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स्वच्छता और समृद्धि का आनंदोत्सव है दीपपर्व

‘मिट्टी के लघु-लघु दीपों से जगमग हर एक भवन! अंधियारे की लहरों से भूमि भरी, पर, उस पर तिरती झलमल ज्योति-तरी ‘, महेंद्र भटनागर की कविता की इस पंक्ति की तरह दीपोत्सव के उजियारे से एक बार फिर हर घर की दहलीज रौशन हो गयी है. गांवों, कस्बों से लेकर महानगरों तक ज्योतिपर्व का प्रकाश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 19, 2017 6:09 AM
‘मिट्टी के लघु-लघु दीपों से जगमग हर एक भवन! अंधियारे की लहरों से भूमि भरी, पर, उस पर तिरती झलमल ज्योति-तरी ‘, महेंद्र भटनागर की कविता की इस पंक्ति की तरह दीपोत्सव के उजियारे से एक बार फिर हर घर की दहलीज रौशन हो गयी है.
गांवों, कस्बों से लेकर महानगरों तक ज्योतिपर्व का प्रकाश जगमगा उठा है और दीवारों पर धवल रंग उतर आये हैं. जीवन में आशा, उत्साह और उमंग का संचार करनेवाला दीपावली का पर्व मनाने के लिए हम एक बार फिर तैयार हैं.
हर किसी के हाथ लक्ष्मी जी के आगमन की कामना लेकर स्तुति में उठे हुए हैं. इस मंगल अवसर पर हम भी कामना करते हैं कि आपकी स्तुति स्वीकार कर लक्ष्मी जी आपके घर में वास करेंं और दीपपर्व पर बाहरी उजाले के साथ भीतरी उजाले के लिए सबके भीतर संवेदना का दीप प्रज्ज्वलित करें. इस शुभाकांक्षा के साथ आप सभी काे दीपोत्सव के पावन पर्व की उज्ज्वल शुभकामनाएं…
जोत से जोत जलाते चलो
सुधीश पचौरी
वरिष्ठ टिप्पणीकार
दीपावली मतलब है दीपकों की अवली यानी जिस त्यौहार पर लोग दीपकों की ‘अवलियां’ जलाते हों यानी जलते दीपकों की लाइनें लगाते हों, वह त्यौहार दीपावली कहलाता है. जलते दीपकों की वजह से इसे रौशनियों का त्यौहार भी कहा जाता है. संस्कृत में जिसे दीपावली कहा जाता है, उसे ही लोकभाषा में दीवाली कहा जाता है. शाम होते ही इस दिन घर-घर दीपक इसलिए जलाए जाते हैं, ताकि लक्ष्मी जी को घर में आने में आसानी हो. लक्ष्मी जी यानी धनधान्य, सोना चांदी, पूंजी पैसा यानी संपत्ति, यानी भौतिक संपदा का वैभव. दुनिया में भारत के अलावा शायद ही कोई मुल्क ऐसा है, जहां बरस में एक बार धनधान्य और संपत्ति के आवाहन का ऐसा चमकीला समारोह मनाया जाता है.
दीपकों को जला कर लक्ष्मी की पूजा अर्चना करना, अपने बहीखातों और तिजोरियों पर स्वास्तिक का चिह्न बना कर ‘श्री लक्ष्म्यै नमोनमः’ या ‘श्री लक्ष्मी जी सदा सहाय’ लिखना या ‘शुभ लाभ’ लिखना आम बात है. दीपावली के आने से पहले सब अपने घरों को दुकानों को साफ-सुथरा करते-कराते हैं, क्योंकि लक्ष्मी जी को गंदगी या मैल कुचैल की जगह साफ-सफाई पसंद है. यह स्वच्छता का शायद सबसे पुराना त्यौहार है. वह सबसे प्राचीन ‘स्वच्छता आंदोलन’ है, जिसे किसी के आदेश से नहीं किया जाता, अपने आप किया जाता है.
इसी दिन नागरिक किसी दुकान का, किसी उद्यम का, किसी बिजनेस का शुभारंभ करते हैं. नये काम को शुरू करने के लिए इस दिन को शुभ माना जाता है. दुकानदार, कारोबारी, फैक्ट्रीवाले अपने नये बहीखाते की पूजा करते हैं और पुरानों को बंद करते हैं.
