हरिवंश
राज्यसभा सांसद
यह महज संयोग था, दक्षिण से दिल्ली लौटा था. शेल कंपनियां की खबरें, पहली बार पढ़ा-सुना. एक चार्टर्ड एकाउंटेंट मित्र से बुनियादी जानकारी ली. समझा. इस विषय को राज्यसभा में उठाने के लिए शून्यकाल में नोटिस दिया. दो-बार. अंतत: स्वीकृत हुआ. उपराष्ट्रपति जी (तत्कालीन) से मिल कर विषय का महत्व बताया. शायद, राज्यसभा में इस विषय पर तब यह पहली चर्चा थी. 22 मार्च 2017 को शून्यकाल में उसे उठाने का मौका मिला. जो बातें राज्यसभा में रखीं, उनके यहां कुछ अंश हैं,
‘… पिछले कुछ महीनों से खासतौर से डिमोनेटाइजेशन के बाद पहली बार हमने शेल कंपनियों का नाम सुना. कन्फ्यूजन हुआ. बचपन में बर्मा सेल कंपनी का नाम सुना था. पर SHELL (शेल) कंपनी का रहस्य क्या है, यह पता किया.
शेल कंपनी यानी नान ट्रेडिंग आर्गेनाइजेशन. कोई काम-धाम, व्यापार या फिजिकल बिजनेस नहीं. उनका काम पता चला कि सिर्फ दूसरी बड़ी कंपनियों, औद्योगिक संस्थानों के लिए लेन-देन का काम करना. (सामान्य भाषा में कहें तो बाहरी मुखौटा, पर असल चेहरों का अता-पता नहीं) स्टाक एक्सचेंज में लिस्टेड हैं, कानूनन ठीक भी है, पर इनमें से 90 फीसदी ऐसी कंपनियां इल्लीगल (गैरकानूनी) काम में लगी हैं.
यह काम कैसा है? वेहिकल फॉर इल्लीगल एक्टीविटिज (गैरकानूनी धंधा-लेनदेन का माध्यम) यानी टैक्स इवेसन (कर चोरी), ब्लैक को ह्वाइट करना (कालेधन को सफेद करना), बैंकरप्सी फ्रॉड (दिवालिया गोरखधंधा), फेक सर्विस स्कीम (झूठी सेवाएं देने या काम करने का स्वांग-नाटक), मार्केट मैनिपुलेशन (बाजार में किसी कंपनी का शेयर बढ़ाना-घटाना) और मनी लांड्रिंग (पैसा इधर-उधर या बाहर भेजना). स्पष्ट है कि ये शेल कंपनियां एक भी काम (उत्पादन) प्रोडक्शन का नहीं करतीं. इनकी जड़ें टैक्स हेवेन (कर चुरा कर पैसे जहां छुपा कर जमा किये जाते हैं) देशों में हैं. मैं यह सब क्यों जानना चाहता हूं?
दो मार्च को मैंने टाइम्स आॅफ इंडिया में खबर पढ़ी. ‘आइटी सर्वे आॅन 12 शेल फर्म्स रिवील्स- 65 करोड़ ब्लैकमनी.’ 17 मार्च को ‘द हिंदू’ में खबर पढ़ी ‘कैग पूल्स अप आइटी डिपार्टमेंट आॅन शेल कंपनीज’. महाराष्ट्र के सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट के आॅडिट में कैग (अवधि 2009-10 से 2013-14 के बीच) ने पाया कि राज्य सरकार की वेबसाइट पर 2059 संदिग्ध डीलर्स हैं, जिन्होंने 10,640 करोड़ से अधिक का टैक्स चुराया है. यह कैग रिपोर्ट में है.
तीसरी खबर मैंने पढ़ी कि ‘एटलीस्ट 3900 करोड़ वाज लांडर्ड थ्रू शेल कंपनीज बिटवीन नवंबर एंड दिसंबर आफ्टर बैन आॅन हाईवैल्यू बैंक नोट्स, इन्वेस्टिगेशन बाइ ए सेंट्रल एजेंसी, द सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन आॅफिस (एसएफआइओ) हैव फाउंड इट (यानी नवंबर-दिसंबर 20016 के बीच भारत सरकार की गंभीर धोखाधड़ी की जांच करनेवाली सरकारी एजेंसी ने एक मामला पकड़ा है, जहां शेल कंपनियों ने नोटबंदी के पौने दो माह के अंदर 3900 करोड़ की हेराफेरी की है). चौथी खबर मैंने पढ़ी कि कोलकाता में सबसे अधिक 3000 से अधिक शेल कंपनियां एक्टिव (सक्रिय)हैं.
‘उपाध्यक्ष महोदय, सरकार से मेरा आग्रह है कि ये कंपनियां कैसे वर्षों चलती रहीं, जबकि मुल्क में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट है. आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग है. इन्फोर्समेंट डायरेक्ट्रेट है.
इन सबके बावजूद कैसे यह सब होता रहा? सूचना है कि भारत में सात लाख शेल कंपनियां हैं. देश में कुल 15 लाख रजिस्टर्ड कंपनियां हैं, जिनमें से महज छह लाख सालाना कर चुकाती हैं. सर! मैंने 20 तारीख (मार्च) को मिंट (अखबार) में बड़ी खबर पढ़ी कि बेंगलुरु में साढ़े चार एकड़ में बड़ा घर बन रहा है, 20 मिलियन डाॅलर में पेंटहाउस बन रहा है, 40,000 स्क्वायर फुट में, जिसमें हेलीपैड भी होगा. जिस व्यक्ति का यह घर है, वे देश से भागे हुए हैं. उन पर स्टेट बैंक का 6,203 करोड़ लोन है. सूद मिला कर कुल लोन 9000 करोड़ का है. यह जो घर बन रहा है, जिसमें हेलीपैड बन रहा है, उसका शेल कंपनियों से क्या रिश्ता है, सरकार कम-से-कम यह बताये. और, इस तरह की कंपनियां अब तक, कैसे देश में चलती रहेंगी? यह देश भी को बताये.’
अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि पूरे सदन, पक्ष-विपक्ष समेत हर दल के अग्रणी नेताअों ने एकमत से मेरी बात का समर्थन किया और खुद को इस मुद्दे से एसोसिएट (संबद्ध) किया.
(नोट : हमारे प्रिंट अखबार प्रभात खबर में राज्यसभा सांसद हरिवंश के इस विषय पर आलेख की कड़ी क्रमिक रूप से प्रकाशित हो रही है. हम इसे डिजिटल मीडिया के रिडर्स के लिए उनके लिए सहज स्वरूप में छोटे अंश में प्रतिदिन क्रमिक रूप से उपलब्ध करायेंगे. रविवार को आप उनके आलेख का इससे आगे का अंश पढ़ सकेंगे.)