शिव कल्याणकारी हैं, जगत के माता-पिता हैं, जानें किस दिन है महाशिवरात्रि, कौन सा करें जाप और कैसे करें रुद्राभिषेक
II मार्कण्डेय शारदेय II ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ markandeyshardey@gmail.com शिव कल्याणकारी हैं, क्योंकि यह शब्द ही कल्याण का वाचक है. कल्याण पूर्णतः सात्विकता है, क्योंकि इससे किसी की हानि संभव ही नहीं. परंतु केवल सत्व गुण से सृष्टि चल नहीं सकती. सत्व, रज एवं तम इन तीनों के योग के बिना कुछ भी संभव नहीं, […]
II मार्कण्डेय शारदेय II
ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ
markandeyshardey@gmail.com
शिव कल्याणकारी हैं, क्योंकि यह शब्द ही कल्याण का वाचक है. कल्याण पूर्णतः सात्विकता है, क्योंकि इससे किसी की हानि संभव ही नहीं. परंतु केवल सत्व गुण से सृष्टि चल नहीं सकती. सत्व, रज एवं तम इन तीनों के योग के बिना कुछ भी संभव नहीं, इसलिए कमोबेश ये सबमें रहते ही हैं.
तीनों के मिश्रण से ही सृष्टि की विविधता भी है. ये गुण भगवती के ही हैं, जो भगवान के साथ सदा अग्नि-ज्वाला, चंद्र-ज्योत्स्ना व दूध की धवलता की तरह अभिन्न हैं. शिव भी इनके बिना शव ही हो जायेंगे. इसीलिए लिंगरूप हो या बेर (मूर्ति) रूप, दोनों में यह अकेले नहीं. दोनों का योग ही संसार है. इसीलिए तो कालिदास वंदना करते कहते हैं –
वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थ-प्रतिपत्तये ।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वती-परमेश्वरौ ।।
अर्थात् जैसे शब्द के अर्थ का बोध कराने के लिए शब्दार्थ-संयोग रहता है, वैसे ही संसार की समग्रता के लिए एकाकार व अर्धनारीश्वर में व्यक्त जगत् के माता-पिता भवानी-शंकर की मैं वंदना करता हूं.
प्रकृति-पुरुष की समन्विति ही सृष्टि है. प्रकृति को स्त्रीत्व, सोमतत्व, माया, आद्या शक्ति, अविद्या आदि नामों से जाना गया है, तो पुरुष को अग्नितत्व, ब्रह्म, ईश्वर, मायापति आदि नामों से. दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, काली आदि जहां आदिमाता प्रकृति के पुरुषयुक्त व्यावहारिक रूप हैं, वहीं शिव, विष्णु, सूर्य, गणेश आदि प्रकृतियुक्त पुरुष के. स्पष्ट है कि दोनों एक-दूसरे से जुदा नहीं हैं, दोनों एक-दूसरे में समाहित हैं. इसीलिए कहा गया है –
मायां तु प्रकृतिं विद्यात् मायिनं तु महेश्वरः।
तस्यावयव-भूतैः तु व्याप्तं सर्वमिदं जगत्।।
अर्थात् माया को प्रकृति और मायापति को महेश्वर समझना चाहिए. इन्हीं दोनों के एकत्व के कार्य-कारण भाव से यह संसार व्याप्त है.
शिवरात्रि का महत्व एवं विधान : मान्यता है कि इस दिन हर शिवलिंग में भगवान विराजमान होते हैं. पहली बार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मध्य रात्रि में शिवजी लिंग रूप में प्रकट हुए थे.
शिवरात्रि व्रत करोड़ों पापों को नष्ट कर देता है. इसमें व्रत, पूजन और रात्रि-जागरण तीनों आवश्यक हैं. प्रातः नित्य कृत्य से निवृत्त हो पूजा करें, पर मुख्य विधि सायंकाल से प्रारंभ होती है. रात्रि के प्रथम प्रहर में ‘हौं ईशानाय नमः’, द्वितीय प्रहर में ‘हौं अघोराय नमः’, तृतीय प्रहर में ‘हौं वामदेवाय नमः’तथा चतुर्थ प्रहर में ‘हौं सद्योजाताय नमः’-मन्त्रों से क्रमशः दूध, दही, घी एवं शहद से स्नान कराकर विशेषार्घ्य दें तथा प्रार्थना करें. प्रभावशाली शिवमंत्र बहुत हैं, पर ‘नमःशिवाय’ सहज और सर्वोपरि है. पूजा, उपवास के अनंतर प्रार्थना करें –
संसार-क्लेशदग्धस्य व्रतेनानेन शंकर ।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञान-दृष्टिप्रदो भव ।।
किस दिन महाशिवरात्रि?
इस बार कुछ मतों से 13 फरवरी को तो कुछ मतों के अनुसार यह 14 फरवरी को है. 13 फरवरी (मंगलवार) को विश्वपंचांग, वाराणसी के अनुसार त्रयोदशी तिथि रात्रि 10:05 तक है, तदुपरांत चतुर्दशी प्रारंभ होकर अगले दिन, अर्थात 14 (बुधवार) को रात्रि 12:02 तक यानी कुल 26 घंटा 03 मिनट तक है.
दरभंगा विवि पंचांग के अनुसार 13 को त्रयोदशी की समाप्ति रात्रि 10.34 बजे और चतुर्दशी की समाप्ति 14 को रात्रि 12:28 बजे है. ऐसे में दोनों दिन ही शिवरात्रि का योग है, परंतु त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी का प्रशस्तता के कारण 13 को उत्तम मानना शास्त्र-सम्मत है. मंगलवार को जया योग व माघ-फाल्गुन होने पर इसी तिथि को महाशिवरात्रि मनायी जायेगी.
रुद्राभिषेक का माहात्म्य : महाशिवरात्रि में रुद्राभिषेक का विशेष माहात्म्य है, अतः मनः कामनाओं की सिद्धि के लिए शास्त्र-निर्दिष्ट विशेष द्रव्यों से भगवान का अभिषेक अवश्य करें. शास्त्रानुसार संतान-प्राप्ति के लिए गाय के दूध से, धनप्राप्ति के लिए ईख के रस से, रोग-शत्रु के निवारण के लिए सरसों के तेल से एवं अरिष्ट-निवारण के लिए दूब के रस से विशेष विहित है.