दीपावली अकेली नहीं आती. अपने साथ और कई शुभ दिनों और त्यौहारों को लेकर आती है. छोटी दीवाली से पहले धनतेरस आती है. इस दिन बाजारों में बड़ी रौनक रहती है. दुकानें सज जाती हैं. मिठाई की, बर्तनों और चांदी सोने की दुकानें ग्राहकों को तरह-तरह से लुभाती हैं. हर आदमी कुछ-न-कुछ मिठाई, बरतन या चांदी का एक सिक्का जरूर खरीदता है.
दीपावली को इसीलिए ‘बाजार का त्यौहार’ कहा जाता है. दुकानें सड़कों तक निकल आती हैं और हर दुकान सेल लगा कर अपना सामान बेचती है और लोग भी अपनी क्षमता के हिसाब से खरीदते हैं. यही मार्केटिंग का और ब्रांडिंग की पोजिशनिंग का त्यौहार है. मीडिया विज्ञापनों से भर जाता है. यह उपभोग का और उपभोक्ता का त्यौहार है.
इस बार की दीपावली में कुछ मंदी की मार है, तो राजधानी दिल्ली में कुछ अदालती आदेश की मार है. नोटबंदी और जीएसटी ने बाजार में मांग को सुस्त कर रखा है.
दिल्ली की बड़ी अदालत नेे एक याचिका की सुनवाई के बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर अल्पकालीन पाबंदी लगा दी है. यह सब तो झेला जा सकता था. लेकिन इस बार मेल-जोल और खुशी के इस त्यौहार को राजनीति की बुरी नजर लग गयी लगती है. दीपावली के कुछ रोज पहले एक नेता कहता है कि ताजमहल भारत पर एक दाग है. दूसरा कहता है कि राष्ट्रपति भवन और संसद गुलामी के प्रतीक हैं.
ऐसे तत्व दीपावली के उजाले भरे संदेश के दुश्मन हैं. जो त्यौहार रोशनी लेकर आता है, जो खुशियां लेकर आता है, जिस दिन लोग खील बताशे आपस में बांटते हैं, दीपक जलाते हैं, फुलझड़ी और पटाखे चलाते हैं और एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं, उस दिन के ऐन पहले ही कुछ लोग ऐसी ऐसी बातें करके त्यौहार का मजा किरकिरा करने में लगे हैं.
जो त्यौहार सदियों से मनाया जाता है, जिसे उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक समूचे भारत में किसी-न-किसी रूप में रौशनी के त्यौहार की तरह मनाया जाता है, उस दिन भी कुछ लोग अंधेरे की वकालत करने लगे हैं. जो त्यौहार भाईचारे मेलजोल और समृद्धि का प्रतीक हैं, उस दिन भी कुछ लोग कलह और घृणा का वातावरण बनाते दिखते हैं.
लगता है उनको अापसी मेल-जोल का और सामूहिक खुशियाें का यह त्योहार नहीं भाता. जिस त्यौहार को सभी संप्रदाय सदियों से मनाते आये हैं, उसमें बेकार में खलल डालना कहां की समझदारी है? ऐसे तत्व शायद नहीं जानते कि इस त्यौहार को हिंदू, मुसलमान और अन्य समुदाय भी मनाते आये हैं. कवियों ने और शायरों ने अपने शेरों में दीपावली का वर्णन जम कर किया है, जो इस बात का प्रमाण है कि दीपावली समूचेे समाज का ही आनंदोत्सव है. दीपावली को लेकर अलताफ हुसैन हाली का ये शेर देखिए :
झुटपुटे के वक्त घर से एक मिट्टी का दिया,
एक बुढ़िया ने सरे राह जलाके रौशन कर दिया.
यह पुरानी दीपावली का वर्णन हैै.
इसी तरह नजीर अकबराबादी लिखते हैं :
हर इक मकान में जला फिर से दिया दिवाली में,
हर इक तरफ को फिर से उजाला हुआ दिवाली में.
इसी तरह इस शेर को देखिए :
है दशहरे में भी गर यूं फरहतो जीनत नजीर,
पर दिवाली भी अजब पाकीजातर त्यौहार है.
माजिद उलबाकरी तो एक दिया जलाने का आवाहन तक करते हैं :
बीस बरस से इकतारे पर मन की जोत जलाता हूं,
दीवाली की रात को तू भी कोई दिया जलाया कर.
जमुना प्रसाद राही एक शेर में कहते हैं :
जो सुनते हैं तिरे शहर में दशहरा है,
हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं.
