भारतीय सेना की मजबूती के लिए, साजो-सामान और संसाधन मुहैया कराना जरूरी

भारतीय सेना की गिनती दुनिया की उत्कृष्ट सेनाओं में होती है. सेना के तीनों अंगों ने विभिन्न परिस्थितियों में अपनी क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया है. लेकिन, उसकी ताकत को बढ़ाने के लिए साजो-सामान और संसाधनों की कमी को भी पूरा किया जाना जरूरी है. कुछ पड़ोसी देशों की आक्रामकता तथा आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 16, 2017 12:00 PM
भारतीय सेना की गिनती दुनिया की उत्कृष्ट सेनाओं में होती है. सेना के तीनों अंगों ने विभिन्न परिस्थितियों में अपनी क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया है. लेकिन, उसकी ताकत को बढ़ाने के लिए साजो-सामान और संसाधनों की कमी को भी पूरा किया जाना जरूरी है. कुछ पड़ोसी देशों की आक्रामकता तथा आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों के मद्देनजर हथियारों, गोला-बारुद, वाहनों तथा अधिकारियों की समुचित व्यवस्था करना परिस्थितियों की मांग है. इस मुद्दे के विविध पहलुओं पर नजर डालते हुए प्रस्तुत है आज का संडे-इश्यू…
रक्षा बजट बढ़ाये सरकार
भारतीय सेना में साजो-सामान की कमी है, इसको पूरी तरह से कमी के रूप में नहीं देखा जा सकता. हालांकि, कमी तो है, लेकिन इसके कुछ अलहदा पहलू हैं. एक तो यह कि सेना के पास पंद्रह दिन या तीस दिन तक के लिए रिजर्व साजो-सामान और हथियार होते हैं, ताकि किसी देश के साथ लड़ाई की स्थिति में इनका फौरन इस्तेमाल हो सके. दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी देश से लड़ाई की स्थिति क्या है, इसके विस्तार को समझना होगा. मसलन, पाकिस्तान और चीन से सीमा पर रोजाना चलनेवाली छिटपुट लड़ाईयां अलग-अलग खर्च की मांग करती हैं. छोटी लड़ाई है, तो हथियार काफी हैं, लेकिन लड़ाई बड़ी है, तो हो सकता है कि हथियार कम पड़ जायें. उसी तरह से, अगर पाकिस्तान से आमने-सामने लड़ाई होगी, तो उसके लिए हमारे पास पर्याप्त हथियार और साजो-सामान हैं. लेकिन वहीं, अगर चीन से युद्ध होता है, तो हमारे पास हथियार और साजो-सामान की कमी हो सकती है. यह सब पूरा का पूरा और गंभीर काम सरकार का है कि वह इसकी गंभीरता को समझे और हर कमी को पूरा करे, ताकि सेना का मोराल ऊंचा बना रहे. विडंबना यह है कि सरकार और उसके मंत्री इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं, और रक्षा संबंधी उन्हें कोई जानकारी भी नहीं है. सरकार को हमेशा इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि सेना को कभी किसी चीज की कमी न हो, क्योंकि यह सिर्फ सेना की बात नहीं है, बल्कि देश की बात है.
रक्षा मंत्री का फुल टाइम जॉब
रक्षा मंत्रालय को संभालनेवाले मंत्री का काम एक ‘फुल टाइम जॉब’ की तरह होना बहुत जरूरी होता है और उसे पास किसी अन्य मंत्रालय की जिम्मेवारी नहीं देनी चाहिए. लेकिन, मौजूदा हाल यह है कि हमारे वित्त मंत्री ही रक्षा मंत्री भी हैं. राजनीतिक रूप से इसे उचित नहीं माना जा सकता, क्योंकि मामला देश की रक्षा का है. इसके पहले की सरकार में जो रक्षा मंत्री थे, एके एंटनी साहब, वे चुपचाप बैठे रहते थे. और मौजूदा रक्षा अरुण जेटली साहब तो दूसरे-तीसरे कामों में लगे रहते हैं. जेटली को रक्षा संबंधी मामलों का कोई अनुभव भी नहीं है. किसी भी एक व्यक्ति को दो-दो केंद्रीय मंत्रालय की जिम्मेवारी देना, यह अपने-आप में एक राजनीतिक अदूरदर्शिता है. पहले तो सरकार फुल टाइम डिफेंस मिनिस्टर रखे. दूसरी बात यह है कि सरकार को चाहिए कि वह ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ मुकर्रर करे, ताकि सेना में होनेवाली जरूरी कमियों के बारे में वह प्रधानमंत्री को बता सके. लेकिन, आज तो विडंबना यह है कि सेना की जिम्मेवारी इस वक्त रक्षा सचिव के हाथ में है और रक्षा सचिव अभी तक यह नहीं समझ पाया है कि हमारी सेना को किन-किन चीजों की जरूरत है और सेना की तैयारियों में कमियां क्या हैं. सबसे बड़ी बात कि रक्षा सचिव को इन सब बातों की जानकारी ही नहीं है. इन सब प्रक्रियाओं को सुधारने की जरूरत है, तभी संभव है कि सेना पूरी तरह से किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार खड़ी मिलेगी.

