तकनीक के जरिये आगामी दशक तक होगा इ-गवर्नेंस से बड़ा बदलाव

सरकार के विविध मंत्रालयों और विभागों की ओर से आयोजित निविदा या बोली लगने की प्रक्रियाओं में बीते वर्षों के दौरान अनेक प्रकार की धांधली होने की खबरें आती रही थीं. इससे जुड़े तमाम तरह के भ्रष्टाचार मीडिया में सुुर्खियों में रहे. इस प्रकार के भ्रष्टाचार को कम करने या फिर खत्म करने के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 25, 2017 6:43 AM
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सरकार के विविध मंत्रालयों और विभागों की ओर से आयोजित निविदा या बोली लगने की प्रक्रियाओं में बीते वर्षों के दौरान अनेक प्रकार की धांधली होने की खबरें आती रही थीं. इससे जुड़े तमाम तरह के भ्रष्टाचार मीडिया में सुुर्खियों में रहे.
इस प्रकार के भ्रष्टाचार को कम करने या फिर खत्म करने के लिए सरकार अनेक उपायों पर जोर दे रही है. इसमें तकनीक का सहयोग भी लिया जा रहा है. आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से इस समस्या का बेहतर समाधान तलाशा जा सकता है. इस दिशा में क्या किये जा रहे हैं उपाय और कैसे मिल रही है कामयाबी समेत इससे संबंधित मसलों पर फोकस कर रहा है आज का साइंस टेक पेज …
कंप्यूटर और संबंधित तकनीकों की शुरुआत भले ही पिछले दशकों के दौरान हो चुकी थी, लेकिन हाल में शुरू किये गये ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान के तहत सरकारी सुविधाओं को जनता द्वारा ज्यादा आसानी से हासिल करने की कवायद की गयी. इससे सभी मंत्रालयों व विभागों को जोड़ा जाने लगा. मौजूदा समय में 69 से अधिक विविध पोर्टल्स और मोबाइल एप्स के जरिये सरकार नागरिकों को विभिन्न सेवाएं मुहैया करा रही है. इसमें बैंक खातों के जरिये रकम ट्रांसफर करने वाले ‘भीम’ एप और ‘जीएसटी नेटवर्क’ समेत ‘पासपोर्ट सेवा प्रोजेक्ट’ व ‘सॉइल हेल्थ कार्ड’ ने लोगों की अनेक मुश्किलों को कम करने में बड़ी भूमिका निभायी है.
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर
दूसरी ओर इ-गवर्नेंस ने एक ऐसा बुनियादी ढांचा तैयार करने में योगदान दिया है, जिसके आधार पर इन सेवाओं को मजबूती प्रदान की जा रही है. मौजूदा समय में आधार, डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर, गवर्नमेंट इ-मार्केट प्लेस और ओपेन गवर्नमेंट डाटा आदि के माध्यम से 30 से अधिक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट चलाये जा रहे हैं.
बुनियादी सुविधाओं पर जोर
इसके अलावा, स्मार्ट सिटी मिशन के तहत केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने देश के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी में तब्दील करने की योजना बनायी है. इसके तहत इन शहरों में आधुनिक तकनीकों पर आधारित बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए स्मार्ट एनर्जी, स्मार्ट यातायात और बेहद तेज गति से संचार नेटवर्क की सुविधाएं प्रदान की जायेंगी. इसका मुख्य मसकद तकनीक की मदद से नागरिकों के लिए एक बेहतर दुनिया बनाना और उन्हें एक अच्छी जिंदगी जीने के लिए तमाम सुविधाएं प्रदान करना है.
खातों के जरिये भुगतान
इतना ही नहीं, समाज में पिछले पायदान पर जीवन बिता रहे लोगों को भी अनेक योजनाओं के जरिये सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं. इन सब को भी तकनीक से जोड़ा जा रहा है. मसलन- ‘नरेगा’ यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी स्कीम के तहत सभी लाभार्थियों को नकद भुगतान के बजाय खातों के जरिये भुगतान शुरू किया गया, जिससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मदद मिल रही है. वहीं दूसरी ओर, एलपीजी सब्सिडी की रकम को सीधे खाते में जमा करने वाली ‘पहल’ योजना से इस मकसद से होने वाली सब्सिडी की बड़ी रकम को लीकेज यानी दुरुपयोग को रोका गया है.
