अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कई दशकों से उतार-चढ़ाव का रिश्ता रखनेवाला उत्तर कोरिया जल्दी ही अमेरिका तक परमाणु हमले करने की क्षमता हासिल कर सकता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की नयी पाबंदियों के बाद उसने यह धमकी भी फिर से दी है कि अमेरिका के मित्र-देशों- जापान और दक्षिण कोरिया- को भी वह निशाना बना सकता है.
उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को लेकर तनातनी लंबे समय से चल रही है, लेकिन पिछले सप्ताह से ऐसी आशंकाएं गहन हो गयी हैं कि उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच युद्ध हो सकता है, जिसमें परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भी हो सकता है. पाबंदियों पर चीन के समर्थन ने भी स्थिति को उलझा दिया है, क्योंकि मित्र देश होने के नाते वही उत्तर कोरिया पर कूटनीतिक दबाव बना सकता है, हालांकि, उसने भी कह दिया है कि उत्तर कोरिया की कारगुजारियों के लिए अमेरिका द्वारा चीन की ओर अंगुली उठाना बेमानी है. इस मुद्दे पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
ट्रंप ने इस बार प्रतिबंध की कूटनीति जिस तरह से प्रारंभ की है, उसमें उन्हें कामयाबी हासिल हो रही है. उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाने को लेकर चीन काफी दबाव में था. पहले विश्लेषकों को शक था कि चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में वीटो जैसा कोई दांव न खेल दे, और उसके समर्थन में रूस न खड़ा हो जाये. मगर, उत्तर कोरिया के मिसाइल टेस्ट के विरुद्ध सुरक्षा परिषद् में सर्वमत से सदस्यों ने जिस तरह से एकजुटता दिखायी है, उससे चकित होना स्वाभाविक है. और एकजुटता भी ऐसे वक्त जब अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध आयद किया हुआ है. उसके जवाब में रूस ने अमेरिकी कूटनीतिकों को देश निकाले का आदेश दे रखा है.
ट्रंप का ट्विट
बीते पांच अगस्त को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्विट किया, ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में 15-0 से वोटिंग कर उत्तर कोरिया के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिया गया है. रूस और चीन ने हमारे साथ वोट किया है. आर्थिक रूप से इसका बहुत बड़ा असर पड़ेगा.’
यों, रूस और चीन को भरोसे में लेकर प्रतिबंध लगाना वास्ते में अमेरिका के लिए एक बड़ी कामयाबी मानी जानी चाहिए. दोनों मुल्क, उत्तर कोरिया के मित्र हैं, और व्यापारिक सहयोगी भी. उत्तर कोरिया का 89 फीसद व्यापार चीन से है. रूस, उसका दूसरा बड़ा व्यापारिक पार्टनर है.
वर्ष 2014 में पुतिन ने उत्तर कोरिया पर लदे 90 प्रतिशत कर्ज माफी कर दी थी, और इसके लिए भी हामी भर दी थी कि उत्तर कोरिया रूबल में पेमेंट कर सकता है. साल 2013 में अकेले रूस से उत्तर कोरिया का विदेश व्यापार 7.3 अरब डाॅलर था. लौह अयस्क और कोयला यह दो प्रमुख खनन के स्रोत हैं, जिनसे उत्तर कोरिया की कमाई हो रही थी. इस बार प्रतिबंध इन्हीं दो के निर्यात पर लगा है, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि उत्तर कोरिया को सालाना एक अरब डाॅलर का नुकसान होगा.
कोरिया को अलग-थलग करने का सवाल
पिछले साल भी मिसाइल परीक्षण किये जाने के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव संख्या 2270 के जरिये प्रतिबंध लगा था. मगर, उसे लागू कराने में चीन और रूस हीला-हवाली करते रहे. ओबामा प्रशासन भी इस मामले में मूक दर्शक बना रहा.
इस बार सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव संख्या 2371 में जो कैप लौह अयस्क और कच्चे कोयले के निर्यात पर लगाया गया है, उसका पालन चीन या रूस जैसे मित्र करेंगे, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता. तानाशाही के बावजूद उत्तर कोरिया शेष दुनिया से कटा नहीं है. उत्तर कोरिया के 166 देशों से कूटनीतिक संबंध हैं, और 47 देशों में उसके दूतावास हैं, इससे पता चलता है कि दुनिया के नक्शे से वह अलग-थलग नहीं है. उत्तर कोरिया को देखने कभी दो लाख पर्यटक साल में मुश्किल से जा पाते थे, 2017 में दस लाख से अधिक पर्यटक उत्तर कोरिया आने की आशा की गयी है. उससे उसकी आमदनी का अंदाजा तो लगाया जा सकता है.
