इस समस्या से निबटने की आरबीआई की पहल

बैंकिंग व्यवस्था पर बोझ बन चुकी एनपीए के मुद्दे पर सरकार की धीमी पहल आलोचनाओं के घेरे में रही है. बैंकों के लाभ को निगल जानेवाले और लगातार विकराल होते एनपीए न केवल ऋण जारी करने की प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था की गति को भी अवरुद्ध कर रहे हैं. यही वजह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 11, 2018 12:56 AM

बैंकिंग व्यवस्था पर बोझ बन चुकी एनपीए के मुद्दे पर सरकार की धीमी पहल आलोचनाओं के घेरे में रही है. बैंकों के लाभ को निगल जानेवाले और लगातार विकराल होते एनपीए न केवल ऋण जारी करने की प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था की गति को भी अवरुद्ध कर रहे हैं. यही वजह है कि बैंक ब्याज दरों में कटौती नहीं कर पाने के लिए विवश हैं, जिससे निवेश का प्रभावित होना स्वाभाविक है. कंपनियों की वित्तीय स्थिति और क्रेडिट रेटिंग की विधिवत जांच-पड़ताल के बगैर उदारतापूर्वक ऋण बांटने और प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए असुरक्षित ऋण जारी करने जैसे कारणों की वजह से बैंकों के एनपीए में तेजी आयी है.

दूसरी ओर, जांच एजेंसियों के भय से एनपीए मुद्दों को हल करने के लिए बैंक सेटलमेंट स्कीम और एसेट रिकंस्ट्रक्शन करने से कतरातेे हैं. हालांकि, आरबीआई ने हाल के वर्षों में फंसे हुए ऋणों से निपटने के लिए कॉरपोरेट ऋण पुनर्गठन व्यवस्था (सीडीआर), ज्वाइंट लेंडर्स फोरम के गठन, फंसे ऋणों की वास्तविक तसवीर पेश करने के लिए बैंकों पर दबाव बनाने और डिफॉल्टरों पर नियंत्रण के लिए स्ट्रेटजिक डेट रीस्ट्रक्चरिंग (एसडीआर) स्कीम जैसे ठोस कदम उठाये हैं, लेकिन अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं आ सके हैं.

Next Article

Exit mobile version