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वीरों में वीर थे शहीद बुधु भगत

II अभिषेक चंद्र उरांव II झारखंड के वीरों की बहादुरी की गाथाओं से भला कौन परिचित नहीं होगा? इतिहास के पन्नों में ऐसे वीरों की बड़ी तादाद है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की आन, बान और शान के लिए संघर्ष किया और अपने प्राणों की न्योछावर कर दिये. हालांकि लिखित साक्ष्य के अभाव में झारखंड के […]

II अभिषेक चंद्र उरांव II

झारखंड के वीरों की बहादुरी की गाथाओं से भला कौन परिचित नहीं होगा? इतिहास के पन्नों में ऐसे वीरों की बड़ी तादाद है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की आन, बान और शान के लिए संघर्ष किया और अपने प्राणों की न्योछावर कर दिये. हालांकि लिखित साक्ष्य के अभाव में झारखंड के कई वीर महानायकों के योगदान और संघर्ष के बारे मे अक्सर पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है.

कोल विद्रोह के नायक अमर शहीद बुधु भगत ने अंग्रेजी दमन का खुलकर विरोध किया था. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी इनकी काफी अहम भूमिका रही थी. लेकिन इससे पूर्व, वर्ष 1831-32 के दरम्यान छोटानागपुर को विदेशी दमन से मुक्त करवाने के लिए यहां के जनजातियों के साथ मिलाकर आंदोलन का बिगुल फूंका था. इस विद्रोह को ‘लरका विद्रोह’ के नाम से भी जाना जाता है. इसमें मुंडा, उरांव, हो इत्यादि कई जनजातियां शामिल थीं.

वीर बुधु भगत जन्म 17 फरवरी 1792 को रांची जिला के चान्हो प्रखंड के सिलागाई गांव में हुआ था.वे उरांव जनजाति से थे. उनका परिवार का पेशा खेती-बारी था. वीर बुधु भगत तीर चलाने में खासे दक्ष माने जाते थे. वे शिकार के काफी शौकीन रहे. बचपन में गांव के आसपास के जंगलों में वे बकरियां चराने के लिए जाते थे. कम समय में ही वे कई कारणों से इतने प्रसिद्ध हो गये कि लोगों को ऐसा लगने लगा कि उन्हें किसी प्रकार की दैवीय शक्ति प्रदान हो. कोयल नदी के किनारे इनका गांव होने के कारण नदी की तरह सदा बहते रहने की प्रवृति थी.

उन्होंने कभी भी अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया. बुधु भगत बचपन से ही जमींदारों और अंग्रेजी सेना की क्रूरता देखते आये थे.उन्होंने देखा था कि किस तरह तैयार फसल जमींदार जबरदस्ती उठा ले जाते थे और गरीब गांव वालों के घर कई-कई दिनों तक चूल्हा नहीं जल पाता था.अपनी जमीन और जंगल की रक्षा के लिए जब सैकड़ो की तादाद में आदिवासियों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ लोहा लेने का संकल्प लिया, तो उन्हें वीर बुधु भगत जैसा नेतृत्वकर्ता मिला. अपने दस्ते को बुधु ने गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया. विद्रोह के लिए इनके के पास अब पर्याप्त जन समर्थन था.वीर बुधु भगत बेहतरीन घुड़सवार में से थे. इन्होंने अंग्रेजों से लड़ाई में अपनी सारी ताकत झोंक दी थी.

घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का फायदा उठाकर कई बार अंग्रेजी सेना को परास्त किया. अन्याय के खिलाफ विद्रोह देख कर अंग्रेज सरकार और जमींदार कांप उठे. वीर बुधु भगत ने गांवों में घूम-घूमकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए लोगों को प्रेरित किया. जल्द ही अंग्रेजों को पता चल गया कि बुधु को पकड़े बिना आदिवासी विद्रोह को दबाना असंभव है.अतएव अंग्रेजी हुकुमत उनको पकड़ने के लिए इनाम की राशि भी तय कर दी और तमाम प्रयत्न भी शुरू कर दिये.

अंग्रेजों ने जब सिलागाई को चारों तरफ से घेरने का मंसूबा बनाया, तो वीर बुधु भगत को अपने लोगों से पहले ही इस बात का पता चल गया था. उन्होंने अपने लोगों को तैयार रहने के लिए कहा.

अंग्रेजों पर वार करने की योजना बनायी गयी.13 फरवरी,1832 को जब अंग्रेजी सेना सिलागाई आ धमकी, तो वीर बुधु भगत के नेतृत्व में उनको सैकड़ो आदिवासियों के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा.आदिवासी आंदोलनकारियों ने उनपर तीरों की वर्षा शुरू कर दी, सैकड़ो लोगों ने तलवार, टांगी और परंपरागत हथियारों से अंग्रेजों डटकर मुकाबला किया.अंग्रेजों ने भी इस विद्रोह को कुचलने के लिए जमकर अमानवीय तरीके अपनाये थे.अंधाधुंध गोलियां चलने के बावजूद पारंपरिक हथियार द्वारा सभी लोग अंग्रेजों का सामना करते रहे. बूढ़े, बच्चों, महिलाओं और युवाओं के भीषण चीत्कार से इलाका कांप उठा.

इस लड़ाई में बहुत से आदिवासी लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी. सैकड़ों लोग मारे गये, इनमें इनके बेटे ‘हलधर’ और ‘गिरधर’ भी शामिल थे. कहा जाता है कि वीर बुधु भगत को पकड़ पाना तथा मार पाना असंभव था, परंतु वे अपने बेटों की मृत्यु हो जाने से अंदर से कमजोर पड़ गये थे.13 फरवरी 1832 ई. को कोल विद्रोह के नायक वीर बुधु भगत अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए. इससे पहले उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अंग्रेजो के छक्के छुड़ाए. फलस्वरूप कोल विद्रोह में सैकड़ों आंदोलनकारी सिलागाई गांव में मार दिये गये. हजारों घर जला दिये गये, हजारों की संख्या में पशुधन जब्त किये गए और हजारों किसानों के अनाज को जला दिए गये.

कहा जाता है कि आदिवासियों में भय उत्पन्न करवाने के लिए वीर बुधु भगत के बलिदान के बाद भी अंग्रेजों ने अमानवीय तरीके अपनाये थे, लेकिन उनके द्वारा शुरू की गयी क्रांति की मशाल की लौ कभी धीमी नहीं पड़ी. इतिहास के पन्नों में भी उनकी शहादत स्वर्णाक्षरों में दर्ज है.

सिलागाई टोंगरी वीर बुधु भगत की वीरता का आज भी गवाह है. तीर-धनुष में निपुण वीर बुधु भगत की वीरता का साक्ष्य ‘वीर पानी’ झरना है, जहां उन्होंने तीर चलाया था. हम उनके बलिदान, मातृभूमि के प्रति प्रेम, इनकी वीरता, शौर्य और अदम्य साहस को कभी भूल नहीं सकते है. उनकी वीरता की कहानी पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों के दिलों-दिमाग और हृदय में हमेशा संजोये रखेंगे.

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