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सावन की दूसरी सोमवारी : जानिए किस मंत्र से होंगे भोले बाबा खुश?

शिव मानव के आध्यात्मिक विकास के प्रतिनिधि हैं आज सावन की दूसरी सोमवारी है. सुल्तानगंज स्थित उत्तरवािहनी पतित पावनी गंगा से जल भर कर लाखों की संख्या में कांवरिये ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ के दरबार की ओर लगातार आ रहे हैं. श्रावण मास की सोमवारी पर शिवलिंग पर जलार्पण का विशेष महत्व होता है. इस वर्ष […]

शिव मानव के आध्यात्मिक विकास के प्रतिनिधि हैं
आज सावन की दूसरी सोमवारी है. सुल्तानगंज स्थित उत्तरवािहनी पतित पावनी गंगा से जल भर कर लाखों की संख्या में कांवरिये ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ के दरबार की ओर लगातार आ रहे हैं.
श्रावण मास की सोमवारी पर शिवलिंग पर जलार्पण का विशेष महत्व होता है. इस वर्ष की हर सोमवारी में सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. सर्वार्थ सिद्धि योग अत्यंत शुभ है. मान्यता है कि इस योग में किया गया हर कार्य सिद्ध होता है. सोमवारी पर भक्तों की बढ़ती भीड़ को देखकर देवघर में विशेष व्यवस्था की गयी है. सहज व सुलभ जलार्पण के लिए क्यू-कॉम्प्लेक्स बनाया गया है, अरघा लगाया गया है. उधर बासुकिनाथ धाम में भी कतारबद्ध पूजा की सुदृढ़ व्यवस्था है. प्रस्तुत है पाठकों के लिए शिव आराधना पर विशेष-
स्वामी सत्यानन्द सरस्वती
भारत में शिवलिंगम् की धारणा बड़ी लोकप्रिय थी. लिंगम् संस्कृत का शब्द है जो द्वयर्थक है. अतएव इस शब्द का गलत अर्थ भी लगाया गया है. लिंगम् शब्द का अर्थ ‘प्रतीक’ है और इसका एक अर्थ ‘पुरुषेन्द्रिय’ है. इस कारण शिवलिंगम् का अर्थ शिव की जननेन्द्रिय लगाया गया है. वास्तव में उसका यह अर्थ कदापि नहीं है. शिवलिंगम् का अर्थ कारण रुप में परमचेतना है.
प्रत्येक वस्तु के तीन रुप होते हैं, स्थूल, सूक्ष्म और कारण. लिंगम् का अर्थ हुआ कारण शरीर, मतलब, शिव का कारण शरीर. वह क्या है?
इस भौतिक शरीर में 12 केंद्र हैं, जो चेतना के जागरण और विकास के लिए मन को एकाग्र करने हेतु महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इन 12 केंद्रों में तीन अति महत्वपूर्ण समझे जाते हैं. एक मूलाधार चक्र मेरुदण्ड के मूल में स्थित है. दूसरा आज्ञा चक्र मेरुदण्ड के शीर्ष पर स्थित है. यह स्थल भ्रूमध्य के पीछे है. तीसरा सहस्त्रार चक्र सिर की चोटी पर अवस्थित है. यह ब्रह्माण्डीय मस्तिष्क है. ये तीनों बिन्दु शिव के सर्वाधिक महत्वपूर्ण रुप समझे जाते हैं.
मूलाधार चक्र में शिव का रुप अण्डाकार भूरे रंग का पत्थर है, जिसमें कोई प्रकाश नहीं है. शिव लिंगम् का दूसरा स्थल आज्ञा चक्र है और यह काले रंग का है. तीसरा स्थल सहस्त्रार चक्र में, मस्तिष्क के शीर्ष भाग में स्थित है जिसे शिवलिंगम् का प्रकाशमान रुप समझा जाता है. शिव की इस अवधारणा ने हिन्दुओं को हजारों-हजार वर्षों से स्थूल से सूक्ष्म, सूक्ष्म से कारण और कारण से अनुभवातीत पथ पर गमन के लिए अनुप्रेरित किया है.
कारण यह है कि शिव मानव-जीवन की यौगिक प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करते आये हैं, भौतिक प्रक्रिया का नहीं. पदार्थ के विकास की भी एक प्रक्रिया है, किन्तु मानव के आध्यात्मिक विकास के प्रतिनिधि हैं. जिन्होंने इस शैव दर्शन का अवगाहन किया है, वे सहजता से यह समझ सकते हैं कि शिवलिंगम् की इस अवधारणा का संबंध न केवल तुम्हारे शरीर और मन से है, बल्कि इसका संबंध आपके उच्चतम चेतना से है जो प्रकट होना चाहती है. अत: प्रत्येक शिवालय और मंदिर में हिन्दुओं ने एक अंडाकार पत्थर को स्थापित किया है जो काले रंग का है. शिवलिंग पत्थर कभी सफेद रंग का नहीं होता है. शरीर के 12 केन्द्रों को जाग्रत करने के लिए इस पत्थर पर मन को एकाग्र करते हैं. संक्षेप में शैव – दर्शन का यही अति महत्वपूर्ण भाग है.
भारत में कश्मीर को शैव आराधना का ऐतिहासिक गढ़ माना जाता है. दक्षिण भारत का एक तिहाई भाग भी शैव आराधना का दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है. तिब्बत में एक बहुत बड़ा हिमाच्छिादित पर्वत है जो कैलाश पर्वत के नाम से विख्यात है. वह शिवलिंग के आकार का है.
चीन द्वारा तिब्बत पर आधिपत्य जमाने के पूर्व हिन्दू अपने जीवन-काल में कम से कम एक बार अवश्य केलाश मानसरोवर हो आया करते थे.
कैलाश पर्वत की तलहटी में एक मानसरोवर नामक झील है जहां मैं खुद भी दो बार गया. कितना प्रेरणाप्रद स्थल है. न वहां कोई मंदिर है, न पुजारी, न कोई मूर्ति और न कोई बस्ती. वह बिल्कुल वीरान है. झील के उत्तरी भाग में कैलाश पर्वत हिममण्डित श्रृंखला से हजारों फीट ऊंचा उठा दिखाई देता है. जब वहां पहुुंचोगे तो महसूस करोगे कि कोई तुम्हें निहार रहा है.
तुम्हें कुछ दिखाई नहीं देगा, पर तुम्हें स्पष्ट आभास होगा कि वहां कोई अदृश्य सत्ता विद्यमान है. वह निरपेक्ष सत्ता है. इसी स्थल से शैव योग प्रकट हुआ है. 64 तांत्रिक ग्रंथों में शिव और पार्वती का वार्तालाप वर्णित है. शिव एक गृहत्यागी संन्यासी समझे जाते हैं जिनका न कोई घर है और न ठिकाना. ये निर्जन वीरान में पद्यासन लगाकर समाधि की अवस्था में रहते हैं.
( प्रकाशित पुस्तक योग प्रदीप – 5 से साभार )
पंचप्राणों में अंतर्निहित शक्तियों का प्रतीक पंचशूल
वैद्यनाथ मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. अभिलेखों से इसे पालकालीन मंदिर कहा जा सकता है. कुछ इतिहासविद् इसे उत्तर गुप्तकालीन मंदिर मानते हैं, किन्तु इतिहासज्ञ राजेन्द्र लाल मित्र इसे पूर्णत: देशी स्थापत्यकला का नमूना मानते हैं. प्रो राधाकृष्ण चौधरी इस मंदिर को बौद्धकालीन मठ परंपरा की स्थापत्यकला से जोड़ते हैं. निश्चित तौर से यह भारत का प्राचीन मंदिर है.
वैद्यनाथ मंदिर में पांच शूल है. सामान्यतया भारत के शिव मंदिरों के शिखर पर त्रिशूल ही प्रचलित है.
त्रिशूल त्रिशक्ति का प्रतीक है. जिसे ज्ञान, इच्छा और क्रिया के रूप में जाना जाता है. सिंधुघाटी सभ्यता में भी त्रिशूल का भावार्थ प्राप्त होता है. वहां प्राप्त शिव की त्रिमुखाकृति से भी इसका प्रचलन स्पष्ट होता है. दरअसल, त्रिशूल त्रिगुणात्मक व्यवहार है. यह त्रिशूल, त्रिशक्ति, त्रिगुण और त्रिरत्न के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है, किन्तु मंदिर स्थापत्य में पंचशूल की उपस्थिति पूर्णत: तांत्रिक अभिचार को स्पष्ट करती है. पंचशूल अव्यक्त काल की अभिव्यक्ति है. इसे काल मूर्ति की शक्ति के रुप में मान्यता है. यह किसी को स्थिर नहीं रहने देती.
देव विग्रह में आयुध की उपस्थिति के संदर्भ में विष्णु चक्र, और बुद्ध के धर्म चक्र के समान धारण के अर्थ में व्यवहृत है. इससे जुड़ी कई अवधारणाएं हैं. पंचशूल के पीछे पंचमुखी शिवलिंग को भी आधार माना जाता है. मटमत में भी पंचशूल की चर्चा है जिसे पद्यपीठ के नाम से संबोधित किया गया है. पुरातत्व की दृष्टि से पंचमुखी शिवलिंग मथुरा के संग्रहालय में सुरक्षित है. पंचशूल का मूल संबंध शिवतत्व से है. शिवतत्व और योक्रिया समानार्थक है. योग में मूर्त्त-शक्ति को मेरुदण्ड के पांच चक्रों में स्थ्पित पंचात्मिका माना गया है. एक-एक चक्र में एक-एक तत्व का अधिष्ठान माना गया है. पंचतत्व, पंचचक्र और पंचेन्द्रियां-ये परस्पर संबद्ध हैं. मूलाधार (पृथ्वी), स्वाधिष्ठान (जल) मणिपुर (तेज) अनाहत (वायु और विशुद्धि (आकाश) – ये पंच भौतिक शक्ति के केंद्र हैं.
इनसे परे छठा आज्ञाचक्र अभौतिक है. पंचशूल की प्रतीकात्मकता पंचप्राणों में अंतर्निहित समस्त शक्तियों को प्रकट करती है. ऐतिहासिक दृष्टि से पंचमुखी शिवलिंग की परंपरा कुषाण काल में प्रारंभ हुई. वीमकर्दीस के सिक्के पर भी शिव के विग्रह मिले हैं. शरीरस्थ शक्ति की एक संज्ञा नागी या कुणडलिनी मानी गयी है. इसी कारण पंचात्मिका शक्ति का कलात्मक रूप पंचमुखी नागी माना गया है. पंच शब्द की सनातन मान्यता इतनी बलवती हो गयी कि पंचलिंग की स्थापना को व्यापक लोकप्रियता मिली. वैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर पंचशूल दर्शन को लेकर भी कई मान्यता है. बताते हैं कि मंदिर के शिखर पर स्थापित पंचशूल का दर्शन मात्र से लोगों के लौकिक-पारलौकिक कल्याण होता है. आधि-व्याधि और विपत्ति से छुटकारा मिलता है.
2017 की नयी व्यवस्था टेंट सिटी
श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष मुख्यमंत्री रघुवर दास ने यात्रियों की सुविधा को लेकर उन सारे प्रस्तावों को हरी झंडी दी जो थके हारे यात्रियों को सुकून देने वाला था. तीन प्वाइंट पर टेंट सिटी बनायी गयी है. होटल की तरह यहां आराम करने की सुविधा दी गयी है जो पूरी तरह नि:शुल्क है.
बाघमारा बस स्टैंड में 1280, जसीडीह बस स्टैंड में 300, कांवरिया पथ देवपुरा में 950 डबल बेड लगाये गये हैं. शौचालय, पेयजल के साथ साथ सुरक्षा प्रहरी की तैनाती की गयी है. दिन में तीन-तीन घंटा ही रहने दिया जाएगा ताकि अधिक से अधिक लोगों का विश्राम हो सके. लेकिन रात में यहां पहुंचने वालों को सीट रहने पर विश्राम करने दिया जाएगा. इसके लिए कांवरियों के पास एक्सेस कार्ड होना अनिवार्य है. एक्सेस कार्ड दिखाकर कांवरिये तीन घंटे तक यहां विश्राम कर सकते हैं.
