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मालदीव संकट और कूटनीति के पेच, अदालत का आदेश संदिग्ध!

II पुष्परंजन II ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक हिंद महासागर में स्थित मालदीव पिछले हफ्ते से राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. राष्ट्रपति यामीन और विपक्ष के बीच तनाव को सुलझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा, किंतु कुछ जजों को हिरासत में लेकर अन्य जजों को उस फैसले को बदलने के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 8, 2018 5:22 AM
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II पुष्परंजन II
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
हिंद महासागर में स्थित मालदीव पिछले हफ्ते से राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. राष्ट्रपति यामीन और विपक्ष के बीच तनाव को सुलझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा, किंतु कुछ जजों को हिरासत में लेकर अन्य जजों को उस फैसले को बदलने के लिए मजबूर कर दिया गया है. दो पूर्व राष्ट्रपतियों ने भारत से सैन्य हस्तक्षेप की गुहार लगायी है. इस द्वीपीय देश में भारत, चीन और सऊदी अरब के हित हैं तथा आगे का प्रकरण इन देशों के परस्पर तालमेल पर निर्भर करेगा. इस मसले के विभिन्न पहलुओं पर एक नजर आज के इन-डेप्थ में…
सऊदी अरब और चीन का खेल
केरल के दक्षिणी तट से 700 किमी दूर ‘हॉलीडे पैराडाइज’ के नाम से विख्यात मालदीव में इस समय पर्यटक गायब हैं. सेना सड़कों पर है. सोमवार से 15 दिनों की इमरजेंसी लगी है. संसद सत्र चल रहा था, जिसे रविवार को स्थगित कर दिया गया. राजनीतिक सूनामी का एपीसेंटर सुप्रीम कोर्ट था, जहां से पूर्व राष्ट्रपति नशीद, उपराष्ट्रपति अहमद अदीब समेत नौ हाई प्रोफाइल नेताओं को रिहा करने का आदेश जारी हुआ था.
कोर्ट ने यह नहीं कहा था कि जो आरोप लगे हैं, उनसे नौ लोग बाइज्जत बरी किये जाते हैं. कोर्ट ने 12 सांसदों की सदस्यता को बहाल किये जाने का आदेश दिया था. ये सांसद सत्तारूढ़ ‘प्रोग्रेसिव पार्टी’ के थे, जिन्होंने सरकार का दामन छोड़ने का निर्णय लिया था. मालदीव में भारत की तरह दल-बदल विरोधी कानून नहीं है. मगर, प्रेसिडेंट यामीन ने ‘दल-बदल रूलिंग’ के दायरे में लाकर इन 12 सांसदों की सदस्यता को भंग करने का आदेश दिया था.
सत्तारूढ़ प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) में दो धड़े हैं. इनमें से एक का नेतृत्व राष्ट्रपति यामीन करते हैं, और दूसरे धड़े को यामीन के सौतेले भाई मौमून अब्दुल गयूम नियंत्रित करते हैं, जिन्होंने तीन दशकों तक शासन किया था. सत्ता में कोई किसी का सगा नहीं होता, यह बात पूरी तरह से इस समय गिरफ्तार पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम पर लागू होती है.
85 सदस्यीय संसद (मजलिस) में पीपीएम के 44 सांसद हैं. मुख्य विपक्षी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के 21 सांसद सदन में हैं. एमडीपी के वर्तमान अध्यक्ष निर्वासन में रह रहे पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद हैं. बाकी सांसदों में मालदीव डेवलपमेंट अलायंस के पांच, डीआरपी के पांच, जेपी के सात, एपी के एक और दो निदलीय 85 सदस्यीय संसद में हैं.
अदालत का आदेश संदिग्ध!
मालदीव में अदालत यदि ‘कंगारू कोर्ट’ की तरह काम करता रहे, तब तक तो ठीक है. यदि जरा भी सेना या सरकार की इच्छाओं के विपरीत अदालत ने कोई निष्पक्ष निर्णय दिया, तोे उसका वही हाल होता है, जो इस समय पूरी दुनिया देख रही है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद, और जज अली हमीद मोहम्मद गिरफ्तार कर लिये गये हैं.
इन पर घूसखोरी का चार्ज लगाया गया है. बाकी तीन जजों अब्दुल्ला आरिफ, आदम मोहम्मद अब्दुल्ला और डॉक्टर अहमद अब्दुल्ला दीदी को डरा-घमका कर सरकार उन आदेशों को वापस कराने में लगी है, जिसे लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव बना हुआ है. इन तीन जजों ने एक आदेश जारी कर कहा है कि राष्ट्रपति यामीन की इच्छाओं का ध्यान रखते हुए नौ हाई प्रोफाइल नेताओं की रिहाई का आदेश निरस्त करते हैं. तीनों जजों का आदेश संदिग्ध है. यह बिना किसी दबाव और स्वतंत्र कोर्ट की तरह दिया गया आदेश है, पूरे यकीन से नहीं कह सकते.
