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इस अनोखे स्टार्टअप ने तलाशा कचरे में कारोबार

भारत में कचरे को निबटाने की समस्या बड़ पैमाने पर बढ़ती जा रही है. ऐसे में बेंगलुरु के एक स्टार्टअप ने इस क्षेत्र में छिपे हुए एक बड़े कारोबारी मौके की तलाश की है. यह स्टार्टअप तकनीक के जरिये न केवल रोजगार पैदा करने में कामयाब हुआ है, बल्कि इसने देश-समाज और पर्यावरण की एक […]

भारत में कचरे को निबटाने की समस्या बड़ पैमाने पर बढ़ती जा रही है. ऐसे में बेंगलुरु के एक स्टार्टअप ने इस क्षेत्र में छिपे हुए एक बड़े कारोबारी मौके की तलाश की है. यह स्टार्टअप तकनीक के जरिये न केवल रोजगार पैदा करने में कामयाब हुआ है, बल्कि इसने देश-समाज और पर्यावरण की एक बड़ी समस्या का पर्यावरण अनुकूल समाधान मुहैया कराया है. कैसे काम करता है यह स्टार्टअप और इससे संबंधित विविध पहलुओं को बता रहा है आज का स्टार्टअप पेज …
जीवनशैली में आये व्यापक बदलावों के बीच कचरे का उत्पादन बढ़ गया है और ज्यादातर लोगों के लिए यह एक बड़ी समस्या बन चुकी है. अनेक आधुनिक सुविधाओं वाले मौजूदा युग और पूंजीवादी समाज में औसत जिंदगी जीने वाला इनसान अपने जीवनकाल में औसतन 11 टन कचरा पैदा करता है. इनसान जितना कचरा पैदा करता है, उसमें से 90 फीसदी तक विविध संसाधनों में तब्दील किया जा सकता है. लेकिन, इसके लिए हमें भरोसेमंद, आसान और पर्यावरण-अनुकूल तरीकों को अपनाना होगा.
कचरे के निस्तारण के लिए अब तक ज्यादातर पुराने सिस्टम को ही अपनाया जाता है, जिसके तहत कचरे को ट्रकों में भर कर शहर के बाद लैंड फिल साइट यानी कूड़ा डंप करने की जगह पर डाल दिया जाता है.
बेंगलुरु आधारित एक स्टार्टअप इस दिशा में एक बड़ा बदलाव ला रहा है. ‘सहास जीरो वेस्ट’ नामक इस स्टार्टअप ने कचरे को व्यस्थित करने के लिए प्रकृति, इनसान और तकनीक का एकीकृत इस्तेमाल किया है. वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में कार्यरत यह स्टार्टअप नये कॉन्सेप्ट के जरिये बड़ा बदलाव लाने में सक्षम हो सकता है.
कचरे को बनाया उपयोगी पदार्थ
इस स्टार्टअप के संस्थापक विल्मा रोड्रिग्ज के हवाले से ‘फॉर्ब्स’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सर्कुलर इकॉनोमी इसका केंद्र बिंदु है. रोड्रिग्ज का कहना है, हम अपने क्लाइंट्स को सही इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराते हैं और कचरे का सही तरीके से निस्तारण करने के लिए उन्हें समुचित प्रशिक्षण मुहैया कराते हैं. संबंधित रीसाइकिलिंग इंडस्ट्री तक कचरे को भेजने से पहले अपने स्तर से हम उसमें से जरूरी चीजें निकालते हैं.
एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन का अनुमान है कि इसे लागू करते हुए भारत में वर्ष 2050 तक सालाना 624 अरब डाॅलर बचाया जा सकता है, जो देश की जीडीपी के करीब 30 फीसदी के समान होगा. रोड्रिग्ज कहती हैं कि तेल और अनाज की तरह कचरा भी एक उपयोगी वस्तु है. इस आेर जागरुकता बढ़ाने से कंपोस्ट, बेहतरीन कार्डबोर्ड, छतों की शीट्स और चिपबोर्ड जैसे रीसाइकिल उत्पाद तैयार किये जा सकते हैं. आर्किटेक्ट्स और रीयल इस्टेट डेवलपर्स सस्टेनेबल बिल्डिंग मैटेरियल के रूप में ऐसे उत्पाद की खोज करते हैं.
सिस्टम में गैप
सवा अरब से अधिक आबादी वाला देश भारत वेस्ट मैनेजमेंट की चुनौतियों से व्यापक तरीके से जूझ रहा है. देश के सभी बड़े महानगरों में अक्षम वेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, प्लानिंग का अभाव और प्रति व्यक्ति के हिसाब से ठोस कचरे के उत्पादन की बढ़ती दर इस दिशा में नयी चुनौतियां खड़ी कर रही हैं.
