झारखंड : यहां देवी की नमक से होती है पूजा

डॉ आरके नीरद संताल परगना में एक जगह ऐसी है, जहां नमक की देवी की पूजा होती है. देवी को प्रसाद में नमक और बताशा चढ़ाया जाता है. यही देवी का भोग है. यहां मेला भी लगता है. यह ‘नुनबिल मेला’ के नाम से सरकारी और ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज है. यह मेला मकर संक्रांति […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 19, 2018 12:42 AM
डॉ आरके नीरद
संताल परगना में एक जगह ऐसी है, जहां नमक की देवी की पूजा होती है. देवी को प्रसाद में नमक और बताशा चढ़ाया जाता है. यही देवी का भोग है. यहां मेला भी लगता है.
यह ‘नुनबिल मेला’ के नाम से सरकारी और ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज है. यह मेला मकर संक्रांति के ठीक दूसरे शुरू होता है और आठ दिनों तक चलता है. यह मेला दुमका जिले के मसलिया अंचल कार्यालय से छह मील दूर दक्षिण दिशा में दलाही गांव में एक छाेटी-सी नदी के तट पर लगता है. इस देवी और नदी के नाम भी ‘नुनबिल’ हैं – ‘नुनबिलबुढ़ी’, ‘नुनबिल नदी’. ‘नुनबिल’ में दो शब्दों का योग है- ‘नून’ यानी नमक और ‘बिल’ यानी बिला जाना, गायब हो जाना.
यहां नमक की देवी की नमक से पूजा की परंपरा कितनी पुरानी है, इसकी ठीक-ठीक जानकारी किसी को नहीं है. मान्यता है कि है कि यह पूजा पांच सौ साल पहले शुरू हुई थी. 1910 में प्रकाशित एसएसएल ओ’मैली के ‘बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर : संथाल परगना’ के मुताबिक सन् 1900 के बहुत साल पहले भी यह पूजा प्रचलन में थी और उस स्थान पर तब भी मेला लगता था. तब नुनबिल मेले की लोकप्रियता बासुकिनाथ श्रावणी मेले से भी ज्यादा थी और उससे भी ज्यादा भीड़ यहां जुटती थी.
प्रोसिडिंग ऑफ द रॉयल आयरिश एकेडमी, 1893 (पेज-166) के मुताबिक इस मेले में एक लाख लोग जुटते थे, जबकि संताल परगना के दूसरे शीतकालीन मेलों में तब बहुत मामूली भीड़ जुटती थी. तब नुनबिल मेला दिसंबर में लगता था. उस समय यहां शाल का एक विशाल पेड़ था और लोगों की मान्यता थी कि नुनबिल देवी का वास इसी पेड़ में है. बाद के वर्षों में यह मेला जनवरी में मकर संक्रांति के ठीक दूसरे दिन से लगने लगा. आरएम दास के मेनू ऑन क्राइम एंड पनिशमेंट (पेज 125) के मुताबिक 1907-08 से 1935-36 तक जितनी भीड़ बासुिकनाथ मेले में जुटी थी, उतने ही लोग नुनबिल मेले में भी पहुंचे थे.
जर्नल आॅफ द एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल (1891, खंड 59, पेज 233) और पीसी राय चौधरी के बिहार डिस्ट्रिक्ट गजेटियर : संताल परगना (1957, खंड 13, पेज 302) भी इस बात के साक्ष्य देते हैं कि नुनबिल मेला संताल परगना का अत्यंत प्रमुख मेला था. सेंसस ऑफ इंडिया (1961, बिहार, पेज 26) में यह पहाड़िया आदिवासी मेले के रूप में दर्ज है, जो माघ महीने में लगता था.
संताल परगना में गर्म जलस्रोतों के निकट मकर संक्रांति और उसके बाद कई स्थानों पर मेले लगते हैं. वहां भी लोकदेवियों की पूजा की परंपरा है. वहां के भी पुजारी आदिवासी समाज के हैं. वहां आदिवासी और गैर आदिवासी, दोनों समुदाय के लोग जुटते हैं. दोनों की मान्यताओं और आस्था का स्वरूप समान है, लेकिन कहीं भी नमक से देवी की पूजा नहीं होती. नमक से पूजा की प्रथा केवल नुनबिल मेले में ही है और यही इस मेले को विशिष्ट बनाती है.
नुनबिल मेले, नुनबिल बूढ़ी और नुनबिल नदी को लेकर कई दंतकथाएं प्रचलित हैं. इनके मुताबिक प्राचीन काल में एक दिन कुछ गाड़ीवान नमक के बोरों से भरी बैलगाड़ी लेकर इस नदी के रास्ते गुजर रहे थे. नदी के तट तक पहुंचते-पहुंचते अंधेरा घिर गया. गाड़ीवानों ने वहीं पड़ाव डाला दिया. रात में एक बुढ़िया प्रकट हुई. वह अत्यंत कुरूप थी. उसका शरीर घावों से भरा था. उसने गाड़ीवानों से खाना मांगा. दूसरी दंतकथा के अनुसार उसने नमक मांगा. गाड़ीवाननों ने उसे दुत्कार दिया. एक गाड़ीवान को दया आ गयी. उसने उसे थोड़ा खाना दे दिया. दूसरी दंतकथा के अनुसार उसने उसे एक चुटकी नमक दिया.
हथेली पर नमक के पड़ते ही बुढ़िया स्वस्थ और सुंदर हो गयी. उसने उस गाड़ीवान से कहा कि वह वहां से तुरंत चले जाये. थोड़ी देर में ही भीषण तूफान आने वाला है. उस गाड़ीवान ऐसा ही किया. थोड़ी देर बाद वास्तव में भीषण तूफान आया और भारी वर्षा होने लगे. बाकी गाड़ीवानों की बैलगाड़ियों पर लदा नमक गलकर दलदल में बदल गया. गाड़ीवान बैलों सहित उस दलदल में डूब गये. दूसरे दिन धोबना गांव का फुकाई पुजहर मवेशी चराता हुआ वहां पहुंचा.
वह वहां का दृश्य देखकर डर से कांपने लगा. उसी रात सपने में एक रात पहले की घटना उसने देखी. दूसरे दिन उसने दलदल के बगल में देवी का पिंड बनाया और पास के गर्मजल कुंड में स्नान कर देवी को नमक और बताशा चढ़ाया. तभी से इस नदी का नाम नुनबिल और देवी का नाम नुनबुढ़ी पड़ा. यहां नुनबुढ़ी देवी की नमक और बताशे से पूजा होने लगी.
यहां मेले भी लगने लगे, जिसमें दूर-दूर से नमक के कारोबारी आने लगे और यहां नमक-बताशा बेचने लगे. अब भी दूर-दूर से व्यापारी इस मेले में नमक बेचने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां नमक बेचने से कारोबारी-जीवन में उन्नति आती है.

Next Article

Exit mobile version