क्‍या कालेधन से निपटने में असफल रही नोटबंदी…जानें क्या हुआ हासिल

रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट से यह पता चलता है कि नोटबंदी से अपेक्षित नतीजे नहीं मिल सके हैं. इस फैसले को लेकर बीते नवंबर से ही बहस का सिलसिला जारी है. अब इस रिपोर्ट ने इसे एक और मोड़ दिया है. लगभग सभी बंद नोट बैंक के पास वापस आ चुके हैं. नोटबंदी के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 3, 2017 9:18 AM
रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट से यह पता चलता है कि नोटबंदी से अपेक्षित नतीजे नहीं मिल सके हैं. इस फैसले को लेकर बीते नवंबर से ही बहस का सिलसिला जारी है. अब इस रिपोर्ट ने इसे एक और मोड़ दिया है. लगभग सभी बंद नोट बैंक के पास वापस आ चुके हैं. नोटबंदी के औचित्य पर विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का संडे इश्यू…
अभिजीत मुखोपाध्याय
अर्थशास्त्री
नकदी विहीन लेन-देन में बढ़ोतरी हुई है
भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को 500 रुपये एवं 1000 रुपये के नकदी नोटों की कानूनी मान्यता वापस ले ली, जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र के नाम एक संदेश में की गयी थी. विमुद्रीकरण के इस कदम को ‘नकली नोटों, नकदी के रूप में इकठ्ठा काले धन और नकली नोटों से दहशतगर्दी का संचालन किये जाने जैसी समस्याओं के मुकाबले के लिए’ उठाया गया था, ऐसा रिजर्व बैंक की आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया.
इससे देश के नागरिकों को अपने खातों से अपने ही पैसे निकलने के लिए बैंकों तथा एटीएम के बाहर कतारों में घंटों खड़े रहने की पीड़ा झेलनी पड़ी.
सौ से भी अधिक लोग इन कतारों में प्रतीक्षा करते अथवा बैंकों में लगातार काम करते अपने जीवन से हाथ धो बैठे. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों- खासकर अनौपचारिक क्षेत्र- में आर्थिक गतिविधियां काफी हद तक रूक गयीं, जिसके नतीजे में जॉब तथा रोजगार के अवसरों में गिरावट आ गयी. इस नीतिगत कदम से पैदा दुख-दर्द 2016 के बाद 2017 में भी सबको सालते ही रहे.
प्रारंभ में सरकार ने कहा कि कुछ ही सप्ताहों में स्थितियां सामान्य हो जायेंगी, मगर यह मियाद कई किस्तों में बढ़ती रही. प्रधानमंत्री का यह कथन मशहूर हो गया कि ‘मुझे 50 दिन दीजिए, यह दर्द बर्दाश्त कीजिए और मैं पूरी प्रणाली से काले धन को समाप्त कर दूंगा, ताकि एक नया भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाया जा सके.’
तब से ही नोटबंदी के औचित्य का भी एक वजह से दूसरी वजह पर तबादला किया जाता रहा- जिसमें नकली नोटों से लेकर डिजिटलीकरण, डिजिटलीकरण से बैंकों के लिए अधिक निधि की प्राप्ति, अधिक निधि से अधिक कर संग्रहण और फिर कर संग्रहण की वृद्धि से भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र आदि शामिल हैं.
इसी बीच, रिजर्व बैंक ने 2016 के समाप्त होने से पहले ही अवैध नकदीके बैंक तक वापस पहुंचने के आंकड़े देने बंद करते हुए यह बताया कि वह इन सूचनाओं को एकीकृत कर बाद में अंतिम आंकड़े मुहैया करेगा.
