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ध्वनि ही शिव का वंश….जानें

II विनीता चैल II महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के एक साथ परिणय सूत्र में बंधने का महोत्सव है. शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जिसका शिवत्व के साथ घनिष्ठ संबंध होता है. अर्थात भगवान शिवजी के सबसे अधिक प्रिय रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है. कहा जाता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण चतुर्दशी […]

II विनीता चैल II
महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के एक साथ परिणय सूत्र में बंधने का महोत्सव है. शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जिसका शिवत्व के साथ घनिष्ठ संबंध होता है. अर्थात भगवान शिवजी के सबसे अधिक प्रिय रात्रि को शिवरात्रि कहा जाता है.
कहा जाता है कि फाल्गुन मास के कृष्ण चतुर्दशी की रात आदिदेव भगवान भोलेनाथ करोड़ों सूर्यों की आभा यानी ज्योति लेकर प्रकट हुए थे. इसलिए प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्रि कहलाती है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस विशेष रात्रि को शिव जी और पर्वतराज हिमालय की सुपुत्री पार्वती जी का विवाह हुआ था. शिव जी जब पार्वती से विवाह करने पर्वतराज हिमालय के यहां पहुंचे तो उनके बारात में प्रेत, पिशाच, गले में विषधर, जीव-जंतु, देवता एवं असुर सभी शामिल हुए. चूंकि यह शाही शादी थी, इसलिए विवाह समारोह से पहले एक विशेष समारोह में वर एवं वधू की वंशावली पढ़ी जा रही थी.
एक राजा के लिए उनके वंश की वंशावली गौरव गाथा होती थी. पार्वती के वंशावली का गुणगान काफी धूमधाम से हुआ. अब बारी थी शिवजी के वंशावली के गुणगान करने की. तब पार्वती के पिता ने शिव से अपने वंशावली के बारे बोलने के लिए कहा. शिव जी शून्य की ओर एकटक देख रहे थे.
सारे बाराती अपने में मग्न थे. शुभ मुहूर्त तेजी से बीत रहा था. उपस्थित वधू पक्ष के लोगों में शिव के वंश को लेकर फुसफुसाहट शुरू हो गयी. तब नारद जी ने स्थिति को संभालते हुए अपनी वीणा के तार से टंग की ध्वनि निकालते हुए कहा- ‘ये स्वयंभू हैं. इन्होंने अपनी रचना स्वयं की है, इसलिए इनका न कोई माता-पिता है, न कोई वंश और न कोई गोत्र. ये सब से परे हैं. ध्वनि ही एकमात्र इनका वंश है, जो प्रकृति से एक ध्वनि के रूप में प्रकट हुए हैं और प्रकृति में कोई भी चीज अकारण नहीं होती. प्रकृति में सबका अपना महत्व होता है’.
शिव सबके प्रिय हैं और सब शिव के प्रिय. शिवशंकर के नाम में ही सारे संसार के लिए मंगल एवं हित छिपा है. एक योगी और तपस्वी होते हुए भी शादी के बाद भोलेनाथ गृहस्थ जीवनयापन करते हैं.
उनका जीवन हमें महत्वपूर्ण संदेश देता है. उनकी पूजा सरल तरीके से भी कर सकते हैं और विधिपूर्वक भी. शिवजी केवल बेलपत्र और जल से भी प्रसन्न होते हैं. शिव महान एवं परम ज्ञानी हैं. वे सदा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं.
इमेल : chailvinita1977@gmail.com

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