हैं, पर उनका संतोषजनक नतीजा सामने नहीं आ रहा है. उधर सीमा पार से पाकिस्तान-समर्थित घुसपैठ तथा युद्धविराम के लगातार उल्लंघन के मसले भी स्थिति बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. कश्मीर घाटी की मौजूदा स्थिति पर आधारित इन-दिनों की यह प्रस्तुति…

पाकिस्तान के साथ सख्त होने की जरूरत
सीमा पर कार्रवाई और फिर जवाबी कार्रवाई एक चक्रीय प्रक्रिया होती है. दोनों तरफ की सेनाएं अपनी-अपनी सैन्य भूमिकाएं निभाती हैं. कभी इधर का पक्ष हावी होता है, तो कभी उधर का पक्ष. हां, कहीं किसी में उत्साह के साथ गुस्सा थोड़ा ज्यादा हो जाता है, तो कुछ अनर्थ घट जाता है. बाकी कार्रवाइयों की चक्रीय प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती रहती है. लेकिन, हमारी प्रतिक्रियाएं बहुत बढ़ा-चढ़ा कर आती हैं. जरा से हालात बिगड़ते हैं, तो हम एकदम से हताश होने लगते हैं, जैसे हालात हमारे काबू से बाहर हो गये हों. और जब हालात कुछ सुधरते हैं, तब हमारी प्रतिक्रिया एकदम शांत हो जाती है, कि अब कुछ करने की जरूरत ही नहीं है. यही वजह है कि जब कश्मीर घाटी में कोई हमला होता है, तो राजनीतिक भागदौड़ शुरू हो जाती है. लोगों में अफवाहें फैलने लगती हैं कि ये हो रहा है वो हो रहा है.
भारत की अखंडता पर खतरा नहीं
कश्मीर में 1990 से लेकर 2006 तक हर साल करीब एक हजार लोग मारे गये. बीच के कुछ-एक सालों में एक हजार से ज्यादा भी मारे गये. इस बात को लेकर हमारी रणनीति होनी चाहिए कि हम इस हालात को बनने से रोकें. हाल-फिलहाल घाटी में कई हमले हुए हैं और पाकिस्तान की तरफ से कुछ घुसपैठ हुए हैं. हमारे सैनिकों ने जवाबी कार्रवाई में उन्हें मात दी है. इस पर मीडिया में एक शोर भी है कि घाटी की हालत ठीक नहीं है. हां यह बात सही है, लेकिन इस स्थिति के बावजूद भी भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर कोई बुनियादी खतरा नहीं है. भारत के लिए कश्मीर एक होल्डिंग ऑपरेशन है, मतलब यह कि उस पूरे क्षेत्र को हमें अपने कब्जे में रखना है.

अगर हम ऐसा करेंगे, तो हमारे दुश्मन खुद ही टूट कर बिखर जायेंगे. सीमा है, तो वहां हिंसा का बढ़ना-घटना लगा रहता है. स्थितियां बनती-बिगड़ती रहती हैं. इसलिए हमें यह कतई नहीं सोचना चाहिए कि कश्मीर हमारे हाथ से निकल रहा है और न ही यह सोचना चाहिए कि पाकिस्तान कभी अपना इरादा बदलनेवाला है. पाकिस्तान का इरादा तब बदलेगा, जब उसका अपना अस्तित्व खतरे में पड़ेगा. इस तरह के हालात पाकिस्तान खुद ही पैदा कर रहा है. धीरे-धीरे पाकिस्तान में ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं, जिससे कि वह खुद के अस्तित्व को धक्का पहुंचा रहा है.