एक अज्ञात शायर पुराने जमाने की दीपावली को इस तरह याद दिलाता है :
मिलके होती थी कभी ईद कभी दीवाली,
अब ये हालात हैं कि डर-डर के गले मिलते हैं.
यह डर किसने बिठा दिया? क्या डर-डर कर भी दीवाली मनायी जाती है? नहीं. वो तो आपस में गले मिल कर मनायी जाती है और खील बताशे बांट कर मनायी जाती है. दीपक जला कर मनायी जाती है. दीवाली कहती है, जोत से जोत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो. प्यार की जोत से ही घर-घर में उजाला होता है. इसी बात को शायर शकेब जलाली ने यों कहा है :
प्यार की जोत से घर घर है चरागां रौशन,
एक भी शमा न रौशन हो हवा के डर से.
और कैफी आजमी कहते हैं :
एक दो ही नहीं छब्बीस दिये,
एक एक करके जलाये मैंने.
दीपावली प्रकाश का पर्व है. वह जीवन के अंधेरे को काटता है और उजाला बनाता है. नजीर बनारसी ने कहा है :
घुट गया अंधेरे का दम अकेले में,
हर नजर टहलती है रौशनी के मेले में.
आइये, रौशनी का मेला लगायें. अंदर और बाहर के अंधकार को दूर भगायें. इस दीवाली प्रेम के दिये जलायें.
ज्योति पर्व के विभिन्न आयाम
सांस्कृतिक महत्व
दीपावली का हिंदू धर्म में धन के पूजन का दिवस माना गया है. वर्षों से इसी दिन नये बही खातों का पूजन, अपनी चल-अचल संपदा पर दीप प्रज्ज्वलित किये जाते रहे हैं.
यह पर्व आपके आधिपत्य और ऐश्वर्य का भी प्रतीक है, जिसे मान सम्मान का प्रतीक माना जाता है. सांसारिक सुखों का भोग धन के बिना नहीं प्राप्त किया जा सकता है, लिहाजा धनी उसे ही कह सकते हैं, जहां समृद्धि, स्वास्थ्य और ज्ञान के दीप जल रहे हों. इसलिए लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती की पूजा की जाती है.
मौजूदा समय के नजरिये से देखें, तो दीपावली अब मात्र दीपों की संस्कृति नहीं रही, बल्कि एक मिलन समारोह की तरह इसने एक नयी संस्कृति को जन्म दिया है. मौजूदा दौर में ज्यादातर लोग रोजगार के सिलसिले में अपने घरों से बहुत दूर कार्य करने लगे हैं, जिससे उन्हें अपने सभी परिवारजनों से मिलने के लिए दीपावली एक महत्वपूर्ण त्यौहार बन गया है.
दीपावली पर्व को मौजूदा नजरिये से शुद्धता का पर्व भी कह सकते हैं, क्योंकि इस त्यौहार की तैयारी में घर की साफ-सफाई पर प्रमुखता से जोर दिया जाता है. हालांकि, यह शुद्धता केवल घर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहलू भी हैं. इसके साथ अनेक धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं.
शास्त्रों के अनुसार दीपावली पर लक्ष्मी पूजा के दौरान हमारे घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर शुभ-लाभ और स्वास्तिक का चिह्न बनाया जाना चाहिए. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि ऐसा करने से शुभ पक्ष का आगमन शुरू हो जाता है और हमारे जीवन से जुड़े अशुभ पक्ष खत्म हो जाते हैं. सिंदूर या कुमकुम से शुभ और लाभ लिखने की मान्यता है कि इससे महालक्ष्मी सहित गणेश भी प्रसन्न होते हैं. शुभ लाभ और स्वास्तिक का महत्व अक्सर हम देखते हैं घरों के पूजास्थल, दीवारों, बही-खातों आदि पर शुभ लाभ और स्वास्तिक के चिह्न बनाये जाते हैं.
भारतीय संस्कृति में इसका बड़ा महत्व है. दीपावली में गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के पूजन के साथ शुभ लाभ और स्वास्तिक के पूजन की परंपरा है. स्वास्तिक को मंगलभावना व सुख सौभाग्य का सूचक माना जाता है. पौराणिक कथाओं में इसे सूर्य और विष्णु का प्रतीक कहा गया है. स्वास्तिक को मूल ब्रह्मांड का प्रतीक बताया गया है. वास्तुशास्त्र के अनुसार मकान के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाकर शुभ लाभ लिखने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.
