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छह साल की कवायद की दास्तान, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला में कोई दोषी नहीं!

केंद्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम देने में हुए कथित घोटाले के सभी आरोपितों को बरी करने के फैसले के साथ इस चर्चित मुद्दे के पहले चरण का पटाक्षेप हो गया है. इसी मुद्दे के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को रद्द किया था और देश में तत्कालीन यूपीए सरकार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 22, 2017 5:57 AM
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केंद्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम देने में हुए कथित घोटाले के सभी आरोपितों को बरी करने के फैसले के साथ इस चर्चित मुद्दे के पहले चरण का पटाक्षेप हो गया है.

इसी मुद्दे के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को रद्द किया था और देश में तत्कालीन यूपीए सरकार की साख को करारा धक्का लगा था. अगला चरण अब ऊपरी अदालतों तथा सियासी बहसों में घटित होगा. इस मसले की पृष्ठभूमि और फैसले पर टिप्पणी के साथ पेश है यह विशेष पेज…

संदीप मानुधने

िवत्तीय िटप्पणीकार

प्रकृति ने ब्रह्मांड में विद्युत-चुंबकीय तरंगों का जाल बिछाया हुआ है. राष्ट्रों की सीमाएं खींच देनेवाले मानव इन्हें न तो कैद कर सकते हैं, न ही बदल सकते हैं. हां, संप्रभु सरकारें इन पर ‘सार्वजनिक स्वामित्व’ का हक जाता, इन्हें ‘राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन’ बता, टुकड़ों में अलग-अलग कंपनियों को बेच सकती हैं. भारत में दूरसंचार में तेजी से क्रांति सन 2000 से आयी, और 2007 आते-आते ये एक बड़ा और लाभदायक व्यवसाय बन गया था.

तत्कालीन व तथाकथित 2जी स्कैम उस समय के मंत्री द्वारा लिये निर्णयों से उपजा सबसे बड़ा मुद्दा रहा, जिसने अंततः यूपीए सरकार की बलि 2014 में ले ली थी. 2017 में पहले नाटकीय पटाक्षेप में सारे के सारे ‘आरोपी’ पूर्णतः निर्दोष करार देकर बरी कर दिये गये- इनमें पूर्व मंत्री, राजनेता, कॉरपोरेट और सरकारी अधिकारी सब हैं!

टूजी स्पेक्ट्रम- जो प्रकृति से ही बैंड्स में सीमित होता है- सीमित मात्रा में ही बेचा जा सकता है.

जैसे-जैसे उपभोक्ताओं की संख्या बेतहाशा बढ़ती है, तब इस सीमित संसाधन को अलग-अलग बैंड्स में बेचा जाता है. और जब कभी राष्ट्रीय संसाधनों को बेचने की बात आती है, तो ‘रूल ऑफ लॉ’ वाले देशों में (अर्थात भारत जैसे) तीन नियमों का पालन आवश्यक रूप से होता है- (1) एक प्रक्रिया हो, जो लिखित रूप में हो, और विधिसम्मत हो, (2) प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो, और सबको पता हो, (3) सरकार उस संसाधन पर बढ़िया मुनाफा कमाये और सस्ते में न बेच डाले.

अब 2017 में आये सीबीआई कोर्ट के फैसले में जब सारे निर्दोष सिद्ध हुए हैं (हालांकि सीबीआई का कहना है कि बड़ी अदालत में अपील की जायेगी), तो चार बड़े मुद्दे उभरते हैं 1 राजनीतिक प्रक्रिया का सरकारी संसाधन आवंटन पर प्रभाव

ए राजा (डीमके पार्टी, तमिलनाडु) कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार में थे, जब ये तथाकथित घोटाला हुआ था, जिसमें 2008 जनवरी में 122 लाइसेंस 2001 की कीमतों पर अलग-अलग कंपनियों की दिये गये थे. ये पूरी प्रक्रिया न केवल कीमतों के लिहाज से गलत थी (जैसे कैग ने 2010 में विस्तार से बताया था), वरन प्रक्रियात्मक रूप से एक भद्दे मजाक से ज्यादा कुछ नहीं थी, जिसमें आवेदन की तारीख से लेकर आवेदन के तरीके तक सब मनमर्जी से हुआ था.