होल्डिंग ऑपरेशन है कश्मीर
पूरी दुनिया में ऐसा स्थिर राष्ट्र नहीं है, जो आतंकवाद की वजह से बिखर गया हो. कुछ लोग इराक, सीरिया, लीबिया आदि के बिखरन को ऐसी मिसाल में शामिल करते हैं, लेकिन वे इसके बुनियादी मसले को नहीं समझ पाते. किसी भी देश में आतंकवाद के हावी होने का अर्थ यह नहीं है कि आतंकवाद बहुत मजबूत है, बल्कि किन्हीं बाहरी ताकतों की वजह से स्टेट कोलैप्स हो गया, इसलिए आतंकवाद हावी हुआ. जहां-जहां पर भी स्टेट कोलैप्स हो चुका होता है, वहां-वहां आतंकवाद या इस तरह की कट्टर ताकतों का हावी होना अवश्यंभावी है. इस ऐतबार से भारत अभी बहुत मजबूत है, स्टेट एकदम से अडिग है और हमने कश्मीर को होल्डिंग ऑपरेशन बनाये हुए हैं. अगर स्टेट अपने को मजबूत रखता है, तो आतंकवाद या सीमा पर कोई भी सैन्य हिंसा हावी नहीं हो सकती, लेकिन हां, इससे व्यक्तिगत स्तर पर कुछ नुकसान जरूर होता है, मसलन हादसों में लोगों की जानें जाती हैं. लोगों की जानें जाती हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए सेना खड़ी की जाती है. सेनाओं की जवाबी कार्रवाईयों में भी कुछ जानें जाती हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है, इसलिए इसे रोकने और इस पर जहां तक हो सके नियंत्रण करने की हर कोशिश बरकरार रखनी चाहिए. मौत के लाखों बहाने हो सकते हैं, सिर्फ सीमा पर हिंसा या आतंकवाद ही नहीं हैं. इसलिए हमें यह सोच कर चलना चाहिए कि बिना बौखलाये ही हमें तममा जानों की सुरक्षा करनी है.

कमजाेर राजनीतिक इच्छाशक्ति
केपीएस गिल ने बहुत पहले लिखा था कि ‘दि वीक आर नेवर ऐट पीस’ यानी जो कमजोर है, वह कभी शांति से नहीं बैठ सकता. न वो खुद शांति से रह सकता है, न उसे कोई शांति से रहने देगा. इसलिए भारत को अपनी ताकत बढ़ाने के सिवा कोई और चारा नहीं है. किसी भी स्थिति को होल्डिंग मोड में रखने और उस पर काबू पाने के लिए ताकत का होना बहुत जरूरी है. शक्ति सिर्फ पुलिस या सेना से नहीं आती, हालांकि इनकी सख्त जरूरत है, शक्ति आती है राजनीतिक इच्छाशक्ति से. राजनीतिक तौर पर सशक्त देश ही आर्थिक, सामरिक और सामाजिक शक्ति को बरकरार रख पाता है, नहीं तो उसके बिखने में जरा भी देर नहीं लगेगी. हम इसी बात को नहीं समझ पाते. हमारी पूरी राजनीति आज देश को कमजोर करने में लगी हुई है. चाहे वह भ्रष्टाचार की वजह से हो, चाहे सांप्रदायिक राजनीति की वजह से हो, चाहे वह क्षेत्रीय राजनीति की वजह से हो, हमारी पूरी-की-पूरी राजनीति ही आज संकीर्ण और आइडेंटिटी पॉलिटिक्स हो गयी है. हमारी राजनीति ने धर्म-भाषा-क्षेत्र के नाम पर बार-बार देश को बांटने की कोशिश की है. यही वजह है कि देश में जगह-जगह पर हिंसा पैदा हो रही है.
