इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के कचरे का लग रहा अंबार, इ-वेस्ट निपटाने की बढ़ी चुनौती

डिजिटल युग के उभार ने एक अनोखी समस्या को जन्म दिया है, जो देखते-ही-देखते पूरी दुनिया में महामारी की तरह फैल गयी है. तेजी से बदलती तकनीक और इनाेवेशन के दौर में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बेहद तेजी से नवीनतम तकनीक के साथ लगातार अपडेट किया जाता है. इनमें ज्यादातर कंपोनेंट अत्यधिक कीमती धातुओं के बने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 27, 2017 6:34 AM
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डिजिटल युग के उभार ने एक अनोखी समस्या को जन्म दिया है, जो देखते-ही-देखते पूरी दुनिया में महामारी की तरह फैल गयी है. तेजी से बदलती तकनीक और इनाेवेशन के दौर में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बेहद तेजी से नवीनतम तकनीक के साथ लगातार अपडेट किया जाता है.
इनमें ज्यादातर कंपोनेंट अत्यधिक कीमती धातुओं के बने होते हैं, और संबंधित उपकरण के व्यवहार में नहीं आने की दशा में इन्हें ‘इ-वेस्ट’ के रूप में नष्ट कर दिया जाता है. लेकिन, जिस तरीके से इसे अंजाम दिया जाता है, वह पर्यावरण के लिहाज से बेहद घातक है. कितनी भयावह है यह समस्या और कैसे इससे बचा जा सकता है, समेत इससे संबंधित अनेक मसलों को रेखांकित कर रहा है आज का साइंस टेक पेज …
मौजूदा समय में बड़ी संख्या में ग्राहक मोबाइल फोन, कंप्यूटर्स, टेलीविजन, स्टीरियो और प्रिंटर समेत इस तरह के तमाम उपरकणों का इस्तेमाल करते हैं. आम तौर पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का लाेग भरपूर यानी उसकी निर्धारित समयावधि तक उसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. इसका बड़ा कारण संबंधित उपकरण का नया वर्जन आना या मौजूदा का अप्रचलित होना होता है. और कई बार तो लोग संबंधित उपकरण का नया और बेहतर विकल्प आने के कारण मौजूदा उपकरण को इस्तेमाल बंद कर देते हैं और वह इलेक्ट्रॉनिक कचरे में शामिल हो जाता है. दुनियाभर में मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां लगातार बढ़ती दर से नये हार्डवेयर जारी कर रही हैं. नव विकास के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक कचरे में लगातार वृद्धि हुई है.
मौजूदा समय में हजारों कंपनियां इस दिशा में प्रयासरत हैं, ताकि वेस्ट इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के उत्पादन की मात्रा को कम किया जा सके. ये कंपनियां नये तरीके से बनाये जानेवाली डिवाइस में से उन कीमती धातुओं को निकाल रहे हैं, जिन्हें किसी अन्य डिवाइस के निर्माण के लिए दोबारा से इस्तेमाल के लायक बनाया जा सकता है. समुचित दशाओं के अनुकूल इन धातुओं को पर्यावरण अनुकूल तरीके से बाहर निकाला जाता है. इसे सही तरीके से अपनाने से यह प्रक्रिया बेहद लाभकारी भी साबित हो सकती है. लेकिन, इसके लिए गलत प्रक्रिया अपनायी जाती है, तो फिर वह न केवल इनसान की सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है, बल्कि पर्यावरण को भी गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण प्रोटेक्शन एजेंसी का कहना है कि ‘इ-कचरे’ का निपटारा करने के लिए भले ही नैतिक रूप से मान्य तरीकों को अनिवार्य किया गया है, लेकिन विकसित देश अपने इस कचरे को समुद्री जहाजों में भर कर विकासशील देशों को भेज देते हैं. आयातक देश इन उपकरणों से कीमती धातुओं को निकालते हैं. हालांकि, इन धातुओं को निकालने के लिए अनेक सुरक्षित और सक्षम तरीके मौजूद हैं, लेकिन सरकारी नियंत्रण और अद्यतन तकनीकों के इस्तेमाल के अभाव में इ-वेस्ट में से खतरनाक तरीके से धातुओं को निकाला जाता है.
सेहत से जुड़े प्रमुख जोखिम
दुर्भाग्यवश, अनरेगुलेटेड यानी अनियमित क्षेत्र में रीसाइकिलिंग की प्रक्रिया के तहत धातुओं को निकालने के लिए अक्सर अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें हानिकारक एसिड का इस्तेमाल होता है. इस पद्धति में श्रमिकों के स्वास्थ्य का जोखिम काफी बढ़ जाता है, जिसमें प्यूलमोनरी और कार्डियोवैस्कुलर बीमारी शामिल है.
