प्रदर्शनों से घिरी ईरान की सरकार

ईरान के कई शहरों में दिसंबर के आखिरी दिनों में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन थम गये हैं, पर इनका असर यह हुआ है कि ईरानी सरकार को विरोधियों की मांगों पर विचार करने का आश्वासन देना पड़ा है. वहां 2009 के बाद पहली बार ऐसे प्रदर्शन हुए हैं और शायद यह पहला मौका है जब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 11, 2018 7:08 AM
ईरान के कई शहरों में दिसंबर के आखिरी दिनों में शुरू हुए विरोध प्रदर्शन थम गये हैं, पर इनका असर यह हुआ है कि ईरानी सरकार को विरोधियों की मांगों पर विचार करने का आश्वासन देना पड़ा है.
वहां 2009 के बाद पहली बार ऐसे प्रदर्शन हुए हैं और शायद यह पहला मौका है जब ईरान के धार्मिक नेता और देश की विदेश नीति को आलोचना का सामना करना पड़ा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और पश्चिमी मीडिया ने भी इस संकट की आग में घी डालने की कोशिश की है.
इन प्रदर्शनों के औचित्य और महत्व को विश्लेषित करते हुए प्रस्तुत है आज का इन-डेप्थ…
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
ईरान में आंदोलन की चिनगारी सिर्फ दबी है
ईरान में मिनी विद्रोह का मंजर दस दिनों तक दुनिया जिस तरह देखती रही, उससे दो बातें स्पष्ट हुई हैं. पहला, आप धर्म और राष्ट्रवाद की घुट्टी अधिक दिनों तक जनता को नहीं पिला सकते.
दूसरा, आर्थिक मोर्चे पर विफल हुए, खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों को रोकने और रोजगार सृजित करने में नाकाम हुए, तो जनता ज्यादा दिन बर्दाश्त नहीं कर पायेगी. इस सच को स्वीकार करने के बदले ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता अयातुल्लाहिल उज्मा सैयद अली खामेनई ने इसका ठीकरा पश्चिमी देशों पर फोड़ा है. खामेनई ने सोशल मीडिया पर पाबंदी आयद करते हुए स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ाने पर रोक लगा दी है. साल के पहले दिन से ही ईरान के 80 कस्बों- शहरों में विद्रोह का मंजर था. इसे कुचल देने की कवायद में 22 लोग मारे गये हैं, और हजार से अधिक लोग गिरफ्तार किये गये हैं.
रोजगार सृजन की बड़ी चुनौती
ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी यह नहीं कह सकते कि हमारी सरकार का ‘हनीमून पीरियड’ है.मई, 2017 में रूहानी दूसरी बार ईरान के राष्ट्रपति चुने गये थे. 69 साल के रूहानी के लिए रोजगार सृजन और उद्योग-व्यापार को समृद्ध करना एक बड़ी चुनौती थी. दोबारा जनादेश, उन्हें इसी वायदे और उम्मीद की वजह से मिला था. ओबामा प्रशासन द्वारा प्रतिबंध हटाने के बाद ईरान की अर्थव्यवस्था के पटरी पर वापस आने की आशा बंधती जा रही थी. वाशिंगटन में इस पर बहस छिड़ी थी कि अगस्त, 2016 में ओबामा प्रशासन ने एक अरब 70 करोड़ डॉलर तेहरान को क्यों ट्रांसफर किया है.
इसी क्रम में ‘वाॅल स्ट्रीट जर्नल’ ने 2 अगस्त, 2016 को एक खबर और ब्रेक की थी कि तेहरान के मेहराबाद एयरपोर्ट पर अमेरिकी जेट से 40 करोड़ डॉलर अमेरिकी नागरिकों की फिरोती के एवज में भेजे गये थे. दो कूटनीतिक ध्रुवों पर बैठे इजराइल और सऊदी अरब ने इन खबरों के हवाले से बात फैलायी कि ईरान यह सारा पैसा इराक में शिया अतिवादी, लेबनान में हिज्बुल्ला, गाजा में हमास और इस्लामिक जिहाद, पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलीस्तीन-जनरल कमांड, यमन में हूती पर खर्च करने के वास्ते जमा कर रहा था.