खुद से हथियार निर्माण जरूरी
हमारी सरकार दूसरे देशों से कई सामरिक समझौते करती रहती है, लेकिन समस्या यह है कि दूसरे देश हमें हथियार तभी देंगे, जब हम उन्हें पैसे देंगे. ऐसे में यह सरकार की जिम्मेवारी है कि वह अपनी तकनीक विकसित करे और अपने देश में ही हथियारों और सैन्य साजो-सामान का निर्माण करे. इससे न सिर्फ हम सामरिक रूप से मजबूत होंगे, बल्कि रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ेंगी. हालांकि, इस ओर सरकार ने एक कदम बढ़ाया है, लेकिन अभी देश में हथियार उद्योग को पूरी तरह से सक्षम और कामयाब होने में 10-15 साल का समय लग सकता है. यह सब हमारी तैयारी की कमी को दर्शाती है और इस कमी को भी दूर करने की जरूरत है, क्योंकि कोई भी लड़ाई निमंत्रण देकर नहीं आती. एकदम से भी आ सकती है, इसलिए हमारी अपनी तैयारी मजबूत होनी चाहिए. हथियार, सैन्य साजो-सामान, सेना का मोराल, ये सब एक-दूसरे से जुड़ी हुई चीजें हैं, इसलिए सरकार को चाहिए कि इन्हें सम्मिलित रूप से देखे और रक्षा मंत्रालय को एक ऐसा मंत्री दे, जो पूरी तरह से सेना के लिए समर्पित हो.
तीन प्रतिशत हो रक्षा बजट
अक्सर सुनने में आता है, जब विशेषज्ञ बताते हैं कि सरकार अगर इस क्षेत्र में ज्यादा पैसे का निवेश करेगी, तो वह विकास कैसे कर पायेगी. यह बात उचित नहीं है. सेना का बजट बढ़ाने की जरूरत है. बजट ही यह निर्धारित कर सकता है कि सेना की तमाम जरूरतों को कैसे पूरा किया जाये. हमारी जीडीपी के मुताबिक, रक्षा क्षेत्र का बजट बहुत कम है. और यह आज की बात नहीं है, पहले से ही ऐसा चलता चला आ रहा है. आम तौर पर देश की जीडीपी का तीन प्रतिशत तक रक्षा बजट होना चाहिए. लेकिन, पिछले सालों तक यह 2.5 प्रतिशत भी नहीं था. इस ऐतबार से हमारा रक्षा बजट बहुत कम है, जिसे बढ़ाने की सख्त जरूरत है. बजट अच्छा होगा, तो हथियार और साजो-सामान में कमी नहीं आयेगी. अगर कमी नहीं होगी, तो सेना को हतोत्साहित होने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. बजट बढ़ेगा, तो तीनों सेनाओं में हथियार और साजो-सामान के साथ ही अफसरों की रिक्तियों को भी भरा जा सकता है और सेना को पूरी तरह से संसाधन संपन्न बनाया जा सकता है. हालांकि, सरकार से हमारी सेना इस मांग को रखती रहती है, लेकिन सरकारों का अपना अलग रवैया ही रहता है. अभी तो सरकार आराम फरमा रही है, लेकिन जिस दिन धोखा खायेगी, उस दिन पता चलेगा कि उसे क्या करना चाहिए था.
देश के लिए जरूरी
सैन्य ताकत के लिए सेना के मोराल का बहुत महत्व है. सेना के जवानों के पास यही एक ऐसी ताकत है, जो बिना हथियार के भी लड़ने का माद्दा रखती है. लेकिन, सवाल यह है कि कब तक? एक जगह पर जाकर यह तो मुमकिन ही है कि सेना को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह स्थिति न सिर्फ सेना के जवानों के लिए, बल्कि देश के लिए भी ठीक नहीं है. क्योंकि, अगर एक छोटी सी लड़ाई और हथियारों की कमी के चलते उससे मिलनेवाली हार हमारे देश के विकास को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
अफसर करीम
मेजर जनरल (रिटायर्ड)
चीन को ध्यान में रख कर भारत परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण कर रहा है : रिपोर्ट
रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान केंद्रित अपनी परमाणु रक्षा रणनीति को बदलते हुए चीन को ध्यान में रख कर भारत तैयारियां कर रहा है. ऐसा दावा परमाणु हथियारों के अमेरिकी विशेषज्ञ हेंस एम क्रिसटेंसन और रॉबर्ट एस नॉरिस ने किया है. ‘ऑफ्टर मिडनाइट’ जर्नल में छपे लेख ‘इंडियन न्यूक्लियर फोर्सेज-2017’ में इन विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत एक ऐसी मिसाइल विकसित कर रहा है, जिससे वह अपने दक्षिणी हिस्से से चीन में कहीं पर भी परमाणु हमला करने में सक्षम हो जायेगा. इस लेख में यह भी कहा गया है कि भारत के पास 150-200 परमाणु बम बनाने के लिए प्लूटोनियम मौजूद है.
