चीन का भारत-विरोधी रवैया, एशिया में शांति की राह में बाधा
भारत और चीन के बीच तनाव का इतिहास पुराना है. इसका कारण सीमा विवाद, चीन द्वारा पाकिस्तान का समर्थन तथा चीन के आक्रामक आर्थिक और सामरिक रवैये हैं. भारतीय सीमा में अतिक्रमण तथा चीनी सेना की धमकी की हालिया घटनाओं से दोनों देशों के बीच तनातनी के और बिगड़ने के आसार हैं. चीन ने भी […]
भारत और चीन के बीच तनाव का इतिहास पुराना है. इसका कारण सीमा विवाद, चीन द्वारा पाकिस्तान का समर्थन तथा चीन के आक्रामक आर्थिक और सामरिक रवैये हैं. भारतीय सीमा में अतिक्रमण तथा चीनी सेना की धमकी की हालिया घटनाओं से दोनों देशों के बीच तनातनी के और बिगड़ने के आसार हैं. चीन ने भी भारतीय सेना पर उसके इलाके में घुसने का आरोप लगाया है. भारत ने भी सिक्किम सेक्टर में चीन द्वारा कराये जा रहे सड़क निर्माण पर घोर आपत्ति जतायी है. मौजूदा माहौल के विभिन्न आयामों के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का संडे-इश्यू…
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के संवाददाता शी जिंगताओ ने भारत-चीन मुद्दे पर वरिष्ठ टिप्पणीकार मोहन गुरुस्वामी से बातचीत की. पढ़ें.
हालांकि, भारत तथा चीन के बीच की सिक्किम सीमा इनके द्विपक्षीय संबंधों में राजनयिक तथा सैन्य तनावों की वजह रही है, पर पिछले दो दशकों के दौरान कुछेक घुसपैठ तथा हाथापाई को छोड़ कर भारत-चीन सीमा ज्यादातर शांत ही रही कही जायेगी. तो फिर, हालिया विवाद की वजह क्या थी? दोनों ही देशों ने एक दूसरे पर सीमा के अतिक्रमण के आरोप लगाये हैं. आपकी समझ से दोनों के बीच क्या हुआ होगा? क्या यह महज एक संयोग था कि यह घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप की मुलाकात के ठीक पहले घटी?
आप जो कुछ कह रहे हैं, वह बहुत अंशों में सच है, पर जब सीमा पर दोनों ओर के सैनिकों का जमावड़ा इतना सघन और विस्तृत है, जिसमें प्रायः दोनों पक्ष एक-दूसरे से रू-ब-रू भी रहते हैं, तो यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा. जेम्स बांड की एक सुप्रसिद्ध उक्ति है कि ‘पहली बार कोई घटना परिस्थितिजन्य होती है, दूसरी दफा यह एक संयोग है और तीसरी बार यह सिर्फ शत्रुता है.’ शी जिनपिंग या डोनाल्ड ट्रंप से भारतीय नेता की शीर्ष बैठकों के वक्त ऐसी घटनाओं का होना संयोग के दायरे से बाहर जा रहा है और अब इनका एक स्पष्ट ढर्रा जैसा उभर रहा है. इसमें इसकी ज्यादा अहमियत नहीं कि उकसावे की यह कार्रवाई हमारे पक्ष द्वारा होती है या आपके पक्ष के द्वारा. भारतीय जनता यह यकीन करती है कि चीन ही तनाव बढ़ा रहा है. जन संचार तथा तत्काल संचार के इस युग में धारणा ही सच्चाई बन जाती है. मैं दुआ करता हूं कि यह संयोग ही हो, पर वैसा मानना अत्यंत भोलापन ही होगा.
एक जनमत संग्रह के साथ सिक्किम के भारत में विलय के चालीस वर्ष से अधिक अरसे बाद भी चीन सिक्किम को स्पष्ट ढंग से भारत के एक हिस्से के रूप में स्वीकार नहीं कर सका है. यह दूसरी बात है कि 2003 से वह अपने मानचित्रों के द्वारा इस तथ्य को प्रच्छन्न रूप से मानता आया है. इसके अतिरिक्त, चीन के पूर्व प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ का यह दावा था कि भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंधों में सिक्किम अब कोई मुद्दा नहीं रहा. कुछ चीनी विश्लेषकों के अनुसार, चीन के द्वारा सिक्किम को लेकर एक जानी-बूझी अस्पष्टता बरकरार रखी जाने की आंशिक वजह चीन का यह यकीन है कि इससे भारत के साथ सीमा वार्ता में उसका हाथ ऊपर रहेगा. हालांकि, इस पर विवाद हो सकता है, पर इसकी दूसरी वजह चीन द्वारा मैकमहोन लाइन को खारिज किये जाने से संबद्ध है. गौरतलब है कि मैकमहोन लाइन को ही भारत-चीन सीमा तय करने का आधार माना गया था और चीन के साथ अपने सीमा विवाद में यही भारत की मान्यताओं का भी आधार रहा है. इन नजरियों के बारे में आप क्या कहते हैं?