भारत माने पाक को टेरर स्टेट
पाकिस्तान के लिए हमें एक सतत रणनीति विकसित करनी होगी. ऐसा नहीं होना चाहिए कि आज हमारे नेता पाक नेताओं से गले मिल रहे हैं और कल सीमा पर पाक सेना हिंसा कर रही है. पाकिस्तान के साथ कॉस्ट पाॅलिसी अपनानी पड़ेगी, कि अगर वह कोई भी गलत काम करता है, तो उसे उसका हर्जाना भरना पड़ेगा. यानी अगर पाक हमें नुकसान पहुंचा रहा है, तो उसका भी नुकसान होना चाहिए. आर्थिक स्तर पर, राजनीतिक स्तर पर, प्रशासनिक स्तर पर पाकिस्तान को नुकसान पहुंचना चाहिए, तभी वह अपने इरादे बदलेगा. भारत को पाकिस्तान के खिलाफ सख्त होने की जरूरत है. भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान को एक टेरर स्टेट माने और उससे सारे सामान्य रिश्ते खतम करे, तभी पाकिस्तान का नुकसान होगा. ऐसी रणनीति अपनाने की जरूरत है, तभी मुमकिन है कि सीमा पर हिंसा रुकेगी और पाकिस्तान युद्ध विराम का उल्लंघन भी नहीं करेगा. (वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
कश्मीर घाटी में अशांति
बीते एक वर्ष से कश्मीर घाटी में अशांति का दौर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है. सीमा पार से घुसपैठ और सैन्य व अर्धसैन्य बलों पर स्थानीय लोगों द्वारा पत्थरबाजी के कारण इस पूरे इलाके की शांति भंग हो गयी है. यहां फैले अस्थिरता का एक कारण पाकिस्तान है, जो न सिर्फ घुसपैठ के जरिये भारत में आतंकवादियों को भेज रहा है, बल्कि स्थानीय नागरिकों को पैसे देकर पत्थरबाजी के लिए उकसा भी रहा है. एक नजर कश्मीर के हालिया घटनाक्रम पर.
थम नहीं रही पत्थरबाजी
कश्मीर में स्थानीय नागरिकों और सैन्य बलों के बीच टकराव चरम पर पहुंच गया है. लगभग हर दूसरे दिन कश्मीर, विशेषकर दक्षिण कश्मीर के पुरुष, महिला और यहां तक कि बच्चे भी सैन्य बलों के सर्च ऑपरेशन को विफल कर रहे हैं. सैन्य बलों और आतंकवादियों के बीच होने वाले मुठभेड़ की जगह युवाओं, महिलाओं और बच्चों का सेना के खिलाफ नारे लगाना और उन पर पत्थर बरसाने के यहां न जाने कितनी वारदातें हो चुकी हैं. और यह सब सिर्फ आतंकवादियों को बचाने के लिए किया जा रहा है. कई बार स्थानीय नागरिक ऐसा करने में सफल भी हुए हैं और कई बार आतंकियों के साथ-साथ स्थानीय नागरिक भी मारे गये हैं. केवल इसी वर्ष की बात करें तो सुरक्षा बलों के सर्च ऑपरेशन के दौरान इस तरह के हालात में अब तक दस स्थानीय नागरिक मारे गये हैं. वर्ष 2008 से 2010 के दौरान और उसके पहले भी कश्मीर घाटी में कई आंदोलन हुए, लेकिन शायद ही किसी ने सेना के वाहनों या काफिले पर पत्थर फेंका हो या उनके खिलाफ प्रदर्शन किया हो. वर्ष 1990 के दौर में जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था, तब भी शायद ही कभी ऐसी घटना घटी हो. आज यहां जाे कुछ भी हो रहा है, वह एकदम नया ट्रेंड है, जहां लोगों में मरने का डर खत्म हो गया है. इस नये ट्रेंड की शुरुआत 2015 में हुई थी और पिछले वर्ष हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के सैन्य बलों के हाथों मारे जाने के बाद इस तरह की घटनाओं में वृद्धि हाेती चली गयी. अब तक ऐसी लगभग दर्जनों घटनाएं घट चुकी हैं, जो आतंकवादियों की ढाल बन रही हैं.
मारा गया जुनैद मट्टू
कश्मीर के बिगड़ते हालात के मद्देनजर सुरक्षा बल भी पुरे मुस्तैद हो गये हैं. सेना की इसी मुस्तैदी का नतीजा है कि पिछले महीने ही बुरहानी वानी का करीबी सब्जार अहमद बट सुरक्षा बलों के हाथ मारा गया. बुरहान वानी के मारे जाने के बाद सेना की यह दूसरी बड़ी कामयाबी थी. बट के मारे जाने के एक महीने भी नहीं बीते थे कि इसी हफ्ते सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ के संयुक्त अभियान के दौरान आठ घंटे तक चली कार्रवाई में लश्कर के कमांडर जुनैद मट्टू और उसके सहयोगी मुजामिल को दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में मार गिराया गया. मट्टू पर 10 लाख का इनाम घोषित था. वहीं सुरक्षा बलों ने एक आतंकवादी को भी
गिरफ्तार किया है.
