कब और कैसे बनते हैं विवाह के योग….जानें
पं रामदेव पांडेय वर या वधु की जन्म कुंडली या प्रश्न कुंडली से विवाह की स्थिति ज्ञात होती है. लग्न और राशि से सप्तम स्थान या भाव को विवाह, दाम्पत्य और साझेदारी के तौर पर देखा जाता है. सप्तम भाव (घर) के राशि स्वामी सप्तमेश कहलाते हैं. सभी ग्रह अपने स्थान से सातवें घर को […]
पं रामदेव पांडेय
वर या वधु की जन्म कुंडली या प्रश्न कुंडली से विवाह की स्थिति ज्ञात होती है. लग्न और राशि से सप्तम स्थान या भाव को विवाह, दाम्पत्य और साझेदारी के तौर पर देखा जाता है. सप्तम भाव (घर) के राशि स्वामी सप्तमेश कहलाते हैं. सभी ग्रह अपने स्थान से सातवें घर को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं.
यदि कुंडली या प्रश्न कुंडली में लग्न से 10,11,3,5,7 स्थान पर चंद्र हो और गुरु से द्रष्ट हो, तो कन्या/लड़के का शीघ्र विवाह होगा. यदि लग्न में या वृषभ, तुला ,कर्क राशि में शुभ ग्रह हो या शुभ ग्रहों से द्रष्ट हो तो भी शीघ्र विवाह होगा. प्रश्न लग्न, यदि विषम राशि विषम नवांश में हो तो शीघ्र वर/वधु लाभ, सम राशि सम नवांश में हो, तो वर का देरी से विवाह होता है. कन्या की कुण्डली मे लग्न और राशि लग्न दोनो से विवेचना जरूरी है, पर लड़के की कुण्डली में लग्न से विवेचन किया जाता है.
कब टूटती है सगाई : प्रश्न लग्न से छठे-आठवें स्थान पर वृश्चिक राशि का चंद्र, हो तो कन्या आठवें वर्ष में विधवा हो सकती है. लग्न में पाप ग्रह हो और सप्तम में कर्क का मंगल, तुला लग्न का सूर्य, धनु लग्न का राहु, हो तो भी यही योग बनायेगा. कृष्ण पक्ष में प्रश्न लग्न में चंद्र सम राशि 2,4,6,8,10,12 का छठे-आठवें स्थान पर हो, अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तो सगाई व शादी टूट जाती है.
विवाह के शुभ योग : विवाह योग के लिए मुख्य कारक इस प्रकार हैं- सप्तम भाव का स्वामी खराब है या सही है, वह अपने भाव में बैठ कर या किसी अन्य स्थान पर बैठ कर अपने भाव को देख रहा है, तो शुभ है.
सप्तम भाव पर किसी अन्य पाप ग्रह की नजर नहीं है. कोई पाप ग्रह (सूर्य, मंगल, शनि, राहु) सप्तम भाव या सप्तम भाव के ग्रह से सप्तम भाव में बैठा नहीं है, यदि सप्तम भाव में सम राशि है, सप्तमेश और शुक्र सम राशि में है, सप्तमेश बली है. सप्तमेश की स्थिति के आगे के भाव में या सातवें भाव में कोई क्रूर ग्रह नहीं हो. बार-बार उड़ने, यात्रा करने, सिंगार करने का ,स्वप्न आता हो. अंगूठा और तर्जनी के नीचे चक्र, शंख का चिन्ह दिखाई दे.
तलाक होना या दाम्पत्य विखण्डित होना : सप्तमेश शुभ स्थान पर नहीं है. सप्तमेश छह, 8 या 12वें स्थान पर अस्त होकर बैठा है. सप्तमेश नीच राशि में है. सप्तमेश बारहवें भाव में है और लग्नेश या राशिपति सप्तम में बैठा हो. सप्तम में शुक्र और मंगल यदि पापग्रस्त हो.
चंद्र, शुक्र साथ हों, उनसे सप्तम में कर्क या शत्रु क्षेत्र का मंगल या शनि विराजमान हों. शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों. शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों. शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो. शुक्र बुध शनि तीनों ही नीच हों. पंचम में चंद्र हो. सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पाप ग्रह हों. सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो. हथेली मे काला तिल स्थित हो. अंगूठे के पोर पर क्रॉस का बड़ा चिन्ह हो.
क्यों होती है विवाह में देरी : सप्तम में गुरु और शुक्र दोनों के होने पर विवाह वादे चलते रहते हैं, मगर विवाह आधी उम्र में होता है. लग्न (1,4,7,8,12) भाव मंगल से युक्त हो, सप्तम में शनि हो तो कन्या/लड़के की रुचि शादी में नहीं होती है या मंगल शनि का प्रभाव सप्तम भाव या सप्तमेश पर हो. सप्तम में शनि और गुरु शादी देर से करवाते हैं. राशि या चंद्रमा से सप्तम में स्थित गुरु मंगल, शनि या नीचस्थ और अस्त ग्रह शादी देर से करवाता है.
विवाह में आ रही हो बाधा : किसी कन्या के विवाह में शामिल होकर तन, मन, धन से सहयोग करें. पीली हल्दी का जड़ गुरुवार को पीला कपड़ा में लपेटकर पहनें. शुक्रवार को चीनी, इत्र, फैशनेबल सामान 9 साल की कन्या को दें. शुक्रवार को चीनी पीपल पेड़ के नीचे रखें और कुछ मिनट बैठकर विवाह की कल्पना करें. गाय को फुला हुआ चना दाल और गुड़ अपने हाथ से गाय को खिलाएं, गरीब जनो को या शिव मंदिर में हल्दी और सुगंधित तेल का दान करें. मानसिक रूप से या उच्चारण कर ‘ओम श्रीम्’ का जप करें. मातंगी या कात्यायनी देवी का जप करें.