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नैनोचिप के जरिये त्वचा के घावों को भरेगी इलेक्ट्रिकल डिवाइस

चोट लगने या दुर्घटनावश किसी भी प्रकार के उभरे जख्म को भरने में लंबा वक्त लग जाता है. घाव भरने के दौरान तमाम प्रकार की समस्याओं से बचने के लिए अतिरिक्त सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं. लेकिन, इस दिशा में मेडिकल वैज्ञानिकों की हालिया सफलता ने नयी उम्मीदें जगा दी हैं. दरअसल, नयी नैनो तकनीक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 17, 2017 6:26 AM
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चोट लगने या दुर्घटनावश किसी भी प्रकार के उभरे जख्म को भरने में लंबा वक्त लग जाता है. घाव भरने के दौरान तमाम प्रकार की समस्याओं से बचने के लिए अतिरिक्त सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं.
लेकिन, इस दिशा में मेडिकल वैज्ञानिकों की हालिया सफलता ने नयी उम्मीदें जगा दी हैं. दरअसल, नयी नैनो तकनीक की मदद से कम समय और कम खर्च में घाव भरना आसान हो जायेगा. नैनोचिप टेक्नोलॉजी की यह खोज हमारे देश में बड़े पैमाने पर प्रभावकारी भूमिका अदा सकती है. घाव भरनेवाली इस नैनो चिप के तकनीकी पहलुओं पर केंद्रित है मेडिकल हेल्थ की विशेष प्रस्तुति …
कल्पना कीजिये कि अापकी त्वचा को बिना कोई दर्द पहुंचाये और बिना किसी खास परेशानी के त्वचा के घाव को इलेक्ट्रिकल डिवाइस के जरिये महज कुछ दिनों में आसानी से भर दिया जाये, तो आपको कैसा महसूस होगा. सुनने में लोगों को भले ही यह साइंस फिक्शन की तरह लगता हो, लेकिन एक नयी नैनोचिप टेक्नोलॉजी के जरिये शोधकर्ताओं ने इसे मुमकिन बना दिया है. इस तकनीक के जरिये ऊतकों या फिर समग्र तंत्रिकाओं को बदलने के लिए कोशिकाओं को नये सिरे से प्रोग्राम किया जा सकता है.
टिस्सू नैनोट्रांसफेक्शन
मूल रूप से ‘नेचर नैनोटेक्नोलॉजी’ नामक प्रतिष्ठित मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट के हवाले से ‘साइंस एलर्ट’ में बताया गया है कि ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम ने इसके प्रोटोटाइप को विकसित किया है.
टीएनटी यानी टिस्सू नैनोट्रांसफेक्शन नामक इस तकनीक का फिलहाल चूहों और सुअरों में परीक्षण किया गया है. परीक्षण के आरंभिक नतीजों में यह दर्शाया गया है कि शरीर की मरम्मत करनेवाला यह नया टूल अपने मकसद में कामयाब रहा है और अब तक के परिणाम उत्साहवर्धक रहे हैं.
नये जीन का निर्माण
त्वचा पर इसे अप्लाइ करने पर इससे तीक्ष्ण विद्युत का क्षेत्र पैदा होता है, जो ऊतकों को खास जीन्स डिलीवर करता है. ये जीन्स नये प्रकार की कोशिकाओं का निर्माण करते हैं, जिनका इस्तेमाल उस जगह पर या फिर शरीर के किसी भी अंग के लिए किया जा सकता है.
जानवरों पर किये गये परीक्षण के दौरान शोधकर्ता टीएनटी के इस्तेमाल से चोटिल पैरों की बाहरी त्वचा की कोशिकाओं को दोबारा से प्रोग्राम करने में सक्षम हुए थे. इससे वैस्कुलर कोशिकाएं पैदा हुईं, जो पूरे शरीर में रक्त प्रवाह को नियमित बनाये रखने में बड़ी भूमिका निभाती हैं.
देखा गया कि चोटिल पैरों से एक सप्ताह के भीतर ही सक्रिय रक्त वाहिकाएं उभर कर सामने आयीं. दूसरे सप्ताह में ही चोटिल पैरों को टीएनटी के इस्तेमाल से ठीक कर लिया गया था.
98 फीसदी तक कामयाब!
इसी तकनीक के इस्तेमाल से प्रयोगशाला में नर्व कोशिकाओं का निर्माण करने की जरूरत है, ताकि चूहों में स्ट्रोक से पैदा हुए मस्तिष्क आघात को ठीक किया जा सके. प्रमुख शोधकर्ता चंदन सेन का कहना है कि इसकी कल्पना करना मुश्किल है, लेकिन इसे हासिल किया जा सकता है और 98 फीसदी तक कामयाब बनाया जा सकता है. सेन कहते हैं, ‘इस तकनीक की मदद से महज एक बार डिवाइस को टच करते हुए त्वचा की कोशिकाओं कों किसी भी अंग के लिए जरूरी तत्व पैदा किये जा सकते हैं.’
मुमकिन होगा विविध कोशिकाओं का निर्माण!
