भ्रष्टाचार व शेल कंपनियों पर हरिवंश के आलेख के अंश की यह दूसरी कड़ी पढ़ें
हरिवंश, राज्यसभा सांसद प्राय: खुद से पूछता हूं, संसद में अाज क्या किया या इस सत्र में क्या योगदान रहा? या यहां आये कुछेक वर्ष हुए, तो देश-समाज हित में क्या कर पाया? इरादा है कि कभी इस पर सार्वजनिक चर्चा करूंगा, पर उस दिन लगा कि सब कुछ भूल जाऊं, तब भी यह एक […]
हरिवंश, राज्यसभा सांसद
प्राय: खुद से पूछता हूं, संसद में अाज क्या किया या इस सत्र में क्या योगदान रहा? या यहां आये कुछेक वर्ष हुए, तो देश-समाज हित में क्या कर पाया? इरादा है कि कभी इस पर सार्वजनिक चर्चा करूंगा, पर उस दिन लगा कि सब कुछ भूल जाऊं, तब भी यह एक प्रसंग आत्मसंतोष देता रहेगा कि मुल्क को पिछले 70 वर्षों में दीमक की तरह, जिस चीज (भ्रष्टाचार) ने खोखला कर डाला है, उसकी तह में जानेवाला एक सवाल तो पूछा ही.
यक्ष-युधिष्ठिर संवाद या यम-नचिकेता संवाद तो बड़े संक्षिप्त हैं, पर जीवन का मर्म वहीं है. जीवन लंबा हो, यह जरूरी नहीं, छोटा भी हो, पर अर्थपूर्ण हो, वह प्रासंगिक है. भारतीय कालेधन के संदर्भ में यह संक्षिप्त प्रसंग (शेल कंपनियों का) वैसा ही है. इस सवाल के बाद, 21 अप्रैल का लिखा, भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (वित्त मंत्रालय) से मुझे एक पत्र मिला. ‘ रेस्पेक्टेड सर!
द मिनिस्ट्री इज इन रिसीप्ट आॅफ एक्सट्रैक्टस आॅफ मैटर रेज्ड बाइ योर गुडसेल्फ एट ‘जीरो आवर’ ऑन 22.3.2017 इन द राज्यसभा रिगार्डिंग ‘एलेज्ड कन्वरसन आॅफ ब्लैकमनी इनटू लीगल मनी बाइ शेल कंपनीज’. द मिनिस्ट्रीज इज इन द प्रोसेस आॅफ प्रिपेयरिंग द रिप्लाई टू द कंसर्न्स बाइ योर गुडसेल्फ एंड विल बी एवलेबेल टू रिप्लाई विदिन नेक्स्ट 15 डेज’ (यानी वित्त मंत्रालय को, आपने राज्यसभा में, शून्यकाल में 22-3-2017 को शेल कंपनियों के बारे में जो तथ्य बताये हैं – चिंता व्यक्त की है, उसके तथ्य मिले हैं. शेल कंपनियों पर काला धन को सफेद करने के आरोप का जवाब मंत्रालय तैयार करने की प्रक्रिया में है और 15 दिनों में इसका जवाब देने की स्थिति में होगा.’
इसके बाद वित्त मंत्रालय का कोई दूसरा पत्र इस संदर्भ में मिला, यह स्मृति में नहीं, पर वित्त मंत्रालय व आयकर की कार्रवाई से पूरे देश में सनसनी फैली. आर्थिक विशेषज्ञ जरूर जानते रहे होंगे कि शेल कंपनियों की कारगुजारियों पर हाथ डालने का साहस कोई नहीं करेगा, क्योंकि भ्रष्टाचार की दुनिया और भारतीय राजनीति में इस मुद्दे से भूचाल-भूकंप की तबाही की क्षमता है. पिछले 70 वर्षों में राजनीति-उद्योग और भ्रष्टाचार के गंठजोड़ की पूरी अर्थव्यवस्था इन्हीं शेल कंपनियों के राज में दफन है. 1991 में मुंबई विस्फोट के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने इसकी जांच के लिए वोरा कमेटी बनायी. तब एनएन वोरा भारत सरकार के गृह सचिव होते थे. भारत सरकार के जो श्रेष्ठ अफसर गिने गये, उनमें से एक. बाद में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने. उनकी चर्चित रिपोर्ट में नेता-उद्योगपति-अपराधी गठजोड़ को मुंबई विस्फोट से लेकर देश कि कई अन्य मुसीबतों की जड़ में पाया गया. रिपोर्ट दबा दी गयी. आज तक वह रिपोर्ट दफन ही है. दरअसल इस गठजोड़ की आर्थिक महाशक्ति का स्रोत या देश में कालाधन का स्रोत या उन्हें बाहर ले जाने का माध्यम तो ये शेल कंपनियां ही हैं.
