किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद शिव मंत्र ‘कर्पूरगौरं’ का जाप आपने सुना होगा –
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
इसका अर्थ है : जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे हृदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है. यह स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गायी हुई मानी गयी है. शिव शंभू की इस स्तुति में उनके दिव्य रूप का बखान किया गया है. शिव को जीवन और मृत्यु का देवता माना गया है.
शिव का प्रमुख हथियार त्रिशूल है, जिसका नाम विजय है. इनके धनुष का नाम पिनाक व अजगव है, इसलिए ये पिनाकी भी कहे जाते हैं. इनके जटाजूट का नाम कपर्द है, इसलिए कपर्दी कहलाते हैं. सामान्यतः शिवलिंग पर अर्पित वस्तु ग्राह्य नहीं होती, परंतु शालिग्राम शिला के स्पर्श से ग्राह्य हो जाती है. शिवजी को विभूति (भस्म) बहुत प्रिय है. ललाट पर भस्म की लगायी जानेवाली तीन रेखाएं रहती हैं, इसलिए उसे त्रिपुण्ड्र कहते हैं. शिवपूजा शिव बनकर करने का विधान है, अतः त्रिपुण्ड्र और रुद्राक्ष धारण कर ही आराधना बतायी गयी है.