दुनियाभर में वैज्ञानिक इस दिशा में शोध कर रहे हैं, ताकि शरीर के अंगों की मरम्मत के लिए दोबारा से प्रोग्राम किये जा सकनेवाली कोशिकाओं को पैदा किया जा सके. लेकिन, यह तकनीक अपनेआप में खास है, क्योंकि इस विधि के तहत प्लूरीपोटेंट स्टेम सेल्स का निर्माण किया गया है, जिन्हें किसी भी अन्य प्रकार की कोशिकाओं में तब्दील किया जा सकता है.
टीएनटी टेक्नोलॉजी
इसे दो कंपोनेंट को मिला कर बनाया गया है.
त्वचा पर रखनेवाली नैनोटेक्नोलॉजी आधारित चिप.
ऊतकों को प्रभावित करनेवाला बायोलॉजिकल कारगो.
इलेक्ट्रिकल चार्ज (जिससे नुकसान नहीं होता) के जरिये चिप गैर-जरूरी चीजों को नष्ट कर देता है और बाद में इसे हटा लिया जा सकता है. महज चंद सेकेंड में यह काम हो सकता है. इससे शरीर को कोई नुकसान नहीं होगा, क्योंकि दोबारा से प्रोग्राम किये जा सकनेवाली कोशिकाएं हमारे शरीर में पहले से ही मौजूद होती हैं.
विशेषज्ञ की राय
इस नैनोचिप के इस्तेमाल से चोटिल हो चुके या विकृत अंगों को बदला जा सकता है. शोध में दर्शाया जा चुका है कि त्वचा एक उपजाऊ जमीन की तरह है, जहां हम किसी भी ऐसे अंग के लिए जरूरी तत्वों को पैदा कर सकते हैं, जिनका क्षय हो रहा है.
– चंदन सेन, प्रमुख शोधकर्ता, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी
यह कॉन्सेप्ट बहुत ही सामान्य है. वास्तव में हम स्वयं अब तक आश्चर्यचकित हैं कि यह इतने बेहतर तरीके से कैसे काम कर रहा है. अपनी प्रयोगशाला में इस संबंध में हमने काफी प्रयोग किये हैं और इसके मैकेनिज्म को बेहतर तरीके से समझने के लिए यह काम जारी रहेगा. फिलहाल तो शुरुआत है, अभी और नतीजे आने बाकी हैं.
– एल जेम्स ली, शोध से जुड़े विशेषज्ञ, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी
घाव भरने में रॉयल जेली प्रभावकारी
कीटों की दुनिया में मधुमक्खियां वाकई में मेहनतकश होती हैं. हालांकि, सामयिक एंटीसेप्टिक गुणों के रूप में मधु का इस्तेमाल हजारों वर्षों से हा रहा है, लेकिन शोधकर्ताओं ने अब इसके कुछ खास गुणों की पहचान की है और इसके भीतर पाये जानेवाले खास अणुओं से घाव को तेजी से भरने में सक्षम पाया है.
मिल्की व्हाइट प्रकार के एक चिपचिपे पदार्थ के रूप में शोधकर्ताओं ने इसमें से उत्पाद तैयार किये हैं, जो इस लिहाज से सटीक पाये गये हैं. स्लोवाक एकेडमी ऑफ साइंसेज के शाेधकर्ताओं की टीम ने रॉयल जेली में आखिरकार एक ऐसे अणु की खोज की है, जो त्वचा पर हुए घाव को भरने में मददगार साबित होगा.
घाव भरनेवाली प्रमुख कोशिकाएं जब त्वचा क्षतिग्रस्त होती है, तो उसे भरने के लिए दो प्रकार की प्रमुख कोशिकाओं- फाइब्रोब्लास्ट्स और केराटिनोसाइट्स की जरूरत होती है.
ये कोशिकाएं ऐसे अणुओं का उत्पादन करते हैं, जो नयी कोशिकाओं को फैलाते हैं और त्वचा इनका इस्तेमाल क्षतिग्रस्त जगह की मरम्मत करने के लिए कर सकते हैं. त्वचा की कोशिकाओं की मदद करनेवाले रॉयल जेली मोलेकुल्स इस प्रक्रिया के दौरान पेप्टाइड में परिवर्तित होते हैं, जिन्हें डेफेंसिन-1 कहा जाता है. यह इनसानों समेत पौधों और पशुओं में पाये जानेवाले छोटे एंटीमाइक्रोबियल प्रोटीन के एक बड़े वर्ग से संबंधित है.
यह खास डेफेंसिन-1 पेप्टाइड एमएमपी-9 नामक एंजाइम का तेजी से उत्पादन करते हैं, जो त्वचा में कोशिका मेट्रिक्स को दोबारा से निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा, घाव को भरने में एमआरजेपी 1 को भी बेहद सक्षम कारक के रूप में समझा जाता है, जो मधुमक्खियों से बने मधु के प्रोटिन के साथ ही रॉयल जेली में व्यापक मात्रा में पाया जाता है.
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