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नयी सर्जिकल तकनीक के इस्तेमाल से मुमकिन स्पाइनल इंज्यूरी का इलाज!

कई बार रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर या खिंचाव का दर्द असहनीय हो जाता है़ अक्सर फिजियोथेरेपी और मेडिसिन आदि का सहारा लेने के बाद भी राहत नहीं मिल पाती है़ ऐसे में सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बचता है, जो काफी मुश्किल और खर्चीला है़ ब्रिटेन और स्वीडन के वैज्ञानिकों ने हाल ही में नयी […]

कई बार रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर या खिंचाव का दर्द असहनीय हो जाता है़ अक्सर फिजियोथेरेपी और मेडिसिन आदि का सहारा लेने के बाद भी राहत नहीं मिल पाती है़ ऐसे में सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बचता है, जो काफी मुश्किल और खर्चीला है़ ब्रिटेन और स्वीडन के वैज्ञानिकों ने हाल ही में नयी तकनीकों से इसका सुलभ समाधान तलाशने में कामयाबी मिली है़
सेंसाेरी न्यूरॉन्स को जोड़ने वाली यह तकनीक ट्रॉमेटिक इंज्यूरी के इलाज के लिए बड़ी उम्मीद की किरण है़ इसी तकनीक से जुड़ी तमाम जानकारियों के साथ प्रस्तुत है आज का मेडिकल हेल्थ पेज
स्पा
इनल कोर्ड यानी रीढ़ की हड्डी में हुई किसी टूट-फूट की मरम्मत करना आसान नहीं है. लेकिन हाल में किये गये एक नये शोध अध्ययन के जरिये वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से इस काम को आसान बनाया जा सकता है. शोधकर्ताओं ने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि सर्जन की थोड़ी सी भी मदद मिल जाये, तो इसे अंजाम देना अब मुश्किल नहीं रहेगा और रीढ़ की हड्डी स्वयं अपनी मरम्मत करने में सक्षम हो सकती है.
खास तकनीक
इस शोधकार्य को अंजाम देने वाले लंदन के किंग्स कॉलेज और स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के न्यूरोसाइंस विशेषज्ञों ने इसके लिए हाल ही में विकसित किये गये सेंसोरी न्यूरॉन्स को जाेड़ने की खास तकनीक पर फोकस किया, जिसमें ट्रॉमेटिक इंज्यूरी के बाद स्पाइनल कोर्ड की मरम्मत की गयी थी. इसमें सेलुलर स्तर पर मरम्मत की प्रक्रिया को करीब से जाना गया. साथ ही यह भी समझा गया कि शरीर में टूटे सर्किट को दोबारा से कैसे सही किया जा सकता है.
दरअसल, स्पाइनल कोर्ड न्यूरॉन्स और मसल मूवमेंट दोनों ही को नियंत्रित करता है, और सेंसोरी न्यूरॉन्स दर्द आदि को नियंत्रित रखते हुए शरीर की नर्व कोशिकाओं को मस्तिष्क के साथ संचार बनाये रखने के लिए उसे पूरी तरह से दुरुस्त रखते हैं.
सेंसोरी रूट्स
ये दोनों प्रकार के न्यूरॉन्स जहां स्पाइनल कोर्ड से जुड़ते हैं, वहां इनका पुलिंदा मोटर रूट्स या सेंसोरी रूट्स कहलाता है. ट्रॉमेटिक इंज्यूरी यानी भयावह टूट-फूट होने से ये रूट्स मुड़ जाते हैं, जिससे शरीर के अन्य हिस्सों से इनका संपर्क ठीक तरीके से नहीं हो पाता है. मोटर रूट्स काे सर्जन द्वारा कई बार दोबारा से आरोपित किया जा सकता है और उसे उगाया भी किया जा सकता है. लेकिन, इस तकनीक का पूरी तरह से विकास किये बिना अभी सेंसोरी रूट्स यानी संवेदी जड़ों को उगाना आसान नहीं दिख रहा है.
नर्वस सिस्टम दुरुस्त करना
इलाज के मौजूदा तरीकों को तो यह नये तरीके से बदल ही सकता है, साथ ही इस अध्ययन में यह भी उम्मीद जतायी गयी है कि नर्वस सिस्टम के अन्य प्रकार के नुकसान को भी ठीक करने में यह तकनीक इस्तेमाल में लायी जा सकती है.
प्रसिद्ध स्वास्थ्य विज्ञान पत्रिका ‘फ्रंटीसर्य इन न्यूरोलॉजी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस नये तरीके के तहत ऑरिजनल सेंसोरी नर्व सेल्स को जड़ों से काट दिया जाता है और स्पाइनल कोर्ड में गहनता से आरोपित कर दिया जाता है. स्पाइनल कोर्ड में जिस जगह पर इसे आरोपित किया जाता है, उसे डॉर्सल हॉर्न कहा जाता है, जहां ज्यादा
