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जीएसटी की चुनौतियां-2 : हालात सामान्य होने में लग सकते हैं छह से 12 माह

इस कानून को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए था अभि सरकार टैक्स के जानकार व एडवोकेट हर दिन अगर बहुत सारा डॉक्यूमेंट अपलोड करना है, तो नेट-स्पीड भी उस लायक होना जरूरी है. जानकारी की कमी तो अपनी जगह है, मगर संरचनात्मक ढांचा भी तो होना चाहिए. अगर वही मुकम्मल न हो तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 3, 2017 6:31 AM
इस कानून को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए था
अभि सरकार
टैक्स के जानकार व एडवोकेट
हर दिन अगर बहुत सारा डॉक्यूमेंट अपलोड करना है, तो नेट-स्पीड भी उस लायक होना जरूरी है. जानकारी की कमी तो अपनी जगह है, मगर संरचनात्मक ढांचा भी तो होना चाहिए. अगर वही मुकम्मल न हो तो जाहिर है परेशानी होगी. पढ़िए दूसरी कड़ी.
जीएसटी को लागू करने में फिलहाल व्यावहारिक परेशानी है. मसलन, नेट का ठीक से काम नहीं करना, कानून के बारे में जानकारी नहीं होना या इसी तरह की और बातें. वस्तुत: यह सब जीएसटी के लागू होने में किसी चुनौती से कम नहीं. यह अलग बात है कि इससे बहुत कुछ बदल जायेगा और आखिरकार उपभोक्ता को ही फायदा होगा, पर यह तत्काल नहीं होगा. कुछ समय लगेगा. मेरा निजी अनुभव बता रहा है कि जीएसटी के बारे में आम कारोबारियों की कौन कहे, टैक्स सलाहकारों को इसके प्रावधानों के बारे में ठीक-ठीक नहीं पता. यह बड़ी परेशानी है.
कारोबारियों को बहुत सारे कागज मेंटेन करने होंगे. यह सब अब तक उनकी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं होता था. पर अब होगा. मैंने देखा कि आज ही नेट के स्लो चलने या सर्वर के काम नहीं करने की वजह से बहुत परेशानी हुई. यह भी किसी चुनौती से कम नहीं है. आपको हर दिन अगर बहुत सारे डॉक्यूमेंट अपलोड करना है, तो नेट का स्पीड भी उस लायक होना जरूरी है. जानकारी की कमी तो अपनी जगह है, पर संरचनात्मक ढांचा भी तो होना चाहिए.
अगर वही मुकम्मल न हो तो जाहिर है परेशानी होगी. बहुत सारे लोगों को रजिस्ट्रेशन में दिक्कत आ रही है.दूसरी दिक्कत उन कारोबारियों को हो रही है, जिनका काम पहले से बचा हुआ है. पुराने माल पर उन्होंने टैक्स चुकता कर दिया है. अब जीएसटी के हिसाब से उन्हें अपना कागज-पत्तर ठीक करना है. हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि जीएसटी के कई प्रावधान काफी कठोर हैं. इसमें ऐसे कारोबारियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. इस हिसाब से मुझे लगता है कि इस कानून को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाना चाहिए था.
एक दूसरी चुनौती हमें दिख रही है, वह ज्यादा गंभीर है.
केंद्रीय जीएसटी कानून के सेक्शन 9 में कहा गया है कि 20 फीसदी से तक टैक्स लगाने का अधिकार सरकार को होगा. इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार जब चाहेगी किसी वस्तु पर टैक्स की सीमा 20 फीसदी तक कर सकती है. फर्ज करिये कि अभी किसी वस्तु पर पांच फीसदी टैक्स लगता है. सरकार इस कानून का सहारा लेकर उसे 20 फीसदी तक कर सकती है. अब तक होता यह था कि सरकारों को टैक्स लगाने के पहले उसे संसद की मंजूरी लेनी होती थी. पर इसमें ऐसा कुछ नहीं होगा. इस हिसाब से हम यह भी कह सकते हैं कि यह संविधान के दायरे से बाहर की बात हो गयी है.
मुझे यह भी लगता है कि जिस तरह की पेचीदगियां आयेंगी, उसके हिसाब से इस कानून में संशोधन भी करना पड़ेगा. अभी इसमें कई संशोधन होंगे. हम यह भी समझते हैं कि कारोबारी जगत में हालात सामान्य होने में छह से 12 महीने का वक्त लग सकता है.

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