दस महीनों के लंबे इंतजार के बाद विमुद्रीकरण के अंतिम आंकड़े प्रस्तुत किये हैं. इसके अनुसार, 500 रुपये एवं 1000 रुपये के कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट बंद किये गये 30 अगस्त 2017 तक. इनमें से 15.28 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट रिजर्व बैंक के पास वापस पहुंच चुके हैं, जबकि वापस नहीं पहुंच सके नोटों का मूल्य 16,000 करोड़ रुपये है, यानी बंद किये गये नोटों का 99 प्रतिशत वापस आ चुका है, जो उन प्रारंभिक अनुमानों के विपरीत है कि काले धन के रूप में 2-3 लाख करोड़ रुपयों के नोट उनके स्वामियों द्वारा नष्ट कर दिये जाने के कारण वापस नहीं लौटेंगे और उतने पैसे पर सरकार का अधिकार हो जायेगा.
प्रणाली में प्रचलित सभी मूल्यवर्ग के कुल नोटों की संख्या 8 नवंबर, 2016 को 17.77 लाख करोड़ थी, जबकि 4 अगस्त, 2017 को कुल 14.75 लाख करोड़ की तादाद में नोट प्रचलित हैं. मतलब यह कि अब अर्थव्यवस्था में नोटों की संख्या में कमी भी आयी है. दो हजार रुपये मूल्य के नोट जारी करना भी इसकी एक वजह हो सकता है. हालांकि कई अर्थशास्त्रियों के मत से 500 रुपये एवं 1000 रुपये के नोटों को बंद कर 2000 रुपयों के नोट जारी करना नोटबंदी के उस उद्देश्य के विरुद्ध है, जो छोटे नोटों पर निर्भरता बढ़ाते हुए काले धन की जमाखोरी को कठिन बना कर उसे रोकना था.
नोटबंदी के बाद ज्यादा डिजिटीकरण अथवा डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन (संयोग से रिजर्व बैंक की मूल अधिसूचना में नोटबंदी की एक प्रमुख वजह के रूप में जिसका उल्लेख नहीं था) भी इसकी एक वजह हो सकता है कि आज देश की अर्थव्यवस्था नोटों की कम तादाद से ही काम चला रही है. यह एक अच्छा परिवर्तन है जो भविष्य के लेन-देन में पारदर्शिता ला सकता है.
वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान 762,072 की संख्या में नकली नोट बैंकिंग प्रणाली द्वारा खोज निकाले गये थे, जिनमें से 95.7 प्रतिशत की खोज वाणिज्यिक बैंकों ने की थी. मार्च, 2017 में प्रचलित कुल नोटों की तादाद लगभग 10,029 करोड़ थी.
इस तरह, कुल प्रचलित नोटों में नकली नोटों की तादाद मोटे तौर पर 0.00076 प्रतिशत ही थी. यदि बंद किये गये नोटों में नकली नोटों की संख्या को देखा जाये, तो उनकी संख्या 500 रुपयों के नोटों में लगभग 0.002 प्रतिशत तथा 1000 रुपयों के नोटों में 0.004 प्रतिशत ही थी. यह अनुपात अत्यंत ही छोटा है और यह नोटबंदी के लिए नकली नोटों का चलन रोकने की दलील को हास्यास्पद बना देता है.रिजर्व बैंक के अनुसार, 2016-17 में 500 रुपये के 199 नये नोट तथा 2000 रुपये के 638 नये नोट नकली पाये गये.
यह तथ्य इस दलील को भी अमान्य कर देता है कि नोटबंदी के नतीजतन नये नोट बेहतर प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर छापे जायेंगे जिनकी नकल कर पाना कठिन होगा. वर्ष 2016-17 में नोट छापने की लागत बढ़ कर दोगुनी होते हुए 79.65 अरब रुपये पर चली गयी, जो 2015-16 में केवल 34.21 अरब रुपये ही थी. रिजर्व बैंक का कुल खर्च 2015-16 के 149.90 अरब रुपये से 107.84 प्रतिशत बढ़ कर 2016-17 में 311.55 अरब रुपये तक जा पहुंचा, जिसकी मुख्य वजह नये नोटों की छपाई एवं अन्य संबद्ध व्यवस्थाएं थीं. और अब यह जानना कि यह सब सरकार को सिर्फ 16,000 करोड़ रुपये के लाभ दिलाने के लिए किया गया, इस कदम के पीछे किसी भी आर्थिक अथवा सामान्य बोध की दलील खारिज कर देता है.