सेंसोरी न्यूरॉन्स लगाये जाते हैं, जो सामान्य रूप से सेंसोरी रूट से सीधे नहीं जुड़े होते हैं.
न्यूरल सर्किट्स को दोबारा जोड़ने में कामयाबी
मरीजों पर किये गये परीक्षण के दौरान कुछ स्पाइन में अच्छे नतीजे देखे गये, जो यह दर्शाते हैं कि कुछ न्यूरल सर्किट्स को दोबारा से जोड़ा जा चुका है. लेकिन कैसे?
इस नये अध्ययन के सामने यही सवाल खड़ा हुआ था. चूहों पर इसका परीक्षण किया गया और इस तकनीक के जरिये ठीक इसी तरह की इंज्यूरी की मरम्मत करने के लिए इलेक्ट्रिकल पल्स का इस्तेमाल किया गया और यह जानने की कोशिश की गयी कि न्यूरल सर्किट्स कैसे खुद को सही करते हैं.
इस विश्लेषण में दर्शाया गया कि डॉर्सल हॉर्न में छोटी तंत्रिका शाखाएं अंकुरित हुई हैं. इसके बाद काम करने लायक न्यूरल सर्किट बनाने के लिए दोबारा से उन्हें संवेदी जड़ों में आरोपित किया गया यानी वहां तक पहुंचाने में कामयाबी मिली. इस पूरी प्रक्रिया में डॉर्सल हॉर्न की बड़ी भूमिका है, जो शायद स्पाइनल कोर्ड में होने वाली विविध प्रकार की टूट-फूट की मरम्मत को मुमकिन बना सकती है. यहां तक कि गंभीर रूप से हुई स्पाइलन कोर्ड इंज्यूरी में भी न्यूरल सर्किट को जोड़ा जा सकता है.
भ्रूण में जीन एडीटिंग से हार्ट अटैक पर नियंत्रण
खास प्रकार के हार्ट डिजीज का कारण बनने वाले दोषपूर्ण जीन को नयी जीन एडीटिंग तकनीक के जरिये सुधारा जा रहा है. प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने क्रिस्पर (क्लस्टर्ड रेगुलेटरी इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पेलिंड्रोमिक रिपीट्स) नामक संबंधित तकनीक की मदद से इसे विकसित किया है.
अमेरिकी शोधकर्ताओं ने इनसान के भ्रूण में इसका सक्षम रूप से परीक्षण किया है. इसके लिए महज कुछ दिनों के विकसित हुए भ्रूण का इस्तेमाल किया गया था और इसे किसी गर्भ में आरोपित करने का इरादा नहीं था.
लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि वे विज्ञान के साथ भ्रूण में बीमारी पैदा करने वाले जीनों को सही करने के लिए उसे सक्षम बनाने के आखिरी लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना जारी रखेंगे, जो कि बच्चों में विकसित होगा. प्रयोगशाला में किये गये इस परीक्षण में यह दर्शाया गया कि मोलेकुलर कैंची के तौर पर कैसे क्रिस्पर का इस्तेमाल किया गया.
विशेषज्ञ की राय
पहले डॉक्टरों का यह मानना रहा है कि इस प्रकार की स्पाइनल कोर्ड इंज्यूरी की मरम्मत असंभव है. इस तरह के टूट-फूट शरीर को गंभीर रूप से अशक्त बना सकते हैं और मरीज को इस कारण भयावह दर्द झेलना पड़ सकता है.
– निकोलस जेम्स, प्रमुख शोधकर्ता, किंग्स कॉलेज लंदन
12 से 16 सप्ताह तक रैट मॉडल के आधार पर की गयी स्पाइनल इंज्यूरी के अध्ययन की प्रक्रिया परीक्षण के अधीन है. इस सर्जरी के दौरान नयी तकनीक की मदद से संवेदी जड़ों को दोबारा से जाेड़ते हुए रीढ़ में हुई टूट-फूट को सही करने में कामयाबी मिली है.
– मारिया एंजेरिया, न्यूरोसाइंस विशेषज्ञ, कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट, स्वीडन.
इनसान के जेनेटिक मोडिफिकेशन के संबंध में व्यापक पैमाने पर नैतिक और कानूनी परिचर्चा की चेतना जागृत करने की जरूरत है. लेकिन, हमारी टीम ने एक बड़ा उल्लेखनीय काम यह किया है कि जीन्स को बदलने की बजाय उसमें ‘सुधार’ पर जोर दिया है.
– सोख्रत मितालीपोव, प्रमुख शोधकर्ता, ऑरेगोन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी.

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