जी2जी, जी2सी व जी2बी
अधिकतर राज्य सरकारों ने अब इ-गवर्नेंस प्रोजेक्ट की शुरुआत कर दी है. इसमें स्थानीय जरूरतों को प्राथमिकता दी गयी है. इसमें जी2जी यानी गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट, जी2सी यानी गवर्नमेंट टू सिटीजेन और जी2बी यानी गवर्नमेंट टू बिजनेस जैसी स्कीम प्रमुख रूप से शामिल हैं. हालांकि, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने इसे बहुत पहले अपना लिया था, लेकिन धीरे-धीरे इसे हरियाणा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने भी अपनाना शुरू किया.
इसके जरिये अब इन राज्यों में भी उल्लेखनीय प्रगति हासिल हो रही है. वैसे सही मायनों में इसके फायदे हासिल करने के लिए अभी सरकारों को इसे उच्च-स्तर पर लागू करना होगा, तभी जाकर इसका समग्र फायदा मिल सकता है.
स्मार्ट सिटी में बेहतर होंगी सुविधाएं
देशभर में शासन-प्रशासन के स्तर पर टेक्नोलॉजी-आधारित गवर्नेंस की संरचना विकसित करने के लिए नीति आयोग लघु-अवधि और दीर्घ-अवधि के विजन पर काम कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल 2030 की योजना के अनुकूल नीति आयोग भारत में इस विजन को प्रभावी बनाने की दिशा में जुटा है. इसके तहत विविध कार्यों को अंजाम दिया जायेगा, जिसमें तकनीक की सर्वाधिक भूमिका होगी.
एएमआरयूटी और स्मार्ट सिटी मिशन
देश के अनेक शहरों में एएमआरयूटी (अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफोर्मेशन) और स्मार्ट सिटी मिशन के तहत इ-गवर्नेंस का ढांचा तैयार किया जा रहा है. ऐसे समय में, जब देश शहरीकरण की ओर तेजी से बढ़ रहा हो, और शहरों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा हो, इस योजना के जरिये शहरी जीवन स्तर को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है.
देशभर में 100 स्मार्ट सिटी के निर्माण के लिए व्यापक मात्रा में निवेश किया जा रहा है. विभिन्न कंपनियों इन शहरों में इनोवेटिव तरीकों से शिक्षा व्यवस्स्था समेत स्वास्थ्य, यातायात, मकान, कचड़ा प्रबंधन और ऊर्जा जैसी जरूरतों को पूरा करने में जुटी हैं.
तकनीक से आंकड़ों की निगरानी
स्मार्ट शहरों के उभार से व्यापक तादाद में आंकड़े सृजित होंगे, जिनका समुचित तरीके से प्रबंधन करना जरूरी होगा. इसमें डिजिटल तकनीकों का व्यापक योगदान होगा. इसके जरिये इन आंकड़ों को आसानी से एकत्रित किया जायेगा और उनका विश्लेषण किया जायेगा. इस विश्लेषण से इन शहरों में रहने वाले लोगों के लिए एक बेहतर जिंदगी की तमाम सुविधाएं मुहैया कराने में सहूलियत होगी.
ब्लॉकचेन से परिवर्तन
भविष्य में जिन तकनीकों से बड़ा बदलाव होगा, उनमें से एक ब्लॉकचेन भी है. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर अपने यहां इसकी शुरुआत कर दी है. जमीन का रिकॉर्ड रखने और कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ी सब्सिडी मुहैया कराने में इन आंकड़ों का इस्तेमाल ब्लाॅकचेन के रूप में किया जाता है.
धीरे-धीरे जैसे-जैसे इस ब्लॉकचेन में अन्य राज्य शामिल होते जायेंगे, इसकी उपयोगिता और मांग बढ़ती जायेगी. इस ब्लॉकचेन का इस्तेमाल आंकड़ों के सुरक्षित भंडार के रूप में किया जा सकता है. संवेदनशील सरकारी आंकड़ों के लिए इसका विशेेष रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है.