चीन क्या स्वीकार करता है और कौन सी चीज स्वीकृत मानी जाती रही है, यह विवादास्पद है. तथ्य यही है कि सिक्किम का राज्य भारतीय गंणतंत्र का एक हिस्सा है. इस विलय की पुष्टि जनमतसंग्रह द्वारा भी की जा चुकी है. तिब्बत के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता, पर भारत ने तिब्बत की वास्तविकता स्वीकार कर ली है. चीन को भी सिक्किम की वास्तविकता स्वीकार करनी पड़ेगी. इसके अलावा कोई विकल्प ही नहीं है. वह अपने मानचित्र में क्या दिखलाता और क्या नहीं दिखलाता है, इसका कोई अर्थ नहीं. यदि चीन यह समझता है कि सीमा वार्ता में इससे उसका हाथ ऊपर रहेगा, तो यह सोच उसे मुबारक हो. वर्तमान युग में जब ये दोनों ही देश एक अस्वीकार्य स्तर तक की हिंसा में सक्षम हैं, तो बुद्धिमानी की बात यही होगी कि ऐसे पुराने नजरियों को तिलांजलि देकर वास्तविकताओं से निबटा जाये. मैं समझता हूं कि दोनों देशों को यथास्थिति बरकरार रखने की कोई व्यवस्था करनी ही चाहिए.
कुछ चीनी विशेषज्ञों के अनुसार, नवीनतम विवाद ने यह प्रदर्शित किया है कि भारत तथा चीन के बीच शत्रुता की भावना तथा दोनों के बीच प्रभाव के लिए बढ़ती स्पर्धा की पृष्ठभूमि में भारत अभी भी 1962 की शर्मनाक पराजय से उबर नहीं सका है. अपने आर्थिक तथा व्यापारिक संबंधों के बावजूद, दोनों ही पक्ष गहराई से तथा-हालांकि यह विवादास्पद हो सकता है-प्रवृत्ति से भी, एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते. बीजिंग के नजरिये में, भारत ने अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम की ओर झुक कर चीन के विरुद्ध इनका एक गंठजोड़ बनाने में सक्रिय भूमिका अदा की है, ताकि चीन के राजनयिक, आर्थिक तथा सैन्य दबदबे और पाकिस्तान के साथ उसके नजदीकी संबंधों का प्रतिकार किया जा सके. पिछली माह, बीजिंग में आयोजित बेल्ट तथा रोड शीर्ष सम्मेलन से भारत की अनुपस्थिति को चीनी मीडिया ने दोनों देशों के दरम्यान तनावपूर्ण संबंधों की मिसाल के तौर पर पेश किया. भारत-चीन संबंधों पर सैन्य विवादों तथा अन्य सीमा विवादों के असर के बारे में आप क्या सोचते हैं? क्या दोनों देशों में बढ़ती राष्ट्रीय भावनाओं के मद्देनजर ऐसे सीमा विवाद इनके बीच सैन्य संघर्ष अथवा यहां तक कि युद्ध की वजह नहीं बन सकते? क्या चीन को भारत के राजनयिक आक्रमण से चिंतित नहीं होना चाहिए?
1962 पचपन वर्षों पीछे छूट चुका है. ठीक उसी तरह, 1911-12 में जब तिब्बतियों ने चीनियों को तिब्बत से खदेड़ा था, अब काफी पीछे रह गया है. उस वक्त चीनी सैनिक नाथूला से होकर भारत में भाग आये थे. तो क्या 1962 उसी अपमान का बदला था? यह एक हास्यास्पद धारणा ही होगी. वह भारत और यह भारत बहुत भिन्न हैं. ऐसी मासूमियत और कल्पनाओं की जगह अब एक नयी वास्तविकता मौजूद है. जो चीनी विशेषज्ञ 1962 की पुरानी बातें किया करते हैं, उनकी सोच तनिक छोटी है. आर्थिक, प्रौद्योगिक तथा सामाजिक परिवर्तनों की तेज वैश्विक रफ्तार के बीच भारत तथा चीन के भाग्य एक दूसरे से अविच्छिन्न रूप से जुड़े हैं. अगले दो दशकों के अंदर भारत तथा चीन का सकल घरेलू उत्पाद जी-7 देशों से आगे निकल जायेगा. एक बड़े वैश्विक परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है. भारत तथा चीन को चाहिए कि वे अपने अधपके और आधी-अधूरी जानकारी वाले ‘सामरिक विशेषज्ञों’ की बचकानी काल्पनिक दुनिया में जीने की बजाय इन वास्तविकताओं के प्रति जाग्रत होते हुए एक ऐतिहासिक भूमिका में उतरें.
अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा वियतनाम के गंठजोड़ बनाने में भारत की कोई भूमिका नहीं रही है. कुछ चीनी मस्तिष्कों को छोड़कर और कहीं ऐसे किसी गंठजोड़ का कोई वजूद है भी नहीं. हमें यह पता है कि क्या हमारे हित में और क्या अहित में है. अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया चीन से विशाल महासागरों से विलग हैं और इस वजह से उन्हें एक ऐसी सुरक्षा हासिल है, जैसी भारत तथा वियतनाम को नहीं मिल सकती. चीन के साथ इन दोनों देशों की बड़ी स्थलीय सीमाएं हैं और दोनों को किसी भी सशस्त्र संघर्ष के तात्कालिक परिणाम भुगतने होंगे. चीन के साथ अमेरिका तथा जापान के आर्थिक हित इतनी घनिष्ठता से जुड़े हैं कि भारत उन्हें ज्यादा विश्वसनीय साथी नहीं मान सकता. यदि भारत किसी एक बात को समझता है, तो वह यह है कि चीन के मामले में वह अकेला है.
भारत ने ‘वन बेल्ट वन रोड’ में इसलिए हिस्सा नहीं लिया कि उसमें इसकी दिलचस्पी की कोई चीज नहीं थी. जब भी चीन कोई ऐसा प्रस्ताव लायेगा, जिसमें उसकी विश्वदृष्टि भारत को भी समेटती हो, तो भारत उसका उचित प्रत्युत्तर देगा. वरना एक ‘सुदूर सम्राट’ के दरबार में हाजिरी लगाने का भारत का कोई इरादा नहीं है. मैं समझता हूं कि देर से ही सही, मगर चीन में यह बात समझी जाने लगी है. चीन तथा भारत का अधिक आर्थिक जुड़ाव दोनों के सतत तथा दीर्घावधि विकास की सर्वोत्तम आशा है. हम यह आशा करें कि सही समझ हावी होकर रहेगी.
डोकलाम क्षेत्र का सिक्किम भूभाग भूटान से लगता है, जो एक ऐसा देश है, जिसकी भारत से निकटता है और चीन से जिसके अपने सीमा विवाद हैं. भारत-चीन सीमा विवाद में भूटान की भूमिका क्या है?
डोकलाम क्षेत्र में पहले भी तनाव रहा है. वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर भारत तथा चीन की दृष्टि भिन्न रही है. चाहे जिस किसी वजह से हो, दोनों ही देशों में इस भिन्नता का उपयोग अथवा दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति रही है. एक स्वतंत्र देश होते हुए भी भूटान इतिहास तथा संधि के द्वारा भारत से जुड़ा है. यह एक छोटा तथा कमजोर राज्य है. किसी भी बाह्य धमकी से भूटान की रक्षा के लिए भारत अपनी संधिगत जिम्मेवारियों को पूरा करेगा. जहां तीनों देशों की सीमाएं मिलती हैं, उसे लेकर भारत के चीन से जो विवाद हैं, उनके चलते भूटान इस विवाद में घिसट जाता है. एक शांतिप्रिय देश होते हुए भी भूटान अपनी भूमि, सम्मान तथा स्वतंत्रता की रक्षा के प्रति उतना ही प्रतिबद्ध है. चूंकि इस प्रश्नोत्तर को चीन में बड़े पैमाने पर पढ़ा जायेगा, इसलिए मैंने अपनी बातें बेबाकी तथा कुछ हद तक रूखाई से भी रखी हैं. मैं समझता हूं कि वास्तविकताओं को लेकर चीन में अब एक बेहतर समझ बनने की जरूरत है. आज संघर्षों से कोई अर्थ नहीं सधा करता.
(अनुवाद: विजय नंदन)
यात्रियों को आना पड़ा वापस
भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव के कारण कैलाश मानसरोवर जानेवाले 50 यात्रियों के पहले जत्थे को नाथूला बॉर्डर पोस्ट से वापस लौटना पड़ा. यात्रियों ने तीन दिन तक नाथू ला में चीन के परमिशन का इंतजार किया. इसके बाद यात्री 23 जून को वापस गंगटोक लौट आये. यात्रियों के दूसरे जत्थे को गंगटोक से ही वापस लौटना पड़ा. अन्य जत्थों के लिए फिलहाल वीजा जारी नहीं किया जा सका है.