ये भारत की राजनीतिक शैली पर एक तीखी टिप्पणी थी, कि कैसे प्रधानमंत्री को ‘बाईपास’ कर मंत्री महोदय इतना बड़ा आवंटन कर बैठे. 1947 के बाद से ही, भारत में राजनेताओं की विवेकाधीन शक्तियां बेहद खतरनाक सिद्ध हुई हैं! इस मामले ने तो मानो इस पर मुहर ही लगा दी. जिन सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी थी मंत्रीजी को प्रक्रिया बताना, वे भी अक्षम सिद्ध हुए.

2 न्याय प्रक्रिया की विसंगतियां

ये भ्रष्टाचार था या नहीं, जिसमें तथाकथित रूप से मंत्री, अधिकारी, कॉरपोरेट सब शामिल थे, ये तो एक अलग मुकदमा चला, किंतु उच्चतम न्यायालय ने एक अलग जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए, अपने 2012 के निर्णय में सभी 122 लाइसेंसों का आवंटन रद्द कर दिया था- तो प्रक्रिया गलत थी, ये सिद्ध है.

किंतु सीबीआई अदालत ने 2017 में सभी आरोपियों को बरी किया और न्यायाधीश महोदय की बेहद तीखी टिप्पणियों पर गौर करें, तो पायेंगे कि पूरी की पूरी प्रॉसिक्यूशन प्रक्रिया ही विफल हो गयी! उन्होनें आदेश में लिखा है कि सरकारी विभाग के गवाह बेहद कम बोले या छुपा गये, निजी कंपनियों के गवाह भी ऐसा ही करते रहे, प्रॉसिक्यूशन की धार लगातार कमजोर पड़ती गयी, स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर दस्तावेजों पर बिना हस्ताक्षर कर न्यायालय में जमा कराते चले गये, और न तो कोई इन्वेस्टिगेटर और न ही कोई प्रॉसिक्यूटर कोर्ट में किसी भी बात की जिम्मेदारी लेने को तैयार दिखा.

तो फिर ये पूरा केस था क्या? हमारी न्याय प्रक्रिया की ढेर सारी कमियों में देरी और दबावों के चक्रव्यूह में सत्य की बलि की दास्तां न्यायाधीश महोदय का निर्णय साफ इंगित करता दिखता है. कोई भी सत्य के लिए खड़ा होता उन्हें नहीं दिखा.

3 कॉरपोरेट और राजनीति का गठजोड़

इस रिश्ते की शुरुआत होती कहां से है, और यह समाप्त कहां होता है, ये एक अंतहीन चक्रव्यूह को समझने बराबर है. चुनावों में फंडिंग की जरूरत से शुरू होनेवाले इन रिश्तों में गहराई आती है, जब संसाधनों का आवंटन शुरू होता है. नुकसान उठाता है देश, और देश का सरकारी खजाना.

अनेकों बार सुप्रीम कोर्ट, विधि आयोग, और चुनाव आयोग के द्वारा चेतावनियां देने के बाद भी राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता शून्य बराबर है. जब सुधार की गुंजाइश ही न हो, तो कॉरपोरेट अपने धंधे बचाने पर ध्यान देने लगते हैं, नैतिकता के सुंदर पाठों पर नहीं. यही राजनेताओं को भी सुहाता है. उस वक्त के अखबारों में लॉबी करनेवालों, और कॉरपोरेट के शीर्षस्थ धुरंधरों की पोल रोज खुलती थी, हां अलग बात है कि उनमें से कई इस मुकदमे में नामित ही नहीं किये गये!

4 जनता का रुख और भ्रम का जाल

सत्य क्या है? कौन दोषी है? क्या वाकई नुकसान हुआ था? लाखों करोड़ों के नुकसान का दावा कैग ने किया, और सीबीआई ने केवल रुपये 30,000 करोड़ का? चुनावों में आरोप-प्रत्यारोप जो लगे, उनमें फिर सत्य कौन था?

क्या गठबंधन की राजनीति केवल बुरी ही होती है? क्या शुचिता और मर्यादा अलग-अलग स्तरों पर लोकतंत्र में अपने-अपने ढंग से इस्तेमाल करने के यंत्र हैं? इन तथाकथित घोटालों से क्या व्यवस्थाएं सुधरी हैं, और संस्थाओं को और मजबूत किया गया है? लोग अवश्य कहेंगे कि ऑनलाइन बोली से भ्रष्टाचार रुका है.

