आइए एक शुरुआत करें, एक राह निकालें
आशुतोष चतुर्वेदी
भारत गांवों का देश कहलाता है. और क्यों न कहलाये, देश की 69 फीसदी आबादी गांवों में बसती है. महात्मा गांधी ने कहा था कि असली भारत गांवों में बसता है. सच्चाई भी यही है.
हम मानते हैं कि गांवों ने ही इस देश की सदियों पुरानी परंपराओं को जीवित रखा है. लेकिन विकास की दौड़ में हमारे गांव लगातार पिछड़ रहे हैं. शहर और गांव के बीच असमानता की खाई चौड़ी होती जा रही है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2011-12 में शहर में प्रति व्यक्ति आय 8442 रुपये थी जबकि ग्रामीण इलाकों में यह मात्र 3397 रुपये मासिक थी.
दोनों में भारी अंतर शहरी और ग्रामीण स्थितियों को दर्शाते हैं. रोजगार के अवसर भी लोगों को गांवों की अपेक्षा शहरों में ज्यादा मिलते हैं. अक्सर यह कहा जाता है कि यहां दो देश हैं. एक भारत और एक इंडिया. इसमें सच्चाई भी है. बिजली-पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों में केंद्रित होकर रह गयीं हैं. आजादी के 70 साल हो गये लेकिन गांवों में बुनियादी सुविधाओं का नितांत अभाव है. यही वजह है कि बेहतर शिक्षा, रोजगार की तलाश में ग्रामीण बड़े पैमाने पर शहर की ओर पलायन कर रहे हैं.
गांवों के विकास और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमने देश में पंचायती राज व्यवस्था जोर-शोर से शुरू की. उम्मीद थी कि इससे ग्रामीण जनजीवन में गुणात्मक परिवर्तन आयेगा. स्थिति यह है कि पंचायतें हैं, प्रधान हैं, केंद्र और राज्यों से फंड भी आ रहे हैं, लेकिन हालात में कोई गुणात्मक बदलाव नजर नहीं आता. गांधी से लेकर मौजूदा सरकारें इस बात को बारबार दोहराती रही हैं कि गांवों का विकास होना चाहिए. पर ज्यादातर गांव अब भी बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं. मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि अखबार भी शहर केंद्रित हो गये हैं. वे भी ग्रामीण भारत की उपेक्षा करते हैं.
प्रभात खबर एक जिम्मेदार अखबार होने के नाते इस बात को शिद्दत से महसूस करता है कि गांवों का जीवनस्तर सुधरना चाहिए. विकास की प्राथमिकता के केंद्र में गांव होने चाहिए, उन तक भी विकास की किरण पहुंचनी चाहिए. बुनियादी सुविधाएं उनका हक है. इंतजार बहुत हो गया, 70 साल कोई कम वक्त नहीं होता. अब समय आ गया है कि इस दिशा में हम सभी कुछ कदम उठायें.
ऐसे परिदृश्य में प्रभात खबर ने विनम्र प्रयोग के रूप में आठ गांवों को गोद लिया है. वैसे तो यह सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन हमारा मानना है कि एक सजग समाज और अखबार का भी दायित्व बनता है कि वह भी ऐसे कामों में हाथ बंटाये. हम इन गांवों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे. इसमें हम अपने संसाधन तो लगायेंगे ही, लेकिन हमारी मुख्य भूमिका उत्प्रेरक की होगी.
हम जनप्रतिनिधियों और सरकारी योजनाओं के माध्यम से इन गांवों तक विकास योजनाओं को पहुंचाने की पुरजोर कोशिश करेंगे. हम समय-समय पर आपके समक्ष गोद लिये गांवों का लेखा-जोखा भी पेश करेंगे. आपके संज्ञान में लायेंगे कि हमारे-आपके छोटे प्रयासों से इन गांवों में क्या बदला. इस महायज्ञ को सफल बनाने में हमें आप सब की शुभकामनाओं की जरूरत है.
प्रभात खबर ने जिन आठ गांवों को गोद लिया है, वे झारखंड के हों या बिहार के, राज्यों के भूगोल से यहां के हालात पर कोई फर्क नहीं पड़ता. पर प्रभात खबर ने इस हालात को बदलने का संकल्प लिया है.
महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज की बात कही थी. गांव मजबूत और खुशहाल होंगे तो राज्य और देश में खुशहाली आयेगी. पर विकास के तमाम मानकों पर इन गांवों की हकीकत किसी फसाने से कम नहीं. केंद्र और राज्य की सरकारें भी मानती हैं कि गांवों को स्मार्ट यानी समृद्ध बनाना है. शहरों की तरह गांवों तक विकास की गाड़ी पहुंचानी है. इसी शृंखला में प्रभात खबर ने सामाजिक दायित्व के तहत झारखंड और बिहार के इन आठ गांवों में बुनियादी जरूरतों को चरणबद्ध तरीके से पहुंचाने का संकल्प लिया है. हम मानते हैं कि गांवों की सूरत बदलेगी तो समाज भी बदलेगा.