वैज्ञानिक महत्व
दीपावली पर्व का कुछ हद तक वैज्ञानिक महत्व भी है. यह त्यौहार बारिश की समाप्ति और जाड़े की शुरुआत में मनाया जाता है. अधिकतर लोग दीपावली से ही गर्म कपड़ों का इस्तेमाल शुरू करते हैं. यानी यह एक ऋतु के आगमन का और दूसरी ऋतु के जाने का समय हाेता है.
धान की फसल काटने का भी यह समय होता है यानी अनाज घर में आने के लिए घर की सफाई भी जरूरी होती है. इसी तरह ठंड से पहले गर्मी में धूल-हवा आदि के कारण पूरा घर गंदा हो जाता है. उसके बाद हुई बारिश से घरों में सीलन, पानी का जमाव, दीवारों पर से रंग- रोगन उतर जाते हैं. इसे ही सही करने के लिए घर की नये सिरे से सफाई की जाती है.
वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि घर के रंग रोगन के क्षरण से वास्तु दोष लगता है. यह त्यौहार हमें वास्तु दोषों से भी बचाता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है. साथ ही बारिश के मौसम में सबसे अधिक बीमारियां पनपती हैं, जिनका सीधा संबंध हमारी सेहत से जुड़ा होता है. इस मौसम में मच्छर, मक्खी भी तेजी से पनपते हैं, जो इनसानों के लिए अनेक बीमारियां पैदा करते हैं. इस मौसम में पेट संबंधी रोगों का संक्रमण भी तेजी से फैलता है. साफ-सफाई के कारण इनका भी नाश हो जाता है. घर के कूड़े-कचरे में जमे कीटाणु-विषाणु से भी मुक्ति मिलती है.
विविध मान्यताएं
एक कथा के अनुसार इस दिन महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ पूरा किया था. जैन धर्म के अनुयायियों के अनुसार इसी दिन जैन मत के प्रवर्त्तक महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था. कृष्ण भक्तों का मानना है कि इससे एक दिन पूर्व श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था व इसी दिन उन्होंने ब्रज क्षेत्र को इंद्र के कोप से बचाया था. एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन समुद्र-मंथन हुआ था.
समुद्र से लक्ष्मी के प्रकट होने पर देवताओं ने उसकी पूजा-अर्चना की. यह भी मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह के रूप में प्रकट होकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी. सिख धर्म के अनुयायी मानते हैं कि इसी दिन उनके छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने जेल से मुक्ति पायी थी. और भी कई कथाएं हैं, जो इस त्यौहार के साथ जुड़ी हैं. दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था.
कविताएं
दीपावली पर पांच मुक्तक
शाहिद मिर्जा शाहिद
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
छोड़कर चल दिये रस्ते सभी फूलों वाले
चुन लिये अपने लिए पथ भी बबूलों वाले
उनके किरदार की अजमत है निराली शाहिद
दोस्त तो दोस्त, हैं दुश्मन भी उसूलों वाले
परतवे-अर्श
जगमगाते हुए दीपों के इशारे देखो
आज हर सिम्त नजर डालो, नजारे देखो
परतवे-अर्श का मखसूस ये मंजर शाहिद
जैसे उतरे हों फलक से ये सितारे देखो
रोशनी और खुशबू
दीपमाला में मुसर्रत की खनक शामिल है
दीप की लौ में खिले गुल की चमक शामिल है
जश्न में डूबी बहारों का ये तोहफा शाहिद
जगमगाहट में भी फूलों की महक शामिल है
कुदरत का पैगाम
हमको कुदरत भी ये पैगाम दिये जाती है
जश्न मिल-जुल के मनाने का सबक लाती है
अब तो त्यौहार भी तन्हा नहीं आते शाहिद
साथ दीवाली भी अब ईद लिये आती है
शुभ दीपावली
आओ अंधकार मिटाने का हुनर सीखें हम
कि वजूद अपना बनाने का हुनर सीखें हम
रोशनी और बढ़े, और उजाला फैले
दीप से दीप जलाने का हुनर सीखें हम
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना गोपालदास ‘नीरज’
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये.
नयी ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाये, निशा आ ना पाये
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये.
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूं ही,
भले ही दिवाली यहां रोज आये
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये.
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अंधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अंधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आये
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये.

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