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खुद को आत्मा मान लेना अध्यात्म नहीं

सद्गुरु सद्‌गुरु से प्रश्न पूछा गया कि अगर हम पहले से ही आत्मा हैं, तो आध्यात्मिक बनने के लिए हमें आत्मा को ढूंढ़ने की जरूरत क्यों है? सद्‌गुरु मान्यता और अनुभव के फर्क के बारे में बता रहे हैं. प्रश्न : आप जानते हैं कि लोगों की सारी दिलचस्पी अध्यात्म की खोज में है, लेकिन […]

सद्गुरु
सद्‌गुरु से प्रश्न पूछा गया कि अगर हम पहले से ही आत्मा हैं, तो आध्यात्मिक बनने के लिए हमें आत्मा को ढूंढ़ने की जरूरत क्यों है? सद्‌गुरु मान्यता और अनुभव के फर्क के बारे में बता रहे हैं.
प्रश्न : आप जानते हैं कि लोगों की सारी दिलचस्पी अध्यात्म की खोज में है, लेकिन सवाल यह है कि जब आप सुबह सोकर उठते हैं, आप तब भी आध्यात्मिक होते हैं, बतौर इंसान आप आध्यात्मिक ही हैं, क्योंकि आप एक आत्मा हैं. फिर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि क्यों किसी इंसान को अपनी आत्मा की खोज में रहना चाहिए? सद्‌गुरु, इस बारे में कुछ मार्गदर्शन दीजिए.
सद्‌गुरु : आप पहले ही इस दुनिया में रह रहे हैं, लेकिन फिर भी आप बाहर निकलकर दुनिया देखना चाहते हैं. क्योंकि दुनिया में देखने के लिए बहुत कुछ है. जो आपको यहां दिखाई दे रहा है, उससे कहीं ज्यादा बड़ी दुनिया है, तभी आप उसे बाहर देखने जाते हैं.
तो इसी तरह से ये प्रश्न उठा है – क्या मैं एक आत्मा नहीं हूं. लेकिन मैं इसके बारे में कुछ नहीं कहना चाहता, क्योंकि यह एक महज मान्यता है कि आप एक आत्मा हैं. आध्यात्मिकता का मतलब यह नहीं कि आप किसी आत्मा की तलाश में निकल जाएं. इसका सीधा सा मतलब है कि आप इस तथ्य को समझें कि आपकी भौतिकता या भौतिक रूप से आप जो हैं, वह सब आपने बाहर से इकठ्ठा किया है. हम हर दिन जो खाना खाते हैं, उससे यह शरीर बना है.
तो आपकी भौतिकता एक तरह का संग्रह है. भौतिक अस्तित्व केवल तभी संभव है, जब उसकी एक निश्चित सीमा हो – भौतिकता की यही प्रकृति है. बिना एक निश्चित बाउंड्री के भौतिकता होगी ही नहीं. तो जब आप अपनी भौतिकता की सीमाओं को छू लेते हैं और समझ जाते हैं कि चाहे आप जो कर लें, भौतिकता हमेशा सीमा से बंधी रहेगी, तब आप में भौतिकता से परे के आयाम की तलाश जागती है.
तो जब आप भौतिकता से परे का आयाम छू लेते हैं तो हम कहते हैं कि आप आध्यात्मिक हैं. आध्यात्मिकता का यह मतलब नहीं कि अंडे के आकार में कोई आत्मा कहीं तैर रही है, जिसे आपने देखा है और आपका उससे परिचय करा दिया गया है. यह सब कैलेंडर में आर्ट के तौर पर दिखाने के लिए तो ठीक है, लेकिन अगर आप वाकई विकास करना चाहते हैं तो भौतिकता की सीमाओं से आगे निकलना ही आध्यात्मिकता है.
हमारे सभी अनुभव सिर्फ शरीर, मन और भावनाओं से जुड़े हैं. सुबह उठकर अगर आप कहते हैं – ‘मैं तो पहले ही आत्मा हूं’ तो यह आध्यात्मिकता नहीं कहलायेगी. अगर आप सुबह उठते हैं तो इसका मतलब है कि आप एक शरीर हैं, आप एक मन हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप एक आत्मा हैं.
