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येरुशलम में तनाव : अरब-इस्राइल संबंध खतरनाक मोड़ पर

येरुशलम की अल अक्सा मसजिद पर इस्राइल की पाबंदियों को लेकर इजरायल और फिलीस्तीन में तनाव का माहौल गंभीर होता जा रहा है. अनेक मुस्लिम देशों ने भी इस्राइल की कड़ी निंदा की है. जानकारों की मानें, तो हालात एक बार फिर 2015 के सितंबर की तरह हो सकते हैं. उस समय हिंसा का सिलसिला […]

येरुशलम की अल अक्सा मसजिद पर इस्राइल की पाबंदियों को लेकर इजरायल और फिलीस्तीन में तनाव का माहौल गंभीर होता जा रहा है. अनेक मुस्लिम देशों ने भी इस्राइल की कड़ी निंदा की है. जानकारों की मानें, तो हालात एक बार फिर 2015 के सितंबर की तरह हो सकते हैं. उस समय हिंसा का सिलसिला छह माह तक चला था. ऐसी उम्मीदें हैं कि मौजूदा तनाव कुछ दिनों में सुलझ जायेगा, पर अल अक्सा को लेकर माहौल कभी भी फिर से बिगड़ सकता है. इस मुद्दे के विविध पहलुओं पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
पूरी दुनिया को अल अक्सा मसजिद का मामला समझ में आ जाये, इसके लिए इस्राइल ने अयोध्या में मंदिर विवाद को उदाहरण बनाया है. पुराने येरुशलम में 35 एकड़ की परिधि वाली ‘टेंपल माउंट’ नाम की विश्व प्रसिद्ध पहाड़ी एक बार फिर चर्चा में है. यह वह जगह है, जिससे मुस्लिम, यहूदी, ईसाई और आर्मेनियाई जनता की आस्था जुड़ी हुई है.
इस महीने की 14 तारीख को अल अक्सा मसजिद के अंदर तैनात इस्राइल के दो सुरक्षाकर्मी मारे गये थे. हत्यारे तीन अरब–इस्राइली बंदूकधारी थे, जिन्होंने तस्करी कर मशीनगन का जुगाड़ कर लिया था. इस कांड की वजह से अल अक्सा मसजिद के लायंस गेट पर सीसीटीवी कैमरे और मेटल डिटेक्टर का लगाने का फैसला इस्राइल ने किया था. मगर, इसका विरोध कर रहे फिलस्तीनी नेता महमूद अब्बास ने कहा कि इस बहाने इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू अल अक्सा पर संपूर्ण नियंत्रण की फिराक में हैं, जिसे हम होने नहीं देंगे. इस्राइली कैमरे और मेटल डिटेक्टर का विरोध इतना व्यापक हो गया कि इसके विरूद्ध तुर्की और इंडोनेशिया ने मोर्चा खोल दिया था, और मामले को मुस्लिम देशों के संगठन ‘ओआइसी’ में ले जाने की तैयारी हो रही थी. मगर, अब मेटल डिटेक्टर हटाया जा रहा था.
येरुशलम का अल अक्सा मसजिद
35 एकड़ की टेंपल माउंट पहाड़ी पर अवस्थित अल अक्सा मसजिद 1.44 लाख वर्ग मीटर पर जमीन पर निर्मित है, जिसके 11 दरवाजे हैं. इनमें चार द्वार बंद हैं. अल अक्सा मसजिद के अंदर इतनी सुविधा है कि एक साथ पांच हजार लोग नमाज अता कर सकते हैं. वर्ष 1967 में छह दिन के युद्ध में इस्राइल ने टेंपल माउंट को अपने नियंत्रण में ले लिया था. इस्राइल के कब्जे में वे इलाके हैं, जहां पर यहूदियों के राजा किंग सोलोमन ने पहला मंदिर बनाया था. ऐसा बताया गया कि पहला और दूसरा टेंपल बेबीलोनिया और रोमन शासकों ने ध्वस्त करा दिया था.
