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शिंजो आबे का दौरा : भारत-जापान संबंधों में मजबूती की उम्मीदें

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे तीन-दिवसीय दौरे पर भारत में हैं. गुजरात प्रवास के दौरान दोनों नेता विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने पर विचार-विमर्श करेंगे और अनेक महत्वपूर्ण समझौतों को अंतिम रूप देंगे. जापान के साथ भारत का संबंध बहुत पुराना है, पर हाल के वर्षों में दोनों देशों के परस्पर आर्थिक संबंधों को […]

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे तीन-दिवसीय दौरे पर भारत में हैं. गुजरात प्रवास के दौरान दोनों नेता विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने पर विचार-विमर्श करेंगे और अनेक महत्वपूर्ण समझौतों को अंतिम रूप देंगे. जापान के साथ भारत का संबंध बहुत पुराना है, पर हाल के वर्षों में दोनों देशों के परस्पर आर्थिक संबंधों को मजबूती मिली है तथा क्षेत्रीय भू-राजनीतिक हलचलों के कारण रणनीतिक दृष्टि से भी निकटता बढ़ी है. प्रधानमंत्री आबे की यात्रा के महत्व के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
शमशाद अहमद खान, भारत-जापान मामलों के जानकार
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आ रहे हैं. चूंकि, भारत-जापान शिखर वार्ता 2006 से अनवरत जारी है, जिसकी रूपरेखा उसी साल द्विपक्षीय स्ट्रेटेजिक समझौते के तहत तय की गयी थी, इसलिए प्रधानमंत्री के स्तर पर होनेवाली यह मुलाकात एक रूटीन मुलाकात है और उसकी कोई खास अहमियत नहीं है.

लेकिन, यह मुलाकात जिस बदलते हुए क्षेत्रीय माहौल में हो रही है, वह महत्वपूर्ण जरूर है. चीन और उत्तर कोरिया के आक्रामक रवैये से जापान थोड़ा चिंतित है. उन दोनों देशों के इस रवैये से उसकी सुरक्षा को होनेवाले संभावित खतरे के हल के लिए उसने कूटनीतिक प्रयास तेज कर दिये हैं. जाहिर है कि वह चीन और उत्तर कोरिया पर दबाव डालने के उद्देश्य से भारत समेत पूरी दुनिया में एक आम राय कायम करना चाहता है. भारत अभी-अभी डोकलाम विषय पर चीन के उग्र रवैये और उससे उत्पन्न होनेवाली तनावपूर्ण स्थिति से उबरा है.

