16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ये है संकल्प शक्ति से उम्मीद को हकीकत में बदलनेवाले वर्ष 2017 के नेशनल हीरो

नया वर्ष एक बार फिर नयी उम्मीदें लेकर आया है. ये उम्मीदें हैं बदलाव की, जीत की और सीमित संसाधनों में भी बेहतर कर गुजरने की. हमारी इन उम्मीदों को मजबूती दे रहे हैं वैसे लोग, जिन्होंने इन्हीं उम्मीदों को हकीकत में बदला. वे हमारे रियल हीरो हैं. नये वर्ष के मौके पर प्रस्तुत हैं […]

नया वर्ष एक बार फिर नयी उम्मीदें लेकर आया है. ये उम्मीदें हैं बदलाव की, जीत की और सीमित संसाधनों में भी बेहतर कर गुजरने की. हमारी इन उम्मीदों को मजबूती दे रहे हैं वैसे लोग, जिन्होंने इन्हीं उम्मीदों को हकीकत में बदला. वे हमारे रियल हीरो हैं. नये वर्ष के मौके पर प्रस्तुत हैं ऐसे ही 12 हीरो की प्रेरणादायी कहानियां.
महिलाओं को बनाती हैं आत्मनिर्भर
मणिपुर की बीनालक्ष्मी राज्य की उन औरतों के जीवन में उजाला लाने की कोशिश कर रही हैं, जो राज्य में लंबे समय सेजारी हिंसक गतिविधियों की वजह से विधवा हो जा रही हैं या अकेली रह जा रही हैं. यह काम वे पिछले तेरह सालों से कर रही हैं.
मणिपुर एक ऐसा राज्य है, जो कई वजहों से हिंसा का शिकार है. ऐसे में किसी व्यक्ति का अचानक मारा जाना या गायब हो जाना आम बात है. मगर इसके बाद आश्रित महिला की पूरी कायनात उजड़ जाती है, जेएनयू से पढ़ाई करनेवाली बीना एक बार जब घर आयीं, तो एक औरत उसके सामने विधवा हो गयी. उसने उसके लिए सिलाई मशीन का इंतजाम किया. इससे उसका जीवन बदला.
बनाया मणिपुर वीमन गन सर्वाइवर नेटवर्क
मणिपुर वीमन गन सर्वाइवर नेटवर्क बना कर वह महिलाओं की मदद करती है. उन्हें सॉफ्ट लोन देती है, ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सके. आज उससे मदद पानेवाली औरतों की संख्या हजारों में है.
बीनालक्ष्मी नेप्राम
संदीप विश्वनाथन ने आदिवासी बच्चों को फोटोग्राफी सिखाने के लिए बहुत अच्छे वेतन वाली आइटी की नौकरी छोड़ दी. एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज से डिग्री लेने के बाद दो साल तक संदीप ने आइटी कंसल्टेंट का काम किया. मगर उसका मन वहां नहीं लगता था. वह कुछ नया करना चाहता था. फिर उसने बोर्न फ्री आर्ट स्कूल में ट्यूटर, मेंटर और फिल्म मेकर का काम करना शुरू कर दिया.
आदिवासी बच्चों को सिखाते हैं फोटोग्राफी
संदीप विश्वनाथन
इस काम के तहत उसे महाराष्ट्र के नंदुभर जिले के चार आदिवासी स्कूल के बच्चों को फोटोग्राफी और फिल्म बनाना सिखाना था. यह उसके मन का काम था. इस काम के लिए उसका सहारा बना, एसबीआइ यूथ फॉर इंडिया फेलोशिप. वह इसके सहारे उन गांवों में पहुंच गया और बच्चों को फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के हुनर सिखाने लगा. फेलोशिप और जॉब तो एक जरिया था, जो निश्चित समय के लिए थी. मगर असली बात उसका जुनून थी, जिस वजह से वह बेंगलुरु जैसे शहर को छोड़ कर महाराष्ट्र के गांवों में आज भी बच्चों में रचनात्मकता के बीज डाल रहा है.
संदीप ने चार शॉर्ट फिल्म बनाये हैं. पिनहोल कैमरा तैयार किया है, जो इतना सस्ता है कि इसे गरीब बच्चे भी इस्तेमाल कर सकते हैं. उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी. न उन स्कूलों के शिक्षक उनका मकसद समझते थे, न बच्चे. सबों को समझाना और यह सब करना उनके जुनून की वजह से ही मुमकिन हुआ.
पुराने कंप्यूटर को बनाते हैं काम के लायक
मुकुंद और राघव
पहल शुरू किया रिन्यू इट
आइआइएम ग्रेजुएट मुकुंद और उसके चचेरे भाई राघव ने एक अनोखी कंपनी बनायी है, रिन्यू इट. इस कंपनी का काम है, पुराने कंप्यूटरों को खरीदना और उसे काम के लायक बनाना, फिर उसे सस्ती कीमत में उन लोगों को बेचना जो नया कंप्यूटर खरीद नहीं सकते. सबसे दिलचस्प बात है कि ये लोग उस कंप्यूटर को बेचने के बाद ग्राहक को एक साल की आफ्टर सेल सर्विस भी देते हैं.
