कूटनीतिक रिश्ते के 25 साल, मजबूत होता भारत-इस्राइल सहयोग
पिछले साल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस्राइल यात्रा और अभी इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का भारत दौरा दोनों देशों के बीच ढाई दशकों के कूटनीतिक संबंधों के दिनों-दिन बेहतर होने के प्रमाण हैं. आर्थिक, वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा के क्षेत्रों में परस्पर सहयोग लगातार बढ़ रहे हैं. मौजूदा दौरे में भी अनेक समझौतों पर […]
पिछले साल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस्राइल यात्रा और अभी इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का भारत दौरा दोनों देशों के बीच ढाई दशकों के कूटनीतिक संबंधों के दिनों-दिन बेहतर होने के प्रमाण हैं. आर्थिक, वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा के क्षेत्रों में परस्पर सहयोग लगातार बढ़ रहे हैं. मौजूदा दौरे में भी अनेक समझौतों पर सहमति बनी है. प्रधानमंत्री नेतन्याहू की यात्रा के महत्व को विश्लेषित करती इन-डेप्थ की आज की प्रस्तुति…
डॉ फज्जुर रहमान सिद्दिकी
िटप्पणीकार
स्थापित रीति को तोड़ते हुए गत रविवार नरेंद्र मोदी द्वारा स्वयं हवाईअड्डे पहुंच कर बेंजामिन नेतन्याहू का गर्मजोशीभरा स्वागत करने के साथ ही इस्राइली प्रधानमंत्री का भारत दौरा आरंभ हो गया. इसके पूर्व 2003 में तत्कालीन इस्राइली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन के भारत आगमन पर दिल्ली में मुसलिमों द्वारा किये गये विरोध प्रदर्शनों के विपरीत इस बार ऐसा नहीं हुआ.
भारतीय मीडिया में तो नेतन्याहू के आगमन को लेकर छाये उल्लास और उत्साह का अनुभव किया जा सकता है, जहां आतंकवाद के विरुद्ध भारत के संघर्ष में उन्हें एक रक्षक के रूप में देखा जा रहा है. जुलाई, 2017 में मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने इस्राइल का दौरा किया था.
घनिष्ठ सामरिक सहयोग
1992 में कांग्रेस शासन के दौरान ही भारत द्वारा इस्राइल से राजनयिक संबंध स्थापित करने के बाद पिछले 26 वर्षों में दोनों देशों के बीच एक घनिष्ठ सामरिक सहयोग विकसित हुआ है. दोनों के बीच व्यापार 1992 के 20 करोड़ डॉलर से बढ़कर 2016 में 4.16 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
एक आकलन के अनुसार, दुनियाभर में आज भारत इस्राइली हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है, जो इस्राइली हथियार विक्रय के 41 प्रतिशत की खरीद अकेले करता है. पर इन दोनों के संबंध इससे भी बहुत आगे जाते हैं. कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा, जल शुद्धीकरण प्रौद्योगिकी, सौर ऊर्जा, स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और सबसे अहम, आतंकवाद निरोध के क्षेत्र में भी इस्राइल भारत को अपना पूरा सहयोग दे रहा है. यही वजह है कि नेतन्याहू की इस यात्रा के दौरान भी दोनों देशों के बीच कई करारों पर हस्ताक्षर किये गये हैं.
फिलिस्तीन का मसला और भारत का रुख
फिलिस्तीन पर फिलिस्तीनियों के अधिकारों की मुखर हिमायत करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था, फिलिस्तीन उसी तरह अरबों का है, जिस तरह इंग्लैंड अंग्रेजों का और फ्रांस फ्रांसीसियों का. इसी विचारधारा का अनुसरण करते हुए भारत फिलिस्तीनियों के इस हक के कट्टर समर्थकों में एक रहते हुए हमेशा यह कहता रहा है कि इस्राइल के साथ हमारे घनिष्ठ होते रिश्ते कभी फिलिस्तीन के साथ हमारे ऐतिहासिक संबंधों की राह के कांटे नहीं बन सकेंगे. पर भारत में एक नये राजनीतिक पक्ष के सत्तासीन होने के साथ इस परिदृश्य में काफी परिवर्तन हुआ है.