यह भी याद रखिए, 1989 में एक अंतरराष्ट्रीय फोरम बना. विभिन्न सरकारों का मंच, ‘फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स’ (एफएटीएफ). 180 देशों का मंच, जिसमें भारत भी था. इस अंतरराष्ट्रीय संस्था ने नियम व प्रक्रिया बनवायी, ताकि ऐसी कंपनियों के आतंक-देशतोड़क काम को नियंत्रित किया जा सके, पर भारत में ऐसी कंपनियों का प्रभाव, आतंक और ताकत अबाध गति से बढ़ी. हालांकि दुनिया के संगठन को हमने इसे रोकने का आश्वासन दिया था. आतंकवादी फंडिंग का माध्यम भी ऐसी कंपनियां रही हैं. हाल के दशकों में भारत में जो महाघोटाले हुए, मसलन कोलगेट, 2-जी स्पेक्ट्रम, सीडब्लूजी (कॉमनवेल्थ खेल), इन सबका असल राज शेल कंपनियों में दफन हैं. इन शेल कंपनियों के पीछे कौन लोग हैं, यह राज खुलता नहीं? क्योंकि इनके मालिक तो मुखौटा होते हैं. इन शेल कंपनियों की जड़ें कहां हैं? मॉरीशस, लिचटेस्टाइन, कैमैन आइलैंड जैसे देश, जो कर चोरी या आर्थिक अपराध की भाषा में ‘टैक्स हेवेन’ (कर चुराने की दृष्टि से स्वर्ग) कहे जाते हैं, वहां से लेकर भारत के कोने-कोने में.
इन कंपनियों और इनकी कारगुजारियों की ताकत के आगे अब तक की राजनीति या व्यवस्था असहाय रही. पर, अप्रैल 2017 में इस केंद्र सरकार ने वह काम किया, जो अब तक नहीं हुआ. वित्त मंत्रालय का इस प्रसंग में दूसरा पत्र तो मुझे नहीं मिला, पर उनके काम में वह संदेश पूरे मुल्क को दिया, जिसकी सबसे अधिक जरूरत देश को थी, है और रहेगी. राज्यसभा में 22 मार्च को यह मुद्दा उठाया था. अप्रैल के पहले सप्ताह में देश-दुनिया ने चौंकानेवाली, ईमानदारों का उत्साह-ऊर्जा बढ़ानेवाली खबर पढ़ी. एक अप्रैल 2017 को प्रवर्त्तन निदेशालय (इडी) ने पूरे देश में अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई की. 17 राज्यों में 500 शेल कंपनियों के 110 ठिकानों पर छापे पड़े. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 31 मार्च तक कालाधन घोषित करने की छूट थी. अगले ही दिन इडी ने देशभर में छापेमारी की. पहली बार देश में इतनी बड़ी व कठोर कार्रवाई हुई. 800 अधिकारी-कर्मचारी छापेमारी में मैदान में थे. मुंबई में इडी की कार्रवाई में पता चला कि एक ऑपरेटर जगदीश प्रसाद पुरोहित 700 शेल कंपनियां चला रहा था. इनमें 20 फर्जी डायरेक्टर थे. पता चला कि इसी ऑपरेटर ने महाराष्ट्र के ताकतवर नेता, गरीबों के स्वघोषित रहनुमा छगन भुजबल का 46.7 करोड़ कालाधन सफेद किया. दिल्ली में 12 शेल कंपनियों पर दो मार्च को हुए सर्वे में पता चला कि उन्होंने नोटबंदी में 65 करोड़ ब्लैकमनी को ह्वाइट बनाया है.
एक तरफ शेल कंपनियों के खिलाफ इतने व्यापक पैमाने पर सख्त कार्रवाई, दूसरी अोर बड़े पैमाने पर टैक्स चोरों के खिलाफ कानूनी कदम. इसी दौर में 23,064 छापेमारी व सर्वे हुए. आय कर विभाग ने 17,525, कस्टम ने 2,509, केंद्रीय राजस्व ने 1,913 और सेवा कर ने 1,120 जगहों पर छापे मारे और सर्च किया. 1.37 लाख करोड़ की कर चोरी पकड़ में आयी. लगभग 4,000 लोग पकड़े गये. विस्तृत व आवश्यक कानूनी संशोधन कर 28 वर्षों बाद पहली बार बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई शुरू हुई. 245 बड़ी बेनामी डील पकड़ी गयी. पिछले 2-3 वर्षों में जिस संख्या में बड़े भ्रष्ट अफसरों पर छापेमारी व कार्रवाई हुई, वह रिकॉर्ड है. छह जुलाई के हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार एक शेल कंपनी का जो पता था, वहां 75 कंपनियों का रजिस्ट्रेशन था, पर एक भी इंप्लाई नहीं था. कोलकाता में 50 से अधिक कंपनियों का रजिस्ट्रेशन पता जहां था, वह खाली घर था.
