सिनेमा, संगीत और रंगमंच उपलब्धियों का साल
बीता हुआ एक साल महज समय का एक टुकड़ा भर नहीं होता, बल्कि एक ऐसा कालखंड होता है, जिसमें देश-समाज और जीवन के कई बदलाव से भरे सांस्कृतिक आयाम दर्ज होते हैं. ये सारे आयाम हमारी स्मृतियों की पीठ पर सवार होकर नये साल के साथ चलने को तैयार भी हैं. इन आयामों में साहित्य, […]
बीता हुआ एक साल महज समय का एक टुकड़ा भर नहीं होता, बल्कि एक ऐसा कालखंड होता है, जिसमें देश-समाज और जीवन के कई बदलाव से भरे सांस्कृतिक आयाम दर्ज होते हैं. ये सारे आयाम हमारी स्मृतियों की पीठ पर सवार होकर नये साल के साथ चलने को तैयार भी हैं. इन आयामों में साहित्य, कला, संगीत, सिनेमा, थियेटर, रंगमंच आदि की भी अपनी सशक्त मौजूदगी होती है. इनमें से सिनेमा, संगीत और रंगमंच ने इस साल कई कीर्तिमान रचे और साथ ही कुछ चुनौतियों का सामना भी किया. इसी का लेखा-जोखा करता यह वर्षांत विशेष…
अजित राय
संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी
विश्व सिनेमा में साल 2017 दो कारणों से महत्वपूर्ण है. पहला, ईरानी फिल्मकार असगर फरहादी की फिल्म ‘द सेल्समैन’ को ऑस्कर मिलने पर अमेरिकी नीतियों के विरोध में असगर फरहादी का पुरस्कार समारोह में न जाना और दूसरा, कई दिग्गज फिल्मकारों को पछाड़ते हुए स्वीडन के रूबेन ओसलुंड की फिल्म ‘द स्क्वेयर’ को कान फिल्म समारोह में बेस्ट फिल्म का पॉम डि ओर पुरस्कार मिलना. इसके साथ ही भारत के लिए महत्वपूर्ण यह रहा कि ईरान के माजिद मजीदी और अर्जेंटीना के पाब्लो सेजार सहित दुनिया के दर्जनों फिल्मकारों ने भारत में अपनी फिल्मों की शूटिंग की.
माइकेल हेनेके, माइकेल हाजाविसियस, नाओमी क्वासे, सोफिया कापोला, आंद्रे ज्याग्निशेव तथा कई दिग्गज फिल्मकारों को पछाड़ते हुए स्वीडन के अपेक्षाकृत युवा फिल्मकार रूबेन ओसलूंड ने अपनी फिल्म ‘द स्क्वेयर’ के लिए 70वें कान फिल्म समारोह में बेस्ट फिल्म का प्रतिष्ठित ‘पॉम दि ओर’ पुरस्कार जीतकर सबको अचरज में डाल दिया. ‘द स्क्वेयर’ एक दार्शनिक व्यंग्य है, जिसे कई सशक्त दृश्यों के कोलाज में रचा गया है. द स्क्वेयर दरअसल यूरोपीय पूंजीवाद के ठहराव में व्यक्ति, समाज, कला, राज्य में घटती आस्थाओं और बढ़ते अविश्वास का दस्तावेज है. स्वीडन जैसे उदार समाज में पहली बार 2008 में एक ऐसी हाउसिंग सोसायटी बनती है, जहां किसी दूसरे का प्रवेश वर्जित है.
ईरानी फिल्मकार असगर फरहादी ने जिस दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ईरान सहित दूसरे छह मुस्लिम देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर पाबंदी की भेद भाव वाली नीतियों के विरोध में ऑस्कर पुरस्कार समारोह में न जाने का निर्णय लिया, उसी दिन से वे विश्व सिनेमा में नायक बन गये. इस वर्ष उनकी फिल्म ‘द सेल्समैन’ को विदेशी भाषा में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर घोषित हुआ, तो उन्होंने नासा के शोधार्थी प्रो फिरोज नादेरी और अपनी मित्र अनौसेन अंसारी को पुरस्कार लेने के लिए नामांकित किया. इस फिल्म को पिछले वर्ष कान फिल्म समारोह में बेस्ट अभिनेता और बेस्ट पटकथा के दो-दो पुरस्कार मिल चुके हैं. वे दुनिया के चौथे फिल्मकार बन गये हैं, जिन्हें दो-दो बार विदेशी भाषा की बेस्ट फिल्म की श्रेणी में ऑस्कर मिला है. अपने देश के नागरिकों के सम्मान की रक्षा के लिए यह किसी फिल्मकार का अभूतपूर्व कदम था.
ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी की हिंदी फिल्म ‘बियोंड द क्लाउड्स’ एक अभूतपूर्व घटना है. विशाल भारद्वाज, गौतम घोष और एआर रहमान के सहयोग से उन्होंने गरीबी का एक वैश्विक सौंदर्यशास्त्र रचा है. आमिर खान की ‘लगान’ से चर्चित छायाकार अनिल मेहता का कैमरा मुंबई की झोपड़पट्टियों, धोबीघाटों और अंधेरी गलियों में तलछंट की जिंदगी जी रहे लोगों की असाधारण छवियां सामने लाता है. ‘बियोंड द क्लाउड्स’ का अक्तूबर में लंदन फिल्म समारोह में वर्ल्ड प्रीमीयर हुआ था. माजिद कहते है कि उनके लिए तो सही मायने में इसका प्रीमीयर भारत के 48वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह (आइएफएफआई) गोवा में हुआ है, जब भारतीय दर्शकों ने इसे देखा और सराहा.