नयी दिल्ली में भाजपा तथा तेल अवीव में लिकुड पार्टी दोनों की आस्था आदर्शात्मक राज्य के दर्शन में रही है. प्रधानमंत्री मोदी अपनी इस्राइल यात्रा के वक्त फिलिस्तीन की राजधानी जैसे रहे रामल्ला जाने से बचे रहे, जो इस्राइल एवं फिलिस्तीन के बीच के रिश्तों के मुतल्लिक बदले सरकारी फैसले का सूचक था.
इसके अलावा, दोनों देशों के संयुक्त बयान में फिलिस्तीन की राजधानी के रूप में पूर्वी यरुशलम का भी कोई जिक्र न था, जो अब तक की आधिकारिक नीति से एक स्पष्ट अलगाव था. इस क्षेत्र को लेकर भारत की नीति में इसके पहले भी वर्ष 2015 तथा 2016 के दौरान कई विलगाव नजर आये, जब गाजा पर इस्राइली बमबारी के विरोध में संयुक्त राष्ट्र तथा यूनेस्को के निंदा प्रस्ताव पर मतदान से भारत अनुपस्थित रहा. दरअसल, इस क्षेत्र को लेकर संयुक्त राष्ट्र में हुए मतदानों में भारत के रिकॉर्ड को देखने पर अतीत की अपेक्षा पिछले तीन वर्षों के दौरान हमारी नीति में एक साफ विरोध दिखता है.
विभिन्न वैश्विक तथा क्षेत्रीय मंचों पर फिलिस्तीन के मुद्दे को उठाकर भारत सरकार ने अपने अतीत से इस घोषित विचलन की भरपाई के प्रयास भी किये. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सितंबर में गुटनिरपेक्ष मंत्री-स्तरीय सम्मेलन में कहा कि फिलिस्तीन के प्रति समर्थन भारत की विदेश नीति में एक आधार बिंदु की ही भांति रहा है.
उन्होंने यह दावा भी किया कि इस क्षेत्र में भारत का फैलता गठजोड़ स्वभावतः फिलिस्तीन के हित को ही बढ़ावा देगा. फिलिस्तीनी जनता के प्रति अंतरराष्ट्रीय एकजुटता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एक पृथक राज्य के रूप में फिलिस्तीन के सृजन के लिए भारत का विजन जीवित रहा है.
ट्रंप द्वारा इस्राइल की राजधानी के रूप में यरुशलम को मान्यता दिये जाने के फैसले का संयुक्त राष्ट्र में भारत द्वारा विरोध इसी आलोक में देखा जा सकता है.
हाल के वर्षों में इस्राइल से भारत के बढ़ते रिश्तों के प्रति सड़कों पर प्रदर्शित प्रतिक्रिया तथा अतीत की असामान्यता आज के द्विपक्षीय संबंधों की सामान्यता में बदल चुकी है. वर्तमान युग वास्तविक, कठोर तथा व्यावहारिक राजनीति का है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों का दिशा-निर्देशक सिद्धांत बन चुका है.
इसके अलावा, भारतीय राजनीतिक अभिजात्यवर्ग की यह आम धारणा है कि अरब नेतृत्व ने भारत की दोस्ताना भंगिमाओं के जवाब कभी उसी तरह से नहीं दिये और बराबर पाकिस्तान का पक्ष लिया. इस्लामी देशों के संगठन में भारत द्वारा प्रवेश के प्रयास पाकिस्तानी वीटो की वजह से हमेशा नाकाम रहे, जो 1969 में अपने सृजन के समय से ही पाकिस्तानी दबदबे का शिकार रहा है.
केवल भारत के बदले हालात ही नहीं, बल्कि अरब दुनिया का बदलता सामरिक नक्शा भी इस्राइल के साथ भारत के विकसित होते संबंधों को आकार देता रहा है. कई अरब देश भी आज इस्राइल के साथ प्रगाढ़ रिश्तों के इच्छुक हैं और ईरान के विरुद्ध वर्तमान सऊदी अरब-अमेरिकी-इस्राइली त्रिगुट को आज सब जानते हैं. पिछले ही साल संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में नेतन्याहू ने स्वयं स्वीकार किया कि इस्राइल के प्रति अरब नजरिये में तेजी से बदलाव आ रहा है.