आधुनिक तकनीकों ने इ-कचरे से कामगारों को जहरीले रसायनों के जोखिम या उसकी चपेट में आये बिना रिसाइकिल करना पर्यावरण अनुकूल तरीकों से आसान बना दिया है. मौजूदा समय में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को रिसाइकिल करना न केवल हमारी जिम्मेवारी है, बल्कि इससे फायदा भी हासिल किया जा सकता है.
कीमती धातुओं को निकालने का तरीका
विकसित देशों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के भीतर मौजूद कीमती धातुओं को निकालने के लिए पर्यावरण अनुकूल और लाभकारी तरीके अपनाये जाते हैं. सही तरीका अपनाने पर कामगारों की सेहत को जोखिम में डाले बिना और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये बिना बेहद सक्षम रूप से धातुओं को निकाला जाता है.
आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को प्रोसेसिंग प्लांट में भेजा जाता है, जहां इन्हें सुरक्षित तरीके से नष्ट किया जा सकता है. प्लास्टिक या अन्य धातु से बने ऊपरी आवरण को हटाया जाता है. फिर इनमें से आंतरिक कंपोनेंट को अलग किया जाता है. फिर सामग्री को ग्रैन्यूलर मैटेरियल यानी कणिक सामग्री में ढक दिया जाता है. मैग्नेट आसानी से कुछ धातु घटकों को निकाल सकते हैं. हालांकि, कुछ कीमती धातुएं, जो मैग्नेट की ओर आकर्षित नहीं होती हैं, वे उसी में रह जाती हैं.
अब इस मैटेरियल को हवा में ब्लास्ट करते हुए सभी प्रकार के प्लास्टिक को अलग किया जाता है. हलके प्लास्टिक कंपोनेंट्स जल जाते हैं और अन्य उत्पादों के लिए इन्हें एकत्र कर लिया जाता है. आखिरी प्रक्रिया के तहत निकाले गये धातुओं को एसिड में भिगाेया जाता है. एसिड की ताकत के अनुसार विविध ताप पर उसमें से विभिन्न पदार्थों को हासिल किया जाता है.
सबसे अंत में, इस मैटेरियल को अनेक प्रकार के एसिड से प्रतिक्रिया करायी जाती है और आखिरकार मैटेलिक एसिड सोलुशन से धातुओं को प्रक्षेपित किया जा सकता है. इस एसिड का कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है.
इ-वेस्ट का बढ़ता प्रदूषण : एक अंतरराष्ट्रीय आपदा
अमेरिका समेत दुनिया के अनेक विकसित देश अपने इ-कचरे को विकासशील देशों में डंप करते हैं. ज्यादातर देशों में इस तरह के इलेक्ट्रॉनिक्स के आयात के लिए कोई रेगुलेटरी नहीं है. इनके निस्तारण के लिए मानक प्रक्रिया को नहीं अपनाया जाता, जिस कारण पर्यावरण और इनसान पर इसका घातक असर हो रहा है.
संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने इस बारे में चेतावनी जारी की है कि समुचित मानक और नियामक के बिना इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के निस्तारण के लिए गलत प्रक्रिया अपनाने से लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण का गंभीर नतीजा सामने आ सकता है.
(स्राेत : इंटेरेस्टिंग इंजीनियरिंग डॉट कॉम)
इ-वेस्ट का अनुचित तरीके से निस्तारण का विपरीत असर
इ-वेस्ट से निकले कई रसायन अत्यधिक जहरीले होते हैं. इनमें से कुछ बच्चों के विकासशील प्रजनन तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं, जबकि अन्य मस्तिष्क के विकास और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं. भारत समेत घाना और चीन जैसे देशों में इस कार्य में ज्यादातर कामगार बच्चे होते हैं और इन्हें इन खतरनाक रसायनों का नतीजा भुगतना पड़ सकता है.
– डॉक्टर केविन ब्रिडगेन, इनसान के शरीर में इलेक्ट्रानिक वेस्ट के असर की जांच करनेवाले प्रमुख वैज्ञानिक.
क्या है इस संबंध में आपकी जिम्मेवारी
जब आपका डिवाइस पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है या आप अपने डिवाइस को अपग्रेड कर रहे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि इसके लिए रिसाइकिलिंग की समुचित व्यवस्था के तहत ऐसा किया जाये.
आज कई कंपनियां अपने पुराने उपकरणों को एकत्र करने में जुटी हैं. इन कंपनियाें को इन्हें पूरी तरह से डिस्पोज करने के बदले इनमें से कारगर पदार्थों को निकालते हुए उनके दोबारा इस्तेमाल से नया उत्पाद तैयार करना चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण बात आपको यह सुनिश्चित करना है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नियमित डंपिंग ग्राउंड तक नहीं पहुंच सकें. इ-कचरे विषाक्त होते हैं और इन्हें बेहद जिम्मेवारी से नहीं निपटा गया, तो इसका नतीजा गंभीर हो सकता है.
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