इन विशेषज्ञों की मानें, तो भारत द्वारा अभी परमाणु हथियार संपन्न दो एयरक्राफ्ट, जमीन से मार करनेवाली चार मिसाइलें और समुद्र से मार करनेवाली एक बैलिस्टिक मिसाइल तैनात किये गये हैं. लेख में कहा गया है कि ‘भारत अभी परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम कम से कम चार विकल्पों को तैयार कर रहा है. इसमें जमीन और समुद्र से दागी जानेवाली लंबी दूरी की मिसाइलें शामिल हैं, जिनके अगले दशक तक तैनात होने की संभावना है.’
क्रिसटेंसन और नॉरिस के मुताबिक 2,000 किलोमीटर तक परंपरागत या परमाणु हथियार ले जा सकनेवाली अग्नि-2 मिसाइल चीन के पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी हिस्से तथा अग्नि-4 पूरे चीन को निशाना बनाने में सक्षम होगी. लेखकों का यह भी कहना है कि भारत अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल जैसी अग्नि-5 का विकास भी कर रहा है जो 5,000 किलोमीटर तक परमाणु हथियार ले जा सकेगी. लेखकों के मुताबिक, इससे भारतीय सेना चीन से दूर दक्षिण भारत में अग्नि-5 की तैनाती कर सकेगी.

(पीटीआइ, इंडियन एक्सप्रेस और सत्याग्रहकी रिपोर्टों के आधार पर)
साजो-सामान की कमी से जूझती भारतीय सेना
थल सेना
आज की तारीख में हमारी थल सेना के पास तोप, असॉल्ट राइफल, पैदल सेना के लिए हथियार सहित अन्य जरूरी उपकरणों की कमी है. इन कमियों को पूरा करने के लिए उसे 155 एमएम/ 52 के 3,000 कैलिबर गन, 300 हेलिकॉप्टर, पैदल सेना के लिए 30,000 थर्ड जेनरेशन नाइट विजन डिवाइस की जरूरत है. इसके अतिरिक्त, पैदल सेना के लिए 66,000 असॉल्ट राइफल, कार्बाइन, जनरल पर्पस मशीनगन, लाइट वेट एंटी मटीरियल राइफल, माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल, 3,90,000 बैलिस्टिक हेल्मेट और 180,000 लाइट वेट बुलेट प्रूफ जैकेट की भी जरूरत है.

वायुसेना
भारतीय वायुसेना को 42 लड़ाकू स्क्वाॅड्रन (प्रत्येक में 18 लड़ाकू एयरक्रॉफ्ट) की जरूरत है, लेकिन वर्तमान में सेना के पास 33 से भी कम स्क्वाॅड्रन हैं. एक अनुमान के अनुसार 2032 तक यह संख्या घट कर 22 तक पहुंच सकती है. स्क्वाॅड्रन के अलावा वायुसेना को 300 लड़ाकू जेट, 200 हेलीकॉप्टर, दो अर्ली वार्निंग एयरक्रॉफ्ट, छह मिड-एयर रिफ्यूलर टैंकर, 56 ट्रांसपोर्टर प्लेन, 48 मीडियम लाइट हेलिकॉप्टर, टोही व निगरानी हेलिकॉप्टर (रीकॉन्संस व सर्विलांस हेलिकॉप्टर), जमीन से हवा में मार करनेवाली मिसाइल सिस्टम (सर्फेस-टु-एयर मिसाइल सिस्टम), इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट, 20 एडवांस जेट ट्रेनर और 38 बेसिक ट्रेनर की जरूरत है.
नौसेना
भारतीय नौसेना को जिन साजो-सामान की जरूरत है, उनमें पहले स्थान पर है छह आधुनिक लंबी दूरी की पारंपरिक पनडुब्बी. नौसेना के पास वर्तमान में 13 परंपरागत पनडुब्बियां हैं, जिनमें से 11 पनडुब्बी 25 वर्ष की अपनी जीवन अवधि पूरी कर चुकी हैं और रीफिटिंग के द्वारा इनसे काम चलाया जा रहा है. इस लिहाज से नौसेना को नयी पनडुब्बियों की सख्त जरूरत है. इसके अलावा 12 माइन काउंटरमेजर वेसेल्स, 16 मीडियम मल्टी-रोल शिपबॉर्न हेलिकॉप्टर (प्रत्येक लगभग 12 टन के), 200 स्वदेशी शिपबॉर्न लाइट यूटिलिटी हेलिकॉप्टर (प्रत्येक लगभग तीन टन के), 12 से 14 टन के स्वदेशी मल्टी-रोल हेलिकॉप्टर और छह परमाणु हमला करनेवाली पनडुब्बियां (न्यूक्लियर अटैक सबमरीन) की जरूरत भी हमारी नौसेना को है.