ईरान की सोशल मीडिया पर जब इस बात पर चर्चा हो रही थी, तब इस विषय को भी उठाया गया कि यहां लोगों को आबोदाना-आशियाना के वास्ते खजाना खाली का बहाना सरकार बना रही है, मगर अतिवादियों को फंड मुहैया कराने में कोई कमी नहीं कर रही है.
भ्रष्टाचार से बढ़ी समस्या
ईरान में आर्थिक विफलता के साथ भ्रष्टाचार कोढ़ में खाज की तरह है. नवंबर, 2017 में पश्चिमी ईरान में भयानक भूकंप आया था, जिसमें 530 लोग मारे गये थे, और हजारों लोग घायल हुए थे.
उस समय राष्ट्रपति हसन रूहानी ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि हाउसिंग सेक्टर में भयानक रूप से भ्रष्टाचार हुआ है. मगर, निशाने पर उनके पूर्ववर्ती महमूद अहमदीनेजाद थे. 3 अगस्त, 2013 से राष्ट्रपति हसन रूहानी सत्ता में हैं. पांच वर्षों में हसन रूहानी ने इस मोर्चे पर कुछ किया होता, तो ईरान भ्रष्टाचार के सूचकांक में 131वें स्थान पर नहीं होता. 2013 में ईरान 177 भ्रष्ट देशों में 144वें स्थान पर था. इससे पता चलता है कि पांच वर्षों से रूहानी सरकार भ्रष्टाचार मिटाने की राह पर कछुआ चाल से चलती रही है.
तेल-गैस सेक्टर में भयानक भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार हटाने के नाम पर रूहानी सरकार पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के समर्थक उद्योगपतियों से हिसाब चुकता करती रही है. उदाहरण के लिए तेल उद्योगपति बबाक जंजानी हैं, जिन्हें 2.8 अरब डॉलर के घपले के मामले में मृत्युदंड की सजा सुनायी गयी. ईरान के तेल-गैस सेक्टर में भयानक भ्रष्टाचार है.
बल्कि जो लोग इस कारोबार को नियंत्रित करते हैं, उनका दखल राजनीति के दरवाजे तक है. साल 1980 से 1989 तक चले ईरान-इराक युद्ध वाले दौर के राष्ट्रपति अली अकबर हाशमी रफसंजानी ने तेल-गैस को प्राइवेट हाथों में देकर भ्रष्टाचार को और भी मजबूत किया था. प्राइवेट कंपनियों द्वारा तेल-गैस के उत्पादन के रिकार्ड में गड़बड़ी व टैक्स मारने की खबरें दब इसलिए जाती थी, क्योंकि वहां सरकार नियंत्रित मीडिया है.
सोशल मीडिया से बढ़ी सक्रियता
ईरान में देखना दिलचस्प है कि सोशल मीडिया को शासन ने अपने मतलब के लिए कैसे इस्तेमाल किया. पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद खतामी अरसे से टीवी पर प्रतिबंधित थे. मगर, ऐन चुनाव के समय ‘टेलीग्राम’ चैनल पर उनका वीडियो संदेश प्रसारित किया गया, जिसमें जनता से अपील की गयी कि वे हसन रूहानी को दोबारा से राष्ट्रपति चुनें.
सर्वोच्च नेता अयातुल्लाहिल खामेनई का खुद का ट्विटर अकाउंट सबसे अधिक सक्रिय था, जिसके जरिये उस समय 2 लाख 90 हजार संदेशों की बाढ़ आई थी. तब सरकार के आंकड़े बताते थे कि ऑनलाइन आठ करोड़ लोग एक्टिव हैं, जिनमें 30 साल के आसपास वाली युवा पीढ़ी सक्रिय है. इंस्टाग्राम पर राष्ट्रपति रूहानी के 14 लाख फॉलोअर थे, और ट्विटर पर छह लाख 22 हजार.
ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड
सोशल मीडिया पर खुलापन इस हद तक कि राष्ट्रपति रूहानी से उनके फॉलोअर समलैंगिक विवाह और महिलाओं के अधिकार से बावस्ता सवाल पूछते. राष्ट्रपति रूहानी अपने जवाब को महिलाओं की राजनीति मेें सक्रिय भागीदारी तक महदूद रखते. मगर, इस सारी कवायद को कंट्रोल ईरान रिवोल्यूशनरी गार्ड के लोग साइबर सिक्योरिटी के नाम पर कर रहे थे.
विवादास्पद सवालों को बवंडर बनने से पहले रोकना रिवोल्यूशनरी गार्ड के अधीन रहा है. 9 मार्च, 2017 को महिला पत्रकार हेंगामेह शाहिदी को इसी क्रम में जेल में डाल दिया गया. पत्रकार शाहिदी ने सोशल मीडिया पर खुले पत्र के जरिये यह सवाल उठाया था कि जो लोग सरकार की नीतियों से असहमत हैं, उन्हें दबाया क्यों जा रहा है.
सरकार के विरुद्ध रैलियां
चुनाव से पहले धर्मगुरु अयातुल्लाहिल खामेनई जिस सोशल मीडिया को भक्तों की टोली समझ बैठे थे, उसके भस्मासुर बनने की कल्पना उन्होंने नहीं की थी. ईरान के प्रमुख शहर मशहद, क्यूम, इस्फाहान, जहादान में महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त लोगों ने जब सरकार के विरुद्ध रैलियां निकालीं, और सर्वोच्च नेता खामेनई को सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका देने की मांग की, तब सरकार के होश फाख्ता हो चुके थे.
उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी ईरानी प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया था. इजराइल इसे ‘इंतेफादा’ बताने लगा था. ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड का आकलन है कि सोशल मीडिया पर ऐसे 15 हजार ‘उपद्रवी’ थे, जिन्हें काबू कर लिया गया है. मगर, क्या आंदोलन की मशाल वहीं बुझ गयी? ऐसा नहीं है. यह चिनगारी सिर्फ दबी है.
क्यों हो रहे सरकार विरोधी प्रदर्शन
ईरान में 28 दिसंबर से बड़े पैमाने पर देशभर में सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए हैं. सरकारी नीतियों को लेकर यहां युवाओं में भारी नाराजगी है. 2017 में यहां बेरोजगारी दर 12.8 प्रतिशत और मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत पर पहुंच गयी.
खाद्य पदार्थों के दाम 40 प्रतिशत तक बढ़ गये. इस वजह से लोगों में असंतोष पनपा है. शुरुआत में हुए छिटपुट प्रदर्शन ने धीरे-धीरे पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया. सरकार का विरोध इतना उग्र हो गया कि प्रदर्शनकारी ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनई को देश छोड़कर जाने और राष्ट्रपति हसन रूहानी से सत्ता छोड़ने की मांग करने लगे. सरकार विरोधी इस आंदोलन में देश से बाहर रह रहे ईरानी मूल के लोग भी शामिल रहे हैं और यूरोप के कई देशों और यहां तक इजराइल में भी प्रदर्शन किया है.
जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौती से जूझ रहा ईरान
आने वाले समय में ईरान को जिन पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझना होगा, जलवायु परिवर्तन उनमें से प्रमुख है. इस कारण यहां के दर्जनों शहरों में विरोध प्रदर्शन भी हुआ है. अनेक विशेषज्ञों ने बढ़ते तापमान से पैदा होने वाली आर्थिक दिक्कतों को रेखांकित किया है.
‘साइंटिफिक अमेरिकन’ की एक रिपोर्ट में इंगित किया गया है कि हाल के वर्षों में भयावह अकाल और जल संसाधनों के कुप्रबंधन और धूलभरी आंधियों आदि के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था बदतर हुई है. हालांकि, विरोध प्रदर्शन व्यापक हद तक देश की कट्टरपंथी रुढ़िवादी सरकार के प्रतिरोध से प्रेरित है, लेकिन बीते वर्षों के दौरान ईरान में हुए बड़े विरोध प्रदर्शनों में पर्यावरण संबंधी इन कारणों का भी योगदान रहा है.