जापानी प्रधानमंत्री के इस दौर को इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाये, तो द्विपक्षीय वार्ता में इस क्षेत्र में चीन और उत्तर कोरिया के आक्रामक रुख से पैदा होनेवाली स्थिति और उससे निपटने के लिए दोतरफा कोशिशों पर चर्चा जरूरी होगी.
इस दौर के समापन पर जारी किये जानेवाले साझा बयान में भी इसका उल्लेख जरूर होगा. हालांकि, जापान ने डोकलाम मामले में यह कहकर चीन की आलोचना की थी कि उसके इस कदम से इस क्षेत्र की यथास्थिति बदलेगी और उसे ऐसा न करने की नसीहत दी थी. वहीं दूसरी ओर, भारत ने उत्तर कोरिया द्वारा किये गये हालिया हाइड्रोजन बम परीक्षण की आलोचना करके जापान को संदेश भेजने की कोशिश की थी कि वह इस परमाणु परीक्षण से उत्पन्न होनेवाले सुरक्षा के खतरे की घड़ी में जापान के साथ है. जापान, उत्तर कोरिया की आलोचना मात्र से संतुष्ट नहीं है.
वह प्योंगयांग पर मजीद आर्थिक प्रतिबंध लगाये जाने के पक्ष में है, ताकि उत्तर कोरिया को उसके परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को रोकने पर मजबूर किया जा सके. जापान दुनिया के विभिन्न देशों में अपने राजनयिक भेजकर उत्तर कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक प्रतिबंध का पालन करने और प्योंगयांग के साथ उनके संबंधों पर पुनर्विचार करने का आग्रह कर रहा है.
जापान के विदेश मंत्री इन दिनों अरब देशों के दौरे पर हैं. वहां वे उनसे कोरिया के साथ राजनयिक संबंधों पर पुनर्विचार करने और उत्तर कोरिया से आनेवाले श्रमिकों पर रोक लगाये जाने के लिए अरब देशों को आमादा कर रहे हैं.
ज्ञात रहे कि जापान समेत अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश मानते हैं कि श्रमिकों से हासिल होनेवाली विदेशी मुद्रा का कुछ हिस्सा किम जोंग उन को जाता है और वह इसका इस्तेमाल अपने परमाणु मिसाइल कार्यक्रम को जारी रखने के लिए करता है. भारत उन चंद मुल्कों में से एक है, जिसने दोनों कोरियाओं के साथ राजनयिक संबंध जारी रखा है. भारत और उत्तर कोरिया के बीच आर्थिक संबंध भी है.
भले ही दोनों के बीच दोतरफा व्यापार का वॉल्यूम बहुत ही कम है, लेकिन इसका फायदा उत्तर कोरिया को जरूर पहुंच रहा है. देखना यह है कि क्या जापान इस दौरे के दौरान भारत से उत्तर कोरिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाये जाने और दोनों देशों के बीच जारी व्यापारिक संबंधों पर पुनर्विचार करने को कहता है या नहीं. अगर वह भारत से ऐसा करने को कहता है, तो भारत के लिए एक डायलेमा जैसी स्थिति होगी, क्योंकि भारत उत्तर कोरिया के साथ अपने पुराने रिश्तों को कायम रखना चाहता है, भले ही यह काफी कमजोर स्थिति में है.
इस दौरे को भारत-जापान दोतरफा रिश्तों के नजरिये से देखा जाये, तो दोनों प्रधानमंत्री अपनी मुलाकात के दौरान पिछले वर्षों तय पानेवाले उन क्षेत्रों और मुद्दों का जायजा लेंगे, जिनके लिए उनके बीच करार हुआ था. इसमें परमाणु ऊर्जा, रक्षा उपकरणों की खरीद-फरोख्त, और भारत के बुनियादी ढांचे के सुधार में जापान का सहयोग आदि शामिल होंगे. खबर है कि प्रधानमंत्री शिंजो आबे अहमदाबाद से मुंबई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन परियोजना की ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमॉनी में शरीक होंगे, जिसके निर्माण में जापान, भारत का सहयोग कर रहा है.
याद रहे कि जापान भारत को 2007 से ही बुलेट ट्रेन तकनीक बेचने की कोशिश कर रहा था और इसी उद्देश्य से उसने तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद को जापान आमंत्रित कर बुलेट ट्रेन का सफर कराया था.
बावजूद इसके कि भारत ने जापान के साथ बुलेट ट्रेन तकनीक आयातित करने में सहमति जतायी थी, लेकिन भारतीय रेल के पास वित्त की कमी की वजह से इस पर कार्यान्वयन नहीं हुआ. जापान की कोशिशों की वजह से 2007 के बाद से लेकर 2014 तक भारत-जापान शिखर वार्ता के बाद जारी बयानों में भारत में जापान की हाइ स्पीड रेलवे तकनीक को लाने का उल्लेख मिलता है, लेकिन साथ ही, भारत यह भी इशारा करता है कि वह इस तकनीक की इकोनॉमिक वायबिलिटी (आर्थिक व्यवहार्यता) का जायजा लेने के बाद ही इसे भारत में लगायेगा. जाहिर है, ऐसा उसने और खासकर यूपीए सरकार ने इसलिए किया कि उसके पास फंड का अभाव था और वह सात-आठ रूटों पर इस महंगी तकनीक वाली बुलेट ट्रेन की परियोजना की शुरुआत का जोखिम नहीं लेना चाहती थी.
जापान को खुश रखने और भारत के बुनियादी ढांचे के निर्माण में उसकी दिलचस्पी बरकरार रखने के मकसद से उसने 2013 में ही मुंबई आैर अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन शुरुआत किये जाने का ठेका जापान की कावासाकी हैवी इंडस्ट्री लिमिटेड को दिया था. उसके बाद आयी एनडीए सरकार ने इसे जारी रखने का फैसला किया. जाहिर है, एनडीए सरकार इसे त्वरित गति से अंजाम देकर राजनीतिक लाभ भी लेना चाहती है. जापान इस परियोजना को 2023 तक अंजाम देना चाहता है, लेकिन एनडीए सरकार इसका कार्यान्वयन 15 अगस्त, 2022 तक चाहती है.
