समाज में समानता लायेगा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस…जानें कैसे

एआइ यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव के दौर में दुनियाभर में भविष्य में होने वाले इसके दुष्परिणामों पर चर्चा होने लगी है. हालांकि, अर्थव्यवस्था के विकास में इसका योगदान बढ़ने से भविष्य में इसके अनेक बुरे नतीजे सामने आने की आशंका भी जतायी जा रही है, लेकिन एक नये आकलन में यह उम्मीद जतायी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 10, 2017 6:29 AM
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एआइ यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव के दौर में दुनियाभर में भविष्य में होने वाले इसके दुष्परिणामों पर चर्चा होने लगी है.
हालांकि, अर्थव्यवस्था के विकास में इसका योगदान बढ़ने से भविष्य में इसके अनेक बुरे नतीजे सामने आने की आशंका भी जतायी जा रही है, लेकिन एक नये आकलन में यह उम्मीद जतायी गयी है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से समाज में एकरूपता लाने में मदद मिल सकती है. एआइ के जरिये कैसे इसे आसानी से दिया जा सकता है अंजाम समेत इससे संबंधित विविध पहलुओं को रेखांकितकर रहा है आज का साइंस टेक्नोलॉजी पेज …
हमारे सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थानों के फैसले लेने की प्रक्रिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका बढ़ती जा रही है. अनेक दैनिक कार्यों से आगे बढ़ते हुए विविध संगठनों तक इनकी पैठ बढ़ रही है और धीरे-धीरे इनकी जड़ें मजबूत हो रही हैं.
अस्पतालों में अब अनेक मामलों में इसके जरिये यह तय होता है कि किसे बीमा मिलेगा, अदालतों में यह तय होता है कि किसे पेरोल मिलेगा और इंप्लॉयमेंट ऑफिस में यह तय होता है कि किसे नौकरी मिलेगी. जहां एक ओर ज्यादातर मामलों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से त्रुटियों पर काबू पाने के द्वारा दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने में मदद मिल रही है, वहीं दूसरी ओर इनसान के फैसले लेने की स्वाभाविक क्षमता, खासकर जब वह एलगोरिद्म आधारित हो, तो ऐसे में आंकड़ों का विविध मकसद से समग्रता से इस्तेमाल करना आसान हो गया है.
एलगोरिद्म की समझ
हमें यह समझना होगा कि एलगोरिद्म पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं होते हैं. वे आंकड़ों को रिफ्लेक्ट करते हैं और उसकी गणना में निहित मान्यताओं की झलक होती है.
पूर्वाग्रहित आंकड़े यदि एलगोरिद्म के जरिये भरे जाते हैं, जो प्राथमिकता के आधार पर मौजूदा सामाजिक पूर्वाग्रहों को रेखांकित करते हैं, तो इससे नतीजों के भेदभावपूर्ण आने की आशंका बनी रहती है. एलगोरिद्म कुछ निर्धारित फैक्टर्स को प्राथमिकता के आधार पर निबटाता है, जिसमें वह सांख्यिकीय प्रवृत्तियों की पहचान करते हुए विविध तथ्यों को ऑब्जर्व करता है और तब जाकर निष्कर्ष निकालता है कि यदि पूर्व में ऐसा हुआ है, तो ऐसा हो सकता है.
यह मान कर कि कुछ कारक एक नतीजे का सटीक अनुमान लगाते हैं और ऐतिहासिक प्रवृत्तियों को दोहराते हैं, एक एलगोरिद्म उसके फिर से सटीक होने को प्रदर्शित कर सकता है. इसके अलावा, जिन आंकड़ों और गणनाओं में ज्यादा-से-ज्यादा गलती दर्शायी गयी है, उनके नतीजे में होने वाली व्यापक असमानता को भी कम किया जा सकता है.
जोखिम के अनुमान में कारगर
संबंधित नीतियों के निर्धारण के लिए और स्वास्थ्य जोखिम के अनुमान के लिए यह बेहद कारगर साबित हो सकता है. इसके लिए अपराध के रिकॉर्ड का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसमें तारीख, समय और लोकेशन को प्रमुखता से शामिल किया जा सकता है.
इससे अपराध का अनुमान लगाने में भी मदद मिल सकती है. समृद्ध समुदायों के मुकाबले अल्पसंख्यक और कम-आमदनी वाले समुदायों का पुलिस सर्वेक्षण करना अधिक मुश्किल माना जाता है. ऐसे में अनुमान लगाने के मॉडल के मूल में ऐतिहासिक क्राइम डाटा के होने से इन समुदायों में अपराध की दर अधिक पायी जायेगी. नतीजन, प्रेडिक्टिव पॉलिसिंग यानी अनुमान लगाने की सटीक नीति को अपनाते हुए अल्पसंख्यकों और कम-आमदनी वाले समुदायों की निगरानी करना आसान हो सकता है.
