वर्ष 2021 में 1.96 अरब डॉलर तक हो जायेगा, भारत में ऑनलाइन एजुकेशन मार्केट

भारत में ऑनलाइन एजुकेशन का दायरा बेहद तेजी से बढ़ रहा है. इस विस्तार को रेखांकित करने के मकसद से गूगल और केपीएमजी ने हाल ही में ‘ऑनलाइन एजुकेशन इन इंडिया : 2021’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. इस ग्रोथ के प्रमुख फैक्टर्स क्या हैं? इस सेक्टर में भविष्य में किस तरह का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 19, 2017 6:30 AM
an image
भारत में ऑनलाइन एजुकेशन का दायरा बेहद तेजी से बढ़ रहा है. इस विस्तार को रेखांकित करने के मकसद से गूगल और केपीएमजी ने हाल ही में ‘ऑनलाइन एजुकेशन इन इंडिया : 2021’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. इस ग्रोथ के प्रमुख फैक्टर्स क्या हैं? इस सेक्टर में भविष्य में किस तरह का ट्रेंड दिख रहा है? और वे प्रमुख कारक क्या हैं, जिनके चलते इस सेक्टर में तेजी आ रही है और लोगों का रुझान इस ओर बढ़ रहा है, समेत इससे संबंधित विविध पहलुओं को रेखांकित कर रहा है आज का स्टार्टअप पेज …
एडटेक स्टार्टअप्स द्वारा नये-नये तरीकों से लोगों को विविध विकल्प मुहैया कराने की व्यवस्था के बीच क्लासरूम और ट्यूशन जैसे शिक्षा के पारंपरिक सिस्टम धीरे-धीरे अपनी महत्ता खो रहे हैं. इसमें ओपन ऑनलाइन आधारित पाठ्यक्रम के कॉन्सेप्ट्स को बड़े पैमाने पर छात्रों और वर्किंग प्रोफेशनल्स के बीच लोकप्रियता हासिल हो रही है. ‘गूगल-केपीएमजी’ की एक हालिया रिपोर्ट में ऑनलाइन शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूदा रुझानों और चुनौतियों के संदर्भ में विस्तृत अवलोकन किया गया है.
इसमें जिस तथ्य को उल्लेखनीय रूप से दर्शाया गया है, वह है वर्ष 2021 तक भारत में एडटेक (एजुकेशन टेक्नोलॉजी) का बाजार 1.96 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि मौजूदा समय में यह 24.7 करोड़ डॉलर ही है. ‘आइबीइएफ’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में शिक्षा के क्षेत्र का बाजार करीब 100 अरब डॉलर है, और यह एक बड़ा कारण है कि यहां एडटेक स्टार्टअप्स का कारोबार तेजी से बढ़ने की उम्मीद है. इस ग्रोथ के प्रमुख फैक्टर्स क्या हैं?
इस सेक्टर में भविष्य में किस तरह का ट्रेंड दिख रहा है? साथ ही, इतनी बड़ी संभावनाओं वाले इस सेक्टर में कुछ मामलों को छोड़ कर अब तक बड़ा निवेश क्याें नहीं हो पाया है? इन सबका जवाब जानने के लिए ‘इंक42’ ने कुछ निवेशकों और स्टार्टअप के संस्थापकों से संपर्क किया.
‘गूगल-केपीएमजी’ की रिपोर्ट में जिस ट्रेंड और फैक्ट्स का जिक्र किया गया है, इस संदर्भ में ‘इंक42’ ने भारतीय एडटेक सेेक्टर की दशा-दिशा की समीक्षा करने की कोशिश की है, जो इस प्रकार है :
एडटेक में मौजूदा बिजनेस मॉडल और रेवेन्यू मॉडल
भारत में ऑनलाइन एजुकेशन इंडस्ट्री के लिए मौजूदा उपयोगकर्ता आधार मुख्य रूप से स्कूल के छात्र और वर्किंग प्रोफेशनल्स होते हैं. कुछ स्टार्टअप पहली से लेकर 12वीं तक के पाठ्यक्रमों और टेस्ट की तैयारी के लिए कंटेंट मुहैया कराने का मानक तरीके से काम करते हैं. कुछ अन्य ऐसे स्टार्टअप्स भी हैं, जो कौशल-आधारित शिक्षा और आखिरकार इनोवेटिव व नये मॉडल आधारित शिक्षा मुहैया कराते हैं.
आरंभिक तौर पर भारत में एडटेक सेक्टर में पांच ऐसे बिजनेस मॉडल या श्रेणियां पायी गयी हैं, जिनमें तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है. ये
इस प्रकार हैं :
– प्राइमरी व सेकेंडरी सप्लीमेंट एजुकेशन
– टेस्ट प्रिपेरेशन
– रीस्किलिंग एंड ऑनलाइन सर्टिफिकेशन
– हायर एजुकेशन एंड लैंग्वेज
– कैजुअल लर्निंग.
