2017: इस वर्ष जो हमसे जुदा हो गये
वर्ष 2017 का आज आखिरी दिन है. कल हम नये वर्ष में प्रवेश कर जायेंगे. लेकिन, इस दौरान अनेक लोग हमारे बीच नहीं रहे. कला, विज्ञान, फिल्म, राजनीति और प्रशासन समेत कई क्षेत्रों के दिग्गज इस वर्ष हमें अलविदा कह गये. उन सभी लोगों के योगदान ने हमारी जिंदगी के विविध आयामों को अनेक तरीकों […]
वर्ष 2017 का आज आखिरी दिन है. कल हम नये वर्ष में प्रवेश कर जायेंगे. लेकिन, इस दौरान अनेक लोग हमारे बीच नहीं रहे. कला, विज्ञान, फिल्म, राजनीति और प्रशासन समेत कई क्षेत्रों के दिग्गज इस वर्ष हमें अलविदा कह गये. उन सभी लोगों के योगदान ने हमारी जिंदगी के विविध आयामों को अनेक तरीकों से प्रभावित किया. आज के आखिरी वर्षांत पेज में हम याद कर रहे हैं उन्हीं में से कुछ प्रमुख हस्तियों को …
प्रोफेसर यशपाल
प्रसिद्ध वैज्ञानिक और शिक्षाविद प्रोफेसर यशपाल का 90 साल की उम्र में इसी वर्ष 24 जुलाई को निधन हो गया. देश में वैज्ञानिक प्रतिभाओं को निखारने में उन्होंने विशेष योगदान दिया था. वर्ष 1976 में उन्हें पद्मभूषण और 2013 में पद्मविभूषण मिला था. वह 1983-84 में योजना आयोग के मुख्य सलाहकार और 1986 से 1991 तक यूजीसी के चेयरमैन रहे. उच्च शिक्षा के लिए बनी कमेटी की उन्होंने अगुवाई की थी.
पीएन भगवती
उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती का इसी वर्ष 15 जून को देहांत हो गया. वह 95 वर्ष के थे. वह देश के 17वें चीफ जस्टिस थे. 12 जुलाई, 1985 से 20 दिसंबर, 1986 तक वह इस पद पर रहे. अपने न्यायिक करियर में उन्होंने पीआइएल यानी जनहित याचिका पर कई महत्वपूर्ण फैसले दिये. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान घोषित आपातकाल में वह ‘बंदी प्रत्यक्षीकरण’ केस से संबंधित पीठ का हिस्सा थे और इस पर अपने फैसले को लेकर भी वह खासे चर्चा में रहे. जस्टिस भगवती ने कैदियों के पक्ष में एक अहम फैसला देते हुए कहा था कि उनके भी मौलिक अधिकार होते हैं.
मार्शल अर्जन सिंह
वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह 98 वर्ष की उम्र में 16 सितंबर को हमारे बीच नहीं रहे. अर्जन सिंह ने 1965 की लड़ाई में भारतीय वायुसेना का नेतृत्व किया था. अर्जन सिंह को पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है. अगस्त, 1964 में अर्जन सिंह को वायु सेना की कमान सौंपी गयी थी. 1989 से 1990 के बीच वह दिल्ली के उप-राज्यपाल भी रहे. अर्जन सिंह को उनके असाधारण योगदान के लिए 2002 में एयर फोर्स का मार्शल बनाया गया.
केपीएस गिल
पंजाब में चरमपंथियों को कुचलने के लिए देशभर में प्रख्यात रहे पुलिस अधिकारी कंवर पाल सिंह गिल का इस वर्ष 26 मई को 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. गिल 1958 बैच के आइपीएस और असम पुलिस के अधिकारी थे. उन्हें प्रतिनियुक्ति पर पंजाब भेजा गया था. सुपरकॉप के रूप में मशहूर गिल ने पंजाब में चरमपंथ को खत्म करने के लिए खालिस्तानी आंदोलन पर सख्त कार्रवाई की थी. वर्ष 1995 में वह पुलिस सेवा से रिटायर हुए थे. वर्ष 1989 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
जोगिंदर सिंह
सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह का इस साल की शुरुआत में, तीन फरवरी को निधन हो गया. 1996 से 1997 तक सीबीआई के निदेशक के रूप में अपने सख्त रवैये के कारण वह काफी चर्चित और लोकप्रिय रहे. बिहार में पुलिस अधीक्षक, कर्नाटक सरकार के विशेष गृह सचिव, वाणिज्य मंत्रालय में निदेशक, नारकोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो में महानिदेशक, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के महानिदेशक और गृह मंत्रालय के विशेष सचिव के पद पर भी वह कार्यरत रहे. ‘इनसाइड सीबीआई’ समेत उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं.
