विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा झारखंड बन रही है राज्य की सकारात्मक छवि

डॉ शिव शक्ति बक्सी टिप्पणीकार इसी वर्ष संपन्न ‘मोमेंटम झारखंड इन्वेस्टर्स समिट’ से झारखंड का नाम देश-विदेश में चर्चा में रहा है. दिल्ली में रहने वाले झारखंड के लोगों से अभी हाल ही में प्रदेश के सभी सांसदों, विधायकों के मिलने का कार्यक्रम संपन्न हुआ. कहीं-न-कहीं झारखंड इतने वर्षों से बनी अपनी छवि से बाहर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 15, 2017 7:17 AM
डॉ शिव शक्ति बक्सी
टिप्पणीकार
इसी वर्ष संपन्न ‘मोमेंटम झारखंड इन्वेस्टर्स समिट’ से झारखंड का नाम देश-विदेश में चर्चा में रहा है. दिल्ली में रहने वाले झारखंड के लोगों से अभी हाल ही में प्रदेश के सभी सांसदों, विधायकों के मिलने का कार्यक्रम संपन्न हुआ. कहीं-न-कहीं झारखंड इतने वर्षों से बनी अपनी छवि से बाहर निकलना चाह रहा है. प्रदेश की सीमाओं से निकल राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर झारखंड अपनी नयी पहचान स्थापित करने को आतुर दिखता है.
देश के विकास के मानचित्र पर अब गुजरात के बाद झारखंड दूसरा सबसे तेज विकास दर वाला प्रदेश बन चुका है. श्रम-सुधारों के मामले में तो यह देश में अव्वल है और ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में देश के प्रथम सात राज्यों में इसे गिना जा रहा है. वर्षों बाद झारखंड कुछ सकारात्मक उपलब्धियों के लिए जाना जा रहा है.
दशकों के संघर्ष के बाद जब झारखंड बना, तब शायद ही किसी को इसके देश के अग्रणी प्रदेशों में गिने जाने पर संदेह हुआ होगा, परंतु झारखंड पिछड़ता और राज्य में निराशा का माहौल बना.
प्रचुर खनिज एवं वन संपदा, मेहनतकश किसान-मजदूर, मेधावी युवा और विकास की ओर कदम बढ़ाने को तत्पर आम-जन के बाद भी विकास के मानदंडों पर झारखंड उत्साहजनक नतीजे हासिल करने में कामयाब नहीं हो पा रहा था. अस्थिर राजनैतिक माहौल, बनती-बिगड़ती सरकारें, आयाराम-गयाराम का खुला खेल, भ्रष्टाचार और नक्सल-माओवादी आतंक की खबरों ने झारखंड के भविष्य पर कई प्रश्नचिह्न खड़े कर दिये. अकूत संसाधनों की उपलब्धता के बाद भी राजनैतिक अस्थिरता के कारण प्रदेश का नेतृत्व कड़े फैसलों के जरिये चुस्त-दुरूस्त प्रशासन नहीं दे पा रहा था.
प्रदेश की राजनीति भ्रष्टाचार व सत्ता के बंदरबांट का माध्यम बनने लगी और राजनैतिक इच्छाशक्ति तथा दूरदृष्टि की भारी कमी दिखाई दे रही थी. विधानसभा चुनावों में बार-बार खंडित जनादेश से राजनैतिक नेतृत्व के हाथ बंधे रहते थे और प्रदेश के संसाधनों का दोहन हो रहा था. संसाधनों से धनी प्रदेश की जनता मजबूरी व मायूसी से झारखंड की पूंजी को लुटते-बिखरते देख रही थी.
इन सब का असर यह हुआ कि झारखंड के विकास के लिए कोई दीर्घकालिक ‘रोडमैप’ तैयार नहीं हो पाया. झारखंड के साथ ही बने अन्य प्रदेश जहां विकास की राह में कई सशक्त कदम उठा रहे थे, वहीं झारखंड पर राजनैतिक अस्थिरता व अनिश्चितता के काले बादल छाये रहे. असीम संभावनाओं से भरा प्रदेश पिछड़ता चला गया.
यह विडंबना ही है कि देश का लगभग 40 प्रतिशत खनिज जिस प्रदेश से प्राप्त होता हो, वहां की करीब 40 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-बसर करने पर मजबूर हो. प्रति व्यक्ति आय, शहरीकरण व स्वास्थ्य विकास के पैमानों पर प्रमुख मानदंड माने जाते हैं.