इतने गंभीर और बड़े मामलों में न्यायिक और खोज प्रक्रियाओं के अंजाम देखकर ये विश्वास पुनः प्रबल हो उठता है कि देश में पुलिस, प्रशासन और न्यायिक सुधार, और साथ ही साथ राजनीतिक भ्रष्टाचार को जड़ से बदलने हेतु बड़े सुधार लाने का समय अब आ गया है.

2जी स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रमुख घटनाएं

16 मई, 2007

ए राजा को दूसरी बार केंद्र सरकार में दूरसंचार मंत्री पद पर नियुक्ति मिली.

अगस्त, 2007

दूरसंचार विभाग द्वारा यूएएस लाइसेंस के साथ 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया शुरू की गयी, इसके लिए 1 अक्तूबर, 2007 आवेदन की आखिरी तिथि तय की गयी.

25 अक्तूबर, 2007

केंद्र सरकार ने मोबाइल सेवाओं के लिए टूजी स्पेक्ट्रम की नीलामी की संभावनाओं को खारिज कर दिया.

22 नवंबर, 2007

वित्त मंत्रालय ने लाइसेंस आवंटन प्रक्रिया पर चिंता जाहिर करते हुए दूरसंचार विभाग (डीओटी) को पत्र लिखा.

10 जनवरी, 2008

दूरसंचार विभाग ने ‘पहले आओ-पहले पाओ’ की रीति पर लाइसेंस जारी करने का निर्णय लिया और कट-ऑफ की तिथि 25 सितंबर तय की गयी.

सितंबर-अक्तूबर, 2008

दूरसंचार कंपनियों को स्पेक्ट्रम लाइसेंस जारी कर दिये गये.

15 नवंबर, 2008

केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में लाइसेंस आवंटन की खामियां पायीं और दूरसंचार मंत्रालय के कुछ अधिकारियों पर कार्रवाई की अनुशंसा की.

4 मई, 2009

एक एनजीओ ‘टेलीकॉम वॉचडॉग’ ने सीवीसी को लूप टेलीकॉम के लिए टूजी आवंटन में अनियमितताओं को लेकर शिकायत की.

21 अक्तूबर, 2009

सीबीआई ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच के लिए मामला दर्ज किया.

22 अक्तूबर, 2009

मामले के सिलसिले में सीबीआई ने दूरसंचार विभाग के कार्यालयों पर

छापेमारी की.

नवंबर, 2009

सीबीआई ने नीरा राडिया के बारे में जानकारी और 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस के लिए मध्यस्थों से संबंधित रिकॉर्ड के लिए आयकर महानिदेशालय से मदद मांगी.

20 नवंबर, 2009

आईटी विभाग द्वारा गयी जानकारी में दूरसंचार विभाग की नीतियों को गैर कानूनी तरीके से प्रभावित करने में कॉरपोरेट खिलाड़ियों की भूमिका सामने आयी. बताया गया कि राडिया से राजा सीधे संपर्क में थे.

31 मार्च, 2010

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता का अभाव रहा.

17 अक्तूबर, 2010

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने दूसरी पीढ़ी के मोबाइल फोन का लाइसेंस देने में दूरसंचार विभाग को कई नीतियों के उल्लंघन का दोषी पाया.

10 नवंबर, 2010

कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम की रिपोर्ट सरकारी को सौंपी, जिसमें घोटाले के कारण सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान की जानकारी दी गयी.

नवंबर, 2010

दूरसंचार मंत्री ए राजा को हटाने की मांग को लेकर विपक्ष ने संसद की कार्यवाही ठप कर दी. इसके बाद 14 नवंबर, 2010 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा ने इस्तीफा दे दिया.

15 नवंबर, 2010

मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. इसके बाद भी मामले की जांच के लिए जेपीसी गठित करने की मांग को लेकर संसद में गतिरोध जारी रहा.

13 दिसंबर, 2010

दूरसंचार विभाग ने उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश शिवराज वी पाटिल समिति को स्पेक्ट्रम आवंटन के नियमों एवं नीतियों को देखने के लिए अधिसूचित किया. इसे दूरसंचार मंत्री को रिपोर्ट सौंपने को कहा गया.