ऐसे में स्वास्थ्य बीमा करनेवाले को भविष्य में किसी इनसान के स्वास्थ्य जोखिम को जानने में मदद मिल सकती है. नयी तकनीकों और आंकड़ों के समग्र इस्तेमाल से बीमा करनेवाले व्यक्ति के स्वास्थ्य जोखिम का सटीक आकलन किया जा सकेगा.
हालांकि, इससे यह भी हो सकता है कि अधिक स्वास्थ्य जोखिम वाले व्यक्ति को ज्यादा प्रीमियम भरना पड़ सकता है, जो उसके लिए महंगा होगा और वह बीमा नहीं करा सकता है. ऐसे में अनेक तरह की स्वास्थ्य चुनौतियों को झेल रहे समाज में रहनेवाले व्यक्ति के लिए ये प्रेडिक्टिव मॉडल स्वास्थ्य असमानता को पाटने में मददगार साबित हो सकते हैं.
सामाजिक सिस्टम एनालिसिस
व्यापक रूप से कहा जाये, तो वैल्यू-आधारित आंकड़ों और व्यक्तिपरक कारकों को प्राथमिकता देने के संयोजन को पूर्वाग्रह के तहत एलगोरिद्म आधारित बताया जाता है.
ऐसे में यदि डेटासेट्स यानी संग्रह किये गये आंकड़े ही स्वयं में अधूरे और मानक पर आधारित न हों, या इसे दोषपूर्ण तरीके से मापा गया हो, तो ये वास्तविकता से इतर नतीजे दर्शा सकते हैं. और एक प्रक्रिया के जरिये किया गया आंकड़ों का संग्रह, जो स्वयं दीर्घकालीन सामाजिक असमानता को रेखांकित करता है, आशंका है कि यह उसे स्थायी बनाना होगा.
उदाहरण के तौर पर, किसी उद्योग से हासिल किये गये आंकड़ों का सेट यदि एलगोरिद्म से प्रशिक्षित तरीके से किया गया है, तो उसके नतीजे अन्य तरीकों के मुकाबले प्राथमिकता के आधार पर दर्शाये जा सकते हैं.
सोशल सिस्टम्स एनालिसिस के नजरिये से आंकड़ों का विश्लेषण करने से, जहां एक ओर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के भेदभाव से पैदा होने वाले जोखिम की पहचान आसानी से की जा सकती है, वहीं दूसरी ओर इस चुनौती से निबटने की नयी राह तलाशी जा सकती है. ऐसे होने पर ज्यादा सक्षम कार्यबल को इस कार्य के लिए लगाया जा सकता है.
अधिक न्यायसंगत
जैसे-जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों के लिए फैसले को प्रभावित करने में दखलंदाजी बढ़ा रहा है, वैसे-वैसे यह इस बात को निर्धारित करने के लिए यह जरूरी बनता जा रहा है कि सिद्धांतों की सटीकता, जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए इन्हें अपनाया जाये. इसे बेहतर तरीके से निर्धारित करने के लिए इन सिद्धांतों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस किया जा सकता है, जो न केवल ज्यादा कार्यसक्षम होगा, बल्कि फैसले लेने में भी यह ज्यादा न्यायसंगत होगा.
विशेषज्ञ की राय
लोगों को यह भय है कि कंप्यूटर्स ज्यादा स्मार्ट हो जायेंगे और पूरी दुनिया में छा जायेंगे. लेकिन, वास्तविक समस्या यह है कि वे ऑलरेडी पूरी दुनिया में छा चुके हैं. हमें इसे समग्रता से समझने की जरूरत है, ताकि हम मानव समुदाय के लिए इसका सही इस्तेमाल कर सकें.
– पेड्रो डोमिंगोस, एलगोरिद्म के जानकार
प्रत्येक चरण में विविधता जरूरी
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की प्रक्रिया के दौरान इसके डिजाइन से लेकर वितरण और फैसले लेने जैसी चीजों तक में सभी स्तरों पर विविधता का समागम होना चाहिए. अब तक के शोध नतीजों में यह दर्शाया गया है कि ज्यादा डायवर्स टीम ने ज्यादा सक्षम तरीके से समस्याओं का समाधान तलाशा है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित फैसले लेने की चीजों को इंस्टॉल करने के व्यापक नतीजे के तौर पर यह पाया गया है कि ये न केवल प्रभावों का मूल्यांकन करते हैं, बल्कि उसके नकारात्मक असर को कम करने के लिए सटीक समाधान भी सुझाते हैं. इसे प्रभावी बनाते हुए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर व्यापक इस्तेमाल किया जा सकता है.
वैश्विक समस्याओं का समाधान
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक तरह से एक विभाजक बिंदु है. इसे समग्रता से विकसित करने और अमल में लाने से जलवायु परिवर्तन, खाद्य असुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है.
लेकिन इसे लागू करने की प्रक्रिया को सावधानीपूर्वक मैनेज किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह हमें एक अधिक न्यायसंगत डिजिटल अर्थव्यवस्था और समाज की ओर ले जाता है.
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