मैं पिता के पास से आया हूं

फादर आर्मस्ट्रांग एडिसन एसजे, प्रिंसिपल, सेंट माइकल्स हाइ स्कूल, पटना ब्रह्मांड के उस छोर से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई और सारी पृथ्वी पर छा गयी, उसके कण-कण में समाहित हो गयी. 25 दिसंबर को पूरे विश्व में खीस्तीय, प्रभु यीशु खीस्त का जन्मोत्सव मनाते हैं. जब हम उनका जन्मोत्सव मनाते हैं तब हमारे मन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 23, 2017 8:15 AM
फादर आर्मस्ट्रांग एडिसन एसजे, प्रिंसिपल, सेंट माइकल्स हाइ स्कूल, पटना
ब्रह्मांड के उस छोर से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई और सारी पृथ्वी पर छा गयी, उसके कण-कण में समाहित हो गयी. 25 दिसंबर को पूरे विश्व में खीस्तीय, प्रभु यीशु खीस्त का जन्मोत्सव मनाते हैं. जब हम उनका जन्मोत्सव मनाते हैं तब हमारे मन में यह प्रश्न उठता है कि क्यों स्वयं ईश्वर ने पृथ्वी पर जन्म लिया? क्या कारण था कि ईश्वर हमारे समान मनुष्य बन गये?
प्राचीन काल में लोगों का विश्वास था और विशेष कर यहुदियों का कि ईश्वर ऊपर आसमान या स्वर्ग में रहते हैं. बाइबल के उत्पत्ति-ग्रंथ में लिखा गया है कि परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की.
सर्वप्रथम उसने कहा- ‘‘प्रकाश हो जाये!’’ और प्रकाश हो गया. वह कौन-सा प्रकाश था, जो परमेश्वर से पृथक होकर धरती पर अवतरित हुआ? इसका उत्तर हमें संत जॉन की पुस्तक से मिलता है, जिसमें लिखा है कि आरंभ में शब्द था. यह शब्द पृथ्वी पर परमेश्वर द्वारा ज्योति रूप में भेजा गया था. उसी ज्योति ने मानव शरीर का रूप धरण किया और हमारे बीच रहा. शरीरधारी वही ईश्वरीय जयोतिरूपेण थे प्रभु ईसा मसीह.
इस प्रकार, हम पाते हैं कि प्रभु ईसा मसीह कोई मनुष्य नहीं थे, परंतु मनुष्य रूप में ईश्वरीय ज्योति थे. बाइबल में उन्होंने स्वयं बार-बार यह उद्घाटित किया है- ‘‘मैं पिता के पास से आया हूं.’’ हम उन्हें ईश्वर के पुत्र (Son of God) के रूप में देखते और पाते हैं.
बाइबल के दो मुख्य खंड हैं- पुराना व्यवस्थान (नियम) तथा नया व्यवस्थान (नियम). ईसा मसीह के विषय में आश्चर्यजनक एवं अद्भुत बात यह है कि पुराने व्यवस्थान में उनके आगमन, कार्यकलापों तथा घटनाओं के स्पष्ट संकेत मिलते हैं. अनेक भविष्यवक्ताओं ने उनके विषय में भविष्यवाणियां कीं. इस्रायली उन भविष्यवाणियों के कारण इस प्रतीक्षा में थे कि एक मसीहा (उद्धारकर्ता) आयेगा और उन्हें सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलायेगा. वे सभी भविष्यवाणियां ईसा मसीह के जीवन से सत्य प्रमाणित हुईं. इस्रायली जिस मसीहा की प्रतीक्षा कर रहे थे, वह वही थे.
साधारण मनुष्यों का जीवन एक समतल पथ के सदृश होता है, जिसमें कोई उतार-चढ़ाव, कोई उथल-पुथल नहीं होता. साधारण मनुष्य पशुवत् जन्म लेता है, खाता-पीता है, संतान उत्पन्न करता और मर जाता है. असाधारण लोगों का जीवन उथल-पुथल से परिपूर्ण होता है.