24 और 25 दिसंबर, 2010

सीबीआई ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा से टूजी मामले में विस्तृत पूछताछ की.

31 जनवरी, 2011

राजा से सीबीआई ने तीसरी बार फिर पूछताछ की. एक सदस्यीय पाटिल समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी.

दो फरवरी, 2011

2जी स्पेक्ट्रम मामले में राजा, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के पूर्व निजी सचिव आरके चंदोलिया को सीबीआई ने गिरफ्तार किया.

2जी घोटाला

वर्ष 2010 में तत्कालीन भारत के महालेखाकार और नियंत्रक ने अपनी एक रिपोर्ट में वर्ष 2008 में हुए दूरसंचार स्पेक्ट्रम आवंटन पर कई सवाल खड़े किये थे. स्पेक्ट्रम आवंटन में हुई कथित धांधली के आरोपों के बाद भारतीय राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा दौर शुरू हुआ कि यूपीए सरकार तमाम सवालों के घेरे में आ गयी थी. दरअसल, कंपनियों को नीलामी के बजाय ‘पहले आओ और पहले पाओ’ के आधार पर लाइसेंस आवंटित कर दिये गये.

इस प्रक्रिया में हुए आर्थिक नुकसान का आकलन करते हुए महालेखाकार और नियंत्रक ने माना कि इससे सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपयों की आर्थिक क्षति हुई. दलील दी गयी कि अगर लाइसेंस आवंटन उचित नीलामी के आधार पर होते, तो सरकारी खजाने को कम-से-कम एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये और प्राप्त होते. आंकड़ों पर सत्ता और विपक्ष की बीच उत्पन्न हुई मतभिन्नता बड़े राजनीतिक विवाद का कारण बन गयी. यह मुद्दा याचिका के रूप में सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया.

आरोप

2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में धांधली के आरोपों की आंच प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंची और तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम पर भी कई सवाल उछाले गये. प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई ने इस मामले में ए राजा समेत कई बड़ी हस्तियों और कंपनियों पर जांच का शिकंजा कसा.

पूर्व दूर संचार मंत्री पर आरोप लगा कि वर्ष 2001 की दरों पर उन्होंने स्पेक्ट्रम आवंटन का फैसला किया और इस दौरान उनकी पसंदीदा कंपनियों को तरजीह दी गयी. हाल में लगभग 15 महीनों तक जेल में रहने के बाद ए राजा को जमानत दे दी गयी. इस मामले में एम करुणानिधि की बेटी कनिमोड़ी को भी जेल काटनी पड़ी थी. हालांकि, बाद में उन्हें भी जमानत मिल गयी. टूजी घोटाले से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा.

2जी घोटाले के प्रमुख आरोपी थे

2जी स्पेक्ट्रम घोटाला को भारत में हुए अब तक के घोटाले के इतिहास में सबसे बड़ा समझा जाता रहा है. भारत के महालेखाकार और नियंत्रक के अनुसार, यूपीए की सरकार में दूरसंचार मंत्री रहते ए राजा के कारण देश के खजाने को बड़ी रकम का नुकसान उठाना पड़ा था. इस घोटाले में ए राजा के अलावा राजनीति और उद्योग जगत की कई हस्तियों को इस मामले से जुड़े विभिन्न आरोपों में हिरासत में लिया गया और उन पर मुकदमा किया गया था. उनमें शामिल कुछ प्रमुख लोग इस प्रकार हैं.

ए राजा

पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री रहे चुके और द्रमुक नेता ए राजा दो फरवरी, 2011 से इस मामले में जेल में बंद हैं. इन पर आरोप था कि इन्होंने नियम-कायदों को दरकिनार करते हुए 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की. सीबीआई के अनुसार, वर्ष 2008 में इन्होंने 2001 में तय की गयी दरों पर स्पेक्ट्रम बेच दिया. इसके अलावा, राजा पर यह भी आरोप थे कि उन्होंने अपनी पसंदीदा कंपनियों को पैसे लेकर गलत ढंग से स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया.

