डिजिटल इंडिया : सब्जी बेच लैपटॉप खरीदा, बनाये 96 एप्स

डिजिटल इंडिया : अलवर के तीन दोस्तों की संघर्ष से सफलता तक की कहानी अगर ईमानदारी से मेहनत की जाये, तो सफलता खुद-ब-खुद चल कर आप तक आती है. राजस्थान स्थित अलवर जिले के रहनेवाले राहुल, देवेंद्र और साहिल नाम के तीन हमउम्र दोस्तों ने यह साबित कर दिखाया. इनकी सफलता की कहानी आपको भी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2017 6:44 AM
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डिजिटल इंडिया : अलवर के तीन दोस्तों की संघर्ष से सफलता तक की कहानी
अगर ईमानदारी से मेहनत की जाये, तो सफलता खुद-ब-खुद चल कर आप तक आती है. राजस्थान स्थित अलवर जिले के रहनेवाले राहुल, देवेंद्र और साहिल नाम के तीन हमउम्र दोस्तों ने यह साबित कर दिखाया. इनकी सफलता की कहानी आपको भी प्रेरित करेगी. पढ़िए एक रिपोर्ट.
राजस्थान स्थित अलवर जिले के बहरोड़ कस्बे के रहने वाले राहुल यादव, देवेंद्र सिंह और साहिल गुप्ता के सफल होने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है. तीनों की उम्र लगभग 20 वर्ष है और आज इनकी कंपनी का टर्नओवर लाखों रुपये का हो चुका है. वर्ष 2014 में 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद तीनों ने फैसला किया कि पढ़ाई को जारी न रख कर वे लोग कुछ काम शुरू करेंगे.
तीनों के इस फैसले से घरवाले बहुत नाराज थे, लेकिन राहुल और देवेंद्र गूगल में कैरियर के ऑप्शन तलाशते रहे. उनलोगों ने अलवर में किराये पर एक कमरा लिया और घर से दूर रहने लगे, तभी उनका ध्यान ऑनलाइन सब्जी बेचनेवाले एक विज्ञापन पर गया.
फिर उनलोगों ने तय किया कि वे सब्जी बेचेंगे. राहुल के पास कुछ पैसे थे. इससे उन्होंने कुछ पंपलेट छपवाये, जिसमें लिखा कि एक मिस्ड कॉल से घर पर मिलेगी सब्जी. इस काम के लिए देवेंद्र ने अपने चाचा से 18 हजार रुपये उधार लिये. उनका यह आइडिया काफी हिट रहा और उन्हें सब्जी के काफी ऑर्डर मिलने लगे.
दरअसल, अलवर से होकर हाइवे गुजरता है और वहां कई ढाबे भी हैं. ये तीनों किसानों के साथ-साथ मंडी से थोक में सब्जी खरीदते और उसे ऑर्डर के अनुसार डिलिवर कर देते. इस दौरान उन्हें सबसे ज्यादा ऑर्डर ढाबों से मिलते थे. सिर्फ सब्जी बेच कर तीनों ने एक लाख 40 हजार रुपये कमाये, लेकिन तीनों विज्ञान और तकनीक के जरिये कुछ करना चाहते थे.
सब्जी बेच खरीदा तीन लैपटॉप
सब्जी बेच कर बचाये पैसों से इनलोगों ने 2015 में तीन लैपटॉप खरीदे. फिर w3schools.com की मदद से एप्स डेवलप करने की प्रोग्रामिंग सीखी. किसी तरह की दिक्कत आने पर ये लोग गूगल की मदद लेते रहे. वर्ष 2016 तक तीनों ने मिल 96 एजुकेशन एप्स बना डाले. इसके कंटेंट के लिए इन्होंने अपने शिक्षकों से मदद ली. तीनों ने इन एप्स का नाम, अपने नाम पर ही आरडीएस एजुकेशन रखा है.
आरडीएस यानी राहुल, देवेंद्र और साहिल. उन्होंने इन एप्स को इसी वर्ष गूगल प्ले पर डाला. अब तक 12 लाख 75 हजार से ज्यादा लोग इन्हें डाउनलोड कर चुके हैं. साथ ही इन एप्स को हर दिन पांच हजार लोग विजिट करते हैं. एप्स की मदद से अभी इन्हें अच्छी-खासी कमाई हो जाती है. कोई भी गूगल प्ले स्टोर के सर्च बॉक्स में आरडीएस एजुकेशन (rds education) लिख कर इनके एप्स को डाउनलोड कर सकते हैं.
परिवार के लोगों को है गर्व
पहले तीनों के माता-पिता इनलोगों के पढ़ाई छोड़ देने की वजह से काफी नाराज थे, लेकिन आज इनकी सफलता से काफी खुश हैं. राहुल ने हमें बताया कि उनके पिता शैतान सिंह और सरोज देवी उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे.
आज उनके काम को जब लोकल टीवी चैनल्स, समाचारपत्र आदि में जगह मिलने लगी, तो वे काफी खुश हैं. राहुल ने बताया कि अभी उन्हें कई अन्य भारतीय भाषा में एप्स डेवलप करने हैं. इसके लिए उनकी टीम काम में जुटी है. उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम से उन्हें काफी प्रोत्साहन मिला.
तीनों दोस्त यहीं नहीं रुके, उन्होंने आरडीएस टेक के नाम से अपनी कंपनी रजिस्टर की है. अभी इनकी कंपनी में 36 लोग काम कर रहे हैं. ये ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं को तकनीकी ट्रेनिंग भी दे रहे हैं. इसी साल इनलोगों एक ऐसा डिवाइस तैयार किया, जिसकी मदद से कूलर को एसी की तरह यूज किया जा सकता है. इस डिवाइस का नाम इन्होंने कूल कैट रखा. देवेंद्र कंपनी में हार्डवेयर के हिस्से का काम संभालते हैं, वहीं राहुल सॉफ्टवेयर का और साहिल मैनेजमेंटवाले हिस्से को देखते हैं.
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