एक माह से बन रही भूमिका!
पूर्व राष्ट्रपति नशीद अभी राजनीतिक निर्वासन में हैं. ब्रिटेन ने उन्हें राजनीतिक शरणार्थीका दर्जा दे रखा है. 29 जनवरी से वे कोलंबो में हैं. पहले उन्होंने भारत आने की इच्छा व्यक्त की थी, पर नयी दिल्ली अपने गले घंटी बांधना नहीं चाहता था. 29 जनवरी को नशीद का कोलंबो आने का मकसद तफरीह नहीं था़
उसके चार दिन के बाद माले में जो कुछ पक कर बाहर आया, उससे बात स्पष्ट हो गयी थी कि अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मालदीव में बिछी चीनी बिसात को उलट-पुलट कर देने का मन बना लिया था.
कोर्ट के फैसले आने से पहले माले से विपक्षी ‘मालदिवियन डेमोक्रेटिक पार्टी’ का तांता कोलंबो में लगा हुआ था. नशीद के श्रीलंका आने के पहले 10 जनवरी को मालदीव के विदेश मंत्री मोहम्मद असीम नयी दिल्ली आये थे. क्या मालदीव को पहले से कोई ‘इनपुट’ था कि वहां कोई बड़ा खेल होने वाला है?
सैन्य पोतों से बढ़ी रणनीतिक हलचल
नशीद ने भारत से सैनिक हस्तक्षेप की अपील की है. मगर, यह नवंबर 1988 जैसी परिस्थिति नहीं है, जब भारत ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ चलाकर उस समय की सरकार को सुरक्षित किया था.
अभी भारत से सैनिक भेजने का मतलब है, चीन से मुठभेड़. यह भी सही है कि राष्ट्रपति यामीन के निरंकुश शासन को पर्दे के पीछे से चीन की शह हासिल है. अभी चीन ने दो काम किये हैं. अपने नागरिकों का मालदीव जाना रोक दिया है और चीनी परियोजनाओं को सुरक्षित किया हुआ है. अगस्त, 2017 में मालदीव में तीन सैन्य पोतों का पता चलने पर नयी दिल्ली के कान खड़े हुए थे. दिसंबर, 2017 में भारतीय नौसेना के हवाले से खबर आयी कि हिंद महासागर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के 14 पोत व पनडुब्बियां मौजूद हैं.
राष्ट्रपति यामीन इस समय सऊदी अरब और चीन के बूते राजनीति कर रहे हैं. सऊदी अरब सुन्नी इस्लाम की जड़ें मजबूत करने के साथ सत्तारूढ़ ‘प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव’ को धन और धर्म की संजीवनी बूटी देता रहा है. मालदीव ने 2008 में रियाद में दूतावास खोला. यह पश्चिम एशिया में पहला कूटनीतिक मिशन था. 18 मार्च, 2015 को प्रेसिडेंट यामीन सऊदी अरब की राजकीय यात्रा पर थे.
चीन का बढ़ता हस्तक्षेप
2011 तक चीन की प्राथमिकता सूची में मालदीव नहीं था. उस समय माले में चीनी दूतावास तक नहीं था. मालदीव से भारत के रिश्ते नवंबर, 2012 में जीएमआर ठेका रद्द किये जाने के बाद से खराब होने लगे. सितंबर, 2014 में चीनी राष्ट्रपति का माले में भव्य स्वागत हुआ और ‘मेरी टाइम सिल्क रूट’ का माले साझेदार बना. सबसे खतरनाक काम 22 जुलाई, 2015 को मालदीव की संसद में हुआ था, जब विदेशी निवेशकों को मालदीव में जमीन पर हक देने संबंधी संशोधन विधेयक पास कर दिया गया. यह सब चीन के लिए किया जा रहा था.
इसी कारण चीन सामरिक महत्व वाले 16 द्वीपों को लीज पर ले चुका है. मालदीव में चीन के मेगा प्रोजेक्ट चल रहे हैं. माले से हुलहुले आइलैंड के बीच फ्रेंडशिप ब्रिज और एक हजार अपार्टमेंट्स वाली स्मार्ट सिटी चीन बनवा रहा है. 23 दिसंबर, 2017 को पहली बार प्रेसिडेंट यामीन पेइचिंग गये और मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) पर हस्ताक्षर कर आये. इसलिए चीन क्यों नहीं चाहेगा कि हिंद महासागर में सोने के अंडे देने वाली मुर्गी सुरक्षित रहे!
काफी पुराने हैं भारत से रिश्ते
यूं तो भारत और मालदीव के रिश्ते सदियों पुराने हैं, लेकिन 1965 में मालदीव के ब्रिटिश शासन से आजाद होने के बाद से ही दोनों देशों के बीच रिश्ते विकसित होने शुरू हो गये थे. 1980 और 1990 के दशक में तो दोनों देशों के संबंध काफी मजबूत हो गये. एक मित्र के तौर पर भारत ने मालदीव की अर्थव्यवस्था को खड़ा करने और राजनीतिक स्थिरता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.
