सत्ता की नहीं, विचारों की राजनीति करते थे जेपी

रामबहादुर राय वरिष्ठ पत्रकार थोड़ी दूर से और थोड़ा नजदीक से जेपी को मैंने करीब 14 साल देखा है. दो अवसर हैं, जब मैं उनसे बहुत प्रेरित हुआ. खास करके जब उस समय के पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश को लेकर संघर्ष चल रहा था, तब जेपी ने लोगों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 11, 2017 6:25 AM

रामबहादुर राय

वरिष्ठ पत्रकार

थोड़ी दूर से और थोड़ा नजदीक से जेपी को मैंने करीब 14 साल देखा है. दो अवसर हैं, जब मैं उनसे बहुत प्रेरित हुआ. खास करके जब उस समय के पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश को लेकर संघर्ष चल रहा था, तब जेपी ने लोगों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठायी थी और अन्याय हो रहा है, यह बात बतायी थी. भारत में वे जगह-जगह घूमे.

मुझे याद है कि 1971 के फरवरी में वे हमारे साथ थे और एक आम सभा हुई थी. वह पहला अवसर था, जब मैं जेपी से बहुत प्रभावित हुआ. सभा जब समाप्त हो गयी, तो मैं उनके पास गया और कहा कि हम लोग क्या कर सकते हैं. तब जेपी ने कहा कि अगर कुछ करना चाहते हैं, तो पटना जाकर देखिये कि वहां क्या हो रहा है. मैं पत्र लिख दूंगा, जिससे आप लोगों को सुरक्षा की व्यवस्था मिल जायेगी. हम वहां गये और स्थिति को देखा-समझा.

दूसरी बात मार्च 1974 की है. पटना में 19 मार्च की सुबह हम जितने लोग थे, जेपी से मिलने गये और वहां उनके पैर की तरफ जाकर खड़े हो गये. जेपी की उस वक्त तबियत खराब थी. उन्होंने अपने सिरहाने से एक कागज उठाया और सबसे पूछते रहे.

उनका आशय यह था कि पटना में चल रहे आंदोलन के दौरान जो बड़ी हिंसा हुई थी और प्रदीप सर्चलाइट अखबार का दफ्तर जला दिया गया था, वह सब कैसे हुआ था, उसका जिम्मेदार कौन था. मैंने उनको विस्तार से उसकी जानकारी दी. मैंने उनसे कहा कि इसमें छात्र संगठन का कोई रोल नहीं है, कांग्रेस का है, सरकार का है और वामपंथियों का रोल है. आखिर में हमने जेपी से कहा कि आप हमारी बात पर पूरा यकीन मत करिए, आपके पास सूचनाओं का तंत्र बड़ा बहुत है, उनके माध्यम से मालूम कर लीजिए कि हमने जो कहा, वह सही है या नहीं.

मैंने कहा कि मैं यह इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि आप पर केंद्र और राज्य सरकार का दबाव है कि आप जल्दी बयान दें और हिंसा की निंदा करें. उन्होंने कहा कि आप लोग सही-सही पता करिये और उस हिसाब से जो उचित जान पड़े, करिए. उन्होंने यह भी कहा कि अगर पहले बयान दूंगा तो आंदोलन को नुकसान होगा. जेपी ने हमारे कहे अनुसार ही किया और चार-पांच दिनों की पड़ताल के बाद वे इस नतीजे पर आये कि हिंसा के लिए सरकार, पुलिस, कांग्रेस के अंदर एक विरोधी धड़ा और वामपंथी जिम्मेदार थे. उन्होंने यह बयान दिया. उसके बाद 8 अप्रैल, 1974 को पट्टी बांध करके जेपी के नेतृत्व में जुलूस निकला और हम आंदोलन में शामिल हुए. उस समय जेपी की उम्र 72 साल थी.

वे 72 साल में भी वैसे ही थे, जैसे वे 30 साल की उम्र में थे, जब स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था और 1942 में गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के नायक बने थे.

जेपी आज इसलिए प्रासंगिक हैं और हमेशा प्रासंगिक रहेंगे, क्योंकि उन्होंने सत्ता में हिस्सेदारी के लिए राजनीति नहीं की, बल्कि अपने विचारों के लिए की.

नेहरू चाहते थे कि जेपी सत्ता में शामिल हों. सत्ता आम आदमी के हाथ में जाये, इन सबके लिए जेपी आजीवन काम करते रहे और सरकारों सवाल उठाते रहे. हमेशा अपनी असहमतियां प्रकट करते रहे और जरूरत पड़ने पर आंदोलन भी करते रहे. जेपी कभी मार्क्सवादी थे, फिर समाजवादी हुए, फिर आगे चलकर सर्वोदय हुए, और फिर संपूर्ण क्रांति का नारा दिया. उनके इस तरह बदलते रहने से जेपी के बारे में लोग कहते हैं कि जेपी एक जगह स्थिर नहीं रहे.

लेकिन, मेरा यह कहना है कि जेपी आज इसलिए भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वे एक जगह स्थिर नहीं रहे, बल्कि वे लगातार कुछ न कुछ नया खोजते रहे कि लोकतंत्र को एक साधारण व्यक्ति के हित में कैसे खड़ा किया जाये. इसके लिए उन्होंने 1959 में सुझाव दिया था- राज्य की पुनर्संरचना का सिद्धांत. यह सुझाव आज भी उतना ही प्रासंगिक है. उसी सुझाव में से पंचायत राजव्यवस्था निकली थी.

अपने विचारों की राजनीति करने के लिए जेपी हमेशा हमारे बीच प्रासंगिक बने रहेंगे. उन्होंने जो सवाल उठाये, वे आज भी अनुत्तरित हैं.

चाहे वह सवाल चुनाव सुधार का हो, या फिर संविधान का हो. जब संविधान बनकर तैयार हुआ, तो जेपी ने नेहरू को एक पत्र लिखकर कहा था कि इस संविधान को पूरी तरह से बदला जाना चाहिए, क्योंकि यह संविधान उल्टे पिरामिड पर खड़ा है. जेपी ने ही कहा था कि यह पूरी राज्य-व्यवस्था एक उलटे पिरामिड पर खड़ी है. इसलिए इस राज्य-व्यवस्था के आधार को व्यापक करने के लिए इसमें सुधार की जरूरत है. विडंबना यह है कि आज भी उनके सवालों का समाधान नहीं हुआ है.

मान लीजिए, अगर समाधान हो जाता, तो यह भी हो सकता है कि लोग जेपी को भूलने लगते. लेकिन, अभी तो जेपी बहुत ज्यादा याद किये जा रहे हैं. और गांधीजी के बाद जिस व्यक्ति को सबसे ज्यादा याद किया जा रहा है, वह जेपी ही हैं. (वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

Next Article

Exit mobile version