ऐसे मिलेगा साढ़ेसाती व ढैय्या से छुटकारा, करें ये उपाय

II डॉ एनके बेरा, ज्योतिषविद् II शनि सदैव अनिष्टकारी नहीं होते. वह व्यक्ति के जीवन में आश्चर्यजनक उन्नति भी देते हैं. इस विषय में शास्त्र कहते हैं – जन्मांगरूद्रेषु सुवर्णपादं द्विपंचनन्दे रजतस्य वदन्ति । त्रिसप्तदिक् ताम्रपदं वदन्ति वेदार्क साष्टे प्विह लौहपादम् ।। अर्थात-जन्म के समय शनि 1,6,11 स्थानों में हो तो सुवर्णपाद 2,5,9 स्थानों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 10, 2018 4:26 AM
II डॉ एनके बेरा, ज्योतिषविद् II
शनि सदैव अनिष्टकारी नहीं होते. वह व्यक्ति के जीवन में आश्चर्यजनक उन्नति भी देते हैं. इस विषय में शास्त्र कहते हैं –
जन्मांगरूद्रेषु सुवर्णपादं द्विपंचनन्दे रजतस्य वदन्ति ।
त्रिसप्तदिक् ताम्रपदं वदन्ति वेदार्क साष्टे प्विह लौहपादम् ।।
अर्थात-जन्म के समय शनि 1,6,11 स्थानों में हो तो सुवर्णपाद 2,5,9 स्थानों में हो तो रजतपाद, 3,7,10 स्थानों में हो, तो ताम्रपाद तथा 4,8,12 स्थानों में हो तो लौहपाद कहलाता है. लौहपाद में धन का नाश, सुवर्णपाद में सर्वसुखदायक, ताम्रपाद में सामान्य फलदायक तथा रजतपाद में शनि का प्रवेश सौभाग्यप्रद रहता है.
शनि की साढ़ेसाती हर मनुष्य के जीवन में तीन बार आती है. प्रथम साढ़ेसाती का प्रभाव शिक्षा एवं माता-पिता पर पड़ता है. द्वितीय साढ़ेसाती का प्रभाव कार्यक्षेत्र, व्यापार-व्यवसाय व आर्थिक पर पड़ता है. तृतीय साढ़ेसाती का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है.
जातक की चंद्रराशि से जब गोचर का शनि स्थितिवश द्वादश, प्रथम व द्वितीय (12,1,2) स्थानों में आता है, तो शनि की साढ़ेसाती कही जाती है. यह 7 वर्ष एवं 6 माह की होती है. शनि कर्म फलदाता हैं, साढ़ेसाती के समय शनि दंडनायक बन जाते हैं. इस समय मनुष्य को बुरे कर्म के लिए दुख उठाना पड़ता है. शनि की चंद्रमा से चतुर्थ एवं अष्टम भाव में स्थिति होने पर ढैय्या कहलाती है. साढ़ेसाती का प्रभाव साढ़े सात वर्ष एवं ढैय्या का प्रभाव ढाई वर्ष तक रहता है.
प्रत्येक राशि में शनि ढाई वर्ष रहता है, इसलिए तीनों राशियों में साढ़े सात वर्ष रहेगा. शनि 12वें स्थान में हो तो ढाई वर्ष तक उसकी दृष्टि कहलाती है. जन्मराशि में हो, तो ढाई वर्ष तक भोग कहलाती है. द्वितीय में हो तो ढाई वर्ष तक लात कहलाती है. अर्थात इस साढ़ेसाती में शनि नेत्र, उदर एवं पैरों में रहता है. उसी अनुसार जातक पर प्रभाव डालता है.
क्या है उपाय : शनि की साढ़े साती व ढैय्या के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए मनुष्य को ईमानदारी, सच्चाई, मेहनत से काम करना चाहिए. शास्त्रों में साढ़ेसाती के प्रभाव कम करने के लिए दान, व्रत-पूजन, मंत्र, रत्न धारण आदि उपाय वर्णित हैं, जिनके विधिपूर्वक पालन करने से शनि के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है.
मंत्र का प्रयोग : शनि की साढ़ेसाती से मुक्ति के लिए प्रातः स्नान के बाद 11, 21 या 108 बार शनि गायत्री मंत्र का जाप अतिशुभ माना गया है. तेल का दीपक जलाकर निम्न मंत्र श्रद्धा से रूद्राक्ष की माला से जप करें – ऊँ भग-भवाय विद्महें मृत्यु रूपाय धीमहि तन्नोः शनिः प्रचोदायात् ।।
शनि के ध्यान मंत्र : नीलाज्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् । छायामार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।
जपनीय शनि मंत्र : ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैय नमः
(जप संख्या-23000)
वनस्पति धारण : शनि के अशुभ प्रभाव कम करने के लिए बिच्छु की जड़ लंबी, काले धागे में लपेटकर दाहिने हाथ में (महिलाएं बायें हाथ में) बांध सकते हैं. शमी वृक्ष की जड़ भी काले कपड़े में लपेटकर बाजू में बांधकर-
‘ऊँ शं शनैश्चराय नमः’ 108 बार बोलकर धारण करने से रोग, कष्ट व दरिद्रता दूर होती है.

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