मगर 16,000 करोड़ रुपयों की इस राशि के भी बैंकिंग प्रणाली तक न लौटने को निश्चित लाभ नहीं बताया जा सकता, क्योंकि अंतिम आंकड़े उससे भी कम हो जा सकते हैं. प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार, कुछ नोट विभिन्न स्थलों में पड़े हैं, जो अंततः रिजर्व बैंक के पास पहुंच जायेंगे. इनमें पहला यह है कि ऐसे कुछ नोट नेपाल में नागरिकों के पास हैं, जो रिजर्व बैंक तथा नेपाल राष्ट्र बैंक के बीच उनके विनिमय को लेकर हुई वार्ता के सफल न होने की वजह से नहीं आ सके हैं. दूसरा, बंद नोटों की एक बड़ी मात्रा जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों में जमा करायी गयी थी. तीसरा, आयकर विभाग द्वारा डाले गये छापों के दौरान जब्त नोट और चौथा, विभन्नि अदालतों में जुर्माने के रूप में जमा कराये गये पुराने नोट भी हैं जो अब तक रिजर्व बैंक तक नहीं पहुंच पाये हैं.
जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों में जमा कराये गये नोट 7,000 करोड़ रुपये मूल्य से भी अधिक के होंगे, जिनमें यदि बाकी तीन स्थलों पर पड़े नोटों को भी मिला दिया जाये, तो यह राशि और भी बढ़ जायेगी. अब यदि हम उपर्युक्त तथ्य की तुलना नये नोटों की छपाई पर आते 8,000 करोड़ रुपये के वार्षिक व्यय से करें, तो नोटबंदी से 16,000 करोड़ रुपयों के लाभ की बात भी धुएं में उड़ जाती है. संभवतः इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि नोटबंदी से डिजिटलीकरण बढ़ा है तथा नकदी विहीन लेन-देन में बढ़ोतरी हुई है, पर ये उपलब्धियां नोटबंदी की पीड़ा झेले बगैर भी क्रमिक रूप से हासिल की जा सकती थीं. नोटों का चलन अचानक ही बंद कर दिये जाने का पूरा कार्यक्रम अनावश्यक था.
(अनुवाद: विजय नंदन)
विमुद्रीकरण का दांव
देश में कालेधन से निपटने के मकसद से पिछले वर्ष 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने की घोषणा की थी. सरकार का अनुमान था कि कालेधन का बड़ा हिस्सा लोग 1000 और 500 की नोटों में रखते हैं. सरकार ने कालेधन को खत्म करने के लिए विमुद्रीकरण दांव खेला और दावा किया कि इससे कालाधन पकड़ में आ जायेगा. लेकिन, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा हाल में जारी आंकड़े अलग ही तसवीर पेश करते नजर आ रहे हैं.
कालेधन से निपटने में असफल रही नोटबंदी !
क्या कालेधन को बैंकों तक लाने में नोटबंदी असफल रही? इस पर आरबीआइ की रिपोर्ट सीधे तौर पर कुछ नहीं कहती. नोटबंदी की सफलता और असफलता को लेकर अलग-अलग कयास लगाये जा रहे हैं. रिपोर्ट इस तथ्य की ओर इशारा करती है कि विमुद्रीकरण के बाद प्रचलन की कुल मुद्रा (करेंसी इन सर्कुलेशन) में तेज गिरावट दर्ज की गयी. भारत का प्रचलित मुद्रा-जीडीपी अनुपात दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं जर्मनी व फ्रांस के स्तर पर पहुंच गया था.