लीला सेठ
भारत में हाइकोर्ट की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं लीला सेठ का 86 वर्ष की उम्र में इसी साल 5 मई को निधन हो गया. लीला सेठ भारत की पहली महिला थीं, जिन्होंने 1958 में लंदन बार की परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त किया था. 1978 में वह दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं और फिर 1991 में हिमाचल प्रदेश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त की गयीं. 1998 से 2000 तक वह भारतीय विधि आयोग की सदस्य भी रहीं.
नर बहादुर भंडारी
सिक्किम के मुख्यमंत्री रह चुके नर बहादुर भंडारी का इसी वर्ष 16 जुलाई को दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया. वर्ष 1940 में जन्मे भंडारी शुरू में शिक्षक थे. बाद में वह सक्रिय राजनीति में आये. वर्ष 1979, 1984 और 1989 में वह तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. करीब डेढ़ दशक तक सिक्किम सरकार की कमान उनके हाथों में रही. वह सिक्किम संग्राम परिषद के अध्यक्ष भी रहे. भंडारी को आधुनिक सिक्किम का आर्किटेक्ट कहा जाता है.
रीमा लागू
हिंदी सिनेमा की चरित्र अभिनेत्री रीमा लागू का जन्म 21 जून, 1958 को हुआ था. मैंने प्यार किया, साजन, हम आपके हैं कौन, वास्तव, कुछ कुछ होता है सहित कई फिल्म तथा खानदान, श्रीमान श्रीमती समेत कई टेलीविजन धारावाहिकों में रीमा ने काम किया. हिंदी के अलावा उन्होंने सावली समेत कई मराठी फिल्मों में भी अभिनय किया. 17 मई को इनका निधन हो गया. उस समय भी वह नामकरण धारावाहिक में काम कर रही थीं. रीमा ने अपने अभिनय जीवन की शुरुआत मराठी रंगमंच से की थी.
ओम पुरी
ओम पुरी इस साल के आरंभ में, छह जनवरी को ही दुनिया को अलविदा कह गये. उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों में काम किया. ओम पुरी अभिनय के हर फन के माहिर माने जाते रहे थे. उन्होंने हॉलीवुड की अनेक चर्चित फिल्मों में काम किया है. 1980 में आयी ‘आक्रोश’ ओम पुरी की पहली हिट फिल्म साबित हुई थी. पुरी को पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था.
शशि कपूर
हिंदी सिनेमा के सुप्रसिद्ध अभिनेता व फिल्म निर्माता शशि कपूर का जन्म 18 मार्च, 1938 को हुआ था. 1961 में फिल्म धर्मपुत्र से बतौर नायक करियर की शुरुआत करने वाले शशि ने जब-जब फूल खिले, कन्यादान, शर्मीली, रोटी कपड़ा और मकान, दीवार, कभी-कभी और फकीरा जैसी कई हिट फिल्में दी. 2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और 2015 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया. चार दिसंबर को मुंबई में उनका निधन हो गया.
गिरिजा देवी
बनारस घराने की सुप्रसिद्ध ठुमरी गायिका गिरिजा देवी का जन्म 8 मई, 1929 को बनारस में हुआ था. उन्होंने अर्द्धशास्त्रीय संगीत की भिन्न-भिन्न शैलियां जैसे कजरी, होली, चैती को एक अलग ही पहचान दी. 1972 में उन्हें पद्मश्री, 1989 में पद्मभूषण और 2016 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. इसके अलावा संगीत नाटक अकादमी सहित कई पुरस्कारों से उन्हें नवाजा जा चुका था. 24 अक्तूबर को गिरिजा देवी इस दुनिया को अलविदा कह गयीं.
विनोद खन्ना
विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्तूबर, 1946 को पेशावर में हुआ था. वह पूरब और पश्चिम, मेरा गांव मेरा देश जैसी कई फिल्मों में नकारात्मक किरदार निभाने के बाद 1971 में पहली बार प्रमुख भूमिका में नजर आये. उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ मुकद्दर का सिकंदर, परवरिश, अमर अकबर एंथोनी समेत कई फिल्मों में काम किया. बीच में फिल्मी जीवन से संन्यास लेकर वह ओशो आश्रम चले गये थे. वहां वह पांच वर्ष तक रहे. वह सांसद भी रहे. 27 अप्रैल को उनका निधन हो गया.
किशोरी अमोनकर
किशोरी अमोनकर का जन्म वर्ष 1932 में हुआ था. अपनी मां से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी और जयपुर घराने की बारीकियों को सीखा था. ख्याल गायिकी, ठुमरी और भजन गाने में उन्हें महारत हासिल थी. गायिका के अलावा वह एक श्रेष्ठ गुरु भी थीं. प्रभात, समर्पण और बॉर्न टू सिंग सहित उनके कई एलबम भी जारी हो चुके हैं. 1985 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी, 1987 में पद्मभूषण, 2002 में पद्मविभूषण से नवाजा गया. चार अप्रैल को उनका निधन हो गया.
उस्ताद सईदुद्दीन डागर
प्रसिद्ध ध्रुपद गायक उस्ताद सईदुद्दीन डागर का जन्म 20 अप्रैल, 1939 को हुआ था. महज छह साल की उम्र में सईदुद्दीन ने अपने पिता उस्ताद हुसैनुद्दीन खान डागर से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की. 1963 में उनके पिता का निधन हो गया और फिर उन्होंने अपने चाचा पद्मभूषण उस्ताद रहीमुद्दीन खान डागर से संगीत की बारीकियां सीखीं. 30 जुलाई को पुणे में उनका निधन हो गया है.
तारक मेहता
प्रसिद्ध गुजराती लेखक व नाटककार तारक मेहता का इसी वर्ष एक मार्च को निधन हो गया. एक गुजराती साप्ताहिक अखबार चित्रलेखा में ‘दुनिया ने ओंधा चश्मा’ नाम से वह एक कॉलम लिखते थे. इस कॉलम में वह आम लोगों से जुड़े किस्से-कहानियों को रोचक तरीके से प्रस्तुत करते थे. इसी कॉलम से प्रेरित होकर तारक मेहता का उल्टा चश्मा नामक धारावाहिक शुरू किया गया. 2015 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
कुंदन शाह
19 अक्तूबर, 1947 को जन्मे कुंदन शाह एक बेहतरीन फिल्म निर्देशक और लेखक थे. कुंदन ने 1983 में हास्य फिल्म जाने भी दो यारों बनायी. अपनी पहली ही फिल्म में शानदार निर्देशन के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. कभी हां कभी ना, क्या कहना समेत कई फिल्मों के साथ ही उन्होंने ये जो है जिंदगी, नुक्कड़, वागले की दुनिया सहित कई शानदार टेलीविजन धारावाहिकों का निर्देशन किया. इसी वर्ष सात अक्तूबर को उनका निधन हो गया.
विदेशी हस्तियां
ह्यू हेफनर
प्लेब्वाय पत्रिका के संस्थापक ह्यू हेफनर का जन्म 9 अप्रैल, 1926 को शिकागो में एक परंपरावादी परिवार में हुआ था. अपने स्कूली दिनों में हेफनर ने स्कूल न्यूजपेपर की शुरुआत कर अपनी प्रतिभा प्रदर्शित की थी. 1949 में उन्होंने इलिनोइस यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी में डिग्री हासिल की और 1950 में एस्क्वायर मैगजीन के शिकागो ऑफिस में काम शुरू किया. हेफनर ने अपनी मैगजीन निकालने का निर्णय लिया और 1953 में प्लेब्वॉय मैगजीन लॉन्च की गयी. इस मैगजीन की 50,000 प्रतियां बिक गयीं. 27 सितंबर को हेफनर इस दुनिया को अलविदा कह गये.
लिउ जियाओबो
मानवाधिकार कार्यकर्ता लिउ जियाओबो का जन्म 1955 में चीन के चैंगचुन शहर में हुआ था. 1988 में बीजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी से साहित्य में डॉक्टरेट करने के बाद वे लेक्चरर के तौर पर कार्य करने लगे. 1989 में सरकार के खिलाफ थ्येनमन चौक पर विद्यार्थियों द्वारा किये प्रदर्शन और उन पर गोली चलाये जाने की घटना के समय लिउ कोलंबिया यूनिवर्सिटी में विजिटिंग स्कॉलर के तौर पर काम कर रहे थे. इस अत्याचार के विरोध में वह भूख हड़ताल पर बैठ गये. उन्हें 21 महीने की जेल की सजा हुई. दिसंबर, 2009 में उन्हें 11 वर्ष के लिए फिर जेल में डाल दिया गया. वर्ष 2010 में लिउ को नोबल शांति पुरस्कार के लिए चुना गया. इसी वर्ष 13 जुलाई को उनका निधन हो गया.
हेल्मुट कोल
जर्मनी के पूर्व चांसलर हेल्मुट कोल का 87 वर्ष की आयु में 16 जून को निधन हो गया. एक अक्तूबर, 1982 को हेल्मुट कोल जर्मनी के चांसलर बने और 16 वर्षों तक इस पद पर रहे. उन्हीं के कार्यकाल में बर्लिन की दीवार गिरी और जर्मनी का एकीकरण संभव हुआ. इसे कोल की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में जाना जाता है. उन्हें जर्मनी के एकीकरण और यूरोपीय एकता की मजबूती के लिए याद किया जायेगा.
बुतरस बुतरस घाली
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बुतरस बुतरस घाली का 93 साल की आयु में 16 फरवरी को निधन हो गया. वर्ष 1992 से 1996 के दौरान वह इस पद पर रहे. इससे पहले वह 1977 से 1991 तक मिस्र के विदेश मंत्री थे. इस दौरान उन्होंने मिस्र के राष्ट्रपति और इजरायल के प्रधानमंत्री के बीच शांति समझौते में बड़ी भूमिका निभायी. दुनियाभर में हिंसक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक एजेंडा प्रस्तुत किया.