सुरक्षा का सवाल
अल अक्सा मसजिद के कुछ हिस्से की सुरक्षा भले ही इस्राइल ने अपने हाथ में ले रखी हो, पर उसके रख-रखाव और अदर प्रवेश करनेवाले दर्शनार्थियों को इजाजत देने का काम एक ट्रस्ट करती है, जिसे जॉर्डन की सरकार का समर्थन हासिल है. अल अक्सा मसजिद में कई बार 50 से कम उम्र के मर्द और 45 से कम उम्र की औरतों का प्रवेश सुरक्षा कारणों से मना कर दिया जाता है.
खासकर जुम्मे के दिन ऐसी पाबंदी आयद की जाती रही है. अल अक्सा मसजिद का लायंस गेट वह द्वार है, जिससे पूर्वी यरुशलम मेें रहने वाले मुसलमान प्रवेश करते हैं. अल अक्सा के मगरिबी गेट को इस्लामी गार्ड देखते हैं, उसी के सामने वेस्टर्न वाल है, जिसे यहूदी ‘सेकेंड टेंपल’ का हिस्सा मानते हैं, और उस दीवार से मुखातिब होकर यहूदी प्रार्थना करते हैं. साल 2000 तक गैर-मुस्लिम भी वक्फ से टिकट लेकर अल अक्सा मसजिद में प्रवेश कर सकते थे. मगर, दूसरे इंतिफादा के बाद से उस पर रोक लग गयी.
यहूदियों के लिए अल अक्सा मसजिद का महत्व
वर्ष 1967 के युद्ध के बाद इस्राइली पुरातत्व विभाग ने अल अक्सा मसजिद के दक्षिण-पूर्व हिस्सों की कई बार खुदाई कर भग्नावशेषों को जुटाया, और यह तथ्य स्थापित करने की कोशिश की है कि ईसा पूर्व एक हजार साल पहले यहां पर यहूदियों के राजा किंग सोलोमन ने पहला मंदिर बनाया था, जिसे बाद में रोमन बाइजेंटाइन शासकों ने तबाह करने की चेष्टा की थी. रोमन जनरल टाइटस ने 70वीं सदी में यहूदी विद्राहियों को कुचलने के क्रम में इस मंदिर को तोड़ने और जलाने की चेष्टा की थी. इस्राइलियों के अनुसार यह वह पवित्र स्थल है, जहां तीन हजार साल पूर्व ईश्वर ने धूल-मिट्टी से आदम की संरचना की थी. और कई हजार साल बाद अब्राहम ने ईश्वर में अपना विश्वास जताने के वास्ते अपने बेटे की बलि देने का संकल्प किया था.
मक्का, मदीना के बाद अल अक्सा तीसरा पवित्र स्थल
मक्का में काबा और मदीना के बाद अल अक्सा मसजिद को दुनिया का तीसरा पवित्र स्थान दुनियाभर के मुसलमान मानते हैं. ऐसी मान्यता है कि हजरत मुहम्मद मक्का से दो हजार किलोमीटर दूर यरुशलम रातों रात पहुंचे, और अल अक्सा मसजिद वाली जगह पर आराम फरमाया.
जहां स्वर्ण गुंबद दिखता है, उसके नीचे चट्टान पर उन्होंने नमाज पढ़ी थी, और फिर सातों स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गये थे. यह वह पाक जगह है, जहां से पांचों वक्त नमाज पढ़ना तय हुआ था. कोई 1300 साल पहले खलीफा अल वालिद अब्दुल मालिक बिन मारवान ने 709 ईस्वी में अल अक्सा मसजिद का निर्माण कराया था. वर्ष 1969 में इस मसजिद के कुछ हिस्से में, जिसे ‘मोरक्कन क्वार्टर’ कहते हैं, वहां यहूदियों ने तोड़-फोड़ कर आग लगा दी थी, जिसकी बाद में मरम्मत कर दी गयी.
किसका नियंत्रण
यहां विवाद की वजह थर्ड टेंपल का बनाया जाना है, जिसके लिए इस्राइली सांसद येहूदा ग्लिक ने वहां पर ‘राम मंदिर आंदोलन’ जैसा अभियान छेड़ रखा है. इसमें कोई शक नहीं कि ऐसे अभियान से इस्राइल में उग्र राष्ट्रवादी राजनीति को भी फायदा पहुंच रहा है.