एक ऐसे जमाने में जहां छोटी-सी गड़बड़ी और महज मॉडल अपग्रेड होने की वजह से हमें हमारा गैजेट बेकार लगने लगता है, हम उसे छोड़ कर नया गैजेट खरीद लेते हैं, वहां मुकुंद और मयंक जैसे लोग इस तरह का काम करके न सिर्फ इस दुनिया को इलेक्ट्रॉनिक कचरे का ढेर बनने से बचा रहे हैं, बल्कि उन लोगों को कंप्यूटर भी उपलब्ध करा रहे हैं, जो नया नहीं खरीद सकते.
वर्ष 2010 में बेंगलुरु में शुरू हुई इस कंपनी ने अब तक ऐसे दस हजार से अधिक कंप्यूटर बेचे हैं. इनकी सात लोगों की टीम है. ये मुख्यत: बड़े कार्पोरेट हाउसों से उनके बेकार कंप्यूटर खरीदते हैं, जिस प्रक्रिया में छह महीने तक का समय लग जाता है, फिर उन्हें काम के लायक बना कर उनकी टीम आठ-दस दिनों में तैयार कर देती है, फिर उसे बेचते हैं.
करते हैं जंगल उगाने का कारोबार
शुभेंदु शर्मा
शुभेंदु की खासियत यह है कि वे एक हजार फुट जमीन को भी जंगल बना सकते हैं और वह भी सिर्फ दो सालों में. दिलचस्प है कि वे यह किसी समाजसेवा या एक्टिविज्म की वजह से नहीं करते. वे जंगल उगाने का कारोबार करते हैं, वह भी क्लाइंट से पैसे लेकर. ए-फोरेस्ट उनकी कंपनी का नाम है, जो साल 2011 से कारोबार कर रही है. यह 2014 तक तक 43 क्लाइंट्स के साथ काम कर चुकी थी और 54 हजार पेड़ लगा चुकी थी.
शुभेंदु जो एक इंडस्ट्रियल इंजीनियर थे. उन्होंने यह काम अकीरा मियावाकी नामक नैचुरलिस्ट के साथ काम करने के बाद शुरू किया. जो टोयोटा प्लांट में जंगल लगाने के लिए आये थे. उन्हें बहुत कम समय में जंगल उगाने में महारत हासिल है. वे थाइलैंड से लेकर अमेजन तक जंगल उगाने का काम कर चुके हैं. उनकी सहायता करते हुए शुभेंदु ने तय किया कि वे भी यह काम भारतीय तरीके से करेंगे.
इसकी शुरुआत उन्होंने उत्तराखंड में अपने घर से की और फिर ए-फोरेस्ट कंपनी बना कर उन्होंने इसका कारोबार शुरू कर दिया. वे मिट्टी के परीक्षण से लेकर जंगल तैयार करने तक का काम क्लाइंट के लिए करते हैं. दिलचस्प है कि उन्हें ऐसे खूब काम मिल भी रहे हैं. है न पर्यावरण बचाने के साथ, पैसे कमाने का भी मजेदार आइडिया.
गरीब बच्चों तक पहुंचाती हैं खिलौने
श्वेता चारी
श्वेता चारी का ट्वाय बैंक के नाम से 2004 से मुंबई में चल रहा प्रयोग अद्भुत है. इसका विचार यह है कि अक्सर संपन्न घरों के बच्चे अपने खिलौने से बहुत जल्द बोर हो जाते हैं. वे पुराने खिलौने छोड़ कर नये खिलौने खरीद लेते हैं और पुराने खिलौने घर में बेकार पड़े रहते हैं. जबकि ज्यादातर गरीब, असहाय और अनाथ बच्चे खिलौने के लिए तरसते रहते हैं.
मुंबई की श्वेता चारी ने सोचा कि क्यों न अमीर और संपन्न घरों से बेकार पड़े खिलौने को जुटा कर उन्हें गरीब बच्चों के बीच बांटा जाये. इस विचार के साथ 2004 में ट्वाय बैंक की शुरुआत हुई. तब से ट्वाय बैंक का यह अनूठा काम चल रहा है. ट्वाय बैंक एक एनजीओ की तरह काम करती है.
कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी इच्छा से इस काम में श्वेता की मदद करते हैं. वे संपन्न घरों से बेकार खिलौने जुटाते हैं और फिर उन्हें ठीक-ठाक करके जरूरतमंद बच्चों के बीच बांट देते हैं. हां, इस काम के लिए भी कुछ नियम हैं, जैसे वे बंदूक और तलवार जैसे हिंसा फैलानेवाले खिलौने स्वीकार नहीं करते. पिछले 13 वर्षों से लगातार ट्वाय बैंक मुंबई के गरीब बच्चों के मन में खुशियों की रोशनी फैला रहा है.
जुगाड़ से तैयार की बिजली
सिद्दप्पा
सिद्दप्पा एक अनपढ़ किसान हैं. वे कर्नाटक के सोमापुर नामक एक छोटे से गांव के रहनेवाले हैं. उन्होंने बिजली तैयार करने के लिए अपने ही संसाधनों से एक छोटा-सा वाटर मिल तैयार किया है. यह मशीन कैसी है उसे आप इसकी तस्वीर देख कर समझ सकते हैं. दिलचस्प है कि इस मशीन को तैयार करने का सारा काम उन्होंने खुद ही किया है.सिद्दप्पा ने यह मशीन बांस और लकड़ी की डालियों, प्लास्टिक के बेकार टब और पाइप से तैयार किया है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें