पनामा पेपर्स मामले में नवाज शरीफ घेरे में…जानिए क्‍या है मामला

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कुर्सी संकट में है. पनामा पेपर्स मामले में जांच दल ने रिपोर्ट अदालत को दे दी है और दो दिनों से उस पर सुनवाई चल रही है. जानकारों की मानें, तो शरीफ के पक्ष और विपक्ष में प्रशासनिक, सैनिक और अदालती स्तर पर लामबंदियां शुरू हो चुकी हैं. प्रधानमंत्री […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 19, 2017 6:21 AM
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की कुर्सी संकट में है. पनामा पेपर्स मामले में जांच दल ने रिपोर्ट अदालत को दे दी है और दो दिनों से उस पर सुनवाई चल रही है. जानकारों की मानें, तो शरीफ के पक्ष और विपक्ष में प्रशासनिक, सैनिक और अदालती स्तर पर लामबंदियां शुरू हो चुकी हैं.
प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा भी की जा रही है. अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर है. फैसला चाहे जो भी हो, पाकिस्तानी राजनीति पर उसका बड़ा प्रभाव होगा. इस मुद्दे के विविध पहलुओं पर चर्चा के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
शरीफ के लिए सबसे मुश्किल दौर
रावलपिंडी का सेंट्रल जेल अदियाला गांव में है. पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारे में अदियाला जेल में आनेवाले ‘नये मेहमान’ को लेकर अनुमान का बाजार गर्म है. इस ‘नये मेहमान’ का नाम है, नवाज शरीफ. मगर, पाकिस्तान की सत्ता का रिमोट कंट्रोल जिन हाथों में है, उसका एक ताकतवर हिस्सा नहीं चाहता कि पनामा लीक मामलों में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जेल हो. सेना, आइएसआइ, और अदालत तक में दो फाड़-सा दिख रहा है. इन तीनों महकमों में नवाज शरीफ को जेल भेजवाने के ख्वाहिशमंद लोगों ने सोमवार को ज्वाॅइंट इन्वेस्टीगेशन टीम (जेआइटी) के हवाले से प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा करने की पूरी कोशिश कर ली थी. मंगलवार को भी सुनवाई जारी है.
प्रधानमंत्री रहते अपनी ही कंपनी से सैलरी ली
जस्टिस एजाज फैजल के नेतृत्ववाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष ‘जेआइटी’ ने 256 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें यह जानकारी दी गयी है कि 1992-93 में प्रधानमंत्री रहते नवाज शरीफ ने अपनी बेटी मरियम और परिवार के अन्य सदस्यों की संपत्ति चार गुना बनाने में उनकी मदद की और खुद की आॅफ शोर कंपनी ‘एफजेडइ’ से सैलरी उठाते रहे. ‘एफजेडइ’ से 2013 के जून और अगस्त में जो वेतन नवाज को दिये गये थे, उसे बतौर सुबूत पेश किया गया है. नवाज शरीफ ने पांच जून, 2013 को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. नवाज शरीफ पहली बार 1990 से 1993, दूसरी बार 1997 से 1999 के बीच प्रधानमंत्री रह चुके हैं.
जांच एजेंसी की सक्रिय भूमिका
छह मई, 2017 को पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद छह सदस्यीय ‘जेआइटी’ का गठन किया गया था. तय समय सीमा के भीतर ‘जेआइटी’ ने 10 जुलाई, 2017 को यह रिपोर्ट अदालत को सौंप दी. उससे पहले नवाज शरीफ 22 अप्रैल, 2016 को बयान दे चुके थे कि आरोप साबित हुआ, तो वे प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे देंगे. इस पूरे मामले की लीपा-पोती में पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक डार की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. इशाक डार किसी जमाने में शरीफ परिवार की कंपनी ‘इत्तेफाक ग्रुप’ में क्लर्क हुआ करते थे. वर्ष 2004 में डार के सबसे बड़े बेटे से नवाज शरीफ की बेटी आस्मां से, जेद्दा में शादी हुई. इशाक डार जब पाकिस्तान के वित्त मंत्री बनाये गये, तभी लग गया था कि जितने वित्तीय घपले शरीफ परिवार ने किये हैं, उसकी लीपा-पोती और जांच एजेंसियों को गुमराह करने में डार की भूमिका सबसे अहम रहेगी. वित्त मंत्री इशाक डार खुद भी जांच के घेरे में हैं. जेआइटी ने वित्त मंत्री डार से पूछा था कि 2008-2009 में उनकी संपत्ति 9.11 मिलियन से बढ़ कर 831.70 मिलियन कैसे हो गयी?
18 साल पुराने मामलों को भी निकाला
‘जेआइटी’ 18 साल पुराने उन मामलों को भी खोद-खोद के बाहर निकाल रही है, जिसमें नवाज शरीफ के खिलाफ एफआइआर हुआ था. वर्ष 1994 में हुई इस एफआइआर में लंदन में प्रॉपर्टी से जुड़े पांच मामले दर्ज किये गये थे. इनकी लाहौर हाइकोर्ट तक सुनवाई हुई, और उन पांचों मामलों को ठिकाने लगा दिया गया था. उन दिनों शरीफ कुनबे की कंपनी ‘हुदाबिया इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड’ को फर्जी दस्तावेजों के जरिये करोड़ों रुपये के लोन दिलाये गये गये थे.
शरीफ कुनबे के ‘चौधरी शूगर मिल’ को हवाला के जरिये कितने करोड़ डाॅलर भेजे गये थे, पाक सुप्रीम कोर्ट ने उसकी कुंडली भी बनाने का आदेश दिया है. संयुक्त अरब अमीरात में नवाज शरीफ परिवार ने गल्फ स्टील मिल को बेचने के बहाने कतर से कितने करोड़ पाकिस्तान भिजवाये, इस ‘मनी ट्रेल’ को भी जांच एजेंसियों ने उजागर किया है. मगर, अमीरात शाही परिवार के पत्रों की आड़ लेकर नवाज शरीफ बचने की चेष्टा कर रहे हैं.
पाक सेना की सफाई
इस बीच पाकिस्तानी सेना ने सफाई पेश की कि इस पूरे प्रकरण से उसका लेना-देना नहीं है. इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस (आइएसपीआर) के डीजी मेजर जनरल आसिफ गफूर ने जिस तरह से बीते सोमवार को यह साफगोई पेश की है, उससे यह निश्चित नहीं हो जाना चाहिए कि पाक सेना पनामा गेट के बहाने नवाज शरीफ को नापने के मूड में नहीं है. जनरल राहिल शरीफ के जाने के बाद पाक सेना का एक खेमा इस अवसर में रहा है कि एक बार फिर से सत्ता पर कोई जनरल काबिज हो सके. मगर, जरूरी नहीं कि 1999 की कहानी दोहरायी जाये.
नवाज शरीफ यदि निपट गये, तो संभव है कि कार्यकारी सरकार की देखरेख में नये चुनाव का ऐलान हो जाये. मगर, प्रतिपक्ष क्या उतना मजबूत है, जिसे जनता का अपार समर्थन हासिल हो? इस पूरे प्रकरण में वैकल्पिक राजनीति की भूमिका पर प्रश्न-चिह्न लगा हुआ है.
मरियम नवाज का भविष्य खतरे में!
पनामा गेट की जांच के इस खेल में जिस तरह से आइएसआइ के एक अधिकारी को सक्रिय किया गया, उसे लेकर भी प्रधानमंत्री कार्यालय ने आपत्ति की है. इस अधिकारी की वजह से मरियम नवाज के स्कूल और काॅलेज के दिनों की सूचनाओं से लेकर लंदन में संपत्तियों की फेहरिश्त हासिल की गयी है.
अदालत में इस जांच के नतीजे अंजाम तक पहुंचे, तो न सिर्फ नवाज शरीफ सत्ता से जा सकते हैं, बल्कि मरियम नवाज, जो 67 साल के नवाज शरीफ की सियासी वारिस समझी जाती हैं, उनका भविष्य भी भ्रष्टाचार में शामिल होने की वजह से अंधकारमय हो सकता है.
सचमुच सीआइए इस सारे खेल के पीछे है?
पनामा खुलासे ने दुनियाभर की 140 राजनीतिक हस्तियों की नींद हराम कर रखी है, जिनमें 72 पूर्व और वर्तमान शासनाध्यक्ष हैं. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सिर्फ अपने एक करीबी के कारण कीचड़ से सन गये हैं.
उसी तरह ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अपने पिता के खाते की वजह से उलझ गये. चीन के राष्ट्रपति शी, सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद, पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस काजल की कोठरी से बेदाग निकल पाते हैं, कहना मुश्किल है. पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिस तरह लपेटे गये हैं, उसका पूरा शक सीआइए पर गया है. पनामा लीक की पहली बलि चढ़े, आइसलैंड के प्रधानमंत्री सिगमुंडर डेविड. उसके बाद, स्पेन के उद्योग मंत्री खोसे मैनुअल सोरिया नप गये.
क्या है पनामा लीक
पनामा लीक 3 अप्रैल, 2016 को दुनिया के 76 देशों में धमाके के साथ प्रकाशित-प्रसारित हुआ. मगर, सच यह है कि उसके एक साल पहले से जर्मन सरकार इससे जुड़े घोटालों की जांच में लगी हुई थी. जर्मन अखबार, ‘ज्यूडडाॅयच त्साइटूंग’ के अनुसार, ‘अकेले डायचे बैंक ने 400 से अधिक ‘आॅफ शोर कंपनियां’ स्थापित करने में ‘मोसाक फोन्सेका’ को मदद की थी.’ पनामा में पैदा रमन फोन्सेका को लाॅ फर्म स्थापित करने में जर्मन मूल के युरगेन मोसाक का साथ मिला था. यूरगेन मोसाक का जन्म बावेरिया प्रांत के फ्यूर्थ में हुआ था, और उसके पिता हिटलर की खुफिया ‘वाफेन-एसएस’ में जासूस रह चुके थे. पनामा में युरगेन मोसाक के पिता को बसाने की वजह क्यूबा और दक्षिण अमेरिकी देशों की आर्थिक-राजनीतिक गतिविधियों की सूचनाएं सीआइए को देना था. पनामा प्रकरण को लीड देनेवाले जर्मन अखबार ‘ज्यूडडाॅयच त्साइटूंग’ ने दो लाख 14 हजार आॅफ शोर कंपनियों का भंडाफोड़ ‘आइसीआइजे’ से जुड़े 109 मीडिया संगठनों की साझेदारी से किया था.
पद छोड़ें प्रधानमंत्री
कानून चाहे जो भी कहे, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को लोकतंत्र के लिए सही काम करना चाहिए और कम-से-कम अस्थायी तौर पर अपने पद को त्याग देना चाहिए.
सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गयी जेआइटी रिपोर्ट पर अब विशेषज्ञ, राजनेता और नागरिकों का ध्यान जा चुका है. यह रिपोर्ट पूर्ण रूप से सही नहीं है और पीएमएल-एन पहले ही इसे लेकर कुछ महत्वपूर्ण आपत्तियां दर्ज करा चुकी है, जिसके बारे में अंतत: अदालत को फैसला लेना है.
लेकिन, जेआइटी रिपोर्ट ने प्रधानमंत्री शरीफ और उनके बच्चों पर बेहद गंभीर और ठोस आरोप लगाये हैं. आम तौर पर किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था इस तरह संदेह के घेरे में आये प्रधानमंत्री को लेकर नहीं चलनी चाहिए.
पीएमएल-एन नवाज शरीफ से पद पर बने रहने की गुजारिश कर सकता है और शरीफ भी खुद को बचाने और लड़ाई लड़ने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन इससे लोकतंत्र को काफी नुकसान पहुंचेगा. प्रधानमंत्री के पास स्पष्ट विकल्प है : पद का त्याग, खुद और बच्चों के ऊपर लगे आरोपों के खिलाफ अदालत में लड़ाई लड़ना और अंतत: अगर वे इन आरोपों से बरी हो जाते हैं, तो कानून के सहारे वापस अपने कार्यालय में आने का रास्ता तलाश सकते हैं.
यह तय है कि अभी पद त्यागने का मतलब दोष की स्वीकारोक्ति नहीं होगी. लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुरक्षित करने और इसे मजबूत बनानेे के लिए वास्तव में यह त्याग जरूरी है. इस देश को ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत नहीं है, जो अदालत में खुद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की लड़ाई लड़ रहा हो, न ही देश ऐसे प्रधानमंत्री को बरदाश्त कर सकता है.
(पाकिस्तान के बड़े अंगरेजी दैनिक ‘डान ’ के संपादकीय का अंश. साभार.)

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