भारत में बहुतों की यह दलील है कि जब दशकों से फिलिस्तीनी हितों का पैरोकार रहा मिस्र इस्राइल के साथ अपने संबंध मजबूत कर रहा है और संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन जैसे देश उससे रिश्ते मजबूत करने की कोशिशें कर रहे हैं, तो भारत क्यों ऐसा नहीं कर सकता, जबकि इस्राइल हमें बहुत तरह से मदद कर रहा.
भारत को सावधानी बरतने की जरूरत
भारत-इस्राइल संबंधों का अर्थ केवल फिलिस्तीन के ही संदर्भ में नहीं लगाया जाना चाहिए, वरन एक और बिंदु है, जिस पर दोनों देश एकमत नहीं हो सकते. भारत ईरान के प्रति इस्राइली शत्रुता कभी साझा नहीं कर सकता और उसी तरह अपनी विदेश नीति के नैतिक तत्वों तथा फिलिस्तीन के साथ अपने पुराने रिश्तों की वजह से हम वेस्ट बैंक में इस्राइली विस्तारवाद तथा गाजा की नाकेबंदी का समर्थन कभी नहीं कर सकते. भारत को अपने कदम सावधानी से बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि यह क्षेत्र अत्यंत अशांत है.
कब्जा किये गये भूभाग में संघर्ष और परवान चढ़ेगा, जिसकी जिम्मेदारी से इस्राइल बच नहीं सकता. कोई भी द्विपक्षीय संबंध भावनाओं के ज्वार के सहारे स्थापित नहीं रह सकता, क्योंकि इसका परस्पर हितों की बुनियाद पर टिका होना आवश्यक होता है. पर बात जब फिलिस्तीनी लोगों के साथ भारत के युगों पुराने जुड़ाव की आती है, तो हम अतीत की गांधीवादी विरासत छोड़ नहीं सकते. (अनुवाद : विजय नंदन)
भारत-इस्राइल के बीच होने वाले समझौते
जुलाई 2017 में पीएम मोदी के इस्राइल दौरे के दौरान साइबर सुरक्षा क्षेत्र में समझौते हुए थे. इसे और व्यापक बनाये जाने को लेकर दोनों देशों ने करार किया.
भारत और इस्राइल के बीच पहली बार तेल व गैस के क्षेत्र में निवेश के साथ ही शोध व विकास और स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देने सहित कई अन्य मुद्दों पर भी समझौता हुआ.
अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में इस्राइल द्वारा उन्नत तकनीक देने को लेकर भी दोनों देश के बीच समझौता हुआ.
नागरिक उड्डयन क्षेत्र में सहयोग को व्यापक बनाने को लेकर भी दोनों देशों ने एक-दूसरे के साथ करार किया.
अंतरिक्ष शोध और औद्योगिक रिसर्च को लेकर भी दोनों देशों के बीच समझौते किये गये.
एक-दूसरे के निवेशकों को बढ़ावा देने और सुरक्षा देने को लेकर दोनों देशों के बीच करार हुआ.
कृषि, जल, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में विकासशील देशों को प्रशिक्षित करने व उनकी क्षमता बढ़ाने के लिये संयुक्त कार्यक्रम विकसित करने को लेकर भी दोनों देशों में सहमति बनी.
भारत-फिलिस्तीन संबंध
दिसंबर, 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुए मतदान में भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा जेरूसलम को इस्राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के फैसले के खिलाफ वोट दिया था. उससे पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा था कि फिलिस्तीन को लेकर भारत का रुख स्वतंत्र और पूर्ववत है तथा वह किसी तीसरे देश के साथ संबंधों से निर्धारित नहीं होता है.
भारत पहला गैर-अरबी देश था जिसने 1974 में यासिर अराफात के फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन को फिलिस्तीनियों के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी थी. वर्ष 1988 में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देनेवाले पहले कुछ देशों में भारत भी शामिल था. राजनीतिक समर्थन के अलावा भारत की ओर से आर्थिक के साथ वस्तुओं और तकनीक के रूप में भी मदद की जाती है. दोनों पक्षों के बीच व्यापार इस्राइल के जरिये होता है और इस संबंध में ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. विदेश मंत्रालय का आकलन है कि यह 30 मिलियन डॉलर के आसपास है. भारत और फिलिस्तीन के बीच मजबूत सांस्कृतिक और शैक्षणिक रिश्ते भी हैं.