ऐसे लोग क्रांति के बीज बोते हैं और अमरत्व को प्राप्त हो जाते हैं. आरंभ में देव स्वरूप ऐसे मनुष्यों का विरोध किया जाता है, परंतु अंतत: मानव-समाज उनके समक्ष नतमस्तक हो जाता है. संसार का इतिहास इसका साक्ष्य है.
खीस्तीयों का यह विश्वास है कि पिता परमेश्वर ने अपने प्रिय पुत्र को दिव्य पुरुष रूप में संसार का उद्धार करने हेतु भेज दिया था. प्रभु ईसा मसीह ने मानव-जगत को जो मानवीय सिद्धांत दिये, वे विलक्षण हैं.
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. समाज में अपने को स्थापित करने तथा विलासमय जीवन जीने हेतु वह स्वार्थ में लिप्त होकर असामाजिक कार्य करता है. मनुष्य लोभ, मोह, काम, क्रोध, ईर्ष्या और अहंकार द्वारा चालित होता है. ईसा मसीह ने इस संसार में आकर क्षमा और प्रेम का ऐसा सिद्धांत स्थापित कर दिया, जिससे कि समाज और मनुष्य के आपसी बिगड़े हुए संबंधों के कारण इस संसार का नाश कभी नहीं होगा.
जहां क्षमा है, वहां लड़ाई-झगड़े नहीं, युद्ध नहीं. जहां प्रेम है, वहां पृथ्वी पर स्वर्ग स्थापित होगा. और, उनका प्रेम भी विलक्षण है. मित्र से, अपनों से तो सभी प्रेम करते हैं, परंतु शत्रु से भला कौन प्रेम करेगा! उन्होंने हमें शत्रु से भी प्रेम करना सिखलाया, जिससे कि पृथ्वी पर शैतान की शक्ति का अंत हो जाये और एक शांतिमय, स्वर्ग स्वरूप मानव समाज की स्थापना हो सके. इसीलिए, जब क्रूस पर वे अपने प्राण का उत्सर्ग कर रहे थे, तो उन्होंने अपने हत्यारों के विषय में कहा था कि हे पिता! इन्हें क्षमा कर दें, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं.
वर्त्तमान अवसरवादी, सवार्थमय, चाटुकारिता युक्त, ईर्ष्या, द्वेष एवं अहंकार से लिप्त मानव-समाज को ईसा मसीह के दिव्य वचनों की आवश्यकता है. संसार को आवश्यकता है क्षमा, दया, प्रेम और शांति की. प्रभु यीशु के जीवन तथा वचनों का अनुसरण करके आपसी झगड़ों, तनावों से मुक्ति पायी जा सकती है.
युद्ध के मुंह पर खड़े मनाव-समाज को उनके अलौकिक संदेश अवश्य सुरक्षित रख सकते हैं. ‘‘मार्ग, जीवन और सत्य मैं ही हूं.’’ आत्मविश्वास से ओतप्रोत उनका यह कथन खीस्तीय जीवन में आशा की नयी किरण जगाता है.
अत: क्रिसमस त्योहार इस बात का प्रमाण देता है कि ईश्वर हमसे दूर नहीं, बल्कि ईश्वर हमारे बीच हैं, हममें निवास करते हैं. वे हमारे सुख एवं दुख में हमारे साथ हैं. खीस्त जयंती का पर्व हमारे सामने यह प्रश्न रखता है कि क्या हम इस ईश्वर को जो हमारे बीच निवास करता है, अपने गरीब, लाचार, वंचित, शोषित भाई-बहनों में देख पाते हैं या नहीं?
क्योंकि आज भी वह इन लोगों के साथ संघर्षरत हैं, इस संसार में ईश्वर के राज्य की स्थापना के लिए जहां शांति, प्रेम, क्षमा, दया और न्याय विराजती है.
आइए! हम खीस्त-जयंती के अवसर पर क्षमा, दया, प्रेम, सौहार्द एवं शांति का संकल्प लें.(फादर आर्मस्ट्रांग कैथोलिक पुजारी भी हैं और पटना प्रांत के सोसाइटी ऑफ जीसस से जुड़े हैं. उन्होंने पुणे से एमए और यूएसए से एमएड की शिक्षा ली है.)

Next Article

Exit mobile version