रंजन राजन @ पटना
दुनिया में हर साल सर्पदंश से एक लाख से अधिक लोग जान गंवाते हैं. सर्पदंश के बाद पांच लाख लोग आंशिक अक्षमता के शिकार हो जाते हैं. अकेले भारत में हर साल लगभग 46 हजार लोग मरते हैं सर्पदंश से. अच्छी खबर है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले हफ्ते 20 नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीजेज की सूची में सर्पदंश को भी शामिल कर लिया है. पढ़िए एक रिपोर्ट.
उसे सांप ने डंस लिया और उसने पत्नी को दांत काट लिया, यह कहते हुए कि साथ जिये हैं तो मरेंगे भी साथ. पिछले हफ्ते यह खबर कई भाषाओं और देशों में सुर्खियों में छायी रही. बिहार के समस्तीपुर जिले में वीरसिंहपुर गांव निवासी राजमिस्त्री शंकर राय को सर्पदंश के बाद लोग झाड़फूंक वाले के पास ले गये, जहां उसकी मौत हो गयी. उसकी पत्नी को सदर अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी जान बच गयी. इसी समस्तीपुर जिले की एक और खबर इस हफ्ते चर्चा में रही. बारिसनगर के शादीपुर बथनाहा गांव में एक महिला की सर्पदंश से मृत्यु हो गयी और चार दिन बाद उसकी पुत्री भी सर्पदंश का शिकार होकर जान गंवा बैठी. देश के ग्रामीण इलाकों में सर्पदंश से हंसते-खेलते परिवारों के उजड़ने की ऐसी खबरें अकसर पढ़ने-सुनने को मिलती हैं, लेकिन उन पर जरा ठहर कर गौर करने की जरूरत शायद ही समझी जाती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के मुताबिक, दुनिया में हर साल करीब 50 लाख लोग सर्पदंश के शिकार होते हैं, जिनमें से एक लाख से अधिक की जान चली जाती है, जबकि करीब पांच लाख आंशिक अक्षमता के शिकार हो जाते हैं. इनमें अधिकतर लोग अफ्रीका, दक्षिण एशिया, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं. एक अन्य अनुमान के मुताबिक सर्पदंश से अकेले भारत में हर साल करीब 46 हजार लोग असमय जान गंवा देते हैं, जिनमें सर्वाधिक संख्या कामकाजी उम्र के लोगों की होती है. इनमें अधिकतर ग्रामीण इलाकों के झोपड़ीनुमा या खपरैल घरों में रहनेवाले गरीब लोग होते हैं. इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में न तो सर्पदंश के उपचार की पर्याप्त व्यवस्था है, न ही सांपों से सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए गंभीर प्रयास किये जाते हैं.
यहां तक कि स्कूलों की किताबों में भी सर्पदंश के उपचार की वर्षों पुरानी कई ऐसी मान्यताएं भी पढ़ाई जा रही हैं, जो कारगर नहीं होतीं. नतीजा यह है कि सर्पदंश के बाद लोग झाड़-फूंक या झोलाछाप डॉक्टरों से उम्मीद बांध कर जान गंवा देते हैं. पद्मश्री से सम्मानित एवं ‘डॉल्फिनमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर जंतुविज्ञानी रवींद्र कुमार सिन्हा कहते हैं, ग्रामीण इलाकों में वैज्ञानिक ज्ञान के साथ व्यापक जागरूकता अभियान चला कर ही सर्पदंश से मौतों की संख्या काफी कम की जा सकती है.
अच्छी खबर है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब इस जरूरत को स्वीकार कर लिया है. संगठन ने पिछले हफ्ते 20 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों (नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीजेज) की सूची में सर्पदंश को भी शामिल कर लिया है. इस सूची में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, फायलेरिया, रेबीज आदि पहले से शामिल हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि इसमें सर्पदंश को शामिल किये जाने से अब न केवल इसके सर्वसुलभ उपचार के बारे में दुनियाभर के वैज्ञानिक गंभीरता से शोध करेंगे, बल्कि इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए भी दुनियाभर में बेहतर प्रयास भी किये जायेंगे.