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मन का अहंकार तोड़ने का महापर्व महादीपम्

सुधा विजय sudhavijaywriter@gmail.com जोत जलाने की परंपरा को लगभग हर धर्म में मान्यता प्राप्त है. यहूदी मिनोराह जलाते हैं, ईसाई मोमबत्तियां, पारसी जन भी पवित्र ज्योति जलाते हैं और हिंदू धर्म में प्राय: हर घर में जोत जलाने की परंपरा है. दक्षिण भारत के तमिलनाडु में जोत का महापर्व सदियों से मनाया जाता रहा है, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 2, 2017 7:50 AM
सुधा विजय
sudhavijaywriter@gmail.com
जोत जलाने की परंपरा को लगभग हर धर्म में मान्यता प्राप्त है. यहूदी मिनोराह जलाते हैं, ईसाई मोमबत्तियां, पारसी जन भी पवित्र ज्योति जलाते हैं और हिंदू धर्म में प्राय: हर घर में जोत जलाने की परंपरा है. दक्षिण भारत के तमिलनाडु में जोत का महापर्व सदियों से मनाया जाता रहा है, जिसे कार्तिक दीपम्, अन्नामलै दीपम, सरवाल्यै दीपम् आदि कई नामों से जानते हैं.
हां, यह दीपावली और नवरात्रों जैसा ही मनाया जाता है. इसके बारे में इतिहास में मौजूद संगम साहित्य के काव्य संग्रह ‘आहानारु’ में उल्लेख मिलता है. तमिल भक्ति कवयित्री अवैयार ने भी अपनी काव्यों में इस महापर्व का जिक्र किया है. हालांकि यह भी सच है कि इस पर्व के बारे में भारत के दूसरे राज्यों और प्रांतों में ज्यादा जानकारी नहीं.
कार्तिगाई महादीपम् हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन जलाया जाता है, जो नवंबर या दिसंबर में हर साल आता है. यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि दक्षिण भारत व उत्तर भारत के पंचांग में करीब 15 दिनों का फर्क होता है. हिंदू कैलेंडर में अभी मार्गशीर्ष महीना है, जबकि तमिल कैलेंडर में अभी कार्तिक माह चल रहा है और इसके मुताबिक कार्तिक पूर्णिमा इस बार 2 दिसंबर (शनिवार) को है. जबकि उत्तर भारत में कार्तिक पूर्णिमा बीत चुका है.
मेरे मायके में मां इस दीप को सरवाल्ले दीपम् कहती थीं, जबकि ससुराल में अन्नामलै दीप कहते हैं, जो अन्नामलै पर्वत में दीप जलाने के बाद हम अपने घरों में जलाते हैं.
बुआ का परिवार जिनके कुल देव मुरगन हैं, वे तिरूकार्तिकेय बोलकर मनाते हैं, क्योंकि कार्तिकेय के छह स्वरूप हैं, इसलिए छह नक्षत्रों को विशेष महीनों के दिनों में धूमधाम से मनाया जाता है. दक्षिण भारत में जन्म लिये नक्षत्र को धूमधाम से मनाने की परंपरा है, विशेषत: भगवानों के (बर्थडे जैसा). पर्व को जानने के लिए प्रचलित कथाओं के बारे में जानना होगा.
प्रचलित कथाएं : बहुत समय पहले श्री विष्णु और श्री ब्रह्मदेव में कौन दोनों में बड़ा है, को लेकर विवाद हुआ. विष्णु का मानना था कि वे संसार के पालनकर्ता हैं, इसलिए वे सबसे बड़े हैं.
ब्रह्मदेव का तर्क था कि वे सृष्टि के रचयिता हैं, इसलिए वे सर्वश्रेष्ठ हैं. दोनों बहस कर रहे थे कि एक विशाल जलता हुआ जोत प्रकट हुआ. उसका न अंत पता चल रहा था न ही आदि. श्री विष्णु ने सुअर का रूप लेकर धरती खोद डाली, पर आदि न मिली. ब्रह्मदेव ने हंस का रूप लेकर आकाश छान मारा, पर जोत का अंत न दिखा. तभी दोनों को अपनी गलती का अहसास हुआ.
दोनों हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगे. तभी विशाल जोत से महादेव शिव प्रकट हुए. मान्यता है कि तब से हर साल कार्तिक पूर्णिमा को अनन्नामलै पर्वत पर शिव अपने सभी भक्त जनों को जोत रूप में दर्शन देते हैं. यह अन्नामलै पर्वत तमिलनाडु के तिरूवन्नामलै में स्थित है. जिस तरह उन्होंने विष्णु और ब्रह्मदेव का गर्व व अहम तोड़ा, उसी तरह हम भी दीप जला कर व उसके दर्शन कर स्वयं का गर्व भंग करते हैं.
अन्नामलै शिवलिंग की विशेषता : अन्नामलै पर्वत पर मौजूद शिवलिंग ब्रह्मानंद लिंग है, जो विश्व का सबसे बड़ा लिंग है. इसे अग्नि लिंग भी कहते हैं. शिव को पंचभूतों में एक अग्नि माना जाता है. वे हमें अंधकार और भ्रम से प्रकाश और ज्ञान की ओर ले जाते हैं. यह मंदिर हिमालय की तरह सिद्धपुरुषों को प्रिय है.
गिरिवलम : गिरि को संस्कृत में पर्वत और तमिल में वलम का अर्थ है परिक्रमा. मानना है कि पूरा ब्रह्मांड ही अरुणाचलम् में बसा है, इसलिए इसकी परिक्रमा से कल्याण होता है. गिरि परिक्रमा के दौरान पर्वत की चोटी पर नजर रखनी चाहिए. रास्ते में गरीबों और जानवरों के लिए फल, बिस्कुट रखने चाहिए.
महादीपम के दिन शाम छह बजे सात फीट लंबा एक विशाल मशाल जोत स्वरूप जलाया जाता है. करीब तीन हजार किलो घी का प्रयोग होता है. जोत देखने के लिए मंदिर में जनसैलाब उमड़ता है. मंदिर में दीप जलते ही लोग घरों में मिट्टी, पीतल के दीप जलाते हैं.
घरों को अल्पना से सजाते हैं. भाई-दूज पर्व की तरह बहनें दीये जलाकर भाइयों के लिए शुभ मंगल की कामना करती हैं. मानना है कि घरों में दीये जलाने से शांति और वैभव की प्राप्ति होती है. भगवान को प्रसाद में गुड़ से बने पकवान जैसे मूंगफली लड्डू, चीले, मुरमुरे के लड्डू, सभी दालों से बने अडै (एक तरह का डोसा) चढ़ाया जाता है.

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