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ये है वर्ष 2017 के इंटरनेशनल हीरो : मुश्किलों के बीच बनायी सफलता की राह

निकोलस जेम्स वुजिसिक कमजोरी को काबिलियत में बदला 35 साल के जेम्स दुनिया के उन सात लोगों में से हैं, जो टेट्रा अमेलिया सिंड्रोम के शिकार हैं, यानी उन्हें जन्म से ही न दोनों हाथ हैं, न पांव. मगर इस विलक्षण रोग को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि इसे काबिलियत में बदल दिया. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 1, 2018 6:36 AM
निकोलस जेम्स वुजिसिक
कमजोरी को काबिलियत में बदला
35 साल के जेम्स दुनिया के उन सात लोगों में से हैं, जो टेट्रा अमेलिया सिंड्रोम के शिकार हैं, यानी उन्हें जन्म से ही न दोनों हाथ हैं, न पांव. मगर इस विलक्षण रोग को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया, बल्कि इसे काबिलियत में बदल दिया. आज वे एक मशहूर मोटिवेशनल स्पीकर हैं.
आस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में पैदा हुआ निकोलस जेम्स ने ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि जब उनका जन्म हुआ था, तो उनकी मां ने उन्हें देखने से इनकार कर दिया था. मगर बाद में उनकी मां और उनके पिता ने उन्हें ईश्वरीय उपहार के रूप में उनका पालन पोषण किया. वे 17 साल के हुए तो उन्होंने एक अखबार में ऐसे ही किसी व्यक्ति के बारे में पढ़ा जो शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद बड़ा काम कर रहे थे. इस खबर ने उनकी जिंदगी बदल दी. वे खुद को आत्मनिर्भर और दूसरों की मदद करने में जुट गये.
लाइफ विदाउट लिंब्स के बने संस्थापक
2005 में उन्होंने लाइफ विदाउट लिंब्स के नाम से एक संस्था की स्थापना की. फिर 2007 में एटीच्यूड इज एटीच्यूड के नाम से मोटिवेशनल स्पीकिंग कंपनी बनायी. उन्होंने द बटर फ्लाइ सर्कस के नाम से एक शॉर्ट फिल्म बनायी, जो पुरस्कृत भी हुई. उन्होंने कई किताबें भी लिखीं. वर्ष 2012 में उन्होंने जापानी मूल की एक युवती कानेया मियाहारा से विवाह किया और आज उनके चार बच्चे हैं. वे मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में दुनियाभर में बुलाये और सुने जाते हैं.
एलिजाबेथ मुरे
बेघर होकर भी बनाया मुकाम
लिज मुरे दुनियाभर में ऐसे लोगों को प्रेरित कर रही हैं, जो पारिवारिक परिस्थितियों की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते. 37 वर्षीय मुरे का जीवन ही उनका संदेश है, जो बताता है कि कभी हिम्मत मत हारो, हर हाल में अपना लक्ष्य हासिल करो.
अमेरिका के न्यूयॉर्क की रहनेवाली लिज मुरे के माता-पिता दोनों ड्रग एडिक्ट थे, जब वह महज 15 साल की थी, उसकी मां की एचआइवी एड्स की वजह से मौत हो गयी और वह बेघर हो गयी. मगर उसने तय कर लिया कि उसे हर हाल में पढ़ना है और जीवन बेहतर बनाना है.
स्कॉलरशिप लेकर उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी. उसकी निरंतर जूझने की शक्ति की वजह से आखिरकार उसे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला.
इनके जीवन पर बनी फिल्म
क्लीनिकल सायकोलॉजी में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर वह काउंसलर बन गयी. उन पर बनी फिल्म होमलेस टू हार्वर्ड-ए लिज मुरे स्टोरी दुनियाभर में मशहूर हुई. 2010 में उसने इसी विषय पर ब्रेकिंग नार्ट्स के नाम से एक संस्मरण भी लिखा जो बेस्ट सेलर साबित हुआ.
डिज्नी ने बुला कर दिया जॉब
जॉन लॉसेस्टर
एक चीफ क्रिएटिव एनीमेटर जो खिलौनों की दुनिया में जीता है. जी हां, जॉन लॉसेस्टर नाम एक ऐसे इंसान का है, जो पिक्सर एनीमेशन स्टूडियो, वाल्ड डिज्नी एनीमेशन स्टूडियो और डिज्नी टून स्टूडियो का चीफ क्रिएटिव एनीमेटर और फिल्ममेकर हैं.
जिसकी फिल्मों को दो एकेडमी अवार्ड मिल चुके हैं. मगर वह इंसान खिलौने की दुनिया में जीना और मस्त रहना पसंद करता है. उसके पास एक हजार से अधिक हवाइयन शर्ट्स हैं, जिसे वह रोज बदल-बदल कर पहनता है और अपने दफ्तर में जाता है. उसके केबिन की फ्रंट टेबल और पीछे की रैक खिलौनों से भरी रहती है. आप उससे मिलने जायेंगे तो लगेगा कि किसी खिलौने की दुकान में पहुंच गये हैं. खुशियों से सराबोर इस इंसान से आप मिलेंगे, तो ईर्ष्या से भर उठेंगे कि यह इतना मस्त और खुशमिजाज कैसे है.
80 दशक में बनाते थे एनीमेशन
जॉन ने डिज्नी से कैरियर शुरू किया था, उन्हें कंप्यूटर एनीमेशन फिल्में बनाना पसंद था, जो 80 के दशक में डिज्नी पसंद नहीं करती थी. जॉन को नौकरी से निकाल दिया गया. फिर वे एक नयी कंपनी में अपनी मर्जी का काम करने की शर्त से पहुंच गये. उसका नाम पिक्सर एनीमेशन स्टूडियो रख दिया. टिन टॉय नामक इनकी एक फिल्म को दो एकेडमी अवार्ड मिले. फिर डिज्नी ने खुद उन्हें जॉब ऑफर किया. बाद में डिज्नी ने पिक्सर को भी खरीद लिया.