आइओटी से आयेगा बड़ा बदलाव
बदलाव लाने में सक्षम उभरती तकनीकों में आइओटी यानी इंटरनेट ऑफ थिंग्स एक सक्षम टूल साबित होगा. मौजूदा समय में सरकारी और प्राइवेट कंपनियां इसके जरिये होने वाले कार्यों पर व्यापक रिसर्च में करोड़ों रुपये खर्च कर रही हैं. आने वाले समय में निश्चित रूप से इसके फायदे लोगों को मिलेंगे. वर्ष 2020 तक दुनियाभर में आइओटी का कारोबार 267 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है, जिसमें भारत की बड़ी भागीदारी होगी.
(इगॉव डॉट इलेट्सऑनलाइन डॉट कॉम पर प्रकाशित संजीव कपूर के लेख का अनुवादित व संपादित अंश, साभार)
इ-गवर्नेंस की राह में चुनौतियां
इ-गवर्नेंस से लोगों को अनेक सुविधाएं मिलने के बावजूद इसकी राह में अभी बहुत चुनौतियां हैं. फिलहाल कई तकनीकी और सांस्कृतिक समस्याएं इसकी राह में बड़ी बाधा बन कर खड़ी हैं. इन बाधाओं को दूर किये बिना इ-गवर्नेंस के फायदों को समग्रता से हासिल नहीं किया जा सकता है. इ-गवर्नेंस की राह में कुछ प्रमुख चुनौतियां इस प्रकार हैं :
बैंडविड्थ : बैंडविड्थ के अभाव के कारण इ-गवर्नेंस की पहल को सुचारु तरीके से लागू करने में बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. वर्ष 2016 में जारी की गयी ‘अकामाइ’ की एक रिपोर्ट में इंटरनेट की औसत कनेक्शन स्पीड के मामले में भारत को दुनिया के देशों की सूची में 97वें नंबर पर रखा गया. इस सूची में चीन, श्रीलंका और वियतनाम जैसे अन्य एशियाई देश भारत से ऊपर हैं. इलेक्ट्रॉनिक्स और आइटी मंत्रालय के सचिव का भी कहना है कि भारत में सही मायनों में ब्रॉडबैंड की दशा में उल्लेखनीय रूप से सुधार की जरूरत है.
तकनीकी माहौल का अभाव : भारत में इ-गवर्नेंस लागू करने में बड़ी चुनौती इंफ्रास्ट्रक्चर या डिजिटल साक्षरता नहीं है. बड़ी चुनौती सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले लाखों बाबुओं की मनोदशा और उनकी कार्यप्रणाली व आदत में बदलाव नहीं होना है.
ज्यादातर सरकारी विभाग आज भी इस समस्या का समग्र तलाशने की कोशिशों में जुटे हैं कि कार्यालयों में रोजमर्रा के कार्यों में तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ाया जा सके और इसकी राह में आने वाली चुनौतियों को कैसे दूर किया जा सके. इसलिए इस संबंध में प्रशासनिक सुधार के साथ एक लीगल फ्रेमवर्क भी तैयार करना होगा, ताकि लोगों को डिजिटाइजेशन के फायदों के बारे में समझाया जा सके.
ग्लोबल टेक्नोलॉजी रिपोर्ट, 2016
वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की ग्लोबल टेक्नोलॉजी रिपोर्ट, 2016 में भी इस बारे में दर्शाया गया है. इस रिपोर्ट में भारत के संबंध में उल्लेख किये गये प्रमुख तथ्य इस प्रकार हैं :
15 फीसदी घरों तक ही इंटरनेट की पहुंच कायम हो पायी है भारत में.
5.5 फीसदी ही मोबाइल ब्रॉडबैंड सब्सक्राइबर्स हैं देशभर में.
एक-तिहाई से ज्यादा भारतीय आबादी अब भी अशिक्षित है.
नेटवर्क रेडीनेस इंडेक्स
वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम द्वारा जारी इस सूची में भारत को वर्ष 2016 में 91वें स्थान पर रखा गया था. इसमें यह आंकलन किया जाता है कि उभरती तकनीकों से लोगों को कितना फायदा मिल पा रहा है और डिजिटल ट्रांसफोर्मेशन के जरिये लोगों की जिंदगी में कितना बदलाव आ रहा है. इस सूची में भारत के नीचे रहने का कारण लचर बुनियादी ढांचा, डिजिटल साक्षरता का अभाव और शहरों व गांवों के बीच डिजिटल गैप भी है.
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