जल कुप्रबंधन से तबाह हुई खेती!
अटलांटिक काउंसिल के दक्षिण एशिया सेंटर के सीनियर फेलो आमीर हंदजानी का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने इस तथ्य को समझा कि जलवायु परिवर्तन और जल कुप्रबंधन ने किसानों की खेती को तबाह किया. उनकी सरकार ने किसानों को सब्सिडी मुहैया करायी थी. मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी ने जब यह संकेत दिया कि वे इस सब्सिडी में कटौती करेंगे, तो उसके विरोध में समूचे ईरान में विरोध प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया.
हंदजानी का कहना है, ईरान में जलवायु परिवर्तन की समस्या है, पानी का अभाव है, किसान अपने बूते फसल नहीं पैदा कर सकते हैं, और अब उनको दी जा रही मदद भी खत्म की जा रही है. ऐसे में इन कारणों से पैदा हुई समस्या से आप एकबारगी निबटने में सक्षम नहीं हो सकते. अटलांटिक काउंसिल के फ्यूचर ऑफ ईरान के डायरेक्टर बारबरा स्लेविन का कहना है कि भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, तेल की घटती कीमतों और ट्रंप प्रशासन की विरोधी नीतियों और प्रतिक्रियाओं के कारण ईरान में आम आदमी को अनेक तरह की दिक्कतों को सामना करना पड़ा है.
प्रदर्शनों पर सरकार ने कसा शिकंजा
इस स्थिति से निपटने के लिए करीब 4,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया. लगभग 22 लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. राष्ट्रपति हसन रूहानी ने आंदालनकारियों को चेताया था कि अगर उन्होंने सरकारी संपति को नुकसान पहुंचाया और अस्थिरता पैदा की, तो सुरक्षा बल नरमी नहीं बरतेंगे.
ईरान की रिवोल्यूशनरी अदालत के प्रमुख ने तो यहां तक कह दिया था कि गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों के मामले ट्रायल में आने पर उन्हें मृत्युदंड तक दिया जा सकता है. सरकार ने सोशल मीडिया साइटों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है और प्रदर्शन में कमी लाने की कोशिश की जा रही थी.
आंकड़ों में ईरान की अर्थव्यवस्था
50.3% योगदान है सर्विस सेक्टर का ईरान की जीडीपी में, जबकि 40.7 फीसदी योगदान उद्योग-धंधों का है और नौ फीसदी योगदान खेती का है.
4.9% की दर से बढ़ोतरी हुई ईरान की जीडीपी में वर्ष 2017 में, जबकि 4.4 फीसदी की दर से वृद्धि हुई थी वर्ष 2016 में और 4.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई वर्ष 2014 में.
12.8% अनुमानित बेरोजगारी दर है ईरान में.
18.7% आबादी ईरान में गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करती है.
80% पेट्रोलियम शामिल रहा था, वर्ष 2015 में ईरान के कुल निर्यात में.
9.9% निर्यात भारत को होता है ईरान से, जबकि 8.4 फीसदी तुर्की को और 4.5 प्रतिशत जापान को किया जाता है ईरान से.
(स्रोत : वर्ल्ड एटलस डॉट कॉम)
यह अमेरिका और यहूदियों की साजिश है. इस प्रदर्शन के लिए खाड़ी के कुछ देश पैसे दे रहे हैं. हमें अपने लोगों की ईमानदार मांगों और दूसरे समूहों द्वारा चली जा रही विघटनकारी चालों के बीच फर्क करना होगा.
-अयातुल्लाह खामेनई,
ईरान के सर्वोच्च नेता
अमेरिका को अपने देश की समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है, जहां सैन्य संघर्षों और गोलीबारी में रोजाना लोगों की जानें जा रही हैं.
बहराम घासेम, प्रवक्ता, ईरान का विदेश मंत्रालय

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