ज्ञात हो कि वर्तमान सरकार 2022 तक भारत को ‘नया भारत’ बनाने का अपना राजनीतिक नारा दे चुकी है. इसलिए वह चाहती है कि कम से कम 2022 तक भारत में अहमदाबाद और मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन दौड़ाई जा सके. अब यह तो समय ही बतायेगा कि 2022 तक भारत में बुलेट ट्रेन दौड़ पायेगी या नहीं. लेकिन, इतना तो तय है कि भारत और जापान के दरम्यान तय पाने जानेवाले कई समझौतों के नतीजे में भारत के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.
2017 की पहली छमाही में जापान का भारत में निवेश
2017 की पहली छमाही तक जापानी कंपनियां भारतीय प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल में 1.43 अरब डॉलर (लगभग 163 अरब येन) का निवेश कर चुकी हैं. इंडियन रिसर्च फर्म वेंचर इंटेलिजेंस के अनुसार यह निवेश 2016 के इसी अवधि के 459 मिलियन डॉलर के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा है. इसमें अकेले दूरसंचार के क्षेत्र में ही 1.40 अरब डॉलर यानी 98.9 प्रतिशत का निवेश किया गया है. इस वर्ष की छमाही तक प्राइवेट इक्विटी में कुल 11.34 अरब डॉलर का निवेश हो चुका है जो पिछले साल के मुकाबले 53.2 प्रतिशत अधिक है. पिछले वर्ष जापान ने कुल 4.7 अरब डॉलर का निवेश किया था जबकि 2015 में 2.6 अरब डॉलर का ही निवेश हुआ था.
वर्ष 2014-15 2015-16 2016-17
भारत द्वारा जापान को
किया गया निर्यात 5.38 4.66 3.85
भारत का कुुल निर्यात 310.33 262.29 276.28
जापान से भारत में
होने वाले आयात 10.13 9.85 9.63
भारत का कुल आयात 448.03 381.00 384.32
भारत-जापान द्विपक्षीय
व्यापार 15.51 14.51 13.48
भारत-जापान आर्थिक संबंध (बिलियन डॉलर में)
संबंध : मौजूदा तस्वीर
भारत और जापान के बीच संबंध आर्थिक और सामरिक दोनों मोर्चों पर बेहतर हुए हैं. डोकलाम सीमा-विवाद पर भारत और चीन के बीच चली महीनों की तनातनी के दौरान भारत और जापान ने अमेरिका के साथ मिल कर सैन्य अभ्यास किया. गत जुलाई में ही भारत-जापान असैन्य परमाणु समझौता लागू हो गया. इसके तहत जापान भारत में छह नये नाभिकीय संयंत्र लगायेगा. पिछले डेढ़ दशक में भारत के विकास में जापानी निवेश ने अहम भूमिका निभायी है. जापान की मदद से देश में कई परियोजनाएं चल रही हैं और कई प्रस्तावित हैं.
संरचनागत विकास में जापानी निवेश और तकनीकें केंद्रीय भूमिका में रही हैं. भारत दौरे पर आये जापान के प्रधानमंत्री मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना का उद्घाटन करेंगे. इससे पहले दिल्ली मेट्रो के पहले चरण में जापान शामिल रहा है. करीब एक दशक पहले शुरू हुए दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे समेत कई अन्य परियोजनाएं जापान के सहयोग से संचालित हुई.
भारत और जापान ‘एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (एएजेसी)’ पर काफी सक्रियता से काम कर रहे हैं. गुजरात में अफ्रीकी विकास बैंक के 52वें वार्षिक बैठक के दौरान 23 मई, 2017 को इसे अनावृत्त किया गया.
जापान भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है. वर्ष 2000 से 2017 के बीच विभिन्न सेक्टरों में जापान ने 25 अरब डॉलर का निवेश किया है. वर्ष 2016-17 के दौरान 4.7 अरब डॉलर का जापानी निवेश हुआ, जो गत वर्ष के तुलना में 80 प्रतिशत तक अधिक रहा. भारत के मैन्युफैक्चरिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर के विकास के लिए 2014-19 के बीच जापान ने 35 अरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा है.
जापान ऑटोमोबाइल, टेलीकम्युनिकेशन और इलेक्ट्रिकल सेक्टर में बड़े पैमाने पर निवेश करता रहा है. हाल के वर्षों में रिटेल, टेक्सटाइल, फूड व बेवरेज और बैंकिंग सर्विसेज आदि में जापान ने निवेश बढ़ाया है.
देश भर के विभिन्न हिस्सों में 12 औद्योगिक पार्क बनाने की योजना पर जापान तेजी से कार्य कर रहा है. इनमें कर्नाटक के तुमकुर, राजस्थान के घिलोट, गुजरात के मंडल, महाराष्ट्र के सुपा, तमिलनाडु के पोन्नेरी, राजस्थान के नीमराना, हरियाणा के झज्जर में प्रस्तावित है. इसके अलावा ग्रेटर नोएडा में इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप बनायी जा रही है.
पूर्वोत्तर में इंफ्रॉस्ट्रक्चर विकास के लिए जापान अहम भूमिका निभा रहा है. नॉर्थ-इस्ट रोड नेटवर्क कनेक्टविटी इंप्रूवमेंट प्रोजेक्ट के पहले चरण के तहत 67 अरब येन निवेश के लिए अप्रैल, 2017 में भारत सरकार और जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी (जेआइसीए) के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किये गये.

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