ताजा प्रतिबंध की मूल वजह
यह दिलचस्प है कि अमेरिका को जब भी उत्तर कोरिया जैसे देश से खतरा महसूस होता है, संयुक्त राष्ट्र को सबसे पहले प्रतिबंध के वास्ते सक्रिय कर दिया जाता है. ठीक से देखा जाये, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् आज भी कुछ महाशक्तियों के हितों की सुरक्षा का हथियार के रूप में काम करती दिखायी देती है. यह ध्यान में रखने की बात है कि 30 मई, 2017 को उत्तर कोरिया ने एक तस्वीर जारी की थी, जिसमें उसने ‘प्रिसेसन कंट्रोल्ड गाइड सिस्टम’ से लैस बैलेस्टिक राकेट के परीक्षण को दिखाया था. इस प्रणाली के जरिये उत्तर कोरिया ने लक्ष्य को सटीक रूप से भेदने की तकनीक हासिल कर ली है.
ट्रंप की भृकुटि उत्तर कोरिया के छठें आइसीबीएम टेस्ट को लेकर तनी हुई थी. ट्रंप इस टेस्ट को हर हाल में रोकना चाहते थे. जापान की जल सीमा में 4 अप्रैल, 2017 को परीक्षण के दूसरे दिन किम जोंग उन ने जो कुछ कहा है, उससे अमेरिका के कान जरूर खड़े हो चुके थे. किम जोंग उन ने कहा था कि हम जो छठा ‘आइसीबीएम’ टेस्ट करेंगे, हमारे उस अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल की मार अमेरिका तक होगी. उत्तर कोरिया ने इसके प्रकारांतर 16 अप्रैल, 29 अप्रैल, 14 मई, 8 जून को कई मिसाइलों के परीक्षण किये.
उसने 4 जुलाई, 2017 को अंतर महाद्विपीय बैलेस्टिक मिसाइल ‘ह्वासोंग-14’ का सफल परीक्षण किया, जो 6 हजार 700 किलोमीटर तक मार कर सकती है. मतलब, इसकी जद में अमेरिका का अलास्का आ चुका था. 28 जुलाई को एक और मिसाइल टेस्ट उत्तर कोरिया ने छागांग प्रांत में किया, जिसके बूते उत्तर कोरिया ने दावा किया है कि शिकागो तक हम मार कर सकते हैं. स्वाभाविक ही यह ट्रंप प्रशासन की नींद हराम करने के लिए हो रहा था.
मिसाइल कार्यक्रम को किसकी शह?
फ्योंगयांग में 2012 की परेड में दो बैलेस्टिक मिसाइलें दिखी थीं, उनमें एक थी- ‘केएन-14’, जिसकी मारक क्षमता दस हजार किलोमीटर तक बतायी गयी थी. दूसरी थी, ‘केएन-08’, यह मिसाइल 11 हजार 500 किलोमीटर तक प्रहार कर सकती है. यह ध्यान में रखने की बात है कि ट्रंप के शपथ के एक माह भी पूरे नहीं हुए थे कि 14 फरवरी को ‘पुख्गुक्सोंग-2’ मिसाइल उत्तर कोरिया ने दाग दी. अमेरिकी नौसेना के ‘पैसिफिक कमांड’ की निगाहंे उत्तर कोरिया की गतिविधियों पर निरंतर बनी हुई है.
इसमें कोई शक नहीं कि उत्तर कोरिया चीन के बल पर उछलता रहा है. मगर, इस बार ट्रंप की कोशिश रही है कि चीन को किसी तरह घेर कर उसे उत्तर कोरिया को निपटाने में आगे किया जाये. संयुक्त राष्ट्र के जरिये इस दफा जिस तरह के प्रतिबंध लगाने का आदेश हुआ है, उसमें पेट्रोलियम और गैस सप्लाइ शामिल है. गैस व पेट्रोल के लिए उत्तर कोरिया सबसे अधिक चीन पर आश्रित है. चीन इसके लिए कितना तैयार होगा, इस विषय को आनेवाले समय पर छोड़ना होगा.
