!!अनुज कुमार सिन्हा!!
21 अक्तूबर, 1982 का दिन था. झारखंड आंदाेलन के इतिहास का एक आैर महत्वपूर्ण दिन. इसी दिन तिरूलडीह में पुलिस ने छात्राें की भीड़ पर फायरिंग कर दी थी. इसमें सिंहभूम कॉलेज, चांडिल के दाे छात्र अजीत महताे आैर धनंजय महताे मारे गये थे. 35 साल बीत गये. इस दाैरान झारखंड राज्य बन गया. अब समय आ गया है कि झारखंड आंदाेलन के दाैरान मारे गये इन नायकाें काे राज्य के अन्य हिस्साें के लाेग भी जानें. अभी हालात यह है कि इन नायकाें (यहां शहीद छात्र) की शहादत ईचागढ़, नीमडीह आैर चांडिल तक सिमट कर रह गयी है. समाज का एक बड़ा तबका (खास कर नयी पीढ़ी) इन शहादताें-गाेलीकांड के बारे में जानता तक नहीं है. हां, एक पुल का नामकरण आैर एक स्कूल इन शहीदाें के याेगदान काे बताता है.
झारखंड आंदाेलन के दाैरान छात्राें ने अलग राज्य के साथ-साथ कुछ आैर मांगाें के लिए संघर्ष किया था. उन दिनाें पूरे इलाके में सूखा पड़ा था. इसका असर छात्राें पर पड़ा था. कॉलेज में पढ़नेवाले छात्राें की पढ़ाई बाधित हाे रही थी. इसके अलावा बंगाल सीमा पर पुलिस का जुल्म बढ़ गया था. बंगाल में केरोसिन सस्ता था. सीमा के आसपास स्थित गांव के लाेग बंगाल से सस्ता केरोसिन लाते थे. पुलिस ने ग्रामीणाें काे पकड़ना शुरु कर दिया था. पैसा लेकर पुलिस छाेड़ती थी. छात्राें ने ग्रामीणाें के साथ मिल कर आंदाेलन चलाने का फैसला किया था. इसके लिए क्रांतिकारी छात्र युवा माेरचा नामक संगठन बनाया.
छात्राें ने तय किया था कि 19, 21 आैर 23 अक्तूबर 1982 काे नीमडीह, ईचागढ़ आैर चांडिल में प्रखंड कार्यालय का घेराव किया जायेगा जिसमें इन तीनाें प्रखंडाें काे सूखाग्रस्त घाेषित करने की मांग की जायेगी. छात्राें में जुनून था. सभी छात्र साइकिल से छह-सात दिनाें के अभियान पर निकल चुके थे. 19 काे नीमडीह में प्रखंड कार्यालय में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन हाे गया था. 20 काे आराम कर दूसरे प्रखंड यानी ईचागढ़ में प्रदर्शन करना था. हिकिम महताे की अगुवाई में सीआे काे ज्ञापन देने के लिए एक टीम अंदर गयी थी. इसी बीच किसी बात काे लेकर पुलिस आैर छात्राें के बीच विवाद हाे गया. अंदर एक दल ज्ञापन दे रहा था आैर बाहर पुलिस ने तिरूलडीह में फायरिंग कर दी. इसी फायरिंग में धनंजय महताे (आदरडीह गांव, जाेड़ाे पंचायत) आैर अजीत महताे (गांव कुरली) मारा गया. इसके बाद पुलिस जुल्म आरंभ हुआ. 41 छात्राें-किसानाें काे 36 घंटे तक एक छाेटे से कमरे में बंद रखा गया. न खाना दिया गया था, न पानी.
पुलिस फायरिंग के बाद पूरे इलाके में दहशत फैल गयी. दाेनाें छात्राें के शव का जमशेदपुर के एमजीएम में पाेस्टमार्टम किया गया था. पुलिस का भय इतना था कि काेई भी इन छात्राें के शव काे लेकर इनके गांव नहीं जाना चाहता था. उन दिनाें निर्मल महताे झारखंड मुक्ति माेरचा के नेता के रूप में उभर रहे थे. उन्हें जानकारी मिली कि पुलिस के भय से काेई वहां जाना नहीं चाहता. उन्हाेंने हिम्मत की आैर ट्रक से शव काे लेकर जायदा (सुवर्णरेखा नदी के तट पर) गये. धनंजय महताे की पत्नी बारी देवी मायके में थी. गाेद में उनका बेटा था. उन्हें पता नहीं था कि उनके पति शहीद हाे गये हैं. धनंजय के परिवार काे दाे-तीन दिन बाद जानकारी मिली कि पुलिस फायरिंग में धनंजय की माैत हाे गयी है. अपने पति का अंतिम दर्शन भी बारी देवी नहीं कर सकी थी. दाह संस्कार भी निर्मल महताे ने ही किया था. दूसरे शहीद अजीत महताे (अविवाहित थे) के परिवार के लाेगाें काे उनकी शहादत की जानकारी मिल गयी थी. उन्हाेंने अजीत का दाह संस्कार खुद किया था. इस गाेलीकांड के बाद बड़ा आंदाेलन हुआ. तिरूलडीह में दाेनाें शहीद छात्राें की प्रतिमा लगी है. हर साल यहां बड़ी सभा हाेती है आैर लाेग शहीद छात्राें काे याद करते हैं. सच है कि झारखंड जब राज्य बना ताे अजीत महताे-धनंजय महताे आैर उन जैसे सैकड़ाें-हजाराें लाेगाें के संघर्ष-शहादत की बदाैलत. ऐसे नायकाें का सम्मान हाेना चाहिए.