यह दिलचस्प है कि थर्ड टेंपल की अवधारणा को रोमन कैथलिक और इस्टर्न ऑर्थोडॉक्स ईसाई भी समर्थन दे रहे हैं, उनका मानना है कि जीसस क्राइस्ट के समय इस जगह पर बलि चढ़ती थी. इसलिए ‘मॉडल सोलोमन टेंपल’ बनना चाहिए. यहां पर रूढ़िवादी राष्ट्रवादी यहूदियों ने दूसरी लाइन पकड़ रखी है. वे चाहते हैं कि थर्ड टेंपल के सभी गुंबद इतनी ऊंची उठायी जायें और उसकी दीवारों की घेराबंदी ऐसी हो कि अल अक्सा मसजिद का वजूद उसमें समा जाये. यह थर्ड टेंपल के नक्शे को देखकर भी लग जाता है. यहूदियों ने बाकायदा ‘टेंपल इंस्टीट्यूट’ बना रखा है, जिसके लिए दुनियाभर से पैसे जमा हो रहे हैं.
चक्रव्यूह में फंसे नेतन्याहू
पीछे हटे
इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू जियोनी राष्ट्रवाद को दो मौकों पर ज्यादा मुखर करते हैं. जब वे भ्रष्टाचार में फंसते हैं तब, या फिर जब उन्हें दोबारा से सत्ता में चुन कर आना होता है. ऐसे मौकों पर उनकी पार्टी ‘लिकुड’ का राष्ट्रवाद चरम पर होता है. नेतन्याहू की पत्नी सारा प्रधानमंत्री निवास के फर्नीचर की खरीद-फरोख्त और उसे सजाने के मामले में पैसे खाने का आरोप में फंसी हुई हैं. सारा से दिसंबर 2016 से लेकर 24 अप्रैल 2017 तक कई बार पूछताछ हो चुकी है.
नेतन्याहू खुद ऑस्ट्रेलियाई अरबपति जेम्स पैकर से महंगे गिफ्ट लेने के कारण विवाद के घेरे में फंसे हुए हैं. नेतन्याहू ने एक यहूदी मीडिया मुगल आर्नोन मोजेस के अखबार के प्रसार को आगे बढाने में मदद की थी, इस तरह के गंभीर आरोप भी उन पर है. नेतन्याहू के पिछले कार्यकाल में रक्षा मंत्री रह चुके मोशे यालोन ने इस बार उनके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है. इसलिए इस बार अल अक्सा मसजिद के बहाने जिस राष्ट्रवाद को नेतन्याहू जगाना चाहते थे, उसे उनके खुद के देश में व्यापक समर्थन नहीं मिल रहा है. जॉर्डन के शाह अब्दुल्ला से क्या डील हुई, मगर नेतन्याहू अब मान गये हैं, और अब अल अक्सा मसजिद से मेटल डिटेक्टर का हटना आरंभ हो गया है. मजेदार है कि फिलस्तीनी लीडरशिप इसे अपना फतह मान रही है!
अल-अक्सा मसजिद : हालिया इतिहास के आईने में
ईसा के जन्म से 4,000 वर्ष पूर्व बसा यरुशलम का पुराना शहर इसलाम, यहूदी और ईसाईयत को मानने वालों के लिए खासा महत्व रखता है. इस पुराने शहर के भीतर 35 एकड़ का एक परिसर है जिसे अल-हरम-अल-शरीफ के नाम से जाना जाता है. यह परिसर विश्व विरासत स्थल में शुमार है. इसी परिसर में मौजूद है अल-अक्सा मसजिद, जो मुसलमानों का तीसरा सबसे पवित्र धार्मिक स्थल है.
1922
फिलीस्तीन में मुस्लिम मामलों के सर्वोच्च प्रभारी ने तुर्की के वास्तुशिल्पी अहमत कमालेत्तीन बे को अल-अक्सा मसजिद के नवीनीकरण की जिम्मेवारी सौंपी. बीसवीं सदी में मसजिद का यह पहला नवीनीकरण था.
1948
1948 युद्ध के बाद इजरायली सैनिकों ने शहर के 85 प्रतिशत हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया और इसके पश्चिमी किनारे पर जॉर्डन की अरब सैन्य टुकड़ी का नियंत्रण हो गया.
15 अगस्त, 1967
इस्राइल के मुख्य सैन्य पादरी रब्बी शलोमो गोरेन और मुख्य रब्बी के सदस्य मुघराबी द्वार के माध्यम से अल-हरम-अल-शरीफ परिसर में गये.