रूस का खेल
प्रशांत महासागर वाले इलाके में अमेरिका और उसके मित्रों के विरुद्ध बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस एक आत्मघाती देश खड़ा हो, उसमें सबसे अधिक किसकी दिलचस्पी हो सकती है? उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम में जो सबसे बड़ा सहयोगी रहा है, उस पर ध्यान दें, तो सारी बातें समझ में आ जाती हंै. यह सारी रणनीति शीतयुद्ध के दौर में बनी थी.
उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रमों को सबसे अधिक ताकत रूस से मिली है. मास्को ने मिस्र के जरिये उत्तर कोरिया को मिसाइलों के उपकरण किस्तों में भेजे. साल 2012 में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद पुतिन को किम जोंग उन द्वारा भेजा पत्र चर्चा का विषय था. पुतिन, उत्तर कोरिया के इस युवा तानाशाह से इतने प्रभावित हुए कि सितंबर 2012 में 11 अरब डालर की ऐतिहासिक कर्ज माफी दे दी. टंªप ने इस बार ‘टोपी’ चीन को पहना तो दी, पर पुतिन प्रतिबंध के बाद कौन सा दांव खेलेंगे, उसका पूर्वानुमान व्हाइटहाउस को शायद उतना नहीं होगा!
बयानाें से बढ़ रहा तनाव
कोरिया संकट और 1945 की अनुगूंज
उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रमों को लेकर जैसे-जैसे क्रुद्ध बयान आ रहे हैं और तनाव बढ़ते जा रहे हैं, उसे देखते हुए विश्व नेताओं को इतिहास से एक सबक सीखना बेहतर रहेगा.
ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए. इससे पहले हम इन हथियारों के इस्तेमाल के विनाशकारी परिणाम देख चुके हैं. हम इसे झुठलाते हुए गलत नहीं कर सकते.
अमेरिका द्वारा 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया गया था जिसमें 1,40,000 लोग मारे गये थे. बुधवार को नागासाकी पर हुए दूसरे परमाणु हमले की बरसी है, जिसमें 70,000 लोग मारे गये थे और इस वजह से द्वितीय विश्व युद्ध तेजी से अंत की ओर बढ़ा था. हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराये गये परमाणु बम उतने शक्तिशाली नहीं थे, जितने आज के परमाणु बम हैं.
फिर भी परमाणु हथियारविहीन दुनिया का सपना अभी दूर है. परमाणु हथियारों पर रोक लगाने को लेकर पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र ने अपने पहले समझौते की घोषणा की. लेकिन इस प्रक्रिया में न ही परमाणु हथियार संपन्न नौ देशों ने और न ही जापान ने भाग लिया. उधर उत्तर कोरिया के अजीब नेता किम जोंग-उन का अमेरिकी भूभाग तक परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम मिसाइलों का परीक्षण जारी है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने उत्तर काेरिया पर कड़ा प्रतिबंध लगाकर इसका जवाब दिया है, गरीब देश को इसकी कीमत सालाना एक अरब डॉलर तक ले नुकसान से चुकानी होगी. इस दंड पर सबसे उत्साहजनक बात जो रही वह चीन द्वारा प्रस्ताव के समर्थन में मत देना जो उसने अमेरिका के साथ मिलकर तैयार किया था. अपने प्रमुख संरक्षक की सहायता के बिना भी किम अपने रवैये से बाज नहीं आयेंगे.
भड़काऊ शब्द और सैन्य शक्तियों का प्रदर्शन केवल वैमनस्य को बढ़ावा देते हैं. बेहतर है कि इस गरमा-गरम माहौल को कूटनीति के जरिये सामान्य किया जाये. बैठक नहीं करने से बेहतर है बैठक करना. बातचीत नहीं करने से बेहतर है बातचीत करना.
उत्तर कोरिया के साथ सीधी बातचीत की संभावनायें खोलने के लिए पिछले सप्ताह दक्षिण कोरिया, चीन व रूस के अपने सहयोगियों और अमेरिका के विदेश सचिव रेक्स टिलरसन के साथ उत्तर काेरिया के विदेश मंत्री की बैठक करना एक अच्छी खबर थी. टिलरसन ने उत्तर कोरिया के साथ सीधी बातचीत की संभावना के दरवाजे खुले होने की बात भी कही थी.
अधिक शांतिपूर्ण भविष्य की राह 72 वर्ष पहले सीखे गये सबक में निहित है. ऐसा दुबारा नहीं होना चाहिए.
(अमेरिकी अखबार ‘न्यूज डे’ का संपादकीय. साभार)