प्रति व्यक्ति आय के आंकड़ों में झारखंड देश में सबसे गरीब पांच प्रदेशों में गिना जाता है. देश में शहरीकरण का प्रतिशत 31.16 है, जबकि झारखंड में यह अब भी केवल 24.1 प्रतिशत है. राज्य के करीब 20 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. अधिकतर नीतियां खनिज संपदाओं का दोहन तथा प्रदेश की जनता को इनसे प्राप्त राजस्व व इन पर आधारित अन्य उद्योगों पर आधारित हैं. नतीतन कृषि की व्यापक उपेक्षा हुई और किसानों को सिंचाई के उपयुक्त साधन नहीं मुहैया कराये गये हैं.
यदि वैज्ञानिक तरीके से खेती को बढ़ाया गया होता, तो गांवों-जंगलों में बसने वाले लोग कोयला ढोने और वन-उपज बीनने को मजबूर नहीं होते. इन सब आंकड़ों में निरंतर सुधार तो हो रहा है, परंतु हमें यह याद रखना होगा कि झारखंड स्वतंत्रता के बाद से ही निरंतर उपेक्षा का शिकार होता रहा तथा इस क्षेत्र की नीतियां यहां के स्थानीय लोगों को ध्यान में रखकर कम ही बनायी गयी.
पूरे देश में विकास का माहौल बना है. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘टीम इंडिया’ को विकास की स्वस्थ स्पर्धा में शामिल होने के आह्वान से सभी प्रदेश विकास के विभिन्न मानदंडों पर अपनी छाप छोड़ने के लिए प्रयासरत हैं. झारखंड की जनता ने इस बार खंडित जनादेश नहीं दिया और उसके सुपरिणाम भी दिखने लगे हैं.
बिहार से अलग होने के बाद झारखंड को स्वयं को एक उभरते हुए प्रदेश के रूप में स्थापित करना था तथा देश-विदेश में ‘झारखंड-वासी’ के रूप में एक सशक्त पहचान बनानी थी, परंतु दुर्भाग्य से राजनैतिक अस्थिरता व घोटालों आदि से प्रदेश की उत्साहजनक छवि नहीं बन पायी. किसी भी प्रदेश को आगे बढ़ने के लिए एक सकारात्मक ‘ब्रांडिंग’ की जरूरत है, जो विकास की एक दीर्घकालिक संपूर्ण योजना, नेतृत्व की कड़ी मेहनत व दूरदर्शिता से ही संभव है.
लंबे समय तक निरंतर कठिन परिश्रम से ही सकारात्मक छवि निर्माण संभव है, जिसका लाभ आने वाले समय में पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्राप्त होता है. इसी के आधार पर ही झारखंड भी अपनी अस्मिता एवं पहचान को परिभाषित एवं सुदृढ़ कर सकता है. वर्तमान सरकार की उपलब्धियों से झारखंड की धमक अब देशभर में सुनाई पड़ने लगी है, लेकिन प्रदेश को अभी संकल्पबद्ध होकर एक लंबे दौर से गुजरना पड़ेगा तथा विकास की एक नयी इबारत लिखनी पड़ेगी.
औद्योगिक सेक्टर में वृद्धि
7.2 फीसदी की औसत वार्षिक दर से औद्योगिक सेक्टर में वृद्धि हुई झारखंड में साल 2011-12 से 2015-16 के दौरान.
83 हजार करोड़ रही इस सेक्टर में हुए आउटपुट की वैल्यू स्थिर मूल्यों पर साल 2011-12 से 2015-16 के दौरान.
8.5 फीसदी औसतन सालाना की दर वृद्धि हुई मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर (जो औद्योगिक सेक्टर में शामिल है और इसकी हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी तक है) में साल 2011-12 से 2015-16 के दौरान.
7.2 फीसदी की सालाना औसतन रूप से बढ़ोतरी हुई माइनिंग व क्वारीइंग यानी खनन सेक्टर में साल 2011-12 से 2015-16 के दौरान.
8 फीसदी सालाना औसतन दर से बढ़ोतरी हुई बिजली, गैस और जलापूर्ति क्षेत्र में साल 2011-12 से 2015-16 के दौरान.