प्रचलित मुद्रा व जीडीपी अनुपात में गिरावट
आरबीआइ के अनुसार मार्च, 2017 के अंत में कुल प्रचलित मुद्रा (सीआइसी ) जीडीपी की 8.8 प्रतिशत रही, जबकि साल भर पहले 12.2 प्रतिशत थी. इस स्तर पर भारत का प्रचलित मुद्रा से जीडीपी अनुपात विकसित व उभरती अर्थव्यवस्थाओं (जैसे-जर्मनी, फ्रांस, इटली) के समकक्ष पहुंच गया. आरबीआइ ने 9 नवंबर से 31 दिसंबर, 2016 के बीच यानी मात्र 52 दिनों की अवधि में 5,540 अरब मूल्य के 23.8 अरब नोटों की आपूर्ति की. विमुद्रीकरण के बाद 6 जनवरी, 2017 को प्रचलित मुद्रा नौ ट्रिलियन पर आ गयी, यानी जिस स्तर पर छह साल पहले थी.
1000 की नोटों का मात्र 1.2 % ही रह गया बाहर
विमुद्रीकरण के बाद पहली बार आरबीआइ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मात्र 8.9 करोड़ ही 1000 रुपये वाले नोट बैंकों में जमा नहीं हो पाये हैं. मार्च, 2016 के अंत तक 1000 रुपये के 632.6 करोड़ नोट चलन में थे. वर्ष 2016-17 के दौरान 92.5 करोड़ अतिरिक्त नोट चलन में आये. इस प्रकार 1000 नोटों का कुल 1.2 प्रतिशत ही बैंकों में वापस नहीं आ पाया है. रिपोर्ट में 500 रुपये के नोटों का जिक्र नहीं है.
आरबीआइ के लाभांश भुगतान में कमी
केंद्र सरकार ने वर्ष 2016-17 में आरबीआइ से सरकारी खजाने के लिए लाभांश बढ़ाने को कहा है. बीते वर्ष आरबीआइ ने मात्र 30,659 करोड़ का लाभांश दिया है, जबकि 2015-16 में 65,876 करोड़ रुपये था. सरकार ने बजट में लाभांश का अनुमान 58,000 करोड़ रुपये का लगाया था. विमुद्रित नोटों का 99 प्रतिशत वापस आ गया है और 16,000 करोड़ ही बाहर रह गया है, ऐसे में अधिशेष की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है.
नये नोटों की आपूर्ति
मार्च, 2017 तक 2000 रुपये के नोटों की संख्या 328.5 करोड़ दर्ज की गयी, जो चलन में कुल मुद्रा का 50.2 प्रतिशत है. भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड और सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा 500 रुपये के 726.0 करोड़ नोट छापे गये.
विकास दर गिरने पर विपक्ष ने साधा निशाना
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने गिरती जीडीपी ग्रोथ रेट पर सरकार को आड़े हाथों लिया है. चिदंबरम के मुताबिक यदि सरकार ने सही मानकों पर ध्यान नहीं दिया, तो अगली तिमाही में यह गिरावट जारी रह सकती है. मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही के जारी आंकड़ों में जीडीपी विकास दर तीन साल के न्यूनतम स्तर 5.7 प्रतिशत पर पहुंच गयी है. चिदंबरम ने तंज कसते हुए कहा कि जिस अर्थशास्त्री ने विमुद्रीकरण की सलाह दी, उसे नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए.
गिरावट के लिए विमुद्रीकरण जिम्मेदार नहीं : नीति आयोग
नीति आयोग के नवनियुक्त उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने जीडीपी विकास दर गिरने के पीछे विमुद्रीकरण को जिम्मेदार नहीं माना है. उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास के लिए निवेश जरूरी है. जीएसटी लागू होने और अच्छे मानसून के कारण आर्थिक विकास 7 से 7.5 प्रतिशत की रफ्तार से फिर से पकड़ सकता है. कुछ सेक्टर में नौकरियां आने की संभावनाएं बढ़ेंगी.

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