महालया पर विशेष : रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि

डॉ एनके बेरा अखिल ब्रह्मांडनायिका जगज्जननी मां दुर्गा उन प्रधान शक्तियों में-से एक हैं, जिनको समय-समय पर अपनी आवश्यकतानुसार प्रकटित कर परब्रह्म परमात्मा ने विश्व का कल्याण किया है- एकैव शक्ति परमेश्वरस्य, भिन्नाश्चतुर्घा व्यवहारकाले । पुरषेषु विष्णुर्भोगे भवानी,समरे च दुर्गा प्रलये च काली ।। आदि शक्ति के मातेश्वरी दुर्गा स्वरूप में उनके हाथों में दस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 19, 2017 6:08 AM
डॉ एनके बेरा
अखिल ब्रह्मांडनायिका जगज्जननी मां दुर्गा उन प्रधान शक्तियों में-से एक हैं, जिनको समय-समय पर अपनी आवश्यकतानुसार प्रकटित कर परब्रह्म परमात्मा ने विश्व का कल्याण किया है-
एकैव शक्ति परमेश्वरस्य, भिन्नाश्चतुर्घा व्यवहारकाले ।
पुरषेषु विष्णुर्भोगे भवानी,समरे च दुर्गा प्रलये च काली ।।
आदि शक्ति के मातेश्वरी दुर्गा स्वरूप में उनके हाथों में दस प्रकार के अस्त्र-शस्त्र हैं. शेर पर विराजमान, वह संसार की सारी क्रियाओं का प्रतिकरण, सत्व, रजस, ज्ञान, शांति, इच्छा, क्रोध,अहंकार और गर्व सब रूपों में करती रहती है.
मनुष्य का जीवन ही इन दस क्रियाओं के मध्य चलता रहता है. ब्रह्मा में सृष्टि करने की, विष्णु में पालन करने की और शिव में संहार करने की शक्ति है. सूर्य संसार को प्रकाश देते हैं, शेषनाग और कच्छ में पृथ्वी को धारण करने की शक्ति है. अग्नि में प्रज्ज्वलन शक्ति और पवन में गतिशील करने की शक्ति है. तात्पर्य यह है कि सभी में जो शक्ति विराजमान है, वह आद्याशक्ति दुर्गा है. सृष्टि की आदि में देवी ही थीं-सैषा परा शक्तिः। इसी पराशक्ति भगवती से ब्रह्मा, विष्णु, महेश और संपूर्ण स्थावर-जंगमात्मक सृष्टि उत्पन्न हुई. संसार में जो कुछ है, इसी में संनिविष्ट है.
भुवनेश्वरी ,प्रत्यंगिरा, सीता
सावित्री, सरस्वती, ब्रह्मानन्दकला आदि अनेक नाम इसी पराशक्ति के हैं. देवी स्वयं कहा है-सर्व खल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्। अर्थात् यह समस्त जगत् मैं ही हूं,मेरे सिवा अन्य कोई अविनाशी वस्तु नहीं है.
ये महाशक्ति दुर्गा ही सर्वकारणरूप प्रकृति की आधारभूता होनेसे महाकारण हैं, ये ही मायाधीश्वरी हैं, ये ही सृजन-पालन-संहारकारिणी आद्या नारायणी शक्ति हैं और ये ही प्रकृति के विस्तारके समय भर्ता, भोक्ता और महेश्वर होती है. ये ही आदि के तीन जोड़े उत्पन्न करनेवाली महालक्ष्मी हैं, इन्हीं की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विश्व का पालन और संहार करते हैं दया, क्षमा,निद्रा, स्मृति, क्षुधा, तृष्णा, तृप्ति, श्रद्धा,भक्ति, धृति, मति, तुष्टि, पुष्टि, शांति, कांति, लज्जा आदि इन्हीं महाशक्तिकी शक्तियां हैं. ये ही गोलक में श्रीराधा,साकेत में श्रीसीता, क्षीरोदसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गतिनाशिनी मेनका पुत्री दुर्गा हैं. वास्तविक रूप में तो वह एक ही है-एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीयाका ममापरा ।
शक्ति तत्व के द्वारा ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संचालित होता है. शक्ति के अभाव में न तो एकोअहं बहु स्याम् सदृश सिद्धांतों की सार्थकता संभव है और न ही महादेव की महादिव्यता सुमूर्त हो सकती है,क्योंकि शिव का एक रूप ही अर्द्धनारीश्वर है. इसलिए महाकवि कालिदास रघुवंश महाकाव्य का श्रीगणेश करते हुए कहते हैं-वागर्थविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये । जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरी ।। संपूर्ण विश्व का बड़ा से बड़ा व्यक्तित्व क्यों न हो, किंतु शक्ति से रहित होने पर वह तदविहीन हो जाता है. क्या कभी सुनने में आता है कि मैं विष्णुहीन हूं या ब्रह्महीन हूं. जबकि सभी लोग शक्ति से विरहित होने पर स्वयं को शक्तिहीन होना मानते हैं.
मार्कण्डेयपुराण में कल्याणमयी दुर्गा देवी के लिए विद्या और अविद्या दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ है. ब्रह्मा की स्तुति में महाविद्या और देवताओंकी स्तुति में लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये संबोधन आये हैं. अ से लेकर क्ष तक पचास मातृकाएं आधारपीठ हैं, इनके भीतर स्थित शक्तियोंका साक्षात्कार शक्ति-उपासना है. शक्ति से शक्तिमान् का अभेद-दर्शन,जीवमें शिवभाव का उदय अर्थात शिवत्व-वोध शक्ति उपासना की चरम उपलब्धि है.
ययेदं भ्राम्यते विश्वं योगिभिर्या विचित्यते ।
यदभासा भासते विश्वं सैका दुर्गा जगन्मयी ।।
जिसके द्वारा यह संसार चक्र चलता रहता है, योगीजन जिसका सदैव चिंतन करते हैं, जिसके प्रकाश से यह समस्त जगत प्रकाशित हो रहा है, यही जगदव्यापी दुर्गा तत्व है. अर्थात समस्त जगत देवीमय है.एक ही महाशक्ति दुर्गा कभी रौद्र तो कभी सौम्य रूपों में विराजित होकर नाना प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं. इच्छा से अधिक वितरण करने में समर्थ इन आदिशक्ति का स्वरूप अचिन्त और शब्दातीत है.पर भक्तों के लिये इनकी कृपा हमेशा मिलता है.
अतः मां से प्रार्थना करें-
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।

Next Article

Exit mobile version