क्या है सड़क निर्माण का विवाद
भारत और चीन के बीच हालिया विवाद का प्रमुख मुद्दा डोकलाम में चीन द्वारा सड़क निर्माण करना है, जिस पर भूटान के साथ ही भारत ने भी ऐतराज जताया है. असल में इस इलाके को लेकर चीन, भारत और भूटान के बीच वर्षों से विवाद चल रहा है. डोकलाम, जिसे डोंगलोग के नाम से भी जाना जाता है, भारत, तिब्बत और भूटान के बीच स्थित है और यह स्थान इन तीनों देशों का मिलन स्थल भी है. इस इलाके पर चीन का नियंत्रण है, लेकिन इस पर भूटान भी अपना दावा करता है. यह क्षेत्र भारत के पूर्वोतर राज्य सिक्किम के हिस्से में भी आता है. इस विवादित क्षेत्र को लेकर चीन के साथ भूटान के पास एक लिखित समझौता है, जिसके अनुसार, जब तक इस सीमा विवाद का अंतिम समाधान नहीं निकल जाता है, तब तक यहां शांति बनाये रखनी होगी. एक नजर इस विवाद से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों पर.
डाेकलाम का महत्व
डोकलाम सिर्फ एक विवादित क्षेत्र ही नहीं है, बल्कि यह भारत और चीन दोनों के लिए सामरिक महत्व भी रखता है.
< भारत के लिए इस विवादित क्षेत्र का इसलिए ज्यादा महत्व है, क्योंकि यह पश्चिम बंगाल स्थित सिलीगुड़ी गलियारा, जो उत्तर-पूर्व को शेष भारत और नेपाल को भूटान से जोड़ता है, को सुरक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यह चुंबी घाटी से महज 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसी वजह से यह गलियारा बेहद संवेदनशील भी माना जाता है. कुछ जगहों पर तो यह गलियारा केवल 17 किलोमीटर चौड़ा है. इसके पतले आकार और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए ही इस गलियारे को भारत का ‘चिकन्स नेक’ कहते हैं.
< चीन-भूटान सीमा चौकी पर पहुंचने के लिए डाेकलाम चीन के लिए सड़क निर्माण करने का आसान रास्ता उपलब्ध कराता है और इन दिनों चीन ऐसा ही करने की कोशिश कर रहा है. चीन की इसी कोशिशों पर भारत ने लगातार आपत्ति जतायी है. डोकलाम के अतिरिक्त तिब्बत स्थित चुंबी घाटी की सहायता से चीन अपने रेल संपर्क को विस्तार देने की योजना भी बना रहा है.
सामरिक हितों के लिहाज से अहम है चुंबी घाटी
चुंबी घाटी सिलीगुड़ी गलियारे से महज 50 किलोमीटर दूर है और यह भूटान, भारत और चीन को जोड़ती है. इसी चुंबी घाटी में दोनों देशों के दो महत्वपूर्ण दर्रे, सिक्किम का नाथू-ला दर्रा और चीन का जेलप-ला दर्रा खुलते हैं. चीन के लिए यह घाटी इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि तिब्बत और सिक्किम के साथ इसकी सीमा लगती है. यह घाटी ना केवल भारत के सामरिक हितों, बल्कि आंतरिक व्यवस्था के लिहाज से भी बहुत ज्यादा अहमियत रखती है. सिलीगुड़ी गलियारा चुंबी घाटी के ठीक नीचे है.
भारत-चीन सीमा विवाद
3,488
किलोमीटर लंबी है भारत-चीन सीमा, जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक.
220
किलोमीटर लंबी सीमा लगती है भारत और चीन की सिक्किम क्षेत्र के अंतर्गत.
2015
में आम जनता के लिए खोला गया था सिक्किम से मानसरोवर (तिब्बत में स्थित) मार्ग.
269
किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कर रहा है चीन, भूटान के पठार पर अपना हिस्सा बता कर.
भारतीय सेना का बंकर तोड़ने से बढ़ा तनाव
चीन और भूटान की सीमा से जुड़े सिक्किम में भारतीय सेना के बंकर पर चीन द्वारा बुल्डोजर चलाने के बाद दोनों देशों के बीच तनातनी बढ़ गयी है. इससे पहले चीन ने भारतीय सेना के पुराने बंकरों को हटाने की मांग की थी, जिसे भारतीय सेना ने खारिज कर दिया था. जून के पहले हफ्ते में सिक्किम के डोका-ला इलाके में दोनों तरफ से सेनाओं की हलचल बढ़ गयी है.