प्रभात खबर की अनोखी पहल, 8 गांवों को लिया गोद
झारखंड के गांव
1. सीताडीह
प्रखंड – अनगड़ा
जिला – रांची
परिवार 120
बिजली 60 घरों में
आबादी700
आंगनबाड़ी केंद्र चल रहे हैं
साक्षरता दर50%
बहुलता – आदिवासी
स्वास्थ्य उपकेंद्र – नहीं
पहुंच पथ – उपलब्ध है
सिंचाई – परंपरागत
पेयजल – कुआं/चापाकल
स्कूल – उपलब्ध
2. गोबरघुसी
प्रखंड – पटमदा
जिला – पूर्वीसिंहभूम
परिवार – 557
आबादी – 3500
बिजली – 220 घरों में
शौचालय – 120 घरों में
आंगनबाड़ी केंद्र – 02
साक्षरता दर – 30%
बहुलता – अादिवासी
स्वास्थ्य केंद्र – नहीं
सड़क – नहीं है
सिंचाई – परंपरागत
पेयजल – पारंपरिक स्रोत
स्कूल – हाइस्कूल अपग्रेडेड
3. त्रियोनाला
प्रखंड – कसमार
जिला – बोकारो
परिवार -180
बिजली कनेक्शन है, पर रहती नहीं
शौचालय -40 घरों में
आंगनबाड़ी केंद्र – 01
साक्षरता दर – 35%
बहुलता – एससी
स्वास्थ्य केंद्र – नहीं
सड़क – नहीं है
सिंचाई – पारंपरिक
पेयजल – पारंपरिक स्रोत
स्कूल – प्राथमिक व मध्य
4. झिकटी
प्रखंड – सारवां
जिला – देवघर
परिवार – 134
आबादी -1200
बिजली पहुंची नहीं है
शौचालयएक भी घर में नहीं
आंगनबाड़ी केंद्र – 01
साक्षरता दर – 50%
बहुलता – ओबीसी
स्वास्थ्य केंद्र – नहीं
सड़क – पक्की नहीं है
सिंचाई – सुविधा नहीं
पेयजल – सुविधा नहीं है
स्कूल – एक मध्य विद्यालय
बिहार के गांव
5. बजरुहा
प्रखंड – उदवंतनगर
जिला – भोजपुर
परिवार – 228
आबादी -1480
बिजली – 108 घरों में
शौचालय -40घरों में
आंगनबाड़ी केंद्र – 01
साक्षरता दर – 40%
बहुलता – ओबीसी
स्वास्थ्य केंद्र – नहीं है
सड़क – है
सिंचाई – नहर
पेयजल – चापाकल
स्कूल – एक मध्य विद्यालय
6. मिठानसराय
प्रखंड – कांटी
जिला – मुजफ्फरपुर
परिवार – 300
आबादी -1200
बिजली – 200 घरों में
शौचालय -70%घरों में नहीं
आंगनबाड़ी केंद्र – 02
साक्षरतादर -60%
बहुलता – ओबीसी
स्वास्थ्य केंद्र – नहीं
सड़क – दो तरफ से
सिंचाई – निजी बोरिंग
पेयजल – निजी चापाकल
स्कूल – प्राथमिक विद्यालय
7. सिमरिया
प्रखंड – बोधगया
जिला – गया
परिवार – 115
आबादी -750
बिजली – कनेक्शन नहीं
शौचालयकी व्यवस्था नहीं
आंगनबाड़ी केंद्र – 01
साक्षरतादर -12%
बहुलता – ओबीसी
स्वास्थ्य केंद्र – नहीं
सड़क – नहीं
सिंचाई – बोरिंग
पेयजल – कुआं/चापाकल
स्कूल – प्राथमिक विद्यालय
8. गोलाहू
प्रखंड – नाथनगर
जिला – भागलपुर
परिवार – 250
आबादी -1196
बिजली कनेक्शन है पर रहती नहीं
शौचालय – 5-10घरों में
आंगनबाड़ी केंद्र -01
साक्षरतादर -20%
बहुलता – ओबीसी
स्वास्थ्य केंद्र – नहीं
सड़क – नहीं है
सिंचाई – निजी बोरिंग
पेयजल – पारंपरिक
स्कूल – प्राथमिक विद्यालय
कुछ प्रमुख कवियों की पंक्तियां
गांव की यादें
याद आतीं लीचियां, वे आम
याद आते धान, याद आते कमल, कुमुदनी और मखान
–बाबा नागार्जुन
मेरा बचपन भी साथ ले आया
गांव से जब भी आ गया कोई
– कैफी आजमी
वह बचपन के झूले
वह गांव के मेले
वह ट्रैक्टर की सवारी
वह पुरानी बैलगाड़ी
– राकेशधरद्विवेदी
शहर की इस भीड़
में चल तो रहा हूं
जेहन में पर गांव का नक्शा रखा है
– ताहिर अजीम
मरा नहीं मेरा गांव है
अब भी हरियाली चारों ओर है
खेत-खलिहान भरा है
धान भरपूर है
-महादेव टोप्पो