16 लाख रही थी वर्ष 2016 में पेड यूजर बेस की संख्या.
96 लाख तक पहुंच जायेगी पेड यूजर बेस की संख्या वर्ष 2021 तक, जो दर्शाता है कि इसमें छह गुना तक बढ़ोतरी होगी.
44 फीसदी ऑनलाइन एजुकेशन के बारे में ज्यादा सर्च किया गया पिछले एक वर्ष के दौरान, जो प्रमुख छह मेट्रो शहरों से इतर जगहों के
रहनेवाले हैं.
4 गुना ज्यादा बढ़ोतरी हुई है यूट्यूब पर शिक्षा से जुड़े कंटेंट को देखने की एक वर्ष के दौरान.
ऑनलाइन एजुकेशन में ग्रोथ के प्रमुख कारक
21वीं सदी में भारत में शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलाव आया है. स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या और इंटरनेट की सुविधा बढ़ने के साथ एडटेक सेक्टर में पिछले दो वर्षों में 900 से ज्यादा स्टार्टअप्स शुरू हुए हैं. देश में ऑनलाइन शिक्षा में तेजी के लिए कुछ अन्य कारक भी जिम्मेवार हैं.
कम लागत : जैसा कि रिपोर्ट में जिक्र किया गया है, निजी कॉलेज या संस्थानों से इंजीनियरिंग, मेडिकल व कॉमर्स और आर्ट्स के क्षेत्र में ऑनलाइन काेर्स की फीस अपेक्षाकृत कम होती है.
सरल, फ्लेक्सिबल और व्यक्तिगत : स्मार्टफोन के सरल इस्तेमाल के चलते पिछले कुछ वर्षों के दौरान पटना, गुवाहाटी, रांची और कोटा जैसे शहरों में शिक्षा के बारे में व्यापक रूप से जानना ज्यादा मुश्किल नहीं रहा. इन शहरों के छात्रों को भी अब सभी जानकारियां आसानी से मिल रही हैं.
इंटरनेट का बढ़ता इस्तेमाल : देशभर में फिलहाल करीब 40 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और उम्मीद जतायी गयी है कि वर्ष 2021 तक यह संख्या बढ़ कर 73 करोड़ तक हो जायेगी. इससे इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव होगा.
प्रस्तुति
कन्हैया झा
कामयाबी की राह
समयावधि तय करने से मीटिंग होगी सार्थक
टाइम मैनेजमेंट पर आयोजित वर्कशॉप के दौरान अधिकांश प्रतिभागियों ने नियमित होने वाली मीटिंग को वक्त की बर्बादी बताया. इससे कार्यालय में जरूरी गतिविधियों को अंजाम देने के बावजूद बेहतर नतीजे हासिल नहीं हो पाते हैं. मीटिंग में कर्मचारी अक्सर यह सोचते हैं कि यहां नहीं आता, तो इतनी देर में कुछ बेहतर कर सकता था! कर्मचारी के पास मीटिंग में वार्तालाप के लिए ज्यादा कुछ होता नहीं और उद्यमी की भूमिका बहुत सीमित होती है, लेकिन इससे बचने का कर्मचारी के पास कोई उपाय नहीं होता. मीटिंग के ज्यादातर मौकों पर वे केवल मूकदर्शक की भांति होते हैं.
मीटिंग्स अब एक तरह से फैशन बन चुके हैं. यह एक वैश्विक महामारी बन चुकी है, जो उत्पादक कार्यों के समय को बर्बाद करती है. प्रबंधकों के लिए मीटिंग सामान्य होती है और इसके चलते उन्हें अपने उन सार्थक कार्यों को निबटाने के लिए बहुत कम समय मिल पाता है, जो कंपनी के ग्रोथ और उसके अस्तित्व को कायम रखने के संदर्भ में महत्वपूर्ण होते हैं. वैसे अपवाद सभी जगह होते हैं.
क्या हो सकता है समाधान : अब सवाल यह उठता है कि गैर-जरूरी मीटिंग से बचने का हमारे पास कोई समाधान है? हालांकि, इसके लिए कोई एकमात्र फार्मूला या उपाय नहीं है, लेकिन मीटिंग जरूरी होने के बावजूद यह संभव है कि आप समय की बर्बादी को रोक सकते हैं और इस तरह से आप अपने संगठन या उद्यम के विकास व उसकी गुणवत्ता सुधार में योगदान दे सकते हैं.
समाप्ति का समय निर्धारण : मीटिंग को सामान्यतया उसके लिए उपलब्ध समय तक अनावश्यक रूप से जारी रखा जाता है. यदि आपने मीटिंग के लिए एक घंटा समय तय कर रखा है, तो बिना उसके निर्धारित एजेंडा पर गौर किये लोग एक घंटे तक उसे जारी रखेंगे ही.