सेना को 40,000 करोड़ के हथियार खरीदने का मिला अधिकार
हथियारों, गोला-बारूद और विभिन्न प्रकार के रक्षा उपकरणों की कमी को देखते हुए इसकी खरीदारी के लिए हाल ही में केंद्र सरकार ने सेना को वित्तीय अधिकार देने की घोषणा की है. रिपोर्ट के अनुसार सेना आपातकालीन स्थिति में 40,000 करोड़ रुपये तक के रक्षा उपकरणों की खरीद कर सकती है. इसके लिए डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल के अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी. अक्सर बिचौलियों, प्रशासनिक और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण रक्षा उपकरणों की खरीद में देरी होती है.

उड़ी आतंकी हमले के बाद सतर्क हुई सेना
पिछले वर्ष उड़ी के ब्रिगेड हेडक्वाॅर्ट्स पर हुए हमले में 19 जवान शहीद हो गये थे, इसके बाद भारतीय सेना की इंटरनल ऑडिट में हथियारों, गोला-बारूद, टैंक शेल और अन्य उपकरणों की कमी की बात सामने आयी थी. इस आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना ने मिल कर एलओसी के पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक की. भारतीय सेना की इस कार्रवाई में बड़ी संख्या में आतंकी कैंपों और लांच पैड को ध्वस्त कर दिया गया.
सेना खरीदेगी खास प्रकार के रक्षा उपकरण
आपात स्थितियों से निपटने के लिए सेना ने 46 प्रकार के हथियार, उपकरण व 10 प्रकार के इन्फेंट्री कंबैट व्हीकल और आपात स्थिति में युद्ध के लिए इस्तेमाल होनेवाले विशेष प्रकार के छह हथियारों को खरीदने का निर्णय लिया है. इन हथियारों को इमरजेंसी परचेज रूट के जरिये खरीदा जा सकता है.
सीएजी ने माना हथियारों की है कमी
नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक (सीएजी) की एम्युनिशन मैजेनमेंट पर आधारित 2015 की रिपोर्ट में यह बात उजागर हुई कि युद्ध के लिए भारतीय सेना के पास मात्र 20 दिनों के लिए ही हथियार शेष बचे हैं. रिपोर्ट में हथियारों, गोला-बारूद व अन्य सैन्य उपकरणों की कमी से जूझती सेना के लिए तत्काल साजो-सामान उपलब्ध कराने की जरूरत पर जोर दिया गया है. साथ ही रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भीषण युद्ध से निपटने के लिए कम-से-कम 40 दिन के रिजर्व हथियारों की आवश्यकता होगी.
छह महीने में 12,000 करोड़ के 19 समझौते
उड़ी हमले के बाद हथियारों की खरीद के लिए सेना को तीन महीने के लिए ऐसा ही वित्तीय अधिकार प्रदान किया गया था. बाद इस अवधि को तीन महीने और बढ़ा कर 31 मार्च, 2017 तक कर दिया गया था. हालांकि, इस बार हथियारों की खरीद के लिए दिये गये वित्तीय अधिकार के लिए कोई सीमा तय नहीं की गयी है. कुल छह महीने की अवधि में सेना ने 12,000 करोड़ की 19 डील की थी. इसके अलावा वायु सेना और नौसेना के लिए 8,000 करोड़ रुपये के उपकरण खरीदे गये थे. इसमें ज्यादातर ठेके रूसी, इस्राइल और फ्रांस की कंपनियों को दिये गये.
सेना में 9000 से अधिक सैन्य अधिकारियों की कमी
पिछले अप्रैल माह में राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे ने माना कि भारतीय सेना 9,000 से अधिक सैन्य अधिकारियों की कमी से जूझ रही है. सरकार के मुताबिक आर्मी को 7,986 और नौसेना को 1,256 अधिकारियों की जरूरत है. हालांकि, सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारतीय वायुसेना के पास पर्याप्त अधिकारी बताये गये. इसके अलावा सरकार ने यह भी माना था कि 78,205 जेसीओ स्तर के अधिकारी प्रशिक्षण रत थे. फिलहाल, सेना को 25,472 जूनियर कमीशंड अधिकारियों (जेसीओ) की जरूरत है. साथ ही नौसेना के पास 12,785 और वायु सेना के पास 13,614 जेसीओ रैंक के अधिकारियों की कमी है.

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