अगर आप आत्मा होते तो न तो आपको सोने की जरूरत होती और न ही जागने की. दुनिया में जीवन का आपका अनुभव एक शरीर के तौर पर, एक मन के तौर पर व भावनाओं के तौर पर होता है, न कि आत्मा के तौर पर. हो सकता है कि जब आप आंख बंद कर शांत भाव से एक जगह बैठें तो आप इस चीज को समझ पाएं कि ‘यह शरीर मैंने यहां इकठ्ठा किया है, यह मन मैंने इकठ्ठा किया है, जीवन तो इनसे कहीं ज्यादा है. लेकिन वह भी एक अनुभव नहीं होगा, बस एक नतीजा होगा, जो आप निकाल सकते हैं.आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब है कि आप इसे अनुभव के स्तर पर महसूस करना चाहते हैं. यही इस संस्कृति की खूबसूरती है.
अब यह मान्यता सही है या गलत, यह आप तब तक नहीं जान सकते, जब तक आप खुद इसका अनुभव न कर लें. आप इस विचार का सम्मान कर सकते हैं, क्योंकि यह सोच बहुत पुरानी है.यहां जब कोई सवाल करता है तो यह नहीं देखा जाता कि वेदों ने इस पर क्या कहा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कृष्ण ने क्या कहा, राम ने क्या कहा या किसी और ने क्या कहा. जिसने भी जो कहा, उन सबके प्रति सम्मान रखते हुए यहां अपने प्रश्न के उत्तर खुद तलाशे जाते हैं. और यहां इस तरह की तलाश को बढ़ावा दिया जाता है. जैसे ही आप यह कहते हैं कि आप एक आध्यात्मिक इंसान हैं, आपको एक जिज्ञासु मान लिया जाता है. कोई व्यक्ति तभी जिज्ञासु बनता है, जब वह यह बात महसूस कर लेता है कि वह नहीं जानता. अगर आपको लगता है कि आप जानते हैं तो आप जिज्ञासु नहीं बन सकते.
‘मैं एक आत्मा हूं. यह एक मान्यता है और इस मान्यता का आधार है समाज में मौजूद साहित्य. अब यह मान्यता सही है या गलत, यह आप तब तक नहीं जान सकते, जब तक आप खुद इसका अनुभव न कर लें. आप इस विचार का सम्मान कर सकते हैं, क्योंकि यह सोच बहुत पुरानी है. आप इसका सम्मान इसलिए भी करते हैं, क्योंकि आप उन लोगों का सम्मान करते हैं, जिन्होंने ये बातें कही हैं. आप अपने पिता का सम्मान करते हैं, फिर भी आप उनके कहे को अपने विवेक के आधार पर परखते हैं, है न.
प्रश्न: कुछ लोग आध्यात्मिकता को जीवन से अलग रखते हैं. ऐसा क्यों है? क्या सिर्फ ध्यान करते समय ही जागरूकता जरूरी है.सद्‌गुरु : अगर आपकी आध्यात्मिकता समय से बंधी है, सुबह पांच से सात या किसी और समय तक सीमित है, तो आप सिर्फ आध्यात्मिक होने की कोशिश कर रहे हैं, आप आध्यात्मिक नहीं हैं. आध्यात्मिक होने के बारे में आपकी राय क्या है. अगर आपका यह मानना है कि आध्यात्मिक होने का मतलब हर किसी से अच्छी तरह बात करना है, तो आप गलत हैं. अगर कोई अपनी समझदारी, अपनी संवेदनशीलता, अपने अनुभव के कारण जीवन के विभिन्न पहलुओं के साथ अलग-अलग तरीके से पेश आ रहा है, अगर उसे पता है कि किसी नन्हे बच्चे, किसी भैंस, किसी पहाड़, एक बस ड्राइवर से कैसे पेश आना है, और इस ज्ञान की वजह उसकी जागरूकता है, तो यह बहुत अच्छी बात है. जीवन को ऐसा ही होना चाहिए.
अगर कोई अपनी तथाकथित आध्यात्मिकता के कारण जीवन के हरेक पहलू के साथ दयालुता या अच्छाई के साथ पेश आने की कोशिश करता है तो वह सिर्फ नैतिकतावादी और मूर्ख है. हो सकता है कि वे अच्छे लोग हों, मगर उनमें जीवन की कोई समझ नहीं है. उनमें कोई आंतरिक अनुभव नहीं है, उनका व्यवहार बस उनकी अच्छाई और नैतिकता से आया है. वे अच्छे नागरिक बन सकते हैं, मगर वे यह नहीं जान सकते कि भौतिकता से परे क्या है.

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