और कई बार तो चाय या स्नैक्स आदि में होने वाली देरी के कारण भी मीटिंग को कुछ मिनटों के लिए बढ़ा दिया जाता है, भले ही सभी बिंदुओं पर चर्चा पूरी हो चुकी हो. इसलिए मीटिंग आयोजित करने से पहले स्वयं पांच बार यह सोचें कि क्या यह बेहद जरूरी है. क्या इसे टाला जा सकता है? संभवत: आप अपने अधीनस्थ को कह सकते हैं कि मसले को फेस-टू-फेस मिल कर हल करे, जिसमें अन्य पक्षों के विचार फोन के जरिये भी लिये जा सकते हैं.
स्टार्टअप क्लास
सर्विस प्रोवाइडर की भूमिका निभा सकते हैं रेन वाटर हारवेस्टिंग प्लांट कारोबार में
ऋचा आनंद
बिजनेस रिसर्च व एजुकेशन की जानकार
– शहरों में बारिश के पानी को बचाने पर जोर दिया जा रहा है. क्या रेन वाटर हारवेस्टिंग प्लांट का कारोबार ठीक रहेगा? – दिनेश लाल, गया
आपने समसामयिक महत्व का प्रश्न पूछा है. उम्मीद है कि रेन-वॉटर हारवेस्टिंग की जरूरत और तकनीक से जुड़ी बातों की कुछ जानकारी आपने पहले से हासिल की है. इसलिए हम यहां उसके कारोबार से जुड़ी बातों पर चर्चा करेंगे. आजकल सरकार जल संरक्षण परियोजनाओं पर ध्यान दे रही है और नयी नीति के तहत इमारतों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में रेन वाटर हारवेस्टिंग व्यवस्था को अनिवार्य बना रही है.
इसलिए यह एक अच्छा कारोबार बन सकता है. खास तौर पर बड़े शहरों में यह ज्यादा कारगर साबित हो सकता है, जहां कंक्रीट की वजह से बारिश का पानी नालों में व्यर्थ बह जाता है और जमीन के अंदर नहीं जाता. इस कारोबार में आप सॉल्यूशन व सर्विस प्रोवाइडर की भूमिका निभा सकते हैं.
रेन-वाटर हारवेस्टिंग में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के साथ-साथ उनको इन्स्टॉल व देखरेख का काम आपके जिम्मे होगा. इस काम को शुरू करने से पहले किसी उपयुक्त संस्थान से इसकी पूरी जानकारी हासिल कर लें. दिल्ली में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ऐसे कोर्स करवाता है. आपको एक इंजीनियर की जरूरत भी पड़ेगी, जो डिजाइन और इंस्टाॅलेशन में सहायक हो. करीब एक लाख रुपये की लागत से आप यह कारोबार शुरू कर सकते हैं और अपने नेटवर्क के जरिये रिहाइशी इलाकों में संपर्क कर सकते हैं.
रेन वाटर हारवेस्टिंग की तकनीक इमारत की बनावट और इंस्टाॅलेशन के लिए उपलब्ध खुली जगह पर निर्भर करेगी. इसलिए आपको डिजाइन बनाते वक्त इन चीजों का खास ध्यान रखना होगा. इसके अलावा आपको रेन वाटर हारवेस्टिंग उपकरण के विक्रेताओं से संपर्क बनाना होगा, ताकि आप अपने कारोबार के लिए सुगम सप्लाई सुनिश्चित कर सकें. चूंकि इसकी शुरुआतीलागत कम है, इसलिए आपको अपने कारोबार को स्थापित और विस्तृत करने के लिए गुणवत्ता और प्रचार पर विशेष ध्यान रखना पड़ेगा.
साइबर सॉल्यूशन कारोबार में व्यापक संभावनाएं
– साइबर सिक्योरिटी में कुशलता हासिल प्रोफेशनल्स कैसे अपना कारोबार शुरू कर सकता है?