21 अगस्त, 1969
ऑस्ट्रेलियाई ईसाई-यहूदी डेनिस माइकल रोहन ने अल-अक्सा मसजिद के उस मंच को, जहां इमाम खड़े हेकर उपदेश देते थे, जला डाला.
1970
इस समय तक मसजिद पर वक्फ का कब्जा था, लेकिन वक्फ के ऐतराज के बावजूद इस्राइल ने इस इलाके में खुदाई की और कई चीजें ध्वस्त कर दी.
27 अप्रैल, 1982
धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टी कछ के नेता मीर खाने ने अल-हरम-अल-शरीफ पर हमला किया.
1983
ऑर्थोडॉक्स यहूदियों के एकसमूह द टेंपल माउंट फेथफुल ने अल-हरम-अल-शरीफ को अपने कब्जे में लिया.
15 जनवरी, 1988
इस्राइली सैनिकों ने अल-अक्सा मसजिद और डोम ऑफ द रॉक के बाहर नमाजियों पर आंसू गैस और रबर के खोल में लिपटी स्टील की गोलियां दागी.
21 अगस्त, 1988
जॉर्डन के शाह ने यह घोषणा की कि वे फिलीस्तीनी नेता यासर अराफात के आग्रह पर पश्चिमी किनारे से खुद को अलग कर रहे हैं.
8 अक्टूबर, 1990
इस्राइली सीमा पुलिस ने अल-हरम-अल-शरीफ में यहूदी मंदिर बनाने को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे 21 फिलीस्तीनियों की
हत्या की.
24 सितंबर, 1996
इस्राइली अधिकारियों ने अल-हरम-अल-शरीफ के नजदीक एक बड़े और प्राचीन सुरंग की खुदाई की. इस दौरान हिंसा में 70 फिलिस्तीनी और 17 इस्राइली सैनिक मारे गये.
28 सितंबर, 2000
इस्राइल के विपक्षी नेता एरियल शेरोन ने अल-हरम-अल-शरीफ की यात्रा की.
21 मार्च, 2013
जॉर्डन के शाह ने यरुशलम के पवित्र स्थलों के संरक्षण के लिए फिलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया.
नवंबर, 2013
अल-हरम-अल-शरीफ में यहूदियों के प्रार्थना करने के लिए इस्राइली संसद में प्रस्ताव रखा गया.
19 मार्च, 2014
दर्जनों इस्राइली सैनिकों ने इस्राइली पुलिस की निगरानी में अल-हरम-अल-शरीफ की यात्रा की.
21 मार्च, 2014
इस्राइली अधिकारियों द्वारा 50 वर्ष से कम उम्र के पुरुषों को अल-हरम-अल-शरीफ परिसर में नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध लगाने पर हजारों फिलीस्तीनियों ने यरुशलम की गलियों में नमाज पढ़ी.
1 अक्टूबर, 2014
इस्राइली अधिकारियों ने गाजा के 500 फिलिस्तीनियों को इद-अल-अद्धा के मौके पर यरुशलम आने की आज्ञा दी.
17 मई, 2015
यहूदियों के दक्षिण पंथी समूह अल-अक्सा मसजिद परिसर में इस्राइल की स्थापना दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए.
12 अप्रैल, 2016
आइजीसी ने अल-अक्सा मसजिद परिसर में शांति बहाल करने में असफल रहने पर नेतन्याहू को चेताया.
18 अक्टूबर, 2016
यूएन कल्चरल एजेंसी ने मसजिद में मुसलमानों के जाने पर प्रतिबंध लगाने व सैनिकों व पुलिस के आक्रामक रवैये को लेकर इस्राइल की निंदा की.
14 जुलाई, 2017
तीन फिलिस्तीन बंदूकधारियों द्वारा अल-अक्सा मसजिद परिसर के नजदीक की गयी गोलीबारी में दो इस्राइली पुलिस अधिकारियों की मौत हो गयी.
15 जुलाई, 2017
इस्राइल ने परिसर को बंद कर दिया. इस प्रकार 1969 के बाद पहली बार वहां शुक्रवार की नमाज नहीं पढ़ी गयी.

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