रेंडी पौश
लास्ट लेक्चर से अमर हो गये पौश
रेंडी पौश की पहचान दुनिया में एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर है, जो अपनी मौत के बाद भी अपनी आखिरी और इकलौती स्पीच से दुनियाभर को प्रेरित कर रहे हैं. पौश कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर थे. 2006 में उन्हें पता चला कि वे पेंक्रियाटिक कैंसर के शिकार हो गये हैं और उनके पास जीवन के सिर्फ तीन महीने बचे हैं. हालांकि वे तीन साल तक जिंदा रहे और अपने सपने के जरिये लाखों लोगों को आज भी प्रेरित कर रहे हैं.
इस रोग का पता चलने के एक साल बात पौश ने एक लेक्चर दिया, उसका नाम था, द लास्ट लेक्चर-रियली एचीविंग योर चाइल्डहुड ड्रीम. यानी आखिरी भाषण- अपने बचपन के सपने को हासिल करने के बारे में. यह भाषण यूट्यूब पर काफी प्रसिद्ध हो गया. इसे आज भी लोग सर्च करके देखते हैं, इसे आप भी देख सकते हैं.
वर्ष 2008 में छोड़ गये दुनिया
अपने इस भाषण में पौश ने अपने बचपन के सपनों की एक ऐसी सूची के बारे में बताया, जिसे उन्होंने एक-एक कर पूरा किया था. ये सपने थे, जीरो ग्रैविटी में रहना, नेशनल फुटबॉल लीग में खेलना, वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया में एक लेख लिखना, कैप्टन किर्क से मिलना, एम्यूजमेंट पार्क में बिग स्टफ्ड एनीमल जीतना वगैरह. बाद में द लास्ट लेक्चर के नाम से उनकी किताब भी छपी जो बेस्ट सेलर साबित हुई. दुर्भाग्यवश 25 जुलाई 2008 को उनकी मौत हो गयी. मगर उनकी किताब और उनका वीडियो लेक्चर आज भी लोगों को प्रेरित करता है.
सीन स्वार्नर
कैंसर को मात देकर किया एवरेस्ट फतह
सीन स्वार्नर एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने कैंसर से उबरने के बाद सात महादेशों की सात चोटियों को फतेह किया. इसमें दुनिया का सबसे ऊंचा शिखर माउंट एवरेस्ट भी शामिल है. जहां बर्फीली हवाओं के बीच पहाड़ की चोटी पर चढ़ना हर पल मौत का सामना करने जैसा है. मगर उन्होंने हर मुश्किल को पार किया.
सीन स्वार्नर को सिर्फ एक कैंसर सर्वाइवर नहीं कहा जा सकता, वे मेडिकल साइंस का चमत्कार भी हैं. वे दुनिया में ऐसे इकलौते व्यक्ति हैं, जिन्हें हॉजकिंस और आस्किंस सरकोमा जैसी बीमारियां हो चुकी हैं. फाइनल स्टेज में उनकी बीमारी का पता चला. डॉक्टर मान चुके थे कि वे तीन माह से अधिक जिंदा नहीं रहेंगे. इस बीमारी से उबरे तो इनके फफड़े में ट्यूमर पाया गया. वे फिर बच गये, लेकिन फेफड़ा कमजोर हो गया.
हर कमजोरी को छोड़ा पीछे
इसके 10 साल बाद उन्होंने तय किया कि वे माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करेंगे. उन्होंने कमजोर फेफड़े के बावजूद यह कारनामा करके दिखाया. उनके जीवन पर एक किताब भी लिखी गयी है, कीप क्लाइंबिंग- हाउ आइ बीट कैंसर और रीच्ड द टॉप ऑफ द वर्ल्ड.
ऐतजाज हसन
बच्चों को बचाने के लिए हुए शहीद
ऐतजाज हसन एक 14 साल के पाकिस्तानी लड़के का नाम है, जो तालिबानी हमले से अपने स्कूल के सभी बच्चों को बचाने के लिए खुद शहीद हो गया. यह कहानी सात जनवरी 2014 की है. ऐतजाज उस रोज देर से स्कूल पहुंचा था और इस वजह से उसे स्कूल की असेंबली से बाहर खड़ा कर दिया गया था.
थोड़ी ही देर में 25 साल का एक युवक स्कूल के गेट पर पहुंचा और उसने कहा कि वह यहां एडमिशन लेना चाहता है, उसे अंदर जाने दिया जाये. उस वक्त ऐतजाज के साथ खड़े एक और बच्चे ने देखा कि उस युवक की बनियान के नीचे एक डेटोनेटर है. वह डर से भाग कर स्कूल के अंदर चला गया.
आतंकियों से भिड़ गया ऐतजाज
ऐतजाज को जब यह मालूम हुआ तो वह उस युवक से भिड़ गया. इस बीच युवक ने डेटोनेटर को दबा दिया और धमाका हुआ इसमें ऐतजाज घायल हो गया और बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गयी. मगर उसकी इस शहादत ने उसके स्कूल के दो हजार से अधिक बच्चों की जान बचा ली. बाद में उस शहादत की खबर चारों तरफ फैली और हर जगह उसकी सराहना होने लगी. पाकिस्तान ने फिर उसे नेशनल हीरो का दर्जा दिया.

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