मकान-मालिक से पूछताछ हुई, तो पता चला कि एक आदमी ने तीन वर्ष पहले घर किराये पर लिया और नोटबंदी (8 नवंबर 2016) के एक माह बाद दिसंबर 2016 में अचानक गायब हो गया. एक राजेश्वर एक्सपोर्ट के यहां छापे में पता चला कि हीरा निर्यात के नाम पर 1476 करोड़ की हेराफेरी हुई है. दिल्ली के एक चार्टर्ड एकाउंटेंट के बारहखंबा रोड स्थित कार्यालय में 200 शेल कंपनियों का रजिस्ट्रेशन था. एक शेल कंपनी ने कारपेट (कालीन) निर्यात किया था. अपनी ही एक ‘सिस्टर’ कंपनी को, पर निर्यात के पैसे कभी नहीं आये और कंपनी के मालिक ने भारतीय रिजर्व बैंक को निर्यात से आनेवाली कीमत (विदेशी मुद्रा) को राइट ऑफ करने का आवेदन दिया था.
ये छापे दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, चंडीगढ़, पटना, रांची, अहमदाबाद, भुवनेश्वर, बेंगलुरु समेत देश के 17 राज्यों में एक साथ, एक दिन डाले गये थे. इसमें चर्चित नोएडा के इंजीनियर (अखिलेश यादव और मायावती दोनों के प्रियपात्र रहे) यादव सिंह, छगन भुजबल, जगन रेड्डी वगैरह के बारे में सूचनाएं मिलीं. शेल कंपनियों पर पहली बड़ी कार्रवाई से निकली ये सूचनाएं हैं. उसके बाद से लगातार इन कंपनियों के व्यापक साम्राज्य, राजनीतिक ताकत और धनबल की सूचनाएं उजागर हो रही हैं.
आप यह भ्रम कतई न रखें कि 22 मार्च को यह मामला राज्यसभा में उठा, उसके बाद ही एक अप्रैल को देशव्यापी छापे पहली बार शेल कंपनियों पर पड़े. जो व्यवस्था को जानते हैं, उन्हें पता है कि इन या एेसे छापों की तैयारी कई महीनों पहले से चलती है. खबर तो एक अखबार में यह भी आयी थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय से शेल कंपनियों के कामकाज की मॉनिटरिंग पिछले एक वर्ष से उच्चतर स्तर पर हो रही थी. हिंदुस्तान टाइम्स की सूचनानुसार ये सारी सूचनाएं एसआइटी, आयकर, इडी, सेबी और इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स आॅफ इंडिया आपस में एक दूसरे से साझा (या शेयर) कर रहे थे. शेल कंपनियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसी बड़ी कार्रवाई, इस सुनियोजित तैयारी के साथ देश में पहली बार हो रही थी. एक सजग सांसद के तौर पर इस मुद्दे पर निगाह गयी और इसे देश की सबसे बड़ी संस्था के माध्यम से सबके सामने रख सका, इसका संतोष है.
एक जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आइसीएआइ (इंस्टीट्यूट आॅफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इन इंडिया) को संबोधित करते हुए बताया कि कर चुरानेवाली 37,000 शेल कंपनियों की पहचान हो चुकी है और तीन लाख से अधिक के रजिस्ट्रेशन रद्द किये जा चुके हैं. उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच जा कर सख्त लहजे और साफ भाषा में कहने का साहस किसी प्रधानमंत्री ने किया, अन्यथा राजनीति का अर्थ हो गया है, हर वर्ग के बीच जा कर चिकनी-चुपड़ी या खुशामदी बातें करना, ताकि वोट बैंक बने. आर्थिक अपराध रोकने का इतिहास जब भी लिखा जायेगा, तो यह सवाल उठेगा ही कि शेल कंपनियों के कामकाज को जानते हुए भी क्यों इनके खिलाफ कदम नहीं उठा? चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच प्रधानमंत्री ने उनसे ही पूछा कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के खिलाफ अनियमितताअों के 1400 से अधिक मामले कई वर्षों से पेंडिंग हैं, पर कार्रवाई महज 25 के खिलाफ ही क्यों हुई है?
इसके बाद चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच प्रधानमंत्री ने जो कहा, वह बड़ा अर्थपूर्ण था. कहा कि यह कड़वा सच है कि सिर्फ 32 लाख भारतीयों ने 10 लाख से अधिक आय की घोषणा की है, पर सच क्या है? करोड़ों भारतीय बड़े पदों पर हैं, प्रोफेशनल्स है. उस दिन प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि स्विस बैंक के जो ताजे आंकड़े आये हैं, वे बताते हैं कि भारतीयों का जो धन (कालाधन) बाहर रखा है, उसमें उल्लेखनीय कमी आयी है, जबकि वर्ष 2013 में विदेशों में जमा भारतीयों का यह कालाधन बहुत तेजी से बढ़ा था. दरअसल देश के आर्थिक कायाकल्प के लिए, ब्लैक मनी के खिलाफ कठोर जंग में जय-पराजय से ही इस देश की भावी नियति तय होनेवाली है.
आजाद भारत के इतिहास में पहली बार
कारपोरेट विभाग के भारत सरकार के मंत्रालय ने छह अक्तूबर को एक बयान जारी किया. इसके अनुसार सरकारी कार्रवाई से शेल कंपनियों के 17,000 करोड़ की राशि, जो नोट विमुद्रीकरण के बाद बैंकों के माध्यम से इधर-उधर की गयी, पकड़ी गयी है. ये लेनदेन 58,000 बैंक खातों के माध्यम से किये गये. यह राशि 35,000 अनरजिस्टर्ड कंपनियों की है. एक उदाहरण यह सामने आया कि एक बैंक खाते में 8 नवंबर 2016 को ‘निगेटिव बैलेंस’ था. नोटबंदी के बाद इसमें 2848 करोड़ पैसे जमा किये गये, निकाले गये. एक कंपनी के पास तो 2,134 बैंक एकाउंट मिले हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसकी जांच के लिए एक स्पेशल सेल बनाया, जिसमें राजस्व सचिव, कारपोरेट विभाग के सचिव थे. इस सेल की अब तक पांच बार बैठकें हो चुकी हैं. इस टीम ने सभी सूचनाएं इडी, आयकर, फाइनेंसियल इंटेलिजेंस यूनिट और रिजर्व बैंक को भी दी हैं, ताकि हर तरफ से चौतरफा सख्त कार्रवाई हो. सरकार ने शेल कंपनियों के तीन लाख डायरेक्टरों को अयोग्य घोषित कर दिया है. इनमें से 3000 अवैध घोषित डायरेक्टर्स 20 से अधिक कंपनियों में डायरेक्टर थे. अब डायरेक्टरों की पहचान को भी पैन-आधार से जोड़ने की तैयारी है.
साथ ही सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस को कहा गया है कि ऐसे फ्रॉड करनेवालोंं को कंपनी एक्ट की धारा 477 के तहत कार्रवाई करे, जिसमें 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है. सरकार ने एक उच्चस्तरीय कमेटी बना दी है, जो चार्टर्ड एकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरी और कॉस्ट एकाउंटैट्स की कार्यपद्धति को अनुशासित करने का सुझाव देगी. सरकार एक ‘नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग ऑथरिटी’ बना रही है, जो स्वतंत्र संस्था के रूप में वित्तीय स्टेटमेंट्स की जांच करेगी और वित्तीय प्रोफेशनल्स के गलत कामों पर अंकुश रखेगी. ये सभी सख्त कदम आजाद भारत के इतिहास में पहली बार उठाये जा रहे हैं. अगर 60-70 के दशक में यह हुआ होता, तो भारत में ब्लैक मनी का साम्राज्य इतना ताकतवर नहीं होता.
पिछले वर्षों की कार्रवाई से निजी लोगों द्वारा आयकर रिटर्न भरने की संख्या में 25.7 फीसदी (2016 में 2.22 करोड़, 2017 में 2.79 करोड़) वृद्धि हुई है. आयकर विभाग 12 लाख आयकर रिटर्न की जांच कर चुका है और 18 लाख संदिग्ध आयकर रिटर्न, जिनमें नोटबंदी के बाद पैसे जमा हुए हैं, जांच चल रही है. अब सरकार की जांच का फोकस एरिया है बेनामी संपत्ति. 523 शोकॉज नोटिस जारी किये जा चुके हैं. 475 ऐसी संपत्ति का ‘प्रोविजनल एटैचमेंट’ किया गया है. इसमें 1626 करोड़ इन्वॉल्व है. सबसे अधिक बेनामी संपत्ति की कार्रवाई जहां चल रही है, उनमें अहमदाबाद(81), जयपुर(62), चेन्नई(60), मु्ंबई(60), भोपाल(36) और दिल्ली (33) हैं.