क्या है बड़ी चुनौती
इस दिशा में एक बड़ी चुनौती देशभर में बेशुमार मात्रा में पैदा होने वाला ठोस कचरा है. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रत्येक वर्ष 6.2 करोड़ टन ठोस कचरा पैदा होता है, लेकिन इनमें से केवल 75 से 80 फीसदी तक ही कचरे को स्थानीय निकाय एकत्रित कर पाते हैं. इसमें से भी महज 22 से 28 फीसदी तक ही कचरे को प्रोसेस्ड और ट्रीटेड किया जाता है.
कहां से एकत्रित होता है कचरा
कचरा एकत्रित करने के लिए विकेंद्रित वेस्ट मैनेजमेंट मॉडल को अपनाया गया है. इस मकसद से इन जगहों पर वेस्ट मैनेजमेंट यूनिट्स का संचालन किया जाता है :
– बड़े टेक्नाेलॉजी पार्क्स
– आवासीय परिसरों और
– विविध संस्थानों.
क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया
तीन चरणों में यह कार्य पूरा होता है, जो इस प्रकार हैं :
जीरो वेस्ट प्रोग्राम : इसके जरिये आवासीय परिसरों समेत विविध संस्थानों में व्यापक तादाद में ऑन साइट सोलुशन मुहैया कराता है. कम तादाद में कचरा पैदा होनेवाली जगहों के लिए अलग तरीके से इसका समाधान मुहैया कराया गया है.
एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पोंसिबिलिटी प्रोग्राम : इसके तहत विभिन्न पैकेजिंग कंपनियों के साथ पैकेजिंग के लिए साझेदारी की गयी है. ये कंपनियां अनोखे लॉजिस्टिक मैकेनिज्म के माध्यम से इ-वेस्ट को बेहद संजीदगी से बड़ी मात्रा में रीसाइकिल करते हैं.
क्लोजिंग द लूप इनिशिएटिव : इस चरण के तहत यह स्टार्टअप कंपोस्ट और अन्य प्रकार के विविध रीसाइकिल्ड उत्पादों के जरिये उपयोगी उत्पाद तैयार करता है.
अब तक के सकारात्मक नतीजे : इस स्टार्टअप का दावा है कि इसने अपने प्रयासों से नकेवल सैकड़ों लोगों को रोजगार मुहैया कराया है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में व्यापक योगदान दिया है. जानते हैं इसे आंकड़ों में :
कामयाबी की राह
स्टार्टअप में निवेश के लिए इन तथ्यों पर दें ध्यान
आम तौर पर उद्यमी को यह भरोसा होता है कि उसका स्टार्टअप ग्राहकों को यदि बेहतर उत्पाद या सेवाएं मुहैया करायेगा, तो बाजार में उसकी लोकप्रियता बढ़ेगी और इससे निवेशक आकर्षित होंगे. यह तथ्य अपनेआप में सही है, लेकिन निवेशकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उद्यमी को अन्य कई चीजों का एकसाथ ख्याल रखना होता है. इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं :
अच्छे लोगों का साथ होना : स्टार्टअप को कामयाब बनाने के लिए अच्छे लोगों की मदद लेना जरूरी है. आपके आसपास केवल ऐसे ही लोग नहीं होने चाहिए, जो हर बात में ‘हां’ करते हों. ऐसे लोग आपको कभी सही सलाह नहीं दे पायेंगे. अपने से बेहतर लोगों को भी आपको साथ लेना होगा. साथ ही उनसे नियमित रूप से संवाद बनाये रखना चाहिए.
बिजनेस पोटेंशियल की समझ :
बतौर उद्यमी आपको स्वयं यह सवाल करना चाहिए कि आपने जो कारोबार खड़ा किया है, क्या उसमें पूरी क्षमता है. इसके अलावा, आपको यह भी समझना होगा कि अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आपने जो टीम तैयार की है, क्या वह इस लिहाज से सक्षम है. निवेशक इन चीजों पर ज्यादा ध्यान देते हैं. वे यह जानना चाहते हैं कि वे जहां अपना पैसा लगा रहे हैं, वहां उसकी ग्रोथ कितनी होगी.