बाबा मंदिर में नया फुटओवर
एक फुटओवर तो पहले से बना है जो संस्कार मंडप के रास्ते बाबा मंदिर के गर्भगृह तक जाता है. बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मंदिर प्रांगण स्थित उमा भवन से पार्वती मंदिर तक आने के लिए नया फुटओवर बनाया गया है, जो इस बार श्रावमी मेले से ही उपयोग में लाया जा रहा है. मानसिंघी से मंदिर तक बना फुटओवर की मरम्मत करायी गयी है, चूंकि इसमें कंपन की शिकायत आ रही थी. अब मां पार्वती मंिदर में कांवरिये कतार में प्रवेश कर रहे हैं.
क्यू कांप्लेक्स से गुजर रहे कांवरिये
क्यू कांप्लेक्स तो 2018 तक बनकर तैयार हो जायेगा. इस साल एक तल का छह बड़े-बड़े हॉल का उपयोग किया जा रहा है. 2017 में छह कमरे में बैरिकेडिंग करायी गयी है, जिसमें चार से पांच हजार कतारबद्ध हो पा रहे हैं. पहली बार क्यू कांमप्लेक्स से कांवरिये गुजर रहे हैं. क्यू मैनेजमेंट और कतार को सीमित रखने में यह क्यू कांप्लेक्स काफी कारगर साबित हो रहा है. हर साल यहां आने वालों को एक नयापन दिखेगा. नेहरू पार्क से प्रवेश करने के बाद भक्त क्यू कांप्लेक्स आएंगे, यहां से फूटओवर ब्रिज के रास्ते संस्कार मंडप उसके बाद बाबा को अरघा से जलार्पण करेंगे. क्यू-कॉम्प्लेक्स में कांवरियों के लिए कई तरह की सुविधाएं दी जा रही है.
इस मंत्र से होंगे भोले बाबा खुश
ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम‍्
उर्वारुकमिव बंधनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
राशि के अनुसार शिव को करें प्रसन्न
मेष : इस राशि जातकों को शिवजी को लाल चंदन व लाल रंग के फूल चढ़ाना चाहिए. नागेश्वराय नम: का जाप करना चाहिए.
वृषभ : इस राशि के जातकों को चमेली के फूल चढ़ाकर रुद्राष्टाक का पाठ करने से आशातीत लाभ होगा.
मिथुन : इस राशि के जातक को शिवजी को धतूरा, भांग चढ़ाकर साथ में पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने से लाभ होगा.
कर्क : इस राशि के जातक शिवलिंग का भांग मिश्रित दूध से अभिषेक करें। रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करें. रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करें, अत्यंत लाभ होगा.
सिंह : इस राशि के जातक पूरे माह शिवजी को कनेर के लाल रंग के फूल अर्पित करें. शिव मंदिर में शिव चालीसा का पाठ करें.
कन्या : इस राशि के जातक शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि का श्रृंगार चढ़ाएं और पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें तो लाभ होगा.
तुला : राशि के जातक मिश्रि मिले दूध से शिवलिंग का अभिषेक करते हुए शिव के सहस्रनाम का जाप करें.
वृश्चिक : इस राशि के जातक भोलेनाथ को गुलाब का फूल व बिल्वपत्र की जड़ चढ़ाएं और नित्य रुद्राष्टक का पाठ करें.
धनु : इसराशि के जातक प्रात: शिवजी के चरणों में पीले फूल अर्पित करें, प्रसाद के रूप में खीर का भोग लगाएं और शिवाष्टक का पाठ करें.
मकर : इस राशि के जातकों को शांति और समृद्धि के लिए शिवजी को धूतरा, फूल, भांग एवं अष्टगंध चढ़ाना चाहिए. पार्वतीनाथाय नम: का जाप करें.
कुंभ : राशि के जातक शिवलिंग का गन्ने के रस से अभिषेक करें एवं शिवाष्टक का पाठ करें, आर्थिक लाभ मिलेगा.
मीन : राशि के जातक शिवलिंग पर पंचामृत, दही, दूध व पीले फूल चढ़ाएं एवं चंदन की माला से 108 बार पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें, धन-धान्य में वृद्धि होगी.

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