साइबर सिक्योरिटी एक विस्तृत विषय है, जिसके अंतर्गत काफी कंपनियां काम कर रही हैं. दुनियाभर में ऑनलाइन व्यवसाय के फैलने के बाद से बड़े पैमाने पर साइबर क्राइम भी बढ़ रहा है. भारत में भी सरकारी और निजी संस्थानों को इस चुनौती से जूझना पड़ रहा है. साइबर क्राइम कई प्रकार के हैं, जैसे वायरस अटैक, वेबसाइट हैकिंग, डाटा चुराना आदि. मौजूदा दौर में साइबर सिक्योरिटी उपलब्ध करने का विषय और काम दोनों ही प्रासंगिक हैं. आने वाले समय में इसमें व्यापक कारोबारी संभावनाएं हैं. इस व्यवसाय के दो पहलू हैं :
(क) बड़े पैमाने पर साइबर सिक्योरिटी सॉल्यूशन वाली कंपनियां : इस स्तर पर ज्यादातर विदेशी कंपनियां ही मार्केट में काम कर रही हैं. भारतीय कंपनियों को ये सिस्टम इंटीग्रेटर के तौर पर अनुबंधित करती हैं. अतः भारतीय कंपनी स्थानीय प्रतिष्ठानों में इन विदेशी कंपनी के सॉल्यूशन को लोकल आइटी सिस्टम से समन्वय कराती हैं. इसमें स्टार्टअप के लिए संभावना कम है, क्योंकि साइबर सोल्यूशन संवेदनशील विषय है, जिसमें जानी-मानी कंपनी पर ज्यादा भरोसा किया जाता है. इन कंपनियों के पास कर्मचारियों को नयी चुनौतियों के लिए प्रशिक्षित करते रहने के संसाधन ज्यादा हैं. इसलिए आपको इन भारतीय कंपनियों से संपर्क बना कर उनके लिए आंशिक सॉल्यूशन इंप्लीमेंटेशन और उनसे जुड़े छोटे मॉड्यूल पर काम करते हुए अपना व्यवसाय स्थापित करना होगा.
(ख) छोटे पैमाने पर स्थानीय संस्थाओं के लिए सॉल्यूशन : कई ऐसी निजी कंपनियां हैं, जो छोटे स्तर पर काम करती हैं. इनकी समस्या डाटा की सुरक्षा से जुड़ी होती है़ आप ऐसी कंपनियों को अपने ग्राहक के तौर पर देख सकते हैं. आपको इनकी जरूरत के मुताबिक इनके बिजनेस डाटा, कस्टमर डाटा या फाइनेंसियल डाटा को सुरक्षित करने में और उनका बैकअप बनाने में इनकी मदद करनी होगी. इसके अलावा आपको इनका एंटी-वायरस सॉल्यूशन और फायरवॉल भी डिजाइन करने का मौका मिल सकता है.
आपदा के समय राहत पहुंचाते हुए कारोबार का मौका
– क्या बतौर निजी संगठन किसी प्राकृतिक या मानव-जनित आपदा के समय उससे निबटने के लिए कोई डिजास्टर मैनेजमेंट संगठन बना सकता है? क्या आप इसमें कारोबारी संभावनाएं देख रहे हैं?
आपने देखा होगा कि प्राकृतिक या मानव-जनित आपदा के दौरान काफी स्वयंसेवी संस्थाएं सरकारी तंत्र के साथ प्रभावित क्षेत्र में काम करती हैं. ऐसी आपदाओं से निबटने के लिए सरकार ने व्यापक योजना लागू की है. कई स्वयंसेवी और गैर-सरकारी संस्थाएं भी नीतियों के तहत सरकारी योजना में भागीदार बनी हैं. इसमें अलग तरीके की कारोबारी संभावना है. यहां यह समझना जरूरी है कि आप आपदा प्रभावित लोगों से व्यवसाय नहीं कर रहे. मुख्य कार्य सरकारी अनुबंध में है. इसमें व्यावसायिक भागीदारी के लिए आप दो भूमिका में हो सकते हैं :
(क) संसाधन सप्लायर : आप इन आपदाओं के समय राहत कार्य की चीजें उपरोक्त संस्थाओं को मुहैया करा सकते हैं. साथ ही जरूरत होने पर जल-संसाधन, चिकित्सा व ट्रांसपोर्ट व्यवस्था आदि लीज पर लेकर मुहैया करा सकते हैं.
(ख) प्रशिक्षक : जरूरी सर्टिफिकेशन होने पर आप संस्थाओं व विविध समुदायों को आपदा प्रबंधन और राहत व बचाव कार्य का प्रशिक्षण भी दे सकते हैं. आजकल बड़ी कंपनियों में इस तरह की ट्रेनिंग दी जा रही है.
आप राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान या उनके जैसे किसी अन्य संस्थान से आपदा प्रबंधन से जुड़े सर्टिफिकेट कोर्स करें. इससे आपको इस विषय से जुड़ी जानकारी व प्रशिक्षण हासिल होगा. अपने व्यवसाय को ऑल इंडिया डिसास्टर मिटिगेशन इंस्टिट्यूट और अन्य संबंधित संस्थाओं में पंजीकृत करा लें. संसाधनों के लिए आपको सप्लायर्स का व्यापक नेटवर्क बनाना पड़ेगा, जिससे आप स्थानीय स्तर पर जरूरत के अनुसार टूल्स और मैटेरियल जुटा पाएं.
Exit mobile version