समय और ऊर्जा का सही प्रबंधन :
उद्यमी को अपने समय और ऊर्जा का सही प्रबंधन करना चाहिए. जिस कार्य के संबंध में समय और ऊर्जा खर्च की जा रही हो, उसके बारे में सही फैसले करना जरूरी है. कई बार सही कार्यों में समय लगाने का तत्काल फायदा नहीं मिलता, लेकिन भविष्य में जरूर इसका फायदा मिलता है.
निडरता : निडर होकर काम करने पर ही आप अपने स्टार्टअप का विस्तार कर सकते हैं. इसके लिए आपको रिस्क भी लेना होगा. कहावत भी है- नो रिस्क, नो गेन. इसलिए मुनाफा हासिल करने के लिए जोखिम लेना ही पड़ेगा. निवेशक आपके जोखिम लेने की क्षमता को भी परखते हैं. और आपको उस क्षमता पर खरा उतरना होगा.
आइडिया और बाजार की परख :
स्टार्टअप की कामयाबी के लिए जरूरी है कि आपका आइडिया सबसे अलग हो. नया और इनोवेटिव आइडिया होने पर उसके कामयाब होने की उम्मीद बढ़ जाती है. इसके अलावा, आपके भीतर बाजार को परखने की भी क्षमता होनी चाहिए. बाजार में रोजाना कुछ-न-कुछ बदलाव होता है. यदि आप उसे परखने में माहिर हैं, तो आप स्टार्टअप के क्षेत्र में कामयाब हो सकते हैं.
स्टार्टअप क्लास
बेहतर सेवा मुहैया कराते हुए जोड़ा जा सकता है लोकल बस यात्रियों को
ऋचा आनंद
बिजनेस रिसर्च व एजुकेशन की जानकार
– शहरों व कस्बों को जोड़नेवाली लोकल बसों की सेवाओं को पोर्टल के जरिये यात्रियों तक कैसे मुहैया कराया जा सकता है, ताकि दूरदराज जानेवाले लोग इससे जानकारी हासिल कर सकें. क्या इसमें आपको किसी कारोबार की गुंजाइश नजर आ रही है?
बसों की सेवाओं को पोर्टल के जरिये यात्रियों तक पहुंचाने का कारोबार बड़े शहरों और पर्यटन स्थलों में काफी प्रचलित हो चुका है. फिलहाल, शहरों से कस्बों को जोड़नेवाली बसें अभी पोर्टल पर उपलब्ध नहीं हैं. इसलिए इस पर विचार किया जा सकता है. इससे यात्रियों को दो फायदे हो सकते हैं- एक तो उन्हें बस स्टॉप पर लाइन से छुटकारा मिलेगा और दूसरे मन मुताबिक निर्धारित सीटें भी मिल सकेंगी.
इस कारोबार को शुरू करने के लिए आपको सेवा और शुल्क दोनों तय करना होगा-
(क) सेवा : आपको बस मालिकों के साथ बसों की समय-सारणी तैयार करनी होगी, जिसमें निर्धारित रूट और समय की जानकारी हो और यात्री इसके अनुसार सही बस चुन सकें.
(ख) शुल्क : बस के टाइप के अनुसार आपको शुल्क निर्धारित करना होगा, जैसे एसी बसों का किराया सामान्य बसों से अलग होगा. इसलिए शुल्क के साथ-साथ संबंधित सुविधाओं का विवरण भी पोर्टल पर उपलब्ध होना चाहिए.
इसमें कई शुरुआती चुनौतियां भी हैं-
(क) कस्बों से चलने वाली बसों की सेवा असंगठित हैं. इसलिए न तो इनकी कोई निर्धारित समय सारणी होती है और न ही नियमित स्टॉप. इनको पोर्टल पर लाने से पहले आपको बस मालिकों के साथ मिलकर इस दिशा में काफी प्रयास करना होगा.
(ख) फिलहाल ये बस चालक यात्रियों को कोई सीट निर्धारित करके नहीं देते. आपको बस मालिकों के साथ मिलकर न ही सिर्फ सीट नंबर सिस्टम लागू करवाना होगा, बल्कि इनमें से एक हिस्सा अपने पोर्टल के लिए रिजर्व भी करना होगा. ऐसा करने से यात्रियों को आपके पोर्टल के इस्तेमाल का फायदा नजर आयेगा.
आप चाहें तो शुरुआत में अपने पोर्टल से बस सेवाओं और सुविधाओं की जानकारी मुहैया करा सकते हैं. इसकी सफलता के बाद आप टिकट की सेवा भी जोड़ सकेंगे.