विद्रोहियों के खिलाफ कड़ा रुख
कश्मीर की अशांत स्थिति को देखते हुए आतंक प्रभावित क्षेत्रों में पत्थरबाजों व प्रदर्शनकारियों पर पिछले कई महीनों से केंद्र सरकार व सेना ने कड़ा रूख अख्तियार किया हुआ है. इसके साथ ही घाटी में आतंक को बढ़ावा देने के लिए भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ भी कड़ा रुख अपनाया है. यही कारण है कि थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने इसी वर्ष फरवरी में कहा था कि कश्मीर में आतंकी गतिविधियों के खिलाफ हो रही कार्रवाई में बाधा पहुंचानेवाले स्थानीय लोगों को आतंकवादियों का समर्थक माना जायेगा और जरूरत पड़ने पर उन पर गोली भी चलायी जा सकती है. मेजर लीतुल गोगोई द्वारा स्थानीय नागरिक फारूक डार को मानव ढाल के तौर पर सेना की जीप पर बांधने की कार्रवाई भी सख्त रवैये का ही परिचायक है. इसके साथ ही एक सच यह भी है कि सरकार और सुरक्षा बलों के कड़े रुख के बावजूद कश्मीर घाटी के हालात में बदलाव आने के संकेत नहीं दिख रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाक के खिलाफ कार्रवाई की मांग
कश्मीर में मची इस अफरा-तफरी के मद्देनजर भारत ने संयुक्त राष्ट के मनावाधिकार परिषद् के 35वें सत्र में पाकिस्तान की आलोचना करते हुए कहा है कि कश्मीर में स्थिरता के लिए सबसे बड़ी चुनौती पड़ोसी देश द्वारा प्रायोजित आतंकवाद है. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजीव के चंदर ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कहा कि जम्मू-कश्मीर का पूरा इलाका भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान ने अवैध तरीके से हमारे इस क्षेत्र के हिस्से को अपने कब्जे में ले रखा है. उन्होंने आतंकवाद को प्रायोजित करने और आतंक का गढ़ होने के कारण पाकिस्तान के खिलाफ अंतररष्ट्रीय समुदाय से कार्रवाई करने की मांग की है.
भारत स्थायी समाधान की ओर बढ़ रहा है
कश्मीर घाटी में फैली अशांति के बीच इसी महीने की आठ तारीख को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीर के हालात को लेकर आशाजनक बातें कहीं. उन्होंने कहा कि सरकार कश्मीर के हालात से निपटने के एकीकृत स्थायी समाधान की तरफ बढ़ रही है. उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी ताकतों के माध्यम से कश्मीर में अस्थिरता फैलाने और यहां के युवाओं को बरगलाने की पाकिस्तान की चाल से कड़ाई से निपटा जायेगा. उन्होंने पाकिस्तान को चेताते हुए कहा कि हम अपनी तरफ से गोलीबारी की शुरुआत नहीं करेंगे, लेकिन अगर दूसरी तरफ से गोलीबारी होती है, तो उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा.
सरकार और अलगाववादियों में फंसे कश्मीरी युवा
अदनान भट्ट < स्वतंत्र पत्रकार
कश्मीरी युवाओं में मुख्यधारा की राजनीति से पहले से मोहभंग की स्थिति है. इसे एक परदे की तरह देखा जाता है जिसकी आड़ में केंद्र सरकार अपने एजेंडे को आगे बढ़ाती है. लेकिन इसके साथ ही हुर्रियत और अन्य अलगाववादियों से भी उनका असंतोष बढ़ता जा रहा है. यह भावना बीते कुछ सालों में, खासकर बुरहान वानी की मौत के बाद हुए आंदोलन के क्षीण हो जाने के बाद, बढ़ी है.
दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले के रेदवानी गांव के इरशाद मुठभेड़ की कई जगहों पर जा चुके हैं. इस गांव से कुछ युवा उग्रवादी निकल चुके हैं. इरशाद कहते हैं कि यदि वे उग्रवादियों को अपने काम में आगे बढ़ने में उनके साथ नहीं हो सकते हैं, पर कम-से-कम उन्हें बेहद जरूरी होने पर कुछ मदद तो कर ही सकते हैं.
उनका एक दोस्त फ्रिसल गांव में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में घायल हो गया था. उस मुठभेड़ में चार उग्रवादी, तीन सैनिक और एक नागरिक मारे गये थे. मारा गया एक उग्रवादी उसी गांव से था.
इरशाद ने बताया कि वे अरवानी गांव में पिछले दिसंबर में हुए मुठभेड़ के वक्त भी मौजूद थे जिसमें माजिद जरगर और राहिल अमीन दर नामक दो उग्रवादी 48 घंटों की मुठभेड़ के बाद मारे गये थे. उन्होंने यह भी बताया कि कुछ भीतर फंसे हुए थे, पर वे निकल भागने में कामयाब रहे. माजिद ने बहादुरी के साथ सैकड़ों सैनिकों का सामना किया.
यदि हमारे नेता कुछ हौसला दिखाते, तो हमें आजादी मिल चुकी होती.’ इरशाद को खासकर इस बात से नाराजगी थी कि 2010 में और पिछले साल हुर्रियत और अन्य अलगाववादी अपनी बातों पर अड़े नहीं रह सके. उनकी नजर में कश्मीर के मौजूदा हालात की एक जिम्मेवारी उन नेताओं पर भी है.
सरकार और अलगाववादियों दोनों से असंतुष्ट स्थानीय युवा उग्रवादी ही लोगों की नजर में कश्मीरी युवाओं के लिए लड़ते हुए दिखाई देते हैं. इन उग्रवादियों में अनेकों ने अच्छी शिक्षा पायी है और आराम की जिंदगी को छोड़ कर आये हैं. इस कारण से अपनी जान खतरे में डाल कर उन्हें मुठभेड़ से बचाना बहुतों को सही लगता है.
पिछले साल से उग्रवाद के लिए आम समर्थन में बहुत तेजी आयी है, यह बात कई पुलिस अधिकारी भी स्वीकार करते हैं. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि ‘पिछले साल से चीजें बहुत बदल गयी हैं, खासकर दक्षिणी कश्मीर में. हमें यह खुफिया जानकारी मिली है कि कुछ युवा उग्रवादियों के समूह में शामिल भी हुए हैं. और इसका बड़ा मसला यह है कि किस तरह से सोशल मीडिया का इस्तेमाल इन युवाओं को उकसाने के लिए किया जा रहा है.’ लेकिन कई युवा उग्रवादियों की यह भी शिकायत है कि विरोध प्रदर्शनों के बाद उन्हें या तो लगातार परेशान किया गया या उन पर मुकदमे लादे गये.
उनके कारण चाहे जो भी हों, अपने उद्देश्य के लिए जान देने के युवा उग्रवादियों के फैसले ने लोगों में उनके लिए बड़े प्रशंसा का भाव भरा है, खासकर युवाओं में. अनंतनाग जिले में मैं एक 14 वर्षीय लड़के समीर से मिला. दसवीं कक्षा के इस छात्र के नये स्मार्ट फोन में उग्रवादियों की तस्वीरें और उनके वीडियो भरे पड़े हैं. उसके पास कुछ हालिया मुठभेड़ों के वीडियो भी हैं.
उसने बताया कि ये सब उसे स्कूल में दोस्तों से मिला है और इन्हें फोन में रखने का उद्देश्य इन बहादुर लोगों को जानना और याद रखना है. समीर ने दक्षिण कश्मीर में सक्रिय ज्यादातर उग्रवादियों के नाम याद कर लिये हैं और उसका कहना है कि ‘उनकी मदद करना बड़े गौरव की बात होगी.’
(द वायर पर प्रकाशित लेख का एक हिस्सा. साभार)
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