नोटबंदी : अर्थव्यवस्था की हालत सुधरने के आसार नहीं

संदीप बामजेई वरिष्ठ पत्रकार सवाल यह उठता है कि आखिर नोटबंदी किस उद्देश्य के लिए की गयी थी. अब तक जो कारण सामने आ रहे हैं, उसमें कुल मिला कर असफलता ही नजर आ रही है. कालेधन के खिलाफ सरकार ने जो मुहिम चलायी, उसमें राजनीतिक फायदा मिल गया. उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 3, 2017 9:14 AM
संदीप बामजेई
वरिष्ठ पत्रकार
सवाल यह उठता है कि आखिर नोटबंदी किस उद्देश्य के लिए की गयी थी. अब तक जो कारण सामने आ रहे हैं, उसमें कुल मिला कर असफलता ही नजर आ रही है. कालेधन के खिलाफ सरकार ने जो मुहिम चलायी, उसमें राजनीतिक फायदा मिल गया.
उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की. नोटबंदी से कोई आर्थिक फायदा नहीं मिला, बल्कि मांग में गिरावट आ गयी. विमुद्रीकरण से यह पता लग गया कि बैंक खाते में कौन क्या डाला, नकदी कितनी डाली गयी आदि. इससे पता चल गया कि किसके पास कितना धन था, जो काला था, या सफेद. इससे करों की चोरी पकड़ में आ गयी. पहले के मुकाबले टैक्स बेस बढ़ा है, अब कर देनेवालों की संख्या अधिक हो गयी.
अर्थव्यवस्था पहले से ही धीमी गति से चल रही थी. पिछले डेढ़ साल से लगातार गिरावट जारी है, अब जीडीपी ग्रोथ रेट 5.7 प्रतिशत पर पहुंच गयी. उन 52 दिनों में जो मांग में गिरावट आयी, उसकी भरपाई नहीं हो पायी है. जो अर्थव्यवस्था मंद गति से चल रही थी, उसे नोटबंदी ने धाराशायी कर दिया. जीडीपी के आंकड़े दिखा रहे हैं कि मैन्युफैक्चरिंग का तो भट्ठा ही बैठ गया. औद्योगिक उत्पादन की हालात खराब हो चुकी है, सभी महत्वपूर्ण क्षेत्र बुरे दौर से गुजर रहे हैं. दुर्भाग्य से संगठित और असंगठित क्षेत्र की बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां चली गयीं.
इस तिमाही के जीडीपी विकास दर से स्पष्ट है कि कई तिमाही के बाद कृषि भी 2.3 या 2.5 पर पहुंच गया. कुल मिला कर चारों तरफ मांग को खत्म कर दिया गया. हां, इससे जबरदस्त राजनीतिक फायदा मिला. कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ चलायी गयी मुहिम के फायदे को उत्तर प्रदेश के चुनाव में खूब भुनाया गया. इसका फायदा ध्रुवीकरण में भी हुआ, हिंदुओं के सभी वर्गों का वोट मिला, चाहे वह ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो या अन्य वर्ग. उत्तर प्रदेश में सभी वर्गों ने मोदी को वोट दिया. पूर्वी और पश्चिमी यूपी समेत सभी हिस्सों में इसका फायदा मिला. वर्ष 2014 में जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में भाजपा 73 सीटें जीतने में सफल रही थी, उस प्रदर्शन को उसने विधानसभा चुनावों में बरकरार रखा.
विमुद्रीकरण से लोगों की परचेजिंग पावर खत्म हो गयी. रीयल एस्टेट मार्केट को देखें, तो यह पूरी तरह से बरबाद हो गया. रीयल एस्टेट का मार्केट गिरने से सीमेंट, स्टील, पेंट समेत सभी क्षेत्रों की हालत खराब हो गयी, या कहें निर्माण से जुड़े हर उद्योग पर बुरा असर पड़ा.
अभी के हाल देखें, तो मानसून अच्छा रहा है. बारिश तो हुई है, कहीं-कहीं तो बाढ़ आ गयी. इससे अर्थव्यवस्था को जो भी राहत मिलेगी, वह कृषि के तरफ से आ सकती है, इंडस्ट्री के तरफ से नहीं आयेगी. यदि कृषि फिर से चार प्रतिशत के विकास दर पर पहुंचेगी, तो अर्थव्यवस्था फिर से 6 या 6.5 प्रतिशत के करीब पहुंच सकती है. फिलहाल, मौजूदा 5.7 प्रतिशत की जीडीपी दर मोदी सरकार के कार्यकाल सबसे बुरी स्थिति में है. साढ़े तीन साल के कार्यकाल में यह जीडीपी का सबसे खराब प्रदर्शन है.
विमुद्रीकरण से कर देनेवालों की संख्या बढ़ी है. पहले करों से बच कर निकल जानेवालों को कर देना होगा. कॉरपोरेट और व्यक्तिगत आयकर देनेवालों की संख्या बढ़ेगी. डेटा माइनिंग का काम जबरदस्त हुआ, इसका बड़ा फर्क पड़ेगा.
आम जनता में जो एक धारणा थी कि सरकार गरीब जनता के साथ है और जो लोग चोरी या भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, उन पर सरकार लगाम लगायेगी, उस संदेश को यह सरकार पुख्ता करने में सफल रही है. यह केवल संदेश ही है, इसका अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं मिला है. अनुमान यही है कि अगली तिमाही में आंकड़े इससे भी नीचे जा सकते हैं. कृषि में यदि थोड़ा फायदा होता है, तो उसका असर अर्थव्यवस्था पर दिख सकता है.
मैन्युफैक्चरिंग का जो आंकड़ा बीते वर्ष इस अवधि में 10.9 प्रतिशत दर था, वह आज लुढ़क कर 1.8 प्रतिशत पर पहुंच गया है. मैन्युफैक्चरिंग की हालत खराब हो चुकी है. कोर इंडस्ट्रियल डेटा देखें, तो सभी उद्योगों की हालत तहस-नहस हो चुकी है. सीएमआइ के आंकड़े बता रहे हैं कि लोगों की बड़ी संख्या में नौकरियां चली गयीं, इसमें असंगठित क्षेत्र ही नहीं हैं, बल्कि संगठित क्षेत्र को भी झटका लगा है. पिछले 12 महीनों में संगठित और असंगठित क्षेत्र में लगभग 67 लाख लोग रोजगार से हाथ धो बैठे हैं.
आज अगर राजीव प्रताप रूडी का विकट गिरा है, तो स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया स्किल डेवलपमेंट जैसा महत्वपूर्ण काम कर पाने में वह असफल रहे. उमा भारती के जाने का मतलब है कि गंगा सफाई अभियान में कुछ काम नहीं हुआ. तीन साल में गंगा और गंदी हो गयी. इसका मतलब है कि जिन लोगों का विकट गिर रहा है,उन लोगों ने कोई संतोषजनक काम किया ही नहीं. एक प्रकार से मंत्रिमंडल का फेरबदल ही नहीं है, बल्कि मेकओवर है.

Next Article

Exit mobile version