ऑनलाइन एजुकेशन में कारोबारी मौके
– सरकारी स्कूलों में बदतर पढ़ाई और प्राइवेट स्कूलों में महंगी होती शिक्षा के बीच क्या ऑनलाइन माध्यम से घरों में ही बच्चों के लिए शिक्षा और डिग्री की व्यवस्था की जा सकती है? कृपया संबंधित सलाह दें, ताकि वैकल्पिक और कानूनी रूप से वैध व्यवस्था के रूप में नया कारोबार शुरू किया जा सके.
आपका सवाल काफी सटीक और प्रासंगिक है. ऑनलाइन शिक्षा को देश में तीन बिलियन डॉलर से भी बड़ा मार्केट बन चुका है. हालांकि, इसका बड़ा हिस्सा ग्रेजुएशन और स्किल-डेवलपमेंट वाले कोर्सेज का है. जहां तक कानूनी वैधता का सवाल है, भारत सरकार ने यह साफ किया है कि ऑनलाइन शिक्षा से प्राप्त सर्टिफिकेट और डिग्री की मान्यता उस इंस्टिट्यूट या स्कूल के मान्य एजुकेशन बोर्ड में पंजीकरण पर निर्भर करेगी.
परंपरागत स्कूलों में सीटों और सुविधाओं की कमी के कारण ऑनलाइन शिक्षा काफी प्रचलित हो रही है. इंटरनेट का बढ़ता प्रसार और इसके इंटरैक्टिव कंटेंट की वजह से विद्यार्थियों में इसका आकर्षण बढ़ रहा है. इसके अलावा सरकार की ओर से भी डिजिटल एजुकेशन पर बल दिया जा रहा है. इसके लिए आप अपनी संस्था को किसी मान्य एजुकेशन बोर्ड में पंजीकृत कराएं और उसके सिलेबस के हिसाब से ऑनलाइन कोर्स तैयार करें. चूंकि एआइसीटीइ फर्जी ऑनलाइन कोर्सेज को बंद कराने और उन पर कार्यवाही करने की मुहीम चला रही है, इसलिए सही पंजीकरण आवश्यक है.
हालांकि ऐसा समझा जाता है कि ऑनलाइन शिक्षा में शुरुआती निवेश कम है, लेकिन आपको अपने कोर्स की क्वालिटी बनाये रखने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी और कंटेंट में निरंतर मेहनत करनी होगी. साथ ही प्रशिक्षित शिक्षकों का पैनल बनाना होगा, जो आपके कोर्सेज का आकलन करते रहें और छात्रों को सपोर्ट कर सकें.
ऑनलाइन कोर्स में छात्रों के ड्रापआउट होने की समस्या भी उजागर हो रही है. इसके मुख्य कारण हैं- शिक्षकों से नियमित संवाद की कमी और कोर्स पूरा करने के लिए समय का दबाव ना होना. इसलिए जरूरी है कि ऑनलाइन कोर्स में इंटरैक्टिव लर्निंग के लिए स्कोप बना रहे और छात्रों की रुचि बनायी रखी जाए.
औषधीय पौधों के लिए मिलती है सरकारी मदद
– नर्सरी की शुरुआत करने के लिए सरकार की ओर से किस तरह की मदद मिल सकती है? इसके लिए किस विभाग से संपर्क करना होगा?
केंद्र और राज्य सरकारें नर्सरी और अन्य लघु उद्योगों के लिए कई योजनाएं चला रही हैं. आप जो नर्सरी बनाना चाहते हैं, उससे जुड़ी सरकारी सहायता प्राप्त कर सकते हैं. इनमें से कुछ सरकारी स्कीम इस प्रकार हैं :
(क) आयुष मंत्रालय, केंद्र सरकार आपको औषधीय पौधे लगाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है. इसके लिए आपकी नर्सरी एक हेक्टेयर से बड़ी होनी चाहिए और आपके पौधे भारतीय औषधि (आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी औषधि) में काम आना चाहिए. अधिक जानकारी के लिए आप आयुष मंत्रालय से संपर्क कर सकते हैं.
(ख) स्टैंड अप इंडिया कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार रियायती दरों पर कर्ज की सुविधा, टैक्स में छूट और अन्य कई सुविधाएं मुहैया कराती है.
(ग) कृषि मंत्रालय के तहत कृषि और कोऑपरेशन विभाग आपको फ्लोरीकल्चर में कई तरह की मदद करता है. इसमें सस्ती कीमत पर अच्छे बीज दिलवाना, आयात कर में छूट, निर्यात में सहायता जैसी चीजें भी शामिल हैं.
और जानकारी के लिए आप केंद्र और राज्य सरकारों के स्कीम के अध्ययन कर सकते हैं.

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