जीएसटी की चुनौतियां-6 : जीएसटी से बढ़ेगी खेती की लागत
जीएसटी की चुनौतियां-6 : डीजल, बिजली तो बाहर, पर कीटनाशक व ट्रैक्टर पर टैक्स डी एम दिवाकर अर्थशास्त्री एवं पूर्व निदेशक, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस हिंदुस्तान में वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम एक जुलाई, 2017 से लागू हो गया है. केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी), राज्य वस्तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी) और […]
जीएसटी की चुनौतियां-6 : डीजल, बिजली तो बाहर, पर कीटनाशक व ट्रैक्टर पर टैक्स
डी एम दिवाकर
अर्थशास्त्री एवं पूर्व निदेशक, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस
हिंदुस्तान में वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम एक जुलाई, 2017 से लागू हो गया है. केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी), राज्य वस्तु एवं सेवा कर (एसजीएसटी) और संघ क्षेत्र के लिए संघ वस्तु एवं सेवा कर (यूजीएसटी) और एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यापार के लिए समेकित वस्तु एवं सेवा कर (आइजीएसटी) का प्रावधान किया गया है. लेकिन, रियल स्टेट, जवाहरात, शराब और बिजली को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है. निजी क्षेत्र की शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं सहित कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी शून्य कर के दायरे में रखा गया है.
करों की दरें अब केवल चार प्रकार की होंगी : 5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी. यह कर उत्पादन आधारित ना होकर उपभोग आधारित है. जिस राज्य में जो वस्तु एवं सेवा कर की उगाही होगी, उसका आधा केंद्र को और आधा राज्य को मिलेगा. आइजीएसटी में भी आधा सीजीएसटी और आधा एसजीएसटी या यूजीएसटी ही होगा. वस्तुओं एवं सेवाओं के कर में अब पहले की अपेक्षा अधिक पारदर्शिता होने का दावा भी है, लेकिन इस साल के बजट में कर प्रशासन को कमजोर करने के लिए 2015–16 के 26000 करोड़ रुपये के सापेक्ष खर्च घटा कर 12699 करोड़ रुपये करने का इंतजाम भी है. आखिर कैसे पारदर्शिता आयेगी? कहा जा रहा है कि जिन राज्यों को जीएसटी लागू करने से नुकसान होगा, पांच साल तक उनकी भरपाई केंद्र करेगी.
लेकिन सवाल उठता है कि पांच साल बाद क्या होगा?
दावा है कि व्यापारियों को कई प्रकार के करों से मुक्ति मिलेगी और उपभोक्ताओं को वस्तु एवं सेवाएं सस्ती मिलेंगी. साथ ही बिहार एवं झारखंड जैसे उपभोक्ता राज्यों को बहुत फायदा मिलनेवाला है. स्मरण हो कि नयी आर्थिक नीति को लागू करते समय भी यह दावा किया गया था कि दुनिया के बाजार के एक
हो जाने से चीजें, खासकर दवाएं जैसी आवश्यक वस्तुएं सस्ती होंगी. लेकिन, दवाएं कितनी अधिक महंगी हो गयी हैं? सोने पर जीएसटी तीन फीसदी और दिव्यांगों के लिए ब्रेल टाइपराइटर पर जीएसटी पांच फीसदी! महिलाओं के सैनिटरी नैपकिन पर भी 12 फीसदी कर की दर! दवाओं पर जीएसटी 6 से बढ़ कर 12 फीसदी होने की वजह से मरीजों का इलाज कराना भी महंगा होगा. बैंक एवं एटीएम से लेन देन पर सेवा कर लगेगा, जिसमें जन धन खाते भी हैं और गैस कनेक्शन भी महंगा होगा. कपड़ों पर तथा हाथ से बने धागों पर भी 12 फीसदी कर से कपड़े महंगे होंगे.
देश भर में किसान लागत बढ़ने से परेशान हैं. घाटे और कर्ज के बोझ से कई राज्यों में किसान जान दे रहे हैं. उनपर भी जीएसटी का बोझ बढ़नेवाला है. यद्यपि रासायनिक खाद पर तो जीएसटी को घटाकर पांच फीसदी कर दिया गया है, लेकिन कीटनाशक पर जीएसटी 18 फीसदी, ट्रैक्टर पर जीएसटी 12 फीसदी होगा और अंतत: डीजल, बिजली आदि जीएसटी से बाहर होने के बावजूद खेती की लागत बढ़ेगी. अभी ही केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने हलफनामे में हाथ खड़े कर दिये कि चुनावी घोषणा पत्र में किसानों को लागत पर 50 फीसदी लाभ के साथ फसलों का मूल्य देने के वादे को पूरा नहीं कर सकेगी.
पहले तो नोटबंदी कर सरकार ने देशी कारोबार की कमर तोड़ दी और अब बिना आधारभूत संरचना के जीएसटी के लागू होने से और आयातित और घरेलू उत्पादनों के करों में समानता से मेक इन इंडिया और विदेशी पूंजी निवेश के लिए अच्छे दिन और छोटे कारोबारियों के बुरे दिन आयेंगे. भाड़ा समानीकरण से औद्योगिक पिछड़ापन का दंश झेल रहे पिछड़े राज्यों में कर समानीकरण से और पिछड़ कर महज बाजार बनकर रह जायेगा.
ऐसे में सोचना होगा कि सरकार के लिए एक राष्ट्र, एक बाजार और एक कर जरूरी है, पर एक समान शिक्षा और एक समान स्वास्थ्य सुविधा क्यों नहीं? शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की वजह से गरीबों को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य का समान अवसर नहीं मिल पाता है. लोकतंत्र में वोट बहुसंख्यक गरीबों का और लाभ चंद अमीरों के लिए, यह कैसे चल सकता है?