वर्तमान राष्ट्रपति के सौतेले भाई मौमून अब्दुल गयूम के सत्तावादी शासन को भारत ने ही समर्थन दिया और उसे तीन दशकों तक सत्ता में बनाये रखने में भरपूर मदद की. इतना ही नहीं, गयूम के शासनकाल में जब तख्ता पलट की कोशिश की गयी थी तो वर्ष 1988 में भारत ने गयूम की सहायता के लिए मालदीव में अपनी सेना भी भेजी.
भारत-मालदीव से जुड़े प्रमुख तथ्य
1 हिंद महासागर में स्थित मालदीव 1,200 द्वीपों का देश है. मालदीव के समुद्री रास्ते से चीन, जापान और भारत को पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति की जाती है.
2 करीब एक दशक से चीन हिंद महासागर क्षेत्र में नौसेना के जहाज भेज रहा है. ऐसे में इंटरनेशनल जियो पॉलिटिक्स में मालदीव का महत्व धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है.
3 हिंद महासागर क्षेत्र में इंटरनेट सुरक्षा प्रदाता होने के नाते भारत को मालदीव के साथ सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र में मजबूत संबंध बनाये रखने की दरकार है.
4 मालदीव में चीन की आर्थिक मौजूदगी भारत के लिए चिंता की बात है. मालदीव को चीन से मदद लगातार बढ़ रही है.
5 पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद की एमडीपी समेत विपक्ष का समर्थन करने वाली मालदीव की बड़ी आबादी चाहती है कि भारत इस संकट में अपने पड़ोसी देश की मदद करे और यामीन के खिलाफ कार्रवाई करे.
6 मालदीव सार्क का सदस्य भी है. सार्क में भारत का वर्चस्व कायम रखने के लिए मालदीव को अपने साथ रखना जरूरी है.
7 यामीन के शासनकाल में कट्टरपंथ तेजी से बढ़ रहा है. कहा जाता है कि सीरिया में लड़ाई के लिए मालदीव से कई लड़ाके गये थे.
8 मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं. 1965 में आजादी के बाद मालदीव को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में भारत शामिल था.
9 वहां करीब 25 हजार भारतीय रह रहे हैं. वहां जाने वाले विदेशी पर्यटकों में करीब छह फीसदी भारतीय होते हैं.
10 करीब चार लाख आबादी वाले इस देश के लोग शिक्षा व चिकित्सा के लिए भारत आना पसंद करते हैं.
क्या कहते हैं पर्यवेक्षक
मालदीव संकट पर भारत ने जहां सरकार को सर्वोच्च न्यायालय की बात मानने को कहा है, वहीं चीन का कहना है कि द्वीपीय देश के लोग संकट का समाधान करने में स्वयं सक्षम हैं.
नयी दिल्ली में कार्नेगी इंडिया के फेलो कॉन्स्टेंटाइनो जेवियर का कहना है कि हिंद महासागर क्षेत्र में वर्चस्व स्थापित करने में भारत की कोशिश में मालदीव बहुत अहम है और राष्ट्रपति यामीन ने पश्चिम के दबाव तथा भारत पर निर्भरता कम करने के लिए चीन ने नजदीकी बढ़ायी है. वर्ष 2013 में सत्ता संभालने के बाद से वे चीनी और सऊदी निवेश को बढ़ा रहे हैं तथा विपक्षी नेताओं को हिरासत में रखने और मानवाधिकार हनन के लिए अमेरिकी विदेश विभाग की आलोचना सुन चुके हैं. अमेरिका ने आपातकाल की भी निंदा की है.
ब्रूकिंग्स इंडिया के फेलो ध्रुव जयशंकर का मानना है कि न्यायपालिका ने सुरक्षा बलों पर खासा असर रखनेवाले यामीन पर लोकतांत्रिक नियंत्रण बनाने की कोशिश की है. भारत तात्कालिक रूप लोकतंत्र-समर्थकों को समर्थन दे रहा है, पर उसकी यह भी कोशिश है कि यामीन पूरी तरह से चीनियों और सऊदियों की गोद में न चले जायें.
ऑस्ट्रेलिया की नेशनल यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक डेविड ब्रेवस्टर के मुताबिक, मालदीव में चीन द्वारा जमीन हथियाने की आशंकाएं भी बढ़ रही हैं, जैसा कि उसने साउथ चाइना सी में किया है. उनका मानना है कि यामीन को चीन से दूर कर पाना और साथ ही कुछ लोकतंत्र बहाल कर पाना एक चमत्कार ही होगा तथा भारत के पास अच्छे विकल्प नहीं हैं.
(ब्लूमबर्ग में आयन मार्लो की रिपोर्ट से साभार)
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