कनिमोझी

द्रमुक सुप्रीमो करुणानिधि की बेटी कनिमोझी पर राजा के साथ मिलकर काम करने का आरोप था. इन पर आरोप था कि इन्होंने अपने टीवी चैनल के लिए 200 करोड़ रुपयों की रिश्वत डीबी रियल्टी के मालिक शाहिद बलवा से ली, उसके बदले में ए राजा ने उनकी कंपनियों को गलत तरीके से स्पेक्ट्रम दिलाया.

सिद्धार्थ बेहुरा

ए राजा जब केंद्रीय दूरसंचार मंत्री थे, तब सिद्धार्थ बेहुरा दूरसंचार सचिव थे. सीबीआई का आरोप था कि इन्होंने ए राजा के साथ मिलकर इस घोटाले में काम किया और उनकी मदद की. बेहुरा भी ए राजा के साथ ही दो फरवरी, 2011 को अरेस्ट किये गये थे.

आरके चंदोलिया

ए राजा के पूर्व निजी सचिव रह चुके आरके चंदोलिया पर आरोप था कि इन्होंने ए राजा के साथ मिलकर कुछ ऐसी निजी कंपनियों को लाभ दिलाने के लिए षड्यंत्र किया, जो इस लायक नहीं थीं. चंदोलिया भी बेहुरा और राजा के साथ ही दो फरवरी, 2011 को गिरफ्तार हुए थे.

शाहिद बलवा

स्वॉन टेलीकॉम के महाप्रबंधक रहे शाहिद बलवा, ए राजा के कार्यों से फायदा उठानेवालों में प्रमुख माने जाते हैं. सीबीआई का आरोप था कि बलवा की कंपनियों को उचित से कहीं कम दामों पर स्पेक्ट्रम आवंटित हुआ. बलवा आठ फरवरी, 2011 से जेल में बंद हैं.

संजय चंद्रा

यूनिटेक के पूर्व महाप्रबंधक की कंपनी भी इस घोटाले में शामिल रही है. सीबीआई तो यहां तक कहती रही है कि यह सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक है. चंद्रा पर आरोप थे कि स्पेक्ट्रम लेने के बाद उनकी कंपनी ने स्पेक्ट्रम को विदेशी कंपनियों को ऊंचे दामों पर बेच दिया और व्यापक मुनाफा कमाया. चंद्रा 20 अप्रैल, 2011 से जेल में हैं.

विनोद गोयनका

स्वॉन टेलीकॉम के निदेशक पर सीबीआई ने आरोप लगाया कि उन्होंने अपने साझीदार शाहिद बलवा के साथ मिलकर आपराधिक षड्यंत्र में हिस्सा लिया.

गौतम दोषी, सुरेंद्र पिपारा और हरी नायर

अनिल अंबानी समूह की कंपनियों के यह तीन शीर्ष अधिकारी थे. इन तीनों पर भी इस षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप है. इसके अलावा, सीबीआई ने इन पर धोखाधड़ी को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया था. यह तीनों अधिकारी भी 20 अप्रैल, 2011 से जेल में बंद हैं.

राजीव अग्रवाल

कुसगांव फ्रूट्स और वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक पर आरोप है कि उनकी कंपनी से 200 करोड़ रुपये रिश्वत के लिए करीम मोरानी की कंपनी सिनेयुग को दिये गये, जो आखिरकार करुणानिधि की बेटी कनिमोझी तक पहुंच गये. राजीव अग्रवाल को 29 मई, 2011 को जेल में बंद किया गया था.

आसिफ बलवा

शाहिद बलवा के भाई कुसगांव फ्रूट्स और वेजीटेबल प्राइवेट लिमिटेड में 50 फीसदी के हिस्सेदार थे और इस जुर्म में भी साझीदार. राजीव अग्रवाल के साथ आसिफ बलवा को भी 29 मई, 2011 को जेल भेज दिया गया था.

करीम मोरानी

सिनेयुग मीडिया और एंटरटेनमेंट के निदेशक पर आरोप है कि उन्होंने कुसगांव फ्रूट्स और वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड से 212 करोड़ रुपये लिए और कनिमोझी को रिश्वत दी, ताकि शाहीद बलवा की कंपनियों को गलत ढंग से स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया जाये. मोरानी मार्च 30 से जेल में बंद है.

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