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बिसरख, जहां दशहरे पर रावण नहीं मरता

ग्रेटर नोएडा से लगे बिसरख गांव में किसी से रावण के मंदिर के बारे में पूछिये तो आपको संभवत: रुखा जवाब मिले. वह रावण बाबा हैं. पूरे देश ने जहां शनिवार को रावण के पुतलों का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया, बिसरख की तस्वीर उससे थोड़ी जुदा रही, यहां गायों […]

ग्रेटर नोएडा से लगे बिसरख गांव में किसी से रावण के मंदिर के बारे में पूछिये तो आपको संभवत: रुखा जवाब मिले. वह रावण बाबा हैं. पूरे देश ने जहां शनिवार को रावण के पुतलों का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया, बिसरख की तस्वीर उससे थोड़ी जुदा रही, यहां गायों के रंभाने और चिडि़यों की चहचहाने के बीच पौराणिक असुर राज के जीवन और शिक्षाओं का जश्न मनाया गया.

प्राचीन शिव मंदिर के महंत राम दास ने ने इस संबंध में बताया कि लंका नरेश इस गांव में पैदा हुये थे. इस मंदिर को रावण मंदिर के तौर पर भी जाना जाता है. रावण का जन्म ऋषि विश्रवा के यहां हुआ था और वह भगवान शिव का अनन्य भक्त था. उसका बचपन बिसरख में ही बीता था.

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दास ने कहा, हम रावण के पुतलों का दहन नहीं करते, वह हमारे गांव का बेटा था. वह यहां पैदा हुआ था और हमें इस पर गर्व है. गांव की सीमा से सटा ही रावण मंदिर है जिसमें शिवलिंग है. ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना ऋषि विश्रवा ने की थी. इस गांव में हालांकि असुर राज की ग्रामीणों द्वारा आराधना नहीं की जाती है.

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आपको बता दें कि भारत के कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां के लोग दुर्गा पूजा का विरोध करते हैं और खुद को महिसा सुर का वंशज बताते हैं.

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