फिलिस्तीनी नागरिक रामल्ला स्थित भारतीय प्रतिनिधि के जरिये या भारत आकर वीजा प्राप्त कर सकते हैं. पिछले दिनों जब पाकिस्तान में फिलिस्तीनी राजदूत ने आतंकी सरगना हाफिज सईद के साथ मंच साझा किया था, तो भारत ने इस पर ऐतराज जताया था. इसके चलते फिलिस्तीन ने उस राजदूत को वापस बुला लिया था और कहा था कि भारत से उसकी दोस्ती बहुत ही अहम है.
इनोवेशन है टॉप एजेंडा
इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भारत दौरे में रिसर्च और इनोवेशन टॉप एजेंडा में है. इजराइल के राजदूत डेनिएल कारमोन ने कहा है कि दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत में मुख्य रूप से इनोवेशन पर ही फोकस किया गया है. इस्राइल को ‘स्टार्टअप नेशन’ के तौर पर भी जाना जाता है. इससे पहले भी दोनों नेताओं की मुलाकात में इस पर जोर दिया गया था. विकास की दिशा में आगे बढ़ने की राह में इनोवेशन सबसे बड़ा लक्ष्य है. इस्राइल ने हमेशा ही इनोवेशन और टेक्नोलॉजी को प्रोत्साहित किया है. भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और इस्राइल के नेशनल टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन अथॉरिटी के सहयोग से इंडिया-इजराइल इंडस्ट्रियल आर एंड डी एंड टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन फंड के गठन पर जोर दिया गया है.
शिक्षा क्षेत्र में गठजोड़
दोनों देशों के बीच शिक्षा के क्षेत्र में भी संबंध बेहतर हुए हैं. विज्ञान के क्षेत्र में रिसर्च करने वाले भारतीय छात्रों के बीच इस्राइल की लोकप्रियता बढ़ रही है. इस्राइल के काउंसिल फॉर हायर एजुकेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ज्वॉइंट रिसर्च प्रोग्राम के तहत वर्ष 2014 से अब तक 400 भारतीय छात्रों को पोस्ट-डॉक्टरल फेलोशिप प्रदान किया जा चुका है.
खेती की नयी तकनीक
भारत और इस्राइल संयुक्त रूप से फसल की नयी किस्मों को विकसित करने और फसल पैदा करने वाली नयी तकनीकों को आपस में साझा करने के लिए तैयार हैं. 10 वर्ष पुराने इंडो-इस्राइली एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट के तहत इसे सफल बनाने की कवायद हो रही है. इस कार्यक्रम के तहत हरियाणा में टमाटर और महाराष्ट्र में आम की उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.
भारतीय किसानों के लिए तकनीक आधारित सिंचाई की उन्नत व्यवस्था विकसित की जा रही है. इस्राइल जैसे देश में, जहां 60 फीसदी भूभाग में मरुस्थल है, आम और अन्य फलों-सब्जियों का उत्पादन अपनेआप में बड़ी चुनौती है, लेकिन इस्राइल ने तकनीक के बूते इसे अंजाम दिया है.
भारत-इस्राइल प्रतिनिधियों की यात्रा
-1997 में भारत आने वाले एजर वेजमैन इस्राइल के पहले राष्ट्रपति.
-वर्ष 2000 में लालकृष्ण आडवाणी इस्राइल की यात्रा पर जाने वाले पहले भारतीय मंत्री.
-2003 में एरियल शेरोन भारत आनेवाले पहले इस्राइली प्रधानमंत्री.
-2006 में शरद पवार, कपिल सिब्बल और कमलनाथ ने भारत सरकार के मंत्री और नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में इस्राइल गये थे.
-2012 में विदेश मंत्री एसएम कृष्णा इस्राइल गये.
-2014 में गृहमंत्री राजनाथ सिंह इस्राइल दौरे पर गयेे.
-2015 में इस्राइल के रक्षामंत्री मोशे यालों भारत आये.
-2016 में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस्राइल का दौरा किया था और इस्राइल के राष्ट्रपति रूवेन रिविन भारत आये.
-2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस्राइल दौरा.