शिक्षा की स्थिति
राज्य में कुल सरकारी स्कूलों की संख्या 40,437 है, जिनमें 25,791 प्राथमिक स्कूल, 12,674 प्राथमिक के साथ उच्च प्राथमिक स्कूल, 42 प्राथमिक के साथ उच्च प्राथमिक, सेकेंडरी व हायर सेकेंडरी स्कूल, 58 उच्च प्राथमिक, 369 उच्च प्राथमिक के साथ सेकेंडरी व हायर सेकेंडरी स्कूल, 1,373 प्राथमिक के साथ उच्च प्राथमिक व सेकेंडरी स्कूल और 130 उच्च प्राथमिक के साथ सेकेंडरी स्कूल हैं. 2,587 निजी स्कूल और 4,418 मदरसा हैं राज्य में.स्रोत : स्टेट रिपोर्ट कार्ड, डीआइएसइ 2015-16
सेकेंडरी व हायर सेकेंडरी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या
राज्य में सेकेंडरी स्कूल में नियमित शिक्षकों की संख्या 14,702 है, जबकि अनुबंध आधारित शिक्षकों की संख्या 1,892 है.
हायर सेकेंडरी स्कूल में नियमित शिक्षकों की संख्या 6,446 और अनुबंध आधारित शिक्षकों की संख्या 708 है.
स्रोत : सेकेंडरी एजुकेशन, फ्लैश स्टेटिस्टिक्स, डीआइएसइ 2015-16
ग्रामीण रोजगार
ग्रामीण विकास विभाग के तहत झारखंड स्टेट लाइवलिहुड प्राेमोशन सोसाइटी के तौर पर स्वायत्त सोसाइटी का गठन किया गया, जिसके जरिये राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार पैदा करने के लिए अवसर मुहैया कराने पर जोर दिया जा रहा है.
42 नये प्रखंड शामिल किये गये हैं झारखंड स्टेट लाइवलिहुड प्राेमोशन सोसाइटी के दायरे में साल 2016-17 के दौरान.
66,300 लाख रुपये आबंटित किये गये हैं साल 2016-17 के दौरान दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत, जिसे तीन साल की अवधि के लिए जारी किया गया है.
12,582 युवाओं को ट्रेनिंग मुहैया करायी जा चुकी है दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत, जिनमें से 3,374 युवाओं को रोजगार हासिल हो चुका है.
14,489 युवा जुड़े हुए हैं इस कौशल योजना से राज्यभर में मौजूदा समय में.
512 लाख मैनडेज यानी प्रति व्यक्ति कार्य दिवस के हिसाब से रोजगार पैदा हुआ बीते वित्तीय वर्ष के दौरान महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत राज्यभर में.
20.13 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया मनरेगा के तहत बीते वित्तीय वर्ष के दौरान.
166.98 रुपये औसत मजदूरी का भुगतान किया गया मनरेगा के तहत कार्य करने वाले मजूदरों को बीते वित्तीय वर्ष के दौरान, जबकि वर्ष 2011-12 के दौरान मजदूरी की यह दर 121.85 रुपये थी.
ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर
516 किलोमीटर घनत्व है झारखंड में ग्रामीण सड़कों का प्रत्येक 1,000 वर्ग किलोमीटर के दायरे में, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 806.6 है. इस गैप को पाटने के लिए ग्रामीण विकास विभाग ने विविध योजनाएं तैयार की हैं.
8,500 किलोमीटर सड़कों का निर्माण कर रहा है ग्रामीण विकास विभाग, जिनका निर्माण मौजूदा वित्तीय वर्ष के आखिर तक पूरा होने की उम्मीद है.
16,000 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों के निर्माण की योजना है ग्रामीण विकास विभाग की आगामी सालों के लिए.
716 किलोमीटर औसत घनत्व हो जायेगा झारखंड में सड़कों का प्रति 1,000 वर्ग किलोमीटर के दायरे में, उपरोक्त सड़कों का निर्माण पूरा होने के बाद आने वाले सालों के दौरान.
1,635 करोड़ रुपये आबंटित किये गये साल 2015-16 के दौरान प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत राज्यभर में, जिसके तहत 2,871 किमी 889 सड़कों का निर्माण किया गया.
284 पुलों का निर्माण शुरू किया गया साल 2015-16 के दौरान मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना के तहत राज्यभर में.
खाद्य सुरक्षा
80 फीसदी आबादी झारखंड में खाद्य सुरक्षा के दायरे में आती है.
60.2 फीसदी शहरी आबादी है खाद्य सुरक्षा के तहत.
86.4 फीसदी ग्रामीण जनसंख्या को लाया जा चुका है खाद्य सुरक्षा स्कीम के तहत राज्यभर में.
474 गोदाम हैं राज्य में और 158 निर्माणाधीन हैं.
2,40,750 टन कुल भंडारण क्षमता है इन गोदाम की.

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