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय लेखक रबींद्र नाथ टैगोर और अर्जेंटीना की लेखिका विक्टोरिया ओकंपो के प्रेम पर बनी पाब्लो सेजार की फिल्म ‘थिंकिंग ऑफ हिम’ भी इन दिनों चर्चा में है. यह फिल्म भारत और अर्जेंटीना के संयुक्त प्रयास से बनी है. फिल्म के निर्देशक पाब्लो सेजार ने दस साल पहले इस फिल्म का सपना देखा था. वे तब के वहां भारतीय राजदूत के विश्वनाथन से मिलकर कोई भारतीय सहयोगी ढूंढने गये थे. भारत के जॉनसंस सूरज फिल्म इंटरनेशनल (नयी दिल्ली) और अर्जेंटीना की सेजार प्रोडक्शन ने इसका निर्माण किया है.
विश्व सिनेमा में इस समय जिन दिग्गज फिल्मकारों की फिल्मों की चर्चा है, उनमें आॅस्ट्रिया के माइकेल हेनेके (हैपी एंड), जापान की नाओमी क्वासे (हिकारी), रोमान पोलांस्की (बेस्ड ऑन अ ट्रू स्टोरी), फ्रांस के माइकेल हाजाविसियस ( रडाउटेबल), और रोबिन कैम्पियो (120 बीट्स पर मिनट), अमेरिका की सोफिया कापोला (बीगिल्ड), और टोड हेंस (वंडरस्ट्रक), रूस के आंद्रे ज्याग्निशेव (लवलेस), जर्मनी के फतिह अकीन (इन द फेड), ग्रीस के योर्गोस लांथिमोस (द किलींग ऑफ अ सैक्रेड डीयर) आदि प्रमुख हैं.
रोबिन कैम्पियो की फ्रेंच फिल्म ‘120बीट्स पर मिनट’ एक दिल दहलानेवाली फिल्म है, जिसकी दुनियाभर में चर्चा हो रही है. 1990 के पेरिस में एचआईवी एड्स की महामारी से जूझ रही नयी पीढ़ी के वास्तविक अनुभवों को पटकथा का आधार बनाया गया है.
माइकेल हाजाविसियस की विवादास्पद फ्रेंच फिल्म ‘रिडाउटेबल’ विश्व के महान फिल्मकारों में शुमार ज्यां लुक गोदार की बायोपिक है (1967- 1979). साल 1967 में 37 वर्ष के गोदार ने अपने से बीस साल छोटी 17 वर्ष की अपनी फिल्म की नायिका एनी वायजेम्सकी से प्रेम किया और बाद में विवाह किया. यह संबंध 1979 तक चला. गोदार की दूसरी पत्नी एनी वायजेम्सकी ने गोदार के साथ अपने प्रेम और दांपत्य पर एक किताब लिखा- ‘वन ईयर आफ्टर’( 2015). यह फिल्म उसी किताब का सिनेमाई संस्करण है.
माइकेल हेनेके (ऑस्ट्रिया) अपनी विश्व प्रसिद्ध फिल्म ‘अमोर’ (2012) के पांच साल बाद अपनी नयी फिल्म ‘हैपी एंड’ से चर्चा में है. ‘फनी गेम्स’ (1997) और ‘द ह्वाॅइट रिबन’ (2009) के बाद यह उनका ताजा मास्टर स्ट्रोक है. उन्हें आज विश्व के महान फिल्मकारों में निर्विवाद रूप से माना जाता है.
अपने 84वें वर्ष में रोमान पोलांस्की ने यथार्थ और फंतासी का रोमांस रचने की कोशिश की है. उनकी नयी फिल्म ‘बेस्ड ऑन अ ट्रू स्टोरी’ डेल्फीने डि विगान के बेस्ट सेलर उपन्यास का सिनेमाई संस्करण है तथा साहित्य और सिनेमा के बीच इश्क का बेहतरीन नमूना. इसमें पोलांस्की ने विशुद्ध रूप से दो स्त्रियों के रिश्तों का काव्यात्मक संसार रचा है.
अपने पचपन साल के फिल्मी सफर में इस दिग्गज फिल्मकार ने विश्व सिनेमा में कई मील के पत्थर दिये हैं. अपनी पहली ही फिल्म ‘नाईफ इन द वाटर’ (1962) से ही दुनियाभर में चर्चित राजमंड रोमान थेरी पोलांस्की की ‘द पियानिस्ट’ (2002) को क्लासिक माना जाता है. इस साल कान फिल्म समारोह में उनका आना एक बड़ी घटना थी, क्योंकि पिछले दिनों एक कम उम्र की लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में उन्हें